आज शाम को मैं माँ के साथ उनके कमरे में बैठ समाचार देख रही थी, या यूँ कहिए देखने की अभिलाषा लिए थी। बहुत सारे विज्ञापनों के बाद जब समाचारों की जगह कुछ फिल्मी हस्तियाँ अपनी माँओं की बात कर रही थीं/ रहे थे तो मैं परेशान थी कि समाचार क्यों नहीं आ रहे कि अचानक समझ आया कि यह सब मदर्स डे के कारण है और मैंने माँ को कहा कि आज मदर्स डे है। जब उन्होंने कुछ नहीं कहा तो मैंने सोचा उन्होंने सुना नहीं या समझा नहीं। देखा तो वे वापिस अपनी पुस्तक में उलझ गईं थीं। मैंने उनका ध्यान खींचने के लिए फिर से कहा कि आज मदर्स डे है। आजकल कभी मदर्स डे, कभी फादर्स डे, तो कभी फ़्रैन्डशिप डे मनाया जाता है।
माँ बोलीं," हाँ जानती हूँ। हमारे जमाने में तो केवल एक डे होता था, मन्नाडे!"
यह कहकर वे तो हँस दीं और मैं उनके बिल्कुल उपयुक्त मजाक, चाहे वह मौलिक था या नहीं, को सुनकर गदगद हो गई।
सोचती हूँ कि एक उम्र के बाद माँ बेटी बन जाती है और बेटी उसकी माँ। मैं माँ को जिस तरह से तरह तरह के व्यंजन परोसकर किसी तरह से थोड़ा बहुत खिलाना चाहती हूँ क्या वैसा ही मैं अपनी छोटी छोटी बेटियों के लिए वर्षों पहले नहीं करती थी? एकदम नरम पका हुआ छोटी आधी कटोरी से भी कम भात, उतनी ही दाल, सब्जी, गुजराती विधि से बनी कद्दूकस किए कच्चे पपीते की सब्जी या चटनी (गुजराती शब्द भूल रही हूँ।),कद्दूकस किया खीरा व गुड़म्बा देकर मैं उनसे अनुनय,लाड़ करती हुई पूरा खत्म करने को कहती हूँ। आशा करती हूँ कि कुछ तो खा ही पाएँगी। नहीं खा पातीं तो आम,लस्सी, सूप या फल का रस पिलाना चाहती हूँ। कुछ खा लेती हैं तो माँ ऐसे ही खत्म किया करो ना, कहती हूँ।
वैसे हमने जैसे मदर्स डे मनाया उससे बेहतर क्या तरीका हो सकता है? मैंने उन्हें, माँ, अम्मा, अम्मू,अमम्मा, इजू, मम्मा सब कह लिया। दोपहर में वे कम्प्यूटर वाले कमरे में लेटीं। मैंने उन्हें लपूझन्ना पढ़कर सुनाया। अपना लेख भी पढ़कर सुनाया। टिप्पणियाँ भी सुनाईं। उन्होंने अपनी टिप्पणियाँ जोड़ीं। फिर उनके कमरे में बैठी। वे पुस्तक पढ़ती रहीं, मैं उनकी नाइटी में तुरपाई करती रही। कुछ गप्पें मारीं, कुछ बहस की। कुछ बातों में हम सहमत हुईं और कुछ में असहमत। फिर टी वी और वह मन्नाडे वाली बात हुई,फिर भोजन,दवा, दूध और फिर उनको चादर से ओढ़ाकर सुला आई।
शायद माँ को भी फूलों के गुलदस्ते या उपहार की कमी नहीं खली होगी। और हाँ, उनके प्रिय जवाँई ने भी आज छुट्टी होने के कारण उनके साथ उनके कमरे में बैठकर दो बार चाय पी। कई बार उनके कमरे के चक्कर लगाए, उनका हाल चाल पूछा।
सोचती हूँ यही तो था मदर्स डे। है ना अमम्मा!
घुघूती बासूती
Monday, May 10, 2010
माँ के साथ मदर्स डे। हमारे जमाने में तो एक ही डे होता था!.................................. घुघूती बासूती
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हम्म.. मतलब आप अपनी अम्माजी को दिन भर परेश्हन करती रही.. :)
ReplyDelete*परेशान
ReplyDelete"हाँ जानती हूँ। हमारे जमाने में तो केवल एक डे होता था, मन्नाडे!"
ReplyDeleteलाजवाब! Happy mother's day!
माँ को बच्चे जैसे मान-मनौव्वल से खिलाना ! आप सचमुच बेहद प्यारी बेटी हैं।
ReplyDeleteरोचक संस्मरण... .
ReplyDeleteहा हा!! सच में हमारे जमाने में तो केवल एक डे होता था, मन्नाडे!!
ReplyDeleteबहुत मजेदार!!
"और वो अकेला डे आज के तीन सओ पैंसठ डे पर भारी था।"
ReplyDeleteसहजता सचमुच अप्रतिम होती है।
:)
ReplyDeleteआप अपनी बिल्ली को समझाईये की एक चप्पल दो पैरों में नहीं पहनी जाती। अरे अरे मैं गलत हूँ। चप्पल है दो और पैर हैं चार ..... बहुत नाइंसाफी है।
ReplyDeleteहाहाहा, विचारशून्य जी दरसल इस फोटो में ६ चप्पलें दिखाई दे रही थीं। ४ को मैंने संपादन कर बाहर निकाल दिया है। पता होता कि आप पकड़ेंगे तो छहों दिखाती!
ReplyDeleteघुघूती बासूती
माँ के साथ मदर्स डे मनाकर आपने तो सारा मजा किरकिरा कर दिया। मदर्स डे तो मनाया जाता है एसएमएस और ग्रीटिंग कार्ड भेज कर!
ReplyDeleteनुकसान कर दिया आपने मोबाइल कंपनियों और ग्रीटिंग वालों का।
बढ़िया लगा पढ़कर , आप हर क्षेत्र मे मास्टरनी हैं ।
ReplyDeleteमां तो मां है, उस जैसा कोई नहीं. आप एक दिन सेलीब्रेट करें चाहे रोज.. उसे कोई फर्क नहीं पड़ता..
ReplyDeleteआज अखबार मे मदर डे के फोटो मे केक खिलाते बुके देते तो बहुत से बच्चे देखे लेकिन कोई अपनी मां के पैर छूता नही दिखा
ReplyDeleteमैंने मां से बात तो की पर विश नहीं किया क्यों करूँ क्या मैंने अपनी माँ को ओल्ड एज होम में छोड़ा है जो साल में एक दिन जा कर मिलूँ ... मेरी मां तो जिस दिन से मैंने जन्म लिया है तब से मदर स डे मन रही है .. :-)
ReplyDeleteरोचक.... जब माँ साथ हो तो हर दिन मदर्स डे होता है....और ना रहें तब भी....
ReplyDeleteवाकई बहुत सही कहा, आज इतने सारे डे होने लगे हैं. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
बहुत बढ़िया पोस्ट! पढ़कर बहुत-बहुत प्रसन्नता हुई.
ReplyDeleteuse sanbar kahte hai.kachhe ppite ki chtni ko .maa ke sath bitaye yahi pal sahi artho me mothers day hai.
ReplyDeleteहा हा हा , अम्मा डे और मन्ना डे , बढ़िया humurous वाकया.
ReplyDeleteSahi mothers day manaya aapne.
ReplyDeleteमाँ से बिटिया डे मनवा डाला ।
ReplyDeleteअब इससे ज्यादा अच्छा मदर्स डे और कैसे मनाया जा सकता है............
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. माताजी को प्रणाम
ReplyDeletebilkul.......yahi to hota hai mother's day.
ReplyDeleteyahee to hai sachchha mother"s day
ReplyDeleteबेहद शानदार...
ReplyDeleteआपने मां के साथ यह दिन मनाकर अच्छा किया। मुझे यह सुनकर ही अच्छा लग रहा है।
ReplyDeleteमन्नाडे!! बहुत अच्छा लगा मां का जबाब.. हमारी तरफ़ से प्रणाम कहे
ReplyDeleteआज हिंदी ब्लागिंग का काला दिन है। ज्ञानदत्त पांडे ने आज एक एक पोस्ट लगाई है जिसमे उन्होने राजा भोज और गंगू तेली की तुलना की है यानि लोगों को लडवाओ और नाम कमाओ.
ReplyDeleteलगता है ज्ञानदत्त पांडे स्वयम चुक गये हैं इस तरह की ओछी और आपसी वैमनस्य बढाने वाली पोस्ट लगाते हैं. इस चार की पोस्ट की क्या तुक है? क्या खुद का जनाधार खोता जानकर यह प्रसिद्ध होने की कोशीश नही है?
सभी जानते हैं कि ज्ञानदत्त पांडे के खुद के पास लिखने को कभी कुछ नही रहा. कभी गंगा जी की फ़ोटो तो कभी कुत्ते के पिल्लों की फ़ोटूये लगा कर ब्लागरी करते रहे. अब जब वो भी खत्म होगये तो इन हरकतों पर उतर आये.
आप स्वयं फ़ैसला करें. आपसे निवेदन है कि ब्लाग जगत मे ऐसी कुत्सित कोशीशो का पुरजोर विरोध करें.
जानदत्त पांडे की यह ओछी हरकत है. मैं इसका विरोध करता हूं आप भी करें.