Monday, July 26, 2010
जब तुम होगे साठ साल के............. घुघूती बासूती
७० के दशक का एक गीत होता था... 'जब हम होंगे साठ साल के और तुम होगी पचपन की!' उस ही गीत की कुछ आगे की पंक्तियाँ थीं.. 'जब तुम होगे साठ साल के और मैं होंगी पचपन की।' कल का सारा दिन यह गीत गुनगुनाते बीता। कल मैं पचपन की हो गई। घुघूत तो कुछ महीने पहले ही साठ के हो चुके हैं। ३७ साल पहले मैंने अपना अठारहवाँ जन्मदिन उनके साथ मनाया था। कल पचपनवाँ मनाया। इस बीच ३७ जन्मदिन बहुधा साथ तो कभी कभार अकेले मनाए। बचपन से तो नहीं, हाँ, मेरी किशोरावस्था से हमारा साथ है।
कल का दिन बहुत बढ़िया था। मौसम तो गजब का था ही। परसों रात बारह बजे से ही बेटियाँ जन्मदिन की शुभकामनाएँ दे रहीं थीं। कल दिन भर बीच बीच में उनसे बात होती रही। बड़ी बिटिया कुछ दिन के लिए विदेश में है फिर भी बहुत लम्बी नहीं तो भी बातें तो हुईं ही। छोटी बेटी और मैं तो बार बार बातें कर ही रहे थे। जँवाइयों ने भी बात की।
कल कितने ही मित्रों व सहेलियों ने याद किया। भान्जी व भतीजी ने फोन किया। भाई भाभी ने याद किया। माँ से बात करवाई। माँ को अब याद नहीं रहता। भाई को उन्हें बताना पड़ा कि जन्मदिन है। मैं भी तो अभी से भूलने लगी हूँ। क्या कभी मैं भी अपनी जन्मी बेटियों का जन्मदिन भूल जाऊँगी?
बेटियों ने सरप्राइज की योजना बनाई थी। जब मेरे हाथ में तरह तरह के ऑर्किड्स के दो गुलदस्ते आए तो लगा जैसे दोनों बेटियाँ ही मेरे गले लग रही होएँ। छोटी बिटिया ने कहा कि उसे पता है कि मुझे ऑर्किड्स कितने पसन्द हैं। साथ में मेरी पसन्द का डार्क चॉकलेट केक व मेवों का डब्बा था।
मैं गुलदस्तों से दूर नहीं हो पाती हूँ। तरह तरह से उनके फोटो लेती हूँ। यह काम मेरे लिए बहुत कठिन है क्योंकि हाथ हिल जाता है। अभी जब कम्प्यूटर वाले कमरे में हूँ तो इन्हें भी अपने साथ ले आई हूँ।
लगता है कि वे दोनों मेरे आस पास हैं। याद आता है अपना पैंतिसवाँ जन्मदिन, जब निश्चय किया कि कुछ नहीं बनाऊँगी। बेटियों ने कहा कि नहीं, वे केक बनाएँगी। नन्हें हाथों ने मुझसे पूछ पूछकर बहुत बड़ा सा केक बनाया। परन्तु शाम को जब पूरी की पूरी मित्र मंडली परिवार सहित अपने उस वनवास वाली बस्ती में जहाँ झट से कुछ भी खरीदा नहीं जा सकता था, जन्मदिन की बधाई देने पहुँची तो केक खिलाते हुए मन बेटियों की सूझबूझ, समझदारी व जिद के आगे नतमस्तक हो गया।
सोचती हूँ कि बिटिया को मेरी पसन्द का कितना ध्यान रहता है। कब बेटी 'दी' हो जाती है, कब माँ! सहेली व सलाहकार तो वह सदा ही होती है।
दोनों गुलदस्ते बहुत सुन्दर हैं। एक में तीन तरह के ऑर्किड्स हैं व एक में एक ही किस्म के। तीन तरह वाले में एक प्रकार का तो लाल रंग का एन्थुरियम है। तीन बत्तख की चोंच जैसे हैं, हाँ उनके कलगी और लगी हुई है।
मन विह्वल हो रहा है। कभी 'दी' यूँ ही मेरी पसन्द का ध्यान रखती थी। ३७ साल पहले वाले अठारहवें जन्मदिन पर भी तो उसने अपनी रिसर्च के लिए किए लखनऊ प्रवास से मेरे लिए लाई साड़ी पर फॉल लगाया था, ब्लाउज, पेटीकोट सिला था ! उसे भी सदा मेरे लिए चॉकलेट व मेवों की याद रहती थी। 'दी' होती तो वह भी तो एक सप्ताह पहले ही साठ की हुई होती। २५ साल बीत गए हैं 'दी' किन्तु हर सुख व दुख में तुम साथ रहती हो। साथ तो ४२ साल पहले साथ छोड़ने वाली 'बड़ी दी' भी रहती हैं। परन्तु मेरी प्रेम कथा में 'दी' तुम भी तो किस तरह से गुँथी हुई हो!
ये तीनों बत्तख जैसे(हैलिकोनिया का कोई प्रकार? नहीं, नहीं, ये तो बर्ड्स औफ़ पैरेडाइज़ हैं! परन्तु हैं शायद हैलिकोनिया परिवार के ही! ) ऑर्किड्स जो हैं न वे हम तीनों हैं। जो पहले मुरझा जाएगा वह 'बड़ी दी' जो उसके बाद वह 'दी' तुम और जो सबसे अन्त में वह मैं!
प्रेम के कितने ही तो रूप हैं। सब सुन्दर हैं। प्रेमियों का प्रणय, पति पत्नी का उससे भी कुछ आगे निकला हुआ प्रेम जिसमें प्रणय भी है, मित्रों का स्नेह भी, माँ की ममता भी, वात्सल्य भी, करुणा भी है, पिता का वरद हस्त भी। माता पिता का अपने बच्चों के लिए प्रेम, वात्सल्य, ममता तो हर माता पिता जानता है। बच्चा जन्मा नहीं कि औसीटॉसिन इस भावना की बाढ़ भी अपने साथ ले आता है। माता पिता के लिए प्रेम किन्हीं हॉर्मोन्स के कारण नहीं अपने बचपन की मधुर यादों के कारण होता है। बहनों का स्नेह तो बेजोड़ होता ही है, एकदम अलग, अद्वितीय। भाई बहन का एक अलग किस्म का अदृष्य पतली डोरियों से खींचता स्नेह। भाभी में बहन ढूँढता स्नेह। सहेलियों का स्नेह तो कोई सहेली ही समझ सकती हैं। मित्र से अपनत्व की बँधी वह डोर जिसका कौनसा सिरा कब किसके हाथ में होता हैं समझ ही नहीं आता। डोर है यह भी तभी महसूस होता है जब जरा सा दूर जाएँ और डोर खिंचने लगती है। वह ऑल्टर ईगो वाला आभास!
यह प्रेम है तो जीवन है, जन्म है, ऐसी मृत्यु है जिसे कोई बार बार फिर से जीता है। अन्यथा क्या जिए और क्या मरे? यह न हो तो क्या है? (यह सब तब हैं जब प्रेम के बीच कोई लालच, स्वार्थ ना आ जाएँ।)
ऐसे में जब भी प्रेमी शब्द सुन कोई अभागा भड़क उठता है तो सोचती हूँ कि उन्होंने प्रेम का ऐसा कौन सा विभत्स रूप देख लिया होगा कि किसी के भी ब्लॉग में प्रेम विवाह, प्रेमी शब्द सुन उन जैसा प्रायः नरम दिल मनुष्य यूँ क्यों भड़कता है कि हर प्रेमी के गाल पर उनके थप्पड़ का अहसास ही नहीं होता अपितु लगता है कि प्रेम शब्द ही गाली हो। हृदय में कुछ चटख जाता है। एक बार विषाक्त भोजन खाने पर हम भोजन करना नहीं छोड़ देते, हाथ जलने पर पका खाना नहीं खाना छोड़ देते तो प्रेम जैसे भाव को उससे लुटने पिटने पर भी क्या यूँ ही छोड़ा जा सकता है? यदि हमने किसी हत्यारे प्रेमी को भी देखा हो तो प्रेम करना क्यों छोड़ेंगे या प्रेमियों से घृणा क्यों करेंगे? क्या किसी हत्यारे डॉक्टर, वकील, चित्रकार, ड्राइवर, अध्यापक को देखने के बाद इलाज, वकालत, कार, अध्ययन से तौबा कर लेते हैं? फिर प्रेम से ऐसी घृणा क्यों?
यह सब तो पचपन वर्ष का सार है। जीवन के अन्तिम जन्मदिन पर क्या सोच रही होऊँगी पता नहीं। बस, प्रेम से घृणा न कर रही होऊँ तो भी धन्य हो जाऊँगी। अभी तो प्रेम, तुझे सलाम।
घुघूती बासूती
पुनश्चः सभी ऑर्किड्स के नाम कोई बता पाए तो आभारी रहूँगी।
घुघूती बासूती
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आपने अपने जन्मदिन को खुशियों और प्रेम से मनाया .....और सबके लिए प्रेम का सन्देश दिया....कहीं कहीं स्नेह कि अधिकता से आँखें नम भी हुईं पढते हुए...आपकी बात को शायद अपने से जुड़ा महसूस किया...बेटियां ऐसी ही होती हैं ....इतने प्यारे लेख के लिए ..आभार
ReplyDeleteभाई बहुत बहुत बधाई हो आप दोनो को ही, अगले ५०,६० साल बस इसी तरह से हंस मिल कर ओर मनाये, आप के बच्चो को भी बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteहार्दिक बधाइयाँ ! इस बढ़िया पोस्ट और आपके जन्मदिन दोनों के लिए !
ReplyDeleteAapki umang aur pyar chhalkaa jaa raha hai....meree to aankhen bhar aa rahee hain...type nahee kar paa rahee hun..
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनायें !
ReplyDeleteइस दुनिया में सच्चे प्रेम की एक बूंद भी मरूस्थल में सागर की तरह है।
ReplyDeleteइसी तरह आप हर वर्ष ख़ुशी के गीत गाती रहें .....मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ !!
ReplyDeleteघुघूती जी,
ReplyDeleteलगता है जन्मदिन के अवसर पर लिखे ,इस आलेख में फूलों की खुशबू और चॉकलेट की मिठास ने आपके पूरे लेखन को आच्छन्न कर लिया है, एक एक शब्द प्यार की चाशनी में पगे हुए प्रतीत हो रहें हैं...
पहले तो मैं शरारत में लिखने वाली थी कि अच्छा तो इस ख़ास दिन पर आप अपने किशोरावस्था से चल रहें 'साथ' की बात शेयर करने वाली थीं ( कितनी लकी हैं आप...चश्मेबद्दूर :))....फिर 'दी' 'बड़ी दी' और 'माँ' के जिक्र ने आँखें नम कर दीं. जीवन इन प्यार भरी यादों के बिना क्या है..
पोस्ट बहुत ही खुशनुमा अहसास दिला गयी...
आपको फिर से एक बार जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक...और बेटियों को स्नेह...
आप बहुत लकी हैं घुघूती जी, बहुत लकी, जो आपको इत्ता सारा प्यार मिला... और कुछ नहीं कह सकती. जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ ! मेरी भी आँखे नम हैं रश्मि दी की तरह.
ReplyDeleteकितनी अजीब बात है आज आपका जन्मदिन है और मैंने भी प्यार पर ही एक पोस्ट लिखी है आज... कभी नहीं कहती ...आज कह रही हूँ पढ़ लीजिए प्लीज़...
और हाँ आर्किड मुझे भी बहुत पसंद हैं...किस्मों के बारे में नहीं जानती... आपकी तरह पहाड़ की थोड़े ही हूँ और ना आज तक मुझे किसी ने जन्मदिन पर उपहार में बुके दिया है.
फिर से जन्मदिन की बधाइयाँ !!!
ओर्चेड्स फूलों की कोमलता सा और चोकलेट और केक की मिठास सा आलेख है ..बहुत ही प्यारा .
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई आपको जन्मदिन की .
ऑर्किड के नाम फिर कभी. अभी के लिए जन्मदिन की शुभकामनाएं!
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई आपको जन्मदिन की . ..
ReplyDeleteइतने प्यारे लेख के लिए आभार !!
प्रेम का हर रूप अनूठा है ...माँ -बेटी के प्रेम की व्याख्या भी कैसे की जा सकती है ..सिर्फ अनुभव ही किया जा सकता है ...
ReplyDeleteजन्मदिवस की बहुत शुभकामनायें और अपनी खुशियाँ हमारे साथे बांटे के लिए आभार ...!
जन्मदिन की शुभकामनाएं!
ReplyDeleteजन्मदिन की शुभकामनायें। फूल तो बहुत सुन्दर हैं।
ReplyDeleteवाह घुघूती जी शान्ति के साथ ही आप अब प्रेम की भी प्रतीक हो गयीं ! यह पचपन नहीं आपका मासूम बचपन है जो बोल रहा है!
ReplyDeleteआपको ब्लॉग जगत का लव अम्बेसडर बनाने का प्रस्ताव रखता हूँ (अगर किसी ने पहले न रखा हो तो ) ...अनुमोदन मिल ही जाएगा -भले ही आपके शुभचिंतकों को दुबारा कमेन्ट करना पड़े ...आपके आलेख के अंतिम प्रस्तर से सौ फीसदी सहमत ...
प्रेम की अनुभूति जिसने नहीं जिया समझो उसने जीवन जिया ही नहीं ...
घुघूती बासूती को जन्मदिन की बधाई...
ReplyDeleteअटल जी ने जन्मदिन के लिए ही क्या खूब कहा है...
उम्र का बढ़ना भी इक त्यौहार हुआ,
नए मील का पत्थर पार हुआ...
जय हिंद...
माफ़ कीजिएगा...घुघूती बासूती जी पढ़िएगा...कट पेस्ट करते वक्त गलती से जी छूट गया था...
ReplyDeleteजय हिंद...
आपको जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई, "दी" माँ के अहसास से सारोबार हो गये।
ReplyDeleteजन्मदिन की बधाई...
ReplyDeleteडाक्टर अरविन्द भईया के प्रस्ताव पर हमारी सहमति है.
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प्रेम की अनुभूति जिसने नहीं जिया समझो उसने जीवन जिया ही नहीं ...
आपको जन्म दिवस पर ढेर बधाईयाँ। माँ पिता जैसे जैसे वृद्ध होने लगते हैं, बच्चे उनका दायित्व ग्रहण करने लगते हैं।
ReplyDeletebahut bahut badhaai
ReplyDeleteआपके इस खूबसूरत प्रेम को मेरा प्रणाम ।
ReplyDeleteजन्मदिन की बहुत बहुत बधाई!
ReplyDeleteघुघूती जी को 55रन की बधाईय़ाँ:)
ReplyDeleteहार्दिक बधाइयाँ ! इस बढ़िया पोस्ट और आपके जन्मदिन दोनों के लिए !
ReplyDeleteआदरणीय घुघूती जी,
ReplyDeleteजन्मदिन की हार्दिक बधाईयाँ… और शुभकामनाएं…
जुलाई माह कई महान घटनाओं का साक्षी है… जैसे चन्द्रमा पर मानव का अवतरण… :) :), या घुघूती जी, सिरिल गुप्ता का जन्मदिन… इत्यादि… :)
(और हाँ सुरेश चिपलूनकर का जन्मदिन भी…)
ऑर्किड से ज्यादा इंट्रेस्ट केक में है… :) :)
बहुत-बहुत बधाई दीदी, जनमबारैकि लै, और यो पोस्टकि लिजी लै.... "उनार" लिजी "घुघूत" शब्द दिल कें छू गो.
ReplyDeleteजन्मदिन मुबारक हो। हम भी पचपन पूरे करने के निकट हैं।
ReplyDeleteहम अरविन्द मिश्रा जी का समर्थन करते हैं.
ReplyDeletei and you were born on the same day just that i was born 5 years latter
ReplyDeletei hope you have good life ahead
bahut bahut shubhkamnaayen sir :)
ReplyDeleteएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं!
ReplyDeleteआपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं!
ईश्वर ऎसे कई खुश्हाल ५५ साल आपको प्रदान करे
ReplyDeleteLovely pictures!
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति कल २८-७-२०१० बुधवार को चर्चा मंच पर है....आपके सुझावों का इंतज़ार रहेगा ..
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
बहुत बढ़िया पोस्ट.
ReplyDeleteआपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई.
जनम दिन की वर्ष गाँठ पर शुभ कामना
ReplyDeleteजन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteबेहद उम्दा पोस्ट...
घुघूती बासूती जी जन्मदिन कि ढेर सारी शुभकामनाए | बहनों ,सहेलियों और माँ बेटी के बीच रिश्तो कि जो बात कही वो बहुत अच्छी लगी |
ReplyDeleteजन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाये !!!!
ReplyDeleteआपका जन दिन अच्छे से बिता ये अच्छा लगा जानकर, लेकिन मुझे शिकायत ये है की बधाई संदेस्क वालों में मई भी शामिल था, फिर मुझे कैसे भुला दिया आपने, खैर इसे छोडिये। बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ अच्छा लगा आपको पढ़कर एक बार फिर हमेशा की तरह , ऊपर वाले से उम्मीद करता हूँ की आपका हर जन्म दिवस इसी तरह हर्शौलास के साथ बीते और आने वाले जन्म दिवस पर आपको वो खुशियाँ भी मिले जो बाकि रह गयीं हों।
ReplyDeleteये प्रेम है तो सबकुछ है...
ReplyDeleteबधाई और शुभकामनाएँ !
जन्म दिन के शुभअवसर पर बहुत बहुत बधाई |गुलदस्ते बहुत सुन्दर है |
ReplyDeleteआशा
आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें।
ReplyDeleteप्रेम तो है ही ऐसा पंछी जिस भी डाल पर बैठता है उसे ही हरा कर देता है।
बस, प्रेम से घृणा न कर रही होऊँ तो भी धन्य हो जाऊँगी। अभी तो प्रेम, तुझे सलाम।
ReplyDelete...Babut achhi soch... har kisi kee yah soch ho jay to kitna sundar hoga sansar!
Haardik shubhkamnayne
ReplyDeleteआरज़ू चाँद सी निखर जाए, ज़िंदगी रौशनी से भर जाए।
बारिशें हों वहाँ पे खुशियों की, जिस तरफ आपकी नज़र जाए।
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
…………..
पाँच मुँह वाला नाग?
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
Ghuguti basuti ji janm din ki dher sari shubhkamnayein ! lekh itna bhavuk likha ki ankhyein dabdaba gayi.
ReplyDeletemaa aur Dee ka jikr man ko vihwal kar gaya !
isi ke saath pure pariwaar ( betiyon samet ) sabhi ko shubhkamanyein
घुगुती जी जन्म दिन की हार्दिक बधाई ! लेख बहुत ही भावनात्मक है . माँ और दी की बात कर माँ को छू गयी और आंखे डबडबा गयी. पुनह सभी को हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteबासूती जी जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई, हालांकि थोड़ी लेट हूं, आपकी पर्सनेलिटी की तरह आपका पोस्ट भी बहुत मीठा है। प्रेम के प्रति आपके नजरिए ने दिल को छू लिया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विचार हैं ।
ReplyDeleteSabse phle Aapko Aapke jnm din ke Hardik subh kaamnayen........Is sunder se lekh mai prem ke jo paribhasa aapne di hai wo Atulney hai.....Pad kar bhut acch lga,,asha hai isi trh sunder sansmrno se awgat karte rahoge......Dhnywad
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