Monday, May 10, 2010

माँ के साथ मदर्स डे। हमारे जमाने में तो एक ही डे होता था!.................................. घुघूती बासूती

आज शाम को मैं माँ के साथ उनके कमरे में बैठ समाचार देख रही थी, या यूँ कहिए देखने की अभिलाषा लिए थी। बहुत सारे विज्ञापनों के बाद जब समाचारों की जगह कुछ फिल्मी हस्तियाँ अपनी माँओं की बात कर रही थीं/ रहे थे तो मैं परेशान थी कि समाचार क्यों नहीं आ रहे कि अचानक समझ आया कि यह सब मदर्स डे के कारण है और मैंने माँ को कहा कि आज मदर्स डे है। जब उन्होंने कुछ नहीं कहा तो मैंने सोचा उन्होंने सुना नहीं या समझा नहीं। देखा तो वे वापिस अपनी पुस्तक में उलझ गईं थीं। मैंने उनका ध्यान खींचने के लिए फिर से कहा कि आज मदर्स डे है। आजकल कभी मदर्स डे, कभी फादर्स डे, तो कभी फ़्रैन्डशिप डे मनाया जाता है।

माँ बोलीं," हाँ जानती हूँ। हमारे जमाने में तो केवल एक डे होता था, मन्नाडे!"
यह कहकर वे तो हँस दीं और मैं उनके बिल्कुल उपयुक्त मजाक, चाहे वह मौलिक था या नहीं, को सुनकर गदगद हो गई।

सोचती हूँ कि एक उम्र के बाद माँ बेटी बन जाती है और बेटी उसकी माँ। मैं माँ को जिस तरह से तरह तरह के व्यंजन परोसकर किसी तरह से थोड़ा बहुत खिलाना चाहती हूँ क्या वैसा ही मैं अपनी छोटी छोटी बेटियों के लिए वर्षों पहले नहीं करती थी? एकदम नरम पका हुआ छोटी आधी कटोरी से भी कम भात, उतनी ही दाल, सब्जी, गुजराती विधि से बनी कद्दूकस किए कच्चे पपीते की सब्जी या चटनी (गुजराती शब्द भूल रही हूँ।),कद्दूकस किया खीरा व गुड़म्बा देकर मैं उनसे अनुनय,लाड़ करती हुई पूरा खत्म करने को कहती हूँ। आशा करती हूँ कि कुछ तो खा ही पाएँगी। नहीं खा पातीं तो आम,लस्सी, सूप या फल का रस पिलाना चाहती हूँ। कुछ खा लेती हैं तो माँ ऐसे ही खत्म किया करो ना, कहती हूँ।

वैसे हमने जैसे मदर्स डे मनाया उससे बेहतर क्या तरीका हो सकता है? मैंने उन्हें, माँ, अम्मा, अम्मू,अमम्मा, इजू, मम्मा सब कह लिया। दोपहर में वे कम्प्यूटर वाले कमरे में लेटीं। मैंने उन्हें लपूझन्ना पढ़कर सुनाया। अपना लेख भी पढ़कर सुनाया। टिप्पणियाँ भी सुनाईं। उन्होंने अपनी टिप्पणियाँ जोड़ीं। फिर उनके कमरे में बैठी। वे पुस्तक पढ़ती रहीं, मैं उनकी नाइटी में तुरपाई करती रही। कुछ गप्पें मारीं, कुछ बहस की। कुछ बातों में हम सहमत हुईं और कुछ में असहमत। फिर टी वी और वह मन्नाडे वाली बात हुई,फिर भोजन,दवा, दूध और फिर उनको चादर से ओढ़ाकर सुला आई।

शायद माँ को भी फूलों के गुलदस्ते या उपहार की कमी नहीं खली होगी। और हाँ, उनके प्रिय जवाँई ने भी आज छुट्टी होने के कारण उनके साथ उनके कमरे में बैठकर दो बार चाय पी। कई बार उनके कमरे के चक्कर लगाए, उनका हाल चाल पूछा।

सोचती हूँ यही तो था मदर्स डे। है ना अमम्मा!

घुघूती बासूती

30 comments:

  1. हम्म.. मतलब आप अपनी अम्माजी को दिन भर परेश्हन करती रही.. :)

    ReplyDelete
  2. *परेशान

    ReplyDelete
  3. "हाँ जानती हूँ। हमारे जमाने में तो केवल एक डे होता था, मन्नाडे!"
    लाजवाब! Happy mother's day!

    ReplyDelete
  4. माँ को बच्चे जैसे मान-मनौव्वल से खिलाना ! आप सचमुच बेहद प्यारी बेटी हैं।

    ReplyDelete
  5. रोचक संस्मरण... .

    ReplyDelete
  6. हा हा!! सच में हमारे जमाने में तो केवल एक डे होता था, मन्नाडे!!

    बहुत मजेदार!!

    ReplyDelete
  7. "और वो अकेला डे आज के तीन सओ पैंसठ डे पर भारी था।"
    सहजता सचमुच अप्रतिम होती है।

    ReplyDelete
  8. आप अपनी बिल्ली को समझाईये की एक चप्पल दो पैरों में नहीं पहनी जाती। अरे अरे मैं गलत हूँ। चप्पल है दो और पैर हैं चार ..... बहुत नाइंसाफी है।

    ReplyDelete
  9. हाहाहा, विचारशून्य जी दरसल इस फोटो में ६ चप्पलें दिखाई दे रही थीं। ४ को मैंने संपादन कर बाहर निकाल दिया है। पता होता कि आप पकड़ेंगे तो छहों दिखाती!
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  10. माँ के साथ मदर्स डे मनाकर आपने तो सारा मजा किरकिरा कर दिया। मदर्स डे तो मनाया जाता है एसएमएस और ग्रीटिंग कार्ड भेज कर!

    नुकसान कर दिया आपने मोबाइल कंपनियों और ग्रीटिंग वालों का।

    ReplyDelete
  11. बढ़िया लगा पढ़कर , आप हर क्षेत्र मे मास्टरनी हैं ।

    ReplyDelete
  12. मां तो मां है, उस जैसा कोई नहीं. आप एक दिन सेलीब्रेट करें चाहे रोज.. उसे कोई फर्क नहीं पड़ता..

    ReplyDelete
  13. आज अखबार मे मदर डे के फोटो मे केक खिलाते बुके देते तो बहुत से बच्चे देखे लेकिन कोई अपनी मां के पैर छूता नही दिखा

    ReplyDelete
  14. मैंने मां से बात तो की पर विश नहीं किया क्यों करूँ क्या मैंने अपनी माँ को ओल्ड एज होम में छोड़ा है जो साल में एक दिन जा कर मिलूँ ... मेरी मां तो जिस दिन से मैंने जन्म लिया है तब से मदर स डे मन रही है .. :-)

    ReplyDelete
  15. रोचक.... जब माँ साथ हो तो हर दिन मदर्स डे होता है....और ना रहें तब भी....

    ReplyDelete
  16. वाकई बहुत सही कहा, आज इतने सारे डे होने लगे हैं. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम

    ReplyDelete
  17. बहुत बढ़िया पोस्ट! पढ़कर बहुत-बहुत प्रसन्नता हुई.

    ReplyDelete
  18. use sanbar kahte hai.kachhe ppite ki chtni ko .maa ke sath bitaye yahi pal sahi artho me mothers day hai.

    ReplyDelete
  19. हा हा हा , अम्मा डे और मन्ना डे , बढ़िया humurous वाकया.

    ReplyDelete
  20. Sahi mothers day manaya aapne.

    ReplyDelete
  21. माँ से बिटिया डे मनवा डाला ।

    ReplyDelete
  22. अब इससे ज्यादा अच्छा मदर्स डे और कैसे मनाया जा सकता है............

    ReplyDelete
  23. बहुत सुन्दर. माताजी को प्रणाम

    ReplyDelete
  24. bilkul.......yahi to hota hai mother's day.

    ReplyDelete
  25. आपने मां के साथ यह दिन मनाकर अच्छा किया। मुझे यह सुनकर ही अच्छा लग रहा है।

    ReplyDelete
  26. मन्नाडे!! बहुत अच्छा लगा मां का जबाब.. हमारी तरफ़ से प्रणाम कहे

    ReplyDelete
  27. आज हिंदी ब्लागिंग का काला दिन है। ज्ञानदत्त पांडे ने आज एक एक पोस्ट लगाई है जिसमे उन्होने राजा भोज और गंगू तेली की तुलना की है यानि लोगों को लडवाओ और नाम कमाओ.

    लगता है ज्ञानदत्त पांडे स्वयम चुक गये हैं इस तरह की ओछी और आपसी वैमनस्य बढाने वाली पोस्ट लगाते हैं. इस चार की पोस्ट की क्या तुक है? क्या खुद का जनाधार खोता जानकर यह प्रसिद्ध होने की कोशीश नही है?

    सभी जानते हैं कि ज्ञानदत्त पांडे के खुद के पास लिखने को कभी कुछ नही रहा. कभी गंगा जी की फ़ोटो तो कभी कुत्ते के पिल्लों की फ़ोटूये लगा कर ब्लागरी करते रहे. अब जब वो भी खत्म होगये तो इन हरकतों पर उतर आये.

    आप स्वयं फ़ैसला करें. आपसे निवेदन है कि ब्लाग जगत मे ऐसी कुत्सित कोशीशो का पुरजोर विरोध करें.

    जानदत्त पांडे की यह ओछी हरकत है. मैं इसका विरोध करता हूं आप भी करें.

    ReplyDelete