ये चाहती क्या हैं?
ये चिड़ियाँ
चाहती क्या हैं?
जो चाहती हैं वह
ये चाहती क्यों हैं?
मिल मंत्रणा कर
कहते बहेलिए, व्याध
उत्क्रोश और बाज
क्या यूँ कुछ चाहना
भली चिड़ियों को शोभा देता है?
कहते छछूंदर
ये चिड़ियाँ
चाहती क्या हैं?
जो चाहती हैं वह
ये चाहती क्यों हैं?
क्या बिन चाहे, यूँ ही
धरती के अँधेरों में
हमारी तरह बिल बना
उसमें बच्चों को समेटे
नहीं रह सकतीं?
कहते विमान
ये चिड़ियाँ
चाहती क्या हैं?
जो चाहती हैं वह
ये चाहती क्यों हैं?
क्या बिन आकाश में उड़े
बिन हमसे उलझे
शुतुर्मुर्ग की तरह
एक घेरे में रह, पल, बढ़
भूमि पर नहीं दौड़ सकतीं?
कहते देव, बनकर थोड़े उदार
ये चिड़ियाँ
चाहती क्या हैं?
जो चाहती हैं वह
ये चाहती क्यों हैं?
क्या बिन ऊँची उड़ान भरे
बिन हमसे स्पर्धा करे
किसी दड़बे में रह, कभी कभार
उड़ना ही है तो क्या
मुर्गी की तरह नहीं उड़ सकतीं?
घुघूती बासूती
Friday, July 30, 2010
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सुन्दर! ... और फिर
ReplyDeleteचाहती क्यों हैं
जब पता है कि
इसकी इजाज़त नही है।
निःशब्द ...!
ReplyDeletekavita samajh main aai......
ReplyDeleteexcellent
ReplyDeletewhat a selection of word and what impact the poem has
i hope mam people understand the punch
regds
rachna
सारी दिक्कतें चाह पर शुरू /अटकती और खत्म होती हैं ! आधी दुनिया के हक में अच्छी कविता !
ReplyDeleteकहते देव, बनकर थोड़े उदार
ReplyDeleteये चिड़ियाँ
चाहती क्या हैं?
जो चाहती हैं वह
ये चाहती क्यों हैं?
क्या बिन ऊँची उड़ान भरे
बिन हमसे स्पर्धा करे
किसी दड़बे में रह, कभी कभार
उड़ना ही है तो क्या
मुर्गी की तरह नहीं उड़ सकतीं?
सुंदरतम रचना. शुभकामनाएं.
रामराम
"मुर्गी की तरह नहीं उड़ सकतीं?" क्या बात कही है. सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteक्या बिन ऊँची उड़ान भरे
ReplyDeleteबिन हमसे स्पर्धा करे
किसी दड़बे में रह, कभी कभार
उड़ना ही है तो क्या
मुर्गी की तरह नहीं उड़ सकतीं?
...jiwan kee udhedbun ko darsati bhavpurn rachna ke liye dhanyavaad
वाह बेलौस बिन्दास अब बोलो चिड़ियों ? परो पर हो आसमान तो बाजों की परवाह किसे हो -रहा करें !
ReplyDeleteचूं चूं चीं चीं सुनने आता रहूँगा!
जो बाजों की चंगुल में आ जायं तो फिर उन्हें उड़ना नहीं आया ....सुना है कमजोर और एरैटिक चिड़ियों को ही दबोचते हैं बाज !
ReplyDeleteAah! Chidiyonki mada ko to udaan ki ijazat nahi leni padti...
ReplyDeleteMumbai me bhi ghar hai,company ki taraf se mila hua,lekin wahan pe aise bhitti chitr zyada nahi.Pune me hain,gar aapka Pune ana ho to mujhe dikhane me bahut khushi hogi.
Is tarah se combined mediums istemal karke bhitti chitr banane wali mai Bharat me ab to tak akeli hun..!:)
वाकई ये चिड़िया बहुत कुछ चाहती है पर बहुत ही आम फंदों तक ही उलझ कर रह जाती है... मुझे घुघूती बासूती बड़े ही अटपटे शब्द लगते हैं और इनके अर्थ भी नहीं पता पर उड़ानों की बात करती यह कविता महत्वपूर्ण है हर उस व्यक्ित के लिये जिसे आसमान से कोई भी सरोकार है।
ReplyDeleteउपरोक्त टिप्पणी बेनामी नहीं राजेशा की है
ReplyDeleteइंसान सब कुछ कर लेना चाहता है और यह भी कि उस में और कोई अड़चन न बने।
ReplyDeleteराजेशा जी, घुघूती बासूती का अर्थ ? घुघूती एक चिड़िया है, हिमालय की चिड़िया! इसका अर्थ व संदर्भ मैंने अपने ब्लॉग पर
ReplyDelete>यहाँ दिया है। ये अटपटे शब्द बहुत से पहाड़ियों के लिए अमृतमयी यादें हैं।
फंदों में फंसना चिड़ियों के जीवन का एक स्वाभाविक सा संकट है, वह कहते हैं ना occupational hazard! कुछ बच जाती हैं और ऊँचा उड़ती हैं और कुछ फंस जाती हैं और पिंजरे में जीती हैं। अब फंसने के भय से पहले ही से तो पिंजरे में जाकर नहीं बैठा जा सकता ना?
वैसे एक कविता और भी लिखी थी उड़ने की चाहत यह भी हर उड़ने वाले के लिए या आसमान से सरोकार रखने वाले को रोचक लग सकती है।
घुघूती बासूती
बहुत ही सुंदर कविता, घघुती को शायद पंजाबी मै घुग्गी कहते है, एक सीधी सादी, बोली भाली सी चिडियां, शांत स्व्भाव वाली
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता.
ReplyDeleteचिड़िया उड़ना चाहती है और चाहती रहेगी भले ही लोग चाहें कि चिड़िया पिंजड़े में रहे. मैने एक बार लिखा था..एक चिड़िया उड़ी और देखते ही देखते पूरा गांव कौवा हो गया !
bahut hi sundar vidha mein likha hai...amazing!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ....चिड़ियों के माध्यम से आपने ऐसे लोगों कि बात कह दी जो ऊँची उड़ान भरना चाहते हैं ...
ReplyDeleteकई बार मैं सोच में पड़ जाती हूँ कि मेरे और आपके मन में एक समय एक जैसे विचार कैसे आ जाते हैं... कहीं पूर्वजन्म का नाता तो नहीं :-)
ReplyDeleteआज मैंने एक कविता पोस्ट की है नन्हीं लड़कियों की उड़ान की चाहत पर ... पर वो तो ऐसे ही कच्चे-पक्के शब्द हैं ... इस कविता पर तो वाणी जी की तरह मैं भी निःशब्द हूँ.
और हाँ, आपकी कविता वाली पोस्ट तो नहीं खुली, पर वो पोस्ट जिसमें आपने घुघूती बासूती का अर्थ बताया है, उसे पढ़ा मैंने. और मेरी आँखें भर आयीं. बचपन जहाँ बीता हो, वो जगह कभी नहीं भूलती. मेरा पालन-पोषण लखनऊ के पास एक छोटे से कस्बेनुमा जिले उन्नाव में हुआ है, जहाँ की संस्कृति भी अवधी-बैसवारी कहलाती है और बोली भी . वो जगह इतनी सुन्दर नहीं, पर मुझे बहुत प्रिय है... वहाँ की धूल भरी लू भी मुझे अच्छी लगती है.
ReplyDeleteफिर आप तो कुमाऊं की हैं, जहाँ की ना होते हुए भी मेरा उससे गहरा लगाव है. मैं शिवानी जी की बड़ी फैन रही हूँ और उनकी कहानियों और उपन्यासों से ही कुमाऊं को जाना है और बस मौका मिलते ही उत्तराखंड रवाना हो लेती हूँ.
मैं समझ सकती हूँ कि इतनी प्रकृति की जिस गोद में आप पली-बढ़ीं, वहाँ की याद कैसी ह्रदयविदारक होती होगी...
आप एक बार हो आइये ना.
सच में समझ नहीं आता है कि चिड़ियाँ क्या चाहती हैं।
ReplyDeleteचिड़ियों के माध्यम से जो आपने कहा वो सब चाहते हैं और शिकारियों के डर से अपने पंख कतरे तो नहीं जा सकते ना. उड़ना लक्ष्य है...चाहते खुद -ब - खुद पूरी होंगी और मंजिले भी.
ReplyDeleteपहली बार आपको पढ़ा. बहुत अच्छा लगा.
आभार
अनामिका
आज आपका घुघूती बासूती क्या है कोन है..वृतांत भी पढ़ा. जान कर आपको बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteआजकल की कविता की एक विशेष पहचान है – संवादधर्मिता, कथा और रूप दोनों स्तरों पर। प्रस्तुत कविता में कवयित्री कभी स्वयं से संवाद करती है, कभी दूसरो के संवाद को चित्रित करती हैं। ये दोनों स्थितियां परस्पर पूरक ही कही जाएंगी।
ReplyDeleteस्त्री विमर्श के लिहाज से यह एक पूर्ण कविता कही जा सकती है जो पितृसत्तात्मक समाज के समक्ष यक्षप्रश्न के समान खड़ी है। यह कविता एक साथ इतने प्रश्न खड़े करती है कि उत्तर देने में सदियां बीत जाएं और शायद तब भी प्रश्न अधूरे रह जाएं।
बहुत सुन्दर रचना है। बधाई स्वीकारें।
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत ही मासूम सवाल।
…………..
प्रेतों के बीच घिरी अकेली लड़की।
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
आपकी इस रचना ने तो निशब्द कर दिया।
ReplyDeleteओह!! गज़ब अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteक्या बिन ऊँची उड़ान भरे
ReplyDeleteबिन हमसे स्पर्धा करे
किसी दड़बे में रह, कभी कभार
उड़ना ही है तो क्या
मुर्गी की तरह नहीं उड़ सकती??
ऊँचे उड़ने की चाह मन में दफ़न किए सारी चिड़ियाओं का दर्द उतर आया है इन शब्दों में.
एक अनकहा,अनजाना दर्द दे गयी यह कविता.
उड़ने की चाहत कविता की सही लिंक ः
ReplyDeleteउड़ने की चाहत
घुघूती बासूती
मंगलवार 3 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ .... आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
ज़रूर आइयेगा चर्चा मंच पर ...
चिड़ियों और मनुष्य के जीवन को केद्रित करती हुई , दार्शनिकता लिए हुए उड़ान कि चाहत संजोये , जगत चराचर में फसते रहने के लिए वध्य करता जीवन , सब कुछ कह गयी , बता गयी यह कविता . जीवन के मर्म को भेद गयी . अति सुंदर .
ReplyDeleteसचमुच.. बहुत ही सुन्दर कविता है...
ReplyDeleteवाह। तो आप हरफनमौला हैं। इतनी खूबसूरत और हट के कविता बड़े दिनों बाद पढ़ी।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता ...एकदम सच ..ये चिड़ियाँ
ReplyDeleteचाहती क्या हैं ?