इतना दुख तो प्रेमियों ने प्रेम के खोने पर भी न मनाया होगा, जितना लोगों ने प्याज की याद में मनाया है। कुछ कहने से पहले एक सच बता दूँ कि प्रवचन सुनने से पहले जान लीजिए कि यह भुक्तभोगी का प्रवचन नहीं है। 'जाके पैर न फटी विबाई' वाली बात शतप्रतिशत मानती हूँ किन्तु यह भी तो बताइए कि क्या मलेरिया का इलाज कराने के लिए मलेरिया से कभी ग्रसित हुए डॉक्टर, हृदय रोग के इलाज के लिए हृदय रोगी डॉक्टर, पागलपन के इलाज के लिए पागल या भूतपूर्व पागल डॉक्टर के पास ही तो नहीं जाया जाता ना! अब यदि सौभाग्य (आपके सौभाग्य किन्तु उसके दुर्भाग्य) से वह आपके वाले रोग से कभी पीड़ित रहा हो तो अलग बात है किन्तु हम इस बात का आग्रह तो नहीं कर सकते ना!
सो देखिए, मैं इस प्याज विरह से जरा भी ग्रसित नहीं हूँ। सामान्य स्थिति में प्याज लहुसुन का उपयोग नहीं ही करती। उनकी कीमतें बढ़ने पर जरा भी विचलित नहीं होती। इन दोनों का उपयोग पति के लिए माँसाहार पकाने में ही करती हूँ, जो नित्य नहीं होता। कभी कभार प्याज(केवल प्याज, लहुसुन कदापि नहीं ) का उपयोग किसी एक आध व्यंजन पकाने में इसलिए कर लेती हूँ कि यदि घर से बाहर कभी खाना पड़े तो खाना खा सकूँ। अन्यथा विवाह पूर्व तो प्याज को भी कभी काटा, पकाया, खाया नहीं था। फिर भी प्याज के विरह में पीड़ित न होने पर भी मैं प्याजिटेरियन्स से पूरी सहानुभूति रखती हूँ, उनका कष्ट समझ सकती हूँ। मैं तो अपने आप को प्याज के जूतों में भी रखकर सोच सकती हूँ तो आप प्याजिटेरियन्स के जूतों में अपने पाँव डाल आपका कष्ट क्यों नहीं अनुभव कर सकती?
हर समस्या का कोई न कोई हल होता है। अब यदि कोई वस्तु न हो तो हम क्या करेंगे? या तो..
१. हम उसे कहीं न कहीं से ढूँढ, मना लाएँगे, किसी भी कीमत पर!
२. हम उसका कोई विकल्प खोजेंगे।
३. या उसके बिना ही जीना, काम चलाना सीख लेंगे।(इस देश में लोग प्यार के बिना जीने का पाठ पढ़ाते रहें हैं सो प्याज के बिना क्यों नहीं? )
तीनों उपाय ही कठिन हैं किन्तु कोई न कोई तो अपनाना ही होगा। खोजो, चुराओ, उधार लो, सूँघकर, देखकर काम चलाओ या फिर सात्विक नॉनप्याजेटेरियन बन जाइए।
उसे ढूँढने के लिए महाराष्ट्र के प्याज उगाने वाले क्षेत्रों या उसकी मंडियों में जाकर बोली लगाकर अपने व अपने मोहल्ले वालों के लिए थोक के भाव लाया जा सकता है। यह न कर पाएँ तो भी प्याज के प्यार में कुछ दिन के लिए सिगरेट, दारू, पान, खैनी, पान मसाला, मिठाई, सिनेमा छोड़ बचा पैसा प्याज प्रेम में लगाया जा सकता है।
प्याज के पत्तों में भी प्याज की ही गन्ध होती है। प्याज के बिना प्याज के पत्तों से काम चलाया जाए। क्यों न उन पत्तों को ही छौंके में डाल वैसे ही काम चलाया जाए जैसे प्रिय की अनुपस्थिति में उसकी फोटो देख काम चलाया जाता है। प्याज के पत्तों को फसल काटते समय काट सुखाकर गरम मसाले या केसर की तरह सम्भालकर रखा जा सकता है और समय समय पर खुशबू के लिए उपयोग किया जा सकता है। साल दो साल में कोई समझदार प्याज की सुगन्ध या अर्क भी बना देगा। तब जैसे हम बिना कभी वनीला फलियों को कभी देखे उसकी सुगन्ध, एसेन्स वाले खाद्यपदार्थ खाते हैं, वनीला एसेन्स का उपयोग करते हैं वैसे ही आने वाली पीढ़ियाँ भी प्याज अर्क का उपयोग किया करेंगी। शायद प्याज की सुगन्ध वाले इत्र भी बिकें, वैसे ही जैसे स्पाइस के नाम से मसालों वाले बिकते हैं।
लगभग सत्ताइस तीस साल पहले जब हम खाड़ी के एक देश में रहते थे तो हमने बहुत सी चीजों के बिना जीना सीखा था। तब वहाँ अरहर की दाल नहीं मिलती थी, जो मिलती थी वह अरहर के नाम पर कोई अन्य बहुरूपिया दाल थी। अरहर के शौकीन हमारे परिवार ने पाँच किलो अरहर की दाल तीन साल तक चलाई थी। थोड़ा सूँघकर, थोड़ा देखकर व कभी कभार चखकर। वह तो भला हो भारत से लाने वाले का कि उसने गुजराती तरीके से अरंडी के तेल से लथपथ( गुजरात में गेहूँ, दाल आदि को कीड़ों से बचाने का यही उपाय किया जाता है। ) दाल दी थी सो वह जरा भी कीड़ों की भेंट नहीं चढ़ी। तब हमने विकल्प भी ढूँढ लिए थे। मसूर की दाल से साँभर बनाते थे।
अभी पिछले साल ही जब अरहर धरती छोड़ आकाश विचरण पसन्द करने लगी थी तब हमें वे पुराने दिन याद आ गए थे किन्तु इस बार डाइटिंग ने साथ निभा दिया। जब चीनी के दाम बढ़े थे (क्या अब उतर गए हैं?)तो हमने तो पति के मधुमेह के कारण चीनी का घर से बहिष्कार ही कर दिया। तबसे अब तक हम केवल मेहमानों के लिए ही चीनी उपयोग करते हैं। आप भी सात्विक नॉनप्याजिटेरियन बन जाइए। प्याजिटेरियन भी आपको दुआ देंगे क्योंकि कम लोग प्याज खाएँगे तो दाम भी कम बढ़ेंगे। तो प्याज छोड़ दुआ खाइए। वैसे भी अब खाना छौंकने के दिन तो रहे कहाँ? कहाँ है छौंकने को घी, प्याज और टमाटर? डॉक्टर की सलाह मानिए, उबला भोजन खाइए। खाएँगे कम तो वजन भी कम होगा तो सैर करने व्यायाम करने से भी बचेंगे और वह समय ब्लॉगिंग व फेसबुकिंग में लगा सकेंगे। न मन करे तो रजाई ओढ़ पड़े रहिए। कहाँ चले हैं प्याज की तलाश मेँ? काहे बौरा रहे हैं प्याज की चाह में?
एक नॉनप्याजिटेरियन,
घुघूती बासूती
Friday, December 24, 2010
आओ जीना सीखें बिन प्याज के..........घुघूती बासूती
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वाह मजेदार ! अच्छे टिप्स हैं. मैं नॉनप्याजेटेरियन तो नहीं बन सकती, पर उसके बगैर काम चलाना खूब जानती हूँ. ज्यादा महंगी हो जाती है तो कम डालती हूँ या जीरे से सब्जी छौंकती हूँ. कच्ची प्याज तो वैसे भी मना है क्योंकि होम्योपैथिक इलाज चल रहा है एलर्जी का.
ReplyDeleteतो मुझे कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ता. आपका कहना भी सही है कि जब हम प्यार के बिना रह सकते हैं तो प्याज के बिना क्यों नहीं?
बहुत ही सही सलाह |
ReplyDeleteआज सुबह ही जब सब्जी लेने नुक्कड़ की दुकान पर गई (रिलायंस फ्रेश ने दुकान खोलने पर वादा \दावा किया था की कितने ही भाव बढ़ जाये आलू प्याज ५ रु प्रति किलो ही बेचेगे ?और आज गीले प्याज वो ४० रु प्रति किलो के भाव से बेच रहा है तो मन ही मन तय किया उन्हें और अमीर नहीं बनायेगे )क्योकि मोटापा घटाने के लिए सब्जिय खानी थी
किन्तु सब्जियों के भाव देखकर मोटापा ४०० ग्राम कम हो गया |चलते चलते प्याज के भाव पूछ ही लिए क्योकि लगातार न्यूज चैनल पर दिखा रहे थे की प्याज के भाव कमहो गये है ?दुकानदार ने कहा -५० रु किलो है पर आपको ४० रु दे दूंगा |मुझे अपनी टोकरी में पड़े उगे हुए ही सही चार प्याज याद आगये लाकर में पड़े १० ग्राम सोने की तरह |
शोभना जी, उगे प्याज सोना नहीं हीरा हैं.प्याज के प्याज पत्तियों के दाम!
ReplyDeleteघुघूती बासूती
प्याज छिलके उतरता, रुला जाता है, हासिल सिफर.
ReplyDeleteहम भी आप की तरह मूलतः नॉन लहसुन-प्याजीटेरियन ही हैं। पहली बार आठ साल की उमर में प्याज की सब्जी गलती से खा ली थी तो उल्टी हो गयी थी। फिर धीरे-धीरे जमाने के साथ उसे खाना सीखा पर लहसुन आज तक मुहँ नहीं लगा पाए। जहाँ होता है वहाँ कई बार बिना खाए आना पड़ता है।
ReplyDeleteदुनिया में कोई पदार्थ नहीं जिस का विकल्प न हो या जिस के बिना काम न चलाया जा सकता हो।
यदि लोग एक महीने के लिये बन्द कर दें तो जमाखोरों के दिमाग ठिकाने आ जायेंगे..
ReplyDeleteमज़ा आ गया आपका आलेख पढकर तो……………ये तो सहेजने लायक है…………आप जैसा प्याज़ पर आलेख अभी तक नही पढा।
ReplyDeleteहा हा क्या शब्द निकाला है...प्याजिटेरियन्स
ReplyDeleteमुसीबत आन पड़ी है..इन प्याजिटेरियन्स पर...अच्छी सलाह दी है...अब वही सब अपनाना पड़ेगा.....
उबला खाना...और बचा समय व्यायाम में :)
मज़ा आ गया आपका आलेख पढकर
ReplyDeleteक्यों न उन पत्तों को ही छौंके में डाल वैसे ही काम चलाया जाए जैसे प्रिय की अनुपस्थिति में उसकी फोटो देख काम चलाया जाता है
ReplyDeleteबड़ी नेक सलाह है ...आज एक नए शब्द से परिचय हुआ ..प्याजीटेरीयन ..
बहुत मजेदार.... प्याज़ के छौंक की तरह लेख ....
हम भी प्याज छोड़ दिये हैं।
ReplyDeleteबहुत मजेदार| मज़ा आ गया आपका आलेख पढकर|
ReplyDeleteMazedaar...zayakdaar aalekh! Aaazmaneko vikalp to dheron honge!
ReplyDeleteहम तो जन्मजात ओनिअन-इंडिपेंडेंट रहे सो कोई चिंता नहीं। मगर सभी प्याज़ानुभवी लोगों के लिये बप्पी दा का गीत:
ReplyDeleteप्याज़ बिना ज़ेन कहाँ रे ...
सोना नहीं चान्दी नहीं, प्याज़ तो मिला...
बहुत अच्छी पोस्ट है...
ReplyDeleteपहले थाली से दालें गायब हो गईं थीं. अब सब्जियां हो रही हैं...
शुक्र मनाइये कि थाली गायब नहीं हुई!
ReplyDeleteघुघूती बासूती
अपने तो प्याज के सारे ही छिलके उधेड दिये\ मगर क्या करूँ ये जीभ लुतरो जो न कराये वही कम है एक बार ध्यान की कलासेम लगाते हुये छोडा था लेकिन फिर शुरू कर लिया। देखतें हैं लगता है अब दोबारा वही क्लास लगाऊँ तभी छूट पायेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteऐसे में विकल्प ढूंढ लेना ही समझदारी है ।
ReplyDeleteवैसे भी हम तो प्याज सब्जी के अलावा कभी नहीं खाते ।
सुन्दर आलेख ।
चलिए, इसे पढके शायद दुःख कुछ कम हो प्याज-पीड़ितों का.....
ReplyDeletepyanj prashang pr aapki yh post padhkr to aisa hi lagta hai ki pyanj ke bhi bhav (kimat nahi) badh chuke hain,
ReplyDeleteachi post halanki abh sar-sari tour pr hi padh paya hun. net slow hai n...
प्याज खरीदने वालों पर आयकर विभाग नजर रखे हुये है:)
ReplyDelete:)
ReplyDeleteप्याज हमारा भी मुख्या भोजन नहीं है , इसलिए कोई परेशानी नहीं ...
ReplyDeleteअच्छी एवं उपयोगी टिप्स दी हैं आपने !
हम तो जी कट्टर वाले प्याजिटेरियन हैं, नान-वेज न खाने की अपनी कसर हर उस डिश में प्याज़ डालकर पूरी करते हैं, जिसमें मीठा न डलता हो। लेकिन हम बेवफ़ा वाली कैटेगरी से नहीं, सच्चे प्यार करने वाले हैं (प्याज़ से), जितना दूर होगा उतना और चाहेंगे।
ReplyDeleteहो जाये चाहे सौ रुपया किलो, खाना है तो खाना ही है।
"यह न कर पाएँ तो भी प्याज के प्यार में कुछ दिन के लिए सिगरेट, दारू, पान, खैनी, पान मसाला, मिठाई, सिनेमा छोड़ बचा पैसा प्याज प्रेम में लगाया जा सकता है।" गाँठ बांध लिया है इस सूत्र को और सबक सीख लिया है कि इनमें से एक न एक शौक जरूर होना चाहिये बन्दे को, ताकि वक्र जरूरत छोड़ा तो जा सके। वैसे तो सारे ही शौक पाल लेने चाहियें, ऐसा कोई कानून थोड़े ही है कि सिर्फ़ एक चीज के ही दाम एक समय में बढ़ेंगे।
नॉन प्याजेटेरियन नहीं
ReplyDeleteप्याजेटेरियन
कभी कभी नॉन प्याजेटेरियन
के कार्य में ब्रेक लगा लेती हैं
वैसे होना चाहिए
ऐसा ही
मिले तो ठीक
न मिले
तो भी ठीक
सही है हां
एक और नॉनप्याजिटेरियन!(प्याज महंगाई तक )-वैसे भी प्याज गरीब गुरुबों का भोजन है-दुर्गन्ध अलग !
ReplyDeleteसशक्त रचना.बधाई.नव वर्ष की शुभकामनाएँ.
ReplyDeletebadut badia vyang bhi nasihat bhi ....achha lekh...
ReplyDeleteबड़ी अच्छी पोस्ट है. मैं भी प्यजिटोरियान वेजिटेरियन हूँ - रसोई में लहसुन से वास्ता नहीं रखती. कुछ बिना लहसुन प्याज की विधियाँ लिख कर एक प्रयास है - देश विदेश में शाकाहार के प्रचलन के लिए .. आपके सुझाव सादर आमंत्रित हैं !! http://chezshuchi.com/indexh.html
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