पढ़ाई, नौकरी व आर्थिक स्वतन्त्रता ने स्त्रियों के स्वाभिमान व आत्मविश्वास में जहाँ वृद्धि की है वहीं समाज की नजरों में भी उनकी प्रतिष्ठा बढ़ाई है। यही काम या उससे भी कुछ अधिक खेलों व खेल प्रतियोगिताओं ने स्त्री खिलाड़ियों के लिए किया है। जब लड़कियाँ तमगे, पुरुस्कार, नाम व धन जीतकर अपने गाँव, कस्बे या शहर के मोहल्ले में आती हैं तो वे अनेक अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणा का काम करती हैं और न जाने कितनी अन्य लड़कियों के माता पिता को प्रेरणा देती हैं कि बेटियों को भी खेलकूद में भाग लेने दें। उस देश में जहाँ अभी कुछ वर्ष पहले तक बहुत से कम सुविधा सम्पन्न परिवारों में बेटियों की पढ़ाई भी समय व धन की बर्बादी मानी जाती थी और 'पढ़ लिख कर क्या कलेक्टर बन जाएगी' पूछा जाता था, वहीं जब कई माता पिता देख रहे हैं कि बेटियाँ खेलकर नाम व धन दोनों कमा रही हैं तो वे न केवल बेटियों को खेलने दे रहे हैं अपितु उन्हें प्रोत्साहन तक दे रहे हैं।
इस बार के राष्ट्रमण्डल खेलों व एशियन खेलों में छोटे कस्बों व गाँव की बहुत साधारण परिवारों से आने वाली आर्थिक समस्याओं के बावजूद बिना सही जूतों, किट आदि के भी पदक जीतने वाली स्त्री खिलाड़ियों ने न जाने कितनी लड़कियों का पथ प्रशस्त कर दिया। उन्हें घर से बाहर जाने, सुविधाजनक वस्त्र पहनने आदि की स्वतन्त्रता इन्हीं खेलों ने दिलवाई है।
मुझे याद हैं हमारे कॉलेज के दिनों के महीने में केवल तीन बार छात्रावास से बाहर जाने की अनुमति वाले वे दिन! गाय भैंस को भी शायद तबेले से बाहर निकलने को मिलता है। तब भी खेल ही मेरे बचाव को आते थे। खेल, टूर्नामेंट, अभ्यास आदि के कारण मुझपर कम रोकटोक थी।
यही बात शायद साऊदी अरब के शिक्षा विभाग को भी पता है कि खेल स्त्रियों को मुक्ति का आभास दिला सकते हैं। तभी तो वहाँ लड़कियों के स्कूलों में न केवल खेलों का कोई स्थान नहीं है अपितु वे अवैध भी हैं। हाल ही में जब रियाध के छः निजी स्कूलों ने छात्राओं के लिए खेल टूर्नामेंट आयोजित किए तो शिक्षा विभाग ने उन्हें अवैध गतिविधि घोषित किया।
मुझे याद है कि तीन साल के अपने प्रवास में मैंने सिवाय भारतीय बच्चियों के कभी वहाँ किसी स्थानीय बच्ची को खेलते हुए नहीं देखा। यह समाचार पढ़ने के बाद तो मैंने अपने मस्तिष्क में और भी जोर डाला किन्तु वहाँ की स्त्रियों या बच्चियों के खेलने का केवल एक ही दृष्य याद आया।
तीस साल पहले कारखाने की उस बस्ती में (जहाँ भारतीय, अरब, मिस्र व कुछ अन्य देशों के लोग रहते थे ) हम भारतीय कर्मचारियों व उनके परिवार को बहुत सी विशेष सुविधाएँ व अनुमति मिली हुई थीं। हम यहाँ की तरह ही बिना परदे के रह सकती थीं, अपनी बस्ती में बिना पिता, पुत्र, पति के घूम सकती थीं, महिला मंडल में खेल सकतीं थीं, पार्टी कर सकती थीं, यहाँ तक कि यहाँ की तरह वहाँ भी हमारा स्पोर्ट्स क्लब था जहाँ हम स्त्री, पुरुष, बच्चे जा सकते थे। यह अनुमति हमें किस मजबूरी में दी गईं थीं यह तो पता नहीं। शायद कारखाना चलाने में उनकी असमर्थता व कारखाना चलाने को हमारी भारतीय कम्पनी को अनुबन्ध देने के कारण विदेशियों पर निर्भरता ही उन्हें उदार बनने को बाध्य करती रही हो, या अनुबन्ध ही इस शर्त के साथ कि हम अपना सामान्य सामाजिक जीवन जिएँगे, बनाया गया हो।
एक बार हमने अपने महिला मण्डल में एक पार्टी रखी जिसमें कई खेल भी रखे थे। हमने कुछ स्थानीय स्त्रियों को भी बुलाया था। प्रायः वे नहीं आती थीं। चाय नाश्ते के बाद खेल चल रहे थे जब दो घंटे देर से हमने कुछ स्त्रियों को आते देखा। हमारे पास इतना समय नहीं था कि हम चाय नाश्ता तैयार कर परोसते, समेटते रसोइये को विदा कर सकें क्योंकि ऐसा करने पर उसे उनके सामने से गुजरना होता जो शायद केवल स्त्रियों के बीच आने के विचार से आईं स्थानीय स्त्रियों को अनायास अपने सामने परपुरुष देख न केवल हतप्रभ कर देता अपितु शायद उनके अनुसार अनुचित होता। सो हमने रॉबर्ट को जिस कमरे में वह खाना समेट रहा था वहाँ से बाहर निकलने को सख्त मना किया और उस कमरे के दरवाजे को बाहर से बन्द कर दिया।( उल्टी गंगा बहाने की अपनी यह आदत काफी पुरानी है। पुरुष को छिपा दो तो भी स्त्री का परदा हो गया!)
जितना आनन्द उन स्त्रियों को हमारे द्वारा आयोजित उन भाग, दौड़, मस्ती वाले खेलों में आया, जिस प्रकार वे पुलकित हो किलकारियाँ मार रही थीं वह देख हम दंग रह गईं। हममें से केवल एक को ही अरबी आती थी वही उन्हें खेल समझा रही थीं। उनकी हँसी, खुशी व उत्साह से हमें यह तो समझ आ रहा था कि उन्हें मजा आ रहा था और रॉबर्ट को बन्द करना व्यर्थ नहीं गया था। हमें तब भी यही लगा था कि शायद वे जीवन में पहली बार खेल रहीं थीं। २३ दिसम्बर २०१० के टाइम्स में पढ़े समचार ने लगभग २५ साल बाद मेरे उस संदेह कि 'वे पहली बार खेल रहीं हैं' की पुष्टि कर दी। यदि आज भी बच्चियों को खेलने की स्वतन्त्रता नहीं है तो उनके बचपन में तो क्या ही रही होगी? यदि पंख काटने की बजाए उनका उपयोग शुरू से निषेध कर दिया जाए तो वे पंख केवल सजावटी रह जाते हैं, पक्षी शायद उन्हें फड़फड़ाना भी भूल जाता है।
घुघूती बासूती
Tuesday, December 28, 2010
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एशियाड व राष्ट्रमंडल खेलों में महिलाओं की सफलता ने इस उत्साह में एक नया अध्याय जोड़ दिया।
ReplyDeleteसमान मौका दिया जाए .. तो महिलाएं पुरूषों से पीछे क्यूं रहेंगी .. किसी प्रकार के खेल से जुडी तमाम महिलाओं को मेरी शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteभारत में पंखो को मिली ये आजादी भी केवल खेलो तक ही सिमित है | कुछ समय पहले एक पूर्व महिला हाकी खिलाडी को दहेज़ के लिए प्रताड़ित करने की खबरे सभी ने देखी थी और आश्चर्य इस बात पर था की वो कई सालो से ये सब सह भी रही थी और घरवाले उसका कोई साथ नहीं दे रहे थे | महिलाओ की सबसे बुरी स्थिति के लिए बदनाम राज्यों में एक हरियाणा से जब कई लड़कियों के खेलो में सफलता की कहानी बाहर आती है तो अच्छा लगता है पर साथ ही इस बात का भी एहसास भी रहता की ये पंखो की फडफडाहट केवल खेलो तक ही सिमित है सामाजिक और निजी फैसलों में अभी भी उनके पंख बंधे ही है | उम्मीद है एक दिन यो बंधन भी खुल जायेंगे |
ReplyDelete"'पढ़ लिख कर क्या कलेक्टर बन जाएगी" जैसी मानसिकता का धीरे-धीरे खात्मा हो रहा है ,
ReplyDeleteयह एक शुभ संकेत है ,
आभार..................
आज कल की महिलाऐं किसी बात में भी पुरुषों से कम नहीं हैं| सिर्फ मौका मिलना चाहिए|
ReplyDeleteआज भारत की तमाम खिलाडी लडकियां अपने-अपने समाज में मिसाल कायम कर रही हैं। मानसिकता बदल रही है।
ReplyDeleteप्रणाम
मैने भी स्मृति पर भरपूर जोर डाला और "प्रिंसेस ऑफ सउदी अरेबिया " (जिसमे एक उच्च वर्ग की स्त्री की गाथा है)...पुस्तक को याद करने की कोशश की कि कहीं भी उसमे किसी लड़की के खेलने का जिक्र है...ना नहीं है ...लड़कियों का आपस में ही पार्टी करना ,इन सबका जिक्र तो है..पर खेल का नदारद.
ReplyDeleteभारत में थोड़ा सुधार आ तो रहा है..भले ही स्वार्थ के लिए ही सही....याद आ गया "चक दे' फिल्म में उस गोलकीपर की कहानी जिसे खेलने की इजाज़त ,सरकारी नौकरी और सरकारी आवास के लालच के एवज में मिली थी
परिवर्तन तो आ रहा है मगर बहुत धीरे।आभार।
ReplyDeleteहमारे समाज से अभी ये मानसिकता गयी नहीं की 'खेलना-कूदना लड़कियों का काम थोड़े है'
ReplyDeleteपरिवर्तन की रफ़्तार बेशक धीमी है मगर सही दिशा मे है।
ReplyDeleteअफ़सोस तो इस बात का है कि इकीस्वीं सदी में भी विश्व के कई कोनों में स्त्रियों को बाँध कर रखा जाता है पर्दे में ।
ReplyDeleteयह तो एक किस्म का अत्याचार ही है ।
ख़ुशी है कि हमारी बच्चियों ने विश्व में अपनी धाक जमा दी ।
बेहतरीन प्रस्तुति,सार्थक प्रयास.
ReplyDeletepahli baar jana arab desh ke is kroor nishedh ke baare me aur vaha ki naari jaati ke liye dukh ho raha hai. ye to bahud badi vidambana hai ki 21vi sadi me sansaar ke kayi kone aise bhi hain.
ReplyDeletesunder prabhaavshaali prastuti.
आपको एवं आपके परिवार को नव वर्ष की मंगल कामनाएं।
ReplyDeleteहम तो वैसे भी हर जगह समझौता कर लेते हैं..
ReplyDeleteसुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
ReplyDeleteयह हमारी आकाशगंगा है,
सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
उनमें से एक है पृथ्वी,
जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां...
-डॉ एपीजे अब्दुल कलाम
नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो...
जय हिंद...
सुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
ReplyDeleteयह हमारी आकाशगंगा है,
सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
उनमें से एक है पृथ्वी,
जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां...
-डॉ एपीजे अब्दुल कलाम
नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो...
जय हिंद...
आपको सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ।
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति। अपको भी सपरिवार नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteसच कहा - अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । "खबरों की दुनियाँ"
ReplyDeleteयकीनन महिलाएँ पुरूषों से कम नहीं हैं
ReplyDeleteहमेशा की तरह सुन्दर पोस्ट ! वैसे सउदी अरेबियाई मानसिकता पर एक पोस्ट तो बनती ही है !
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभ कामनाएं !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
http://mithileshdubey.blogspot.com/2010/12/blog-post_26.html नारी उत्थान में निहित भारत विकास-
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए...
ReplyDelete*काव्य- कल्पना*:- दर्पण से परिचय
*गद्य-सर्जना*:-जीवन की परिभाषा…..( आत्मदर्शन)