Friday, January 07, 2011

क्या बेहतर न होता ...............घुघूती बासूती

यदि
मानव आदिमानव ही रहता
न फर गँवाता
न ठंड से ठिठुरता.
न काटता वन
न लू से मरता.
न धरती होती बंजर
न पक्षी खोते डेरा.
न खोते हाथी गलियारे
न मरते चीते सारे.
धरा होती अब से कितनी बेहतर
यदि हुई होती उन्नति कुछ कमतर.
घुघूती बासूती

21 comments:

  1. सही कह रही है शायद बेहतर होता, किन्तु तब हम सब ब्लोगिंग कैसे करते और एक दूसरे के इन विचारो से परिचित कैसे होते |

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  2. प्रकृति सधी रहती तब।

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  3. तब मनुष्य शायद सभ्य न कहलाता
    न हममें से कोई किसी को
    सभ्य या असभ्य बताता

    मानव की प्रगति थम जाती
    तो आज की चिंताएँ हमें कहाँ सताती

    प्रकृति है तो प्रगति है
    प्रगति है तो चिंता है
    चिंता है तो उद्यम है
    उद्यम है तो साधन है
    साधन है तो समाधान है
    समाधान है तो प्रगति है
    इसी प्रगति में जीवन है
    जीवन बहुत सुंदर है

    पता नहीं क्यों, आपकी कविताएँ मुझे बहुत सोचने का साधन देती हैं। सादर प्रणाम।

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  4. सभ्य बनकर मानवता का राग अलापने से तो बेहतर होता अदि मानव ही बने रहना |

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  5. कुछ खोना है, कुछ पाना है.

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  6. यह बात नेट पर नहीं होती.

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  7. हम अपने ज्ञान-विज्ञान का प्रयोग प्रकृति संरक्षण में लगायें, भौतिकतावादी अंधी भाग-दौड़ से बचें तो तो अभी भी कुछ बेहतर होने की संभावना है।
    ...चिंतन के लिए प्रेरित करती कविता।

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  8. पता नहीं क्या होता ऐसा होता तो....

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  9. चमत्कृत कर दिया. परन्तु अब वापस लौटना संभव नहीं है.

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  10. सच प्रकृति का यह हाल तो बिल्कुल ना होता......

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  11. कुछ मायनों में तो आज का मानव आदि मानव जैसा ही है ।

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  12. अच्छा होता यदि मानव आदिमानव ही रहता तो दुनियां में भ्रष्टाचार का बोल बाला भी नहीं होता|

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  13. शायद सही कह रही हैं।

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  14. यदि ऐसा न होता तो चंद्रयान ना होता

    यदि ऐसा ना होता तो कल्पना चावला न होती


    यदि ऐसा होता तो घुघूती बासूती न होती

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  15. सही कहा आपने...

    यदि उन्नति हुई होती कमतर...

    मनुष्य स्वयं ही अपने को विनाश की और तेजी से भगाए लिए जा रहा है ,कोई क्या करे...

    सार्थक,बहुत ही सुन्दर रचना..

    आभार इस सुन्दर रचना के लिए...

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  16. सुन्दर कविता. ऐसा इसलिए लिखा क्योंकि मुझे कविता समझ आ गयी और मैं इसके बारे में कुछ अच्छा या बुरा लिख सकता हूँ. अक्सर होता ये है की मुझे कवितायेँ समझ ही नहीं आतीं.

    मेरे हिसाब से आज की जो भी पर्यावरणीय समस्याए हैं वो सभी विकास की वजह से नहीं बल्कि आदमी के लालच की वजह से हैं. मानव का विकास तो प्राकृतिक घटना हैं. उत्तम से सर्वोत्तम की ओर बढाने का रास्ता तो हमें प्रकृति ही दिखलाती है. अगर हम आपने लालच पर थोडा नियंत्रण कर लेन तो सब कुछ सही रहे.

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  17. बहुत गहन अभिव्यक्ति.अच्छा लगा पढना.

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  18. यदि मानव आदिमानव ही रहता तो कविता में उल्लिखित बाकी सारे भी आज जैसे कहां होते ?

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  19. खाल उधड़ गयी
    कपड़े पहन लिए
    फितरत नहीं बदली

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  20. wakai takniki rup main humne kafi tarrqui kr li hai lakin afsos ki mansik starpr jitni tarraqui honi chahiye thi wo nahi ho paai hai ,
    aapka afsos jayaj hai.....

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