मुम्बई पुलिस कुर्ला में हुए छोटी बच्चियों के बलात्कार व हत्याओं की गुत्थी सुलझाने की कोशिश में लगी हुई है। तीसरी हत्या व बलात्कार के लिए एक आरोपी को गिरफ्तार भी कर लिया गया है। परन्तु पहले हुए दोनों अपराधों के अपराधी को पकड़ना अभी भी शेष है। लगता है उसे ६ तारीख से कोई लगाव है। सभी अपराध ६ तारीख को हुए हैं। सो ६ तारीख को अभिभावक बच्चियों को स्कूल नहीं भेजते , उन्हें घरों से बाहर नहीं निकलने देते।
परसों रात पुलिस को एक नवयुवक कुर्ला की सड़कों में निरुद्देश्य घूमता मिला सो उसे पकड़कर पूछताछ की गई। यह दृष्य एक टी वी की समाचार चैनेल ने भी अपने केमरे में सुरक्षित कर लिया। सो वह चैनेल उस युवक से पूछताछ के दृष्य को दिखाने लगी। और जब हमारे टी वी वाले दिखाते हैं तो बार बार दिखाते हैं, जबतक वह आपके स्मृति पटल पर खुद न जाए तब तक दिखाते हैं। पूछताछ तो अपनी जगह ठीक थी किन्तु जिस बात पर चैनेल जोर दे रही थी वह थी उस संदिग्ध व्यक्ति की संदिग्ध कमीजें या यूँ कहिए कमीजें (कमीज नहीं)पहनने का अन्दाज। बार बार संवाददाता उसकी कमीजों की बात कर रहा था। वह व्यक्ति कमीज नहीं, तीन कमीजें पहने हुए था, एक के ऊपर एक! यह बात पुलिस व संवाददाता को बहुत परेशान कर रही थी। पुलिस ने तो यह भी जाँचा की कहीं उसने तीन पतलूनें भी तो नहीं पहनी हैं।
व्यक्ति नशे में था। शायद इसीकिए पुलिस द्वारा पकड़े जाने से भी अधिक परेशान नहीं हुआ दिख रहा था। अब तीन कमीजें पहनना कोई अपराध तो है नहीं तो शायद पूछताछ के बाद उसे छोड़ दिया गया क्योंकि कल के समाचार पत्रों में उसका कोई जिक्र मुझे दिखा नहीं।
जो बात पुलिस व संवाददाता को बहुत परेशान कर रही थी, यानि उसकी कमीजें, बहुवचन में कमींजें, वे मुझे परेशान नहीं कर रही थीं। मुझे उसकी बहुवचनीय कमीजों के दो कारण नजर आए। एक तो यह कि शायद उसके पास रहने व कमीज रखने को जगह न हो। यदि रहने को जगह न हो तो कीमती या कैसा भी सामान रखने को भी जगह नहीं होगी। अब यदि किसी तरह उसके पास तीन कमीजें हो जाएँ, खरीदकर या कैसे भी, तो उन्हें सुरक्षित रखने का सबसे बेहतर तरीका उन्हें पहनना ही है। कोई कहेगा तो फिर तीन का क्या लाभ? तो वह व्यक्ति बदल बदल कर कभी इसे ऊपर तो कभी उसे ऊपर पहन सकता है और अपना अलग अलग कमीज पहनने का शौक पूरा कर सकता है।
दूसरा कारण यह हो सकता है कि वह व्यक्ति रिज़वान किस्म का व्यक्ति हो। रिज़वान याने मेरा वर्षों पुराना तीसरी कक्षा में पढ़ने वाला छात्र। अब तो वह भी २८ या ३० वर्ष का हो गया होगा। रिज़वान वह था जिसने शायद ही कभी गृहकार्य किया हो , दिन का टाइम टेबल पढ़कर पुस्तकें बस्ते में रखी हों, घर जाकर बस्ता खोला हो, सोमवार से शनिवार तक नहाया हो आदि आदि। उसके शरीर पर मैल की परतें जमती जाती थीं, उसके बस्ते में कचरे का ढेर लगता जाता था, परन्तु उसे कोई परेशानी नहीं होती थी। उसे कक्षा में चाहे सजा मिले, खड़ा कर दो, बाहर निकाल दो, उसे न खुशी होती थी न विशेष दुख! ऐसी साधु प्रवृत्ति का समदर्शी, दुख सुख में सदा मुस्कराते रहने वाला कोई और मनुष्य मैंने नहीं देखा।
यदि उससे कोई पुस्तक बाहर निकलवानी हो, उसकी नोटबुक जाँचनी हो, उससे कुछ लिखवाना, पढ़वाना चाहो तो दो तरीके थे, या तो उससे कहो और फिर अनन्त काल तक नहीं तो घण्टी बजने तक उसके द्वारा उक्त पुस्तक, नोटबुक, पेन्सिल आदि निकालने की प्रतीक्षा करो या फिर स्वयं जाकर उसके बस्ते के कबाड़ में डुबकी लगाकर उक्त पुस्तक, नोटबुक, पेन्सिल आदि को बाहर निकालकर उसे पकड़ा दो। कुछ बार पहला तरीका आजमाने के बाद दूसरा तरीका ही सही लगता था। कुछ बार उससे बस्ते को ठीक करने को कहने और बार बार उसमें उलझने के बाद उसे सिखाते हुए स्वयं ही उसके बस्ते को थोड़ा ठीक करना ही सही लगने लगता था।
इसी प्रकार उसके बेतरतीब कपड़ों और शरीर पर जमे मैल से निबटने को उसे नल के पास ले जाकर साबुन पकड़ाकर कम से कम हाथ मुख धुलवाना ही एक उपाय था। ऐसे ही एक दिन मैंने उसकी प्याज सी परतों वाली कमीजों को देखा। उसकी मैली कॉलर को टेढ़ा व मुड़ा हुआ देखकर जब मैं ठीक करने लगी तो एक के नीचे एक कॉलर निकलती चली गई। सभी स्कूल की युनिफॉर्म के रंग की नहीं थीं, कुछ अन्य रंगों की भी थीं। उससे पूछने पर उसने बताया कि जब उसे लगता है कि उसकी कमीज गंदी हो गई है तो वह ऊपर से एक और पहन लेता है। काश, उसके माता पिता उसके लिए इतनी सारी युनिफॉर्म की कमीजें न खरीदकर देते!
इसी बालक ने मेरी अच्छी अध्यापिका होने की एक ऐसी प्रशंसा की थी कि वह मुझे व सुनने वालों को गुदगुदा भी गई व लम्बे समय तक याद रहेगी। वह लगभग सब अध्यापकों से मार खाता था। सौभाग्य से मैं कभी छात्रों पर हाथ नहीं उठाती थी सो उसे भी कभी नहीं मारा था। परन्तु जब उसका परीक्षा परिणाम आया तो वह सिवाय मेरे पढ़ाए विषय अंग्रेजी के सब विषयों में फेल था। तब उसने बहुत गर्व से सबको जा जाकर कहा था, "मैं घुघूती मैम के विषय में तो पास हो गया / मेरी तो बस अंग्रेजी ही अच्छी है तभी तो मैं उसमें पास हो गया। सब मारते थे परन्तु उनके विषयों में फेल हो गया, केवल जो मैम नहीं मारती थीं उनके विषय में पास हो गया।"
और यह तब जब मैं अपने सख्त पेपर जाँचने के लिए जानी जाती थी। एक एक कौमा, या छोटे अक्षर की जगह बड़े या बड़े की जगह छोटे लिखने के लिए भी अंक काटती थी और रिज़वान के घर में कोई भी अंग्रेजी नहीं जानता था और न ही उसके घर में किसी ने कभी उसे पढ़ाया था। फिर भी रिज़वान ने पास होकर मेरी हर कक्षा में मेरे विषय में सबके पास होने के रिकॉर्ड को न बिगाड़कर मुझे धन्य कर दिया था।
घुघूती बासूती
Friday, July 09, 2010
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पहले तो मैं कुछ और ही समझ रहा था...
ReplyDeleteपुलिस की अपनी वर्किंग है ? नागरिक हमेशा पुलिस के भरोसे रहते हैं क्या उनकी अपनी कोई जिम्मेदारियां नहीं होत्तीं ?
ReplyDeleteफेड(धुन/सनक)पर क्या कमेन्ट करें ?
साबित ये कि बच्चों को प्रेम चाहिये ! अच्छा संस्मरण!
pulic aur aparadh ke kisson ne to nahin haan iske bahane aapne jo Rijvan ka sansmaran sunaya uski jitni bhii tariif kii jay km hai.
ReplyDeleteaapmen jo achhi adhyapika rahatii hain unko koti-pranam karta hoon.
अच्छे शिक्षक बच्चों की जिंदगी में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकते हैं ...!
ReplyDeleteपुलिस ,शिक्षक और सबसे ज्यादा टीवी चैनल के प्रभारियों के लिए मनोविज्ञान की कक्षाएं अनिवार्य कर दी जानी चाहिए ...!
यह रिजवान अब कहाँ है ? उससे मिलना है , कुछ कुछ मेरे जैसा, साबुन से मुंह आज भी नहीं धोता मैम...! मगर आप मारती नहीं यह अच्छा लगा !
ReplyDeleteकाश आप जैसे टीचर हमें मिले होते तो ................
ReplyDeleteये बन्दा रिजवान ही तो नहीं था?
ReplyDeleteRizwan ke bareme likha sansmaran bahut achha laga!
ReplyDeleteAb us aadmi ne 3 qameezen kyon pahni hongi,yah to nahi bata sakti...ek karan yah bhi ho sakta hai,ki,ooparwali qameez me use apraadh karte koyi dekh le to, use fenk, wah andarki qameez se kaam chala sakta hai!
बहुत प्यारा संस्मरण है अंत में भावपूर्ण
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकार करें
काश हर जगह आप जैसी संवेदनशील अध्यापक अध्यापिकायें होते तो देश स्वर्ग बन जाता। रिज़्वान का संस्मरण बहुत अच्छा लगा। गांम्वों की आँगनवाडियों मे अभी भी ऐसे कई रिज़वान होंगे। । शुभकामनायें
ReplyDeleteअरे आप तो बहुत अच्छी टीचर है जी, वेसे कही यह वोही रिजवान तो नही? हो भी सकता है, यह दुनिया गोल है पता नही कोन कब किस मोड पर मिल जाये, वेसे आप जेसी टीचर हर स्कुळ मै हो तो कितने बच्चे हर साल पढ जाये, ओर अच्छॆ नम्बरो से पास हो, बहुत अच्छी लगी आज की आप की पोस्ट. धन्यवाद
ReplyDeleteरिजवान के द्वारा आपकी प्रशंसा का तथ्य शिशु मनोविज्ञान की गहराई को इंगित करता है. वैसे टी वी वाले शख्स की समानता रिजवान से केवल कमीज के लिए ही हो सकती है.
ReplyDeleteमस्तमौला कहें कि अक्खड़ कहें ।
ReplyDeleteछात्रो और अध्यापक के बीच एक अज़ीब रिश्ता होता है .. दोनो एक दूसरे से बहुत कुछ सीखते है...
ReplyDeleteहो सकता है दोनो फ़िर कभी न मिले लेकिन इस शोर्ट टर्म मेमरी लोस वाली ज़िन्दगी मे भी वो दोनो एक दूसरे को अन्त तक याद रखते है...
बहुत बढिया संस्मरण!!
कौन सी घटना स्मृति कुरेद जाती है...और पता चलता है वहाँ, कोई आसान जमाये बैठा है..:)
ReplyDeleteये तीन कमीजें पहनने वाला आपका छात्र रिजवान तो शिक्षकों के धैर्य की परीक्षा लेता प्रतीत हुआ...पर आपके असीम धैर्य ने उसे आपके विषय में पास करा दिया...और सिद्ध हो गया कि छड़ी के जोर पर हर काम नहीं करवाया जा सकता.
टी.वी.चैनल्स ने तो इतना दुखी कर दिया है कि मैने अधिकाँश चैनल देखना ही छोड़ दिया है और इस रिजवान की खबर देखने से वंचित रह गयी.
आप एक अच्छी अध्यापिका हैं ... मैं जब स्कूल में पढ़ता था तो स्कूल में आज का विचार लिखा करता था...एक बार शिक्षक दिवस पर मैंने लिखा "श्रेष्ठ शिक्षक वह है जो हर विद्यार्थी की समस्या को समझता है और उसका समाधान करता है ।"
ReplyDeleteआपकी यह रचना पढ़ कर मुझे वह दिन याद आ गया ।
ye to pata chal ki aap ek achchi teacher hain. eske liye vadhai.
ReplyDeleterizwaan ki baat apne puri ki kintu mool vishya sandighdh teen kamijo wale ka kya hua, parinaam nahi likha.
ab baat media wale ki jo puchh taachh kar raha tha. to ye log kuchch bhi anap sanaap prashn puchchte hain. unhe bar bar chilane ki aadat si ho gayi hai. Isliye mediakarmi ki baat se nishkarsh nikalna hi vyarth hai.
कुर्ला में पकड़ा गया नवयुवक कहीं रिजवान तो नहीं था? आलेख पढ़ कर ऐसा लगा मानो आप बतिया रहीं हैं. सुरुचिपूर्ण. आभार.
ReplyDeleteआपने अच्छे शिक्षक का कर्त्तव्यबोध कराया ।
ReplyDeleteप्रशंसनीय ।
aapko padhna hamesha hi acha lagta hai, lekin aap achi insan hone ke saath achi shikhshak bhi hain.kash aapke jaise teacher har bache ko mile to ho sakta hai ki is duniya ki zyadatar samasyaen waise hi khatm hi jaye.
ReplyDeleteघुघूती मैम, मुझे कभी किसी टीचर से मार नहीं पड़ी, शायद मैं इसीलिए हमेशा अव्वल आती थी :-)... मैं वाणी जी की बात से सहमत हूँ... पुलिस, मीडिया, शिक्षक और यहाँ तक कि हमारे प्रतिनिधियों के लिए मनोविज्ञान (जिसमें बाल-मनोविज्ञान सम्मिलित हो) की शिक्षा अनिवार्य कर देनी चाहिए...
ReplyDeleteबच्चे प्यार के भूखे होते हैं । रिजवान की तरह इस नवयुवक की भी यही जरूरत हो शायद । संस्मरण बहुत प्रवाही था ।
ReplyDeleteघुघूती जी...एक रिजवान के सन्दर्भ....दुसरे रिजवान की बात....उनवान की आपने....एक रिजवान से दुसरे रिजवान तक पहुँचने में थोड़ा समय लगा मुझे...मगर जल्दी ही उहापोह से मैं तो उबार गया....और दोनों को अलग-अलग करके दो सूरतें तामीर कर लीं अपने जेहन में...और शायद उनके दर्द की तह जा पाया होऊं मैं.... मगर पता नहीं....क्यूँ हमारी व्यवस्था ने सारे रिज्वानों को तो क्या बल्कि समूचे मुसलमानों को ही गडम-गड्ड कर दिया है...वो भी ऐसा कि मुसलमां....बोले तो .... मैं समझ नहीं पाटा कि इस व्यवस्था को कैसे बताऊँ कि तुम्हारा ये जो तरीका है....वो इन्तेहायीं खतरनाक है.....और इससे अच्छा-भला आदमी....ओसामा हो जाता है ....मेरी समझ से ओसामा कोई खुद से नहीं बनता....बल्कि हम उसे बनाते हैं....पहले पाल-पोस कर बड़ा करते हैं....और जब वह नासूर बन जाता है....तो उससे अपना पल्ला झाड लेना चाहते हैं...मगर तीर,जो एक बार कमान से निकल जाता है.........!!!!!
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