क्या आपने कभी सुना है कि किसी माता पिता ने अपनी प्रतिष्ठा/सम्मान के लिए अपने......
१. गंजेड़ी, नशेड़ी पुत्र की हत्या कर दी?
२.बलात्कारी पुत्र की हत्या कर दी?
३.देशद्रोही पुत्र की हत्या कर दी?
४.आतंकवादी पुत्र की हत्या कर दी?
५.हत्यारे पुत्र की हत्या कर दी?
६.घूसखोर पुत्र की हत्या कर दी?
७.बेईमान पुत्र की हत्या कर दी?
८. चोर,डाकू, जेबकतरे,अपहरणकर्ता पुत्र की हत्या कर दी?
और भी बहुत से अनैतिक कृत्य होंगे जिन्हें आप यहाँ जोड़ सकते हैं। परन्तु शायद 'मदर इन्डिया' के बाद ऐसा नहीं हुआ या दिखाया गया।
यदि माता पिता अपना सुख चैन गंवाकर, अपना पेट काटकर और भी न जाने क्या क्या करके बच्चों को बड़ा करते हैं और बच्चों का जीवन इस उपकार का बन्धक होता है तो यह उपकार तो और भी बड़ी मात्रा में पुत्र पर भी किया जाता है तो इसी अधिकार से वे पुत्र की हत्या क्यों नहीं करते? क्या इसमें भी हानि लाभ का गणित आड़े आता है? क्या हिसाब लगाया जाता है कि पुत्र कितना कमाकर देगा या मुखाग्नि देकर स्वर्ग का टिकट कटवाएगा? मातृत्व व पितृत्व भी यदि गणित में जकड़ा है तो फिर इस रिश्ते में ऐसी विशेषता रह ही क्या गई? क्यों इसकी पवित्रता का ढोल पीटा जाता है? क्यों नहीं हम यह मान लेते कि हम अपने सुख के लिए माता पिता बने ? क्या माता या पिता बनना अपने आप में काफी नहीं है? क्या उसके लिए हम कोई मूल्य चाहते हैं? यह नहीं भूला जा सकता कि चयन या विकल्प का अधिकार केवल माता पिता के पास है, संतान के पास नहीं। सो माता पिता बनना हमारी पसन्द थी, संतान बनना संतान की नहीं।
दोनों प्रश्नों के उत्तर चाहिए।
घुघूती बासूती
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Mujhe hamesha yahi laga ki,na to maa ko devi ka roop dena chahiye na pita ko bhagwanka..insaan hain,insaan hi rah jayen to bahut hai...
ReplyDeleteBachhonki sahi parwarish karen..sabse pahle ek achha insaan banneki shiksha den...jo apne swarth se pahle desh hit kee soche... Afsos ke yah shiksha hamare parivaron me nahi dee jati...bachhon ki pahchan unke mazhabse hone lag jati hai..Ek geet yaad aa raha hai" Tu hindu banega,na musalmaan banega,Insaan kee aulad hai insaan banega"..
Mera ek aalekh hai,jise Gujratme hue qaumi fasadon ke baad likha tha<" Pyarki raah dikha duniyako.."kabhi fursat ho to zaroor padhen:
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://lalitlekh.blogspot.com
Kshamaprarthi hun,ki,Roman hindi me comment likha hai..
ओनर किलिंग हमारे समाज की पुरानी गलत मान्यताओं पर आधारित हैं। जो लोग समय के साथ बदल नहीं पाते वही ऐसा सोच भी सकते हैं। फिर लड़की को हमेशा समाज में लड़कों से कम ही रखा गया है । लेकिन इन धारणाओं को बदलना आवश्यक है।
ReplyDelete"गुरु बिन ज्ञान गंगा बिन तीरथ ,पुत्र बिना परिवार नहीं है "
ReplyDeleteबचपन में दादी के भजन की पंक्तियों पर किया गया मेरा विद्रोह आज तक जारी है , तब भी कहती थी "पुत्री बिना संसार नहीं है "
शायद ये लड़ाई हर लड़की लडती है पर ...उम्र के साथ साथ वो भी उसी धारा में बहने लगती है
ये वो माता पिता बताएं जो पुत्र और पुत्र में भेद करते हैं -मोका जाने नाका !
ReplyDeleteshama ji,daral ji aur sonak\l ji sabki baat sahi hai aur yahi hamari kamjori hai jisse ubarna hoga hamein aur ek swasth samaj ke nirman ki neenv rakhni hogi..........aaj ek post lagayi hai 'nari ya bhogya'aur shayad kahin na kahin usmein bhi yahi kaha gaya hai magar us pa rbahas chhid gayi hai magar koi bhi manne ko taiyaar nahi haiki mansikta ke badalne se har samasya ka hal nikal sakta hai jo sanskar ghutti mein ghot kar pilaye gaye hain unhein badlane mein waqt beshak lagega magar uske liye hamein koshish to karni hi padegi na aawaz to uthani hi padegi tabhi badlaav aayega aur aise hi prashn aaj aapne uthaye hain magar kahin jawab nahi milega jab tak mansikata nahi badlegi......manti hun kafi kuch badla hai magar abhi bahut kam pratishat mein badlaav aaya hai hamein ise 100% karna hai.
ReplyDeleteकुछ नरपिचाश ऐसे भी होते हैं
ReplyDeleteप्रश्न और भी हैं
ऐसे में जबकि इस तरह के कृत्य से सारा जग दुखी होता है उस माता-पिता की मन:स्थिति क्या होती होगी?
bilkul sahii likha haen mam
ReplyDeleteबहुत सही प्रश्न उठा दिया है....सच ही किसी ने अपने पुत्र को नहीं मारा होगा जिसने ऐसा कोई कृत्य किया होगा...मदर इण्डिया में दिखाया गया तो वाह भी केवल चल चित्र में ही ऐसा वास्तव पिक्चर में भी दिखाया था पर उसमें भावना पुत्र को अधिक पीड़ा से बचाने की थी...
ReplyDeleteपुत्र और पुत्री के प्रति सोच को बदलना होगा....जब परवरिश एक सी करते हैं तो एक सा ही संरक्षण भी देना चाहिए...
अर्विंद जी की टिपण्णी से सहमत है जी
ReplyDeleteआपके इस लेख से मुझे अपने पिताजी की कही हुयी बात याद आ गयी. वे अक्सर कहा करते थे कि ’हमारे समाज में लोग बच्चों को बँधुआ मजदूर समझते हैं. अपनी सारी न पूरी हुयी इच्छायें उन पर थोपना चाहते हैं, उन्हें पालने-पोसने के बदले उन्हें अपने इशारों पर चलाना चाहते हैं’
ReplyDeleteलेकिन ये बात लड़कों के सम्बन्ध में कम और लड़कियों के सम्बन्ध में ज्यादा होती है. माँ-बाप हमेशा लड़कियों को इमोशनली ब्लैकमेल करते हैं, जबकि इसके विपरीत लड़कों से खुद ब्लैकमेल होते हैं.
बोझ बने बेटी जहाँ बेटा हो वरदान।
ReplyDeleteवह समाज तो नर्क है खोजें सभी निदान।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
मुक्ति जी ने सही लिखा है..
ReplyDeleteएक लड़की किन हालातों में गर्भ धारण करती है? निश्चित रूप से उसे उसके प्रेमी ने भी उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया.इसके लिये उसका प्रेमी (?) प्रियभांशु समान रूप से जिम्मेदार है जो अब घड़ियाली आंसू बहा रहा है...
मोह इसी का नाम है । अपनों के दोष औरों के गुणों से अच्छे लगते हैं ।
ReplyDeleteबिल्कुल सही लिखा है आपने.
ReplyDeleteअपनी कमजोरी और गलतियों से हमें खुद हीं उबरना होगा।
कम ही होता है ऐसा
ReplyDeleteप्रश्न यह है की जब आधी आबादी महिलाओं की है तो भी इस तरह की घटनाएँ क्यों होती हैं .
कल ही समाचार पढ़ा था - दहेज प्रताड़ना से तंग आकर पति ने की आत्महत्या . पत्नी और ससुर को सजा. ऐसा भी होता है
सोचने पर मजबूर करती... बहत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट .....
ReplyDelete--
www.lekhnee.blogspot.com
Regards...
Mahfooz..
पता नहीं कितनी बार ऐसे सवाल सर उठाते हैं....और एक सहम सी व्याप्त जाती है...जबाब सोचकर
ReplyDeleteCrazy !!
ReplyDeleteMy offspring is here because :
- I (we) wanted her here.
- Its a natural consequence .. social .... or biological... or whatever ...
- I (we) simply couldn't help it.
But in no way is she here because she desired so ....
In so far as your other question goes, I wish someone had an answer to it.
Great post !!
व्यक्तिगत संपत्ति सब झगड़ों की मूल है। क्यों न उसे समाप्त कर दिया जाए। पुरूष प्रधानता स्वयमेव समाप्त हो जाएगी।
ReplyDeletesahi kaha hai aapne.jab tak ladki ke youn acharan ko apni izzat se jodkar dekhte rahenge aise apradh hote rahenge.
ReplyDeleteनिरुपमा पाठक की अगर ह्त्या उसके परिवारजन ने की है, तो ये माफी के लायक अपराध नहीं है. उन्हें ज़रूर कड़े से कडा दंड मिलना चाहिए. पर ये मामला यही ख़त्म नहीं होता. स्त्री के प्रति जो दकियानूसी सोच है, वों समाज मैं बहुत व्यापक है, और वों बदलेगी तभी, जब समाज में व्यापक हलचले हो. सामूहिक चेतना में बड़े बदलाव आयें. इस तरह की स्थिति बने की स्त्री एक सम्पूर्ण मानव का दर्ज़ा पाए, और बिना पुरुष के भी एक माँ की , एक अभिभावक का सम्मान पाए. स्त्री का अविवाहित माँ बनना एक दुर्घटना हो न हो, और अगर बन भी जाय तो अपमान का सबब न हो. स्त्री के पास सिर्फ आत्महत्या, गर्भपात, और प्रायोजित शादियों से बेहतर विकल्प हो. उसी तरह विवाहित स्त्री का माँ बनना या न बनना भी सामाजिक दबाव का परिणाम न हो. माँ और बच्चे का जो सम्बन्ध है वों सिर्फ उनकी अपनी भावना से ही तय हो, और वों उनके जीवन सबसे बड़ा उत्सव हो.
ReplyDeleteजाने कौन सा पागलपन है..क्या कहें..
ReplyDeleteबहुत सार्थक पोस्ट!१
आपकी बातों से सहमत।
ReplyDelete@घुघूती बासूती जी , मुक्ति जी
ReplyDeleteचलिए अच्छा ही है कम से कम आप लोगों को महिला अपराधिकरण का नया मुद्दा मिल गया । महिलाओं को लेकर आप लोगों की कलम मात्र एक तरफ ही चलते दिखती है , मैंने देखा महिलाओं को गर्मी की दोपहरी में कपड़े के नाम पर उनके शरीर पर मात्र वही भाग ढका था जो नहीं दिखना चाहिए , शरीर का उपरी भाग पूरी तरह से खुला था , आप उन महिलाओं के लिए कुछ नहीं करती , आप को पता होना चाहिए कि नेट पर आप जैसी प्रभुत्व महिलाऐं ही हैं, इससे बाहर आईये और करिए कुछ जमीनि स्तर पर जिससे नारी विकास हो सके और वह स्वावलंबन बन सके तभी वह अपने अधिकारों के प्रती सजग हो सकती है ।
सम्भवामि युगे-युगे!
ReplyDeleteस्वप्नदर्शी की बातों से सहमति।
ReplyDeleteप्रश्न केवल एक जोड़ी मॉं बाप को उनके कुकृत्य की सजा देने भर का नहीं है... मामला उन संरचनाओं की पहचान का भी है जिनसे ये मॉं बाप तैयार होते हैं तथा इतना दुस्साहस पाते हैं कि वे अपनी संतान को मुकम्मल इंसान मान ही नहीं पाते सदैव मातहत रूप में ही देखते हैं। सामान्यत: धर्म, जाति तथा परिवार की संरचनाऍं इसके लिए उत्तरदायी हैं (कभी कभी राज्य/कानून भी इनसे आ गठजोड़ करता है) और इतना तय है कि ये केवल पीढ़ी के अंतराल का मसला नहीं है... घुघुतीजी की आधुनिकता तथा ऊपर इन युवा दोस्त मिथिलेश की सामंतीयता सुस्पष्ट है ही।
अरे, ये पोस्ट तो अखाडा बन गयी।
ReplyDeleteमुझे इसमें नहीं कूदना चाहिये था।
एक तरफ़ा पोस्ट है घुघूती जी यह , मैं नेट से ही उठाकर ऐसी बीसियों खबर यहाँ कट-पेस्ट कर सकता हूँ जहां बाप ने बेटे का इन सब वजहों से क़त्ल किया हो ! बात क़त्ल की नहीं, बात है तराजू के दोनों पडलों को समान नजरिये से देखने की! माँ-बाप निसंदेह दोषी है इस जघन्य अपराध के , मगर क्या निरुपमा ने कम जघन्य अपराध किया ? मरने वाला तो बेचारा हो गया मगर जो अब जीते जी बेवजह नरक झेलेंगे, उनका ? ( हिन्दुस्तानी समाज के नजरिये से, पाश्चात्य नजरिये से मत देखिये वहाँ पहुँचने मैंने अभी १०० साल लगेंगे ) मेरी बातों को आप गलत न लें, मेरा सिर्फ कहने का आशय यह है कि औलाद का भी कुछ फर्ज बनता है, जो उसे जहां तक संभव हो, निभाना चाहिए, और जो निरुपमा ने नहीं निभाया ( अभी तक के तथ्यों का अध्ययन करने पर ) ! बुरा भला ही कहना है तो उस स्वार्थी और कायर प्रेमी को कहिये जिसने अपनी हदे तो पार कर दी मगर शादी के लिए खुलकर सामने नहीं आया !
ReplyDeleteअंत में यही कहूंगा कि निरुपमा के माँ-बाप भी ब्लोगर थे , उन्होंने निरुपमा नाम का एक लेख लिखा था, मगर प्रकाशित करने से पहले जब उन्होंने उसे पढ़ा तो वह लेख उन्हें जचा नहीं और उन्होंने उस कागज़ को ही फाड़ डाला, बस ! ( कितना आसान लगता है न यह सब लिखना ) ...... खैर !!
एकदम सही सवाल उठाए हैं आपने.
ReplyDelete@घुघूती बासूती जी , मुक्ति जी
ReplyDeleteएक तरफ़ा पोस्ट है
Mithilesh dubey से काफ़ी हद तक सहमत
एक आध घटनाएं पूरे समाज का प्रतिनिधित्त्व नहीं करती. अगर आप इसे किसी कारण बेटी (भ्रूण हत्या के अलावा) को मार देने से जोड़ कर देख रही है तो मैं सहमत नहीं हूँ. माँ-बाप अपनी संतान (बहू को मार देना आवश्य होता है) को नहीं मार सकते. बेटी हो या बेटा. वरना गलत रास्ते पर चले बेटे से सम्बन्ध तोड़ने से लेकर कानून के हवाले करने तक के उदाहरण देखे है.
ReplyDeleteक्या आपने कभी सुना है कि किसी माता पिता ने अपनी प्रतिष्ठा/सम्मान के लिए अपने......
ReplyDelete१. गंजेड़ी, नशेड़ी पुत्र की हत्या कर दी?
२.बलात्कारी पुत्र की हत्या कर दी?
३.देशद्रोही पुत्र की हत्या कर दी?
४.आतंकवादी पुत्र की हत्या कर दी?
५.हत्यारे पुत्र की हत्या कर दी?
६.घूसखोर पुत्र की हत्या कर दी?
७.बेईमान पुत्र की हत्या कर दी?
८. चोर,डाकू, जेबकतरे,अपहरणकर्ता पुत्र की हत्या कर दी?
बार-बार पुत्र शब्द की ही पुनरावर्ती क्यों ? "पुत्र " को ही सारे अलंकरणों से क्यों नवाजा गया है ? जबकि
आज जीवन के हर क्षेत्र में महिलाएं ( पुत्री ) भी पुरुषों के कदम से कदम मिला कर चल रही हैं ?????????क्षणिक आवेश में आकर माँ ने बिरजू की हत्या कर दी क्योंकि माँ को आवेश में लाने वाला बिरजू एक पुत्र था यदि पुत्री होती तो भी हत्या निश्चित थी. क्योंकि आवेश के क्षणों में इन्सान विवेक शून्य होता है ओर ऐसे में किसी भी प्रकार का भेद कर पाना बहुत कठिन होता है या संभव नहीं है ..........
चयन या विकल्प का अधिकार केवल माता पिता के पास है, संतान के पास नहीं। सो माता पिता बनना हमारी पसन्द थी, संतान बनना संतान की नहीं।
ReplyDeletesarthak lekh
सवाल तो बहुत उठते हैं, लेकिन हल???
ReplyDeleteइस सन्दर्भ मे एक युवा का जलता हुआ सवाल याद आता है .." क्या हमने अर्जी दी थी अपने पैदा होने के लिये ? "
ReplyDeleteलेखिका कि मनोदशा स्पष्ट झलकती है,
ReplyDeleteस्त्री स्त्री के नाम का हवाला देते हुए आरोप से इतर वास्तविकता से कोसो दूर का आरोप है जिस से ना ही सहमति हुआ जा सकता है और ना ही स्वीकार जा सकता है, अगर अपनी व्यक्तिगत अनुभव को लेखिका ने साझा किया तो हम इसे स्वीकार करते हैं
हमने एक शैतान बेटे को कहते सुना है "पैदा किया है तो भुगतो"
ReplyDeleteकारण कि हम आज भी पशुवत समाज में रह रहे हैं और पुरुषों में पशुबल अधिक होता है..
ReplyDelete