Friday, April 16, 2010

जब सूजी नाक भी खबर बन गई!.........................घुघूती बासूती

मैं पत्रकारिता के विषय में कुछ नहीं जानती़। मैं संसार के अधिकतर विषयों के बारे में बहुत कम या कुछ नहीं जानती। किन्तु फिर भी मनुष्य को सहज ही किसी बात को देखकर यह लगता है कि कुछ गड़बड़ है, या किसी के साथ अन्याय हो रहा है, या यह कुछ अच्छा होता लग रहा है।
सुबह सैर करके आते से ही जिस चीज़ की सबसे अधिक आवश्यकता लगती है वह समाचार पत्र होता है। हमारे घर में उसका भी बंटवारा हो जाता है। सुबह दो पत्र आते हैं टाइम्स औफ़ इन्डिआ व मुम्बई मिरर। एक पति के साथ रास्ते में पढ़ने को जाता है एक मेरे पास रह जाता है। आजकल मुम्बई मिरर मेरे पास रह जाता है। रात को मैं टाइम्स औफ़ इन्डिआ पढ़ती हूँ। हाँ, तो हमारी सुबह सुखद या दुखद बहुत कुछ इस पर निर्भर करती है कि कैसे समाचारों पर नजर पड़ती है। दुखद घटनाएं तो दुख देती ही हैं किन्तु उसके अतिरिक्त भी कुछ बिना बात की खबरें होती हैं जो क्यों छापी गईं ही नहीं समझ आता। ये बस क्रोध दिलाती हैं, असहज करती हैं, असमंजस में डालती हैं, लगता है कि किसी के साथ अन्याय हुआ है और किसी की निजता पर डाका डला है। इनके छपने से किसका क्या लाभ होगा यह मेरी समझ से बाहर है।
आज सुबह भी यही हुआ। मुम्बई मिरर के चौथे पृष्ठ पर जो खबर व चित्र थे उनका क्या औचित्य है मैं समझ नहीं पाई। वे किसी स्त्री के बेहद निजी एलबम के फोटो हो सकते थे या फिर अपनी बेटी या बहू या किसी बहुत अपने को सुनाए किस्से कहानी हो सकते थे या शायद वह भी नहीं। क्योंकि कोई भी व्यक्ति और स्त्री होने के कारण कह सकती हूँ कि शायद ही कोई स्त्री, इस तरह की बातें व फोटो सारे संसार के सामने लाना चाहेगी। यदि कोई फोटो या बात लज्जाजनक न भी हो तो भी कुछ बातें बस अपने व अपने डॉक्टर तक ही सीमित रखना सही लगता है। किन्तु हाय रे मेरे देश व मेरे देश के मेडिकल ऐथिक्स (आचारनीति), यहां मरीजों के किस्से व फोटो भी सबके सामने आ जाते हैं।
समाचार का शीर्षक था, Who Nose The Real ......? उसके बाद आइ पी एल,कोची फ्रैन्चाइज़, व एक मंत्री आदि के साथ खबर बनी स्त्री की या कहिए उनकी नाक की तीन फोटो, जिनमें से एक औपरेशन से पहले का, एक बाद का और एक तब का जब सर्जरी के बाद उनकी नाक सूजी हुई थी(जी हाँ, यही शब्द हैं, औपरेशन के पाँच दिन बाद का सूजन!) व उनकी नाक की प्लास्टिक सर्जरी का समाचार था। किस सर्जन से करवाया किस सन में करवाया, विधवा होने के बाद करवाया आदि सब बताया गया था। यह भी समझ नहीं आया कि नाक की सर्जरी व वैधव्य का क्या रिश्ता बनता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि विधवा होने के बाद सौन्दर्य वर्धक सर्जरी कुछ गलत सी........। पता नहीं। शायद मैं हर बात को घुमा फिरा कर वहीं स्त्री व उसके प्रति लोगों के रवैये पर ले जाती हूँ। किन्तु कभी किसी ने किसी समाचार पत्र में पढ़ा है कि अमुक का विधुर होने के बाद का फोटो या अमुक ने विधुर होने के बाद यह काम किया, करवाया आदि या अमुक की विधुर होने के बाद शेव की हुई या बढ़ाई हुई दाढ़ी ? नहीं ना?
और हाँ, हमारे लिए यह जानना भी आवश्यक है कि इसके पहले उनके दो मोटापा कम करने के औपरेशन भी हुए थे। मैं असमंजस में हूँ। यदि कोई समझा सके कि यह खबर किसके लिए है, क्यों है, क्या इससे आइ पी एल वाले मुद्दे को सुलझाने या समझने में कुछ सहायता मिलेगी तो आभारी होऊँगी।
कोई है?
यह समाचार दिनांक १६.०४.२०१० के www.mumbaimirror.com में पढ़ा जा सकता है।
वैसे इससे एक दिन पहले के पत्र में यह भी पढ़ा जा सकता है कि मंत्री जी ने कहा था कि हमारी मीडिया एक आकर्षक स्त्री के कुशल व्यवसाई होने की धारणा को स्वीकार नहीं कर सकती। लीजिए, सबूत भी मिल गया। मीडिया तो उसके आकर्षक होने को भी कृत्रिम सिद्ध कर रही है।

नोटः यदि आपकी भी कोई नाक सिनकते, छींक मारते, कान खुजाते, उबासी लेते, गाल में फोड़ा निकले या पिम्पल्स वाले फोटो हों तो छिपा लीजिए। क्या पता कब आप भी प्रसिद्ध हो जाएँ और ये फोटो समाचार पत्रों की शोभा बढ़ाएँ?
घुघूती बासूती

31 comments:

  1. जागरूकता ज़ाहिर करती.... बहुत अच्छी पोस्ट....

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  2. एक मह्त्वपूर्ण चिंतन की दिशा मिली है
    शुक्रिया

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  3. Akhbaron ke paas aise kayi vishay hote hain,jinse janmanas me avashyak jagrukta phailayi jay...chae to paryawaran ho ya, srtee bhrun hatya,ya matdan ke prati udaseenta...lekin nahi...har baar kuchh sansanikhez chahiye..
    Yhai kahani news channels kee bhi hai.

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  4. महोदया,
    मेरे घर से आफ़िस का लगभग ढाई घंटे का रास्ता था। हिंदी भाषी होने के बावजूद रास्ता भली भांति काटने के लिये मैं दिल्ली का सबसे पापुलर अंग्रेजी दैनिक खरीद कर अपना रास्ता काटना सुगम बनाता था। उन्हीं दिनों एक विशिष्ट महिला अपनी प्रथम डिलीवरी के लिये अस्पताल में दाखिल हुईं थीं। हमारे राष्ट्रीय स्तर के अखबार ने अपने संस्करण में पाठकों को बहुत प्रसन्नता से सूचित किया था कि इस मामले के डेली अपडेट्स के लिये यह कालम रिज़र्व कर दिया गया है, देखते रहें। औरों की तो मैं नहीं कह सकता, पर जितनी वितृष्णा मुझे उस दिन ऐसी मानसिकता पर हुई थी, वह बताने के काबिल नहीं है।
    ऐसी रिपोर्टिंग करने वाले अखबारों को हम इस व्यवस्था का आधार स्तंभ मान सकते हैं क्या?

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  5. क्या हालत है अखबारों की. बेवजह की खबरों से पन्ने रंगना ही काम रह गया है.

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  6. कई बार अखबार में बेवजह की सुर्खियाँ बुरी तो लगती हैं ...!!

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  7. patrakarita ka hai paise se hai mol hane laga...
    kam hoti dikh rahi iski bhi dhar hai...
    kaun sona khata hai ya kaun chandi peea hi...
    iske hi charon ore inka sansaar hai...
    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  8. अनर्गल प्रलापों से भरे होते हैं समाचार पत्र.

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  9. "पिम्पल्स वाले फोटो हों तो छिपा लीजिए"-या छपा लीजिये ?

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  10. जीबी
    वे धंधे में हैं ज्यादा अपेक्षायें मत पालिये ! इस पर कुछ शोध जैसा हमने भी करवाया था और कुछ पोस्ट भी डालीं थीं ! उसके बाद हमें ईश्वर प्रिय लगने लगा :)

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  11. आपने पहले आईपीएल में टेक्‍स का मामला उठाया था, आयकर विभाग वाले सक्रिय हो गए हैं। इसके लिए तो बधाई। मीडिया को चटपटी खबरे चाहिए तो वो कुछ भी लिखने को स्‍वतंत्र है। उस पर कोई भी काननू लागू नहीं होता है। शायद अब आपने लिखा है तो इस ओर भी ध्‍यान जाएगा।

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  12. क्या करें ये लोग भी, बहुत लोंगो के लिए वाकई यह रोचक खबर है....

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  13. इस विषय पर बढ़िया आलेख...

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  14. आप अखबार ही गलत पढ़ती है. डीएनए पढ़ा करें. यह कम से कम उक्त से बेहतर है.

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  15. kya kahein jee

    ham to khud isi proffesion wale thahre....

    ;)

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  16. अजित गुप्ता गौरतलब बात बता रही हैं ।
    संजय से ऐसे समाधान के सुझाव की उम्मीद न थी-मानो बचपन में कहा जा रहा हो आंखें मूंद कर कपड़े बदल लो।

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  17. मुंबई मिरर तो ऐसे समाचारों पर ही टिका हुआ है...बस चटखारे वाली ख़बरें मिलती हैं उसमे..

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  18. मुंबई मिरर इसीलिये तो फ़ेमस है :)

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  19. Pata nahin khabren banate hain ya chanki chaat masala..

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  20. जब मालिक अखबार को प्रोडक्ट कहने लगे तो ये हाल होना ही है.

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  21. अखबार वाले ख़बरें कैसे बनाते हैं , ये तो हम रोज़ देखते हैं।
    कुछ भी छपवालो इनसे । बस संपर्क होने चाहिए ।

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  22. bahuUT KHUB

    SHEKHAR KUMAWAT

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  23. ऐसी ख़बरें वीभत्स चुटकुलों की मानिंद होती हैं जिन्हें मालिक लोगों की नीति के चलते पेशकार सुबह-सबेरे मेरे अख़बार में सलीक़े से लपेट कर दे जाते हैं. पर इनका हश्र तो मेरे यहां ठीक वैसा ही होता है जैसे Delhi Times नाम के सप्लीमेंट का...हमारे यहां इस सप्लीमेंट को सीधे ही रद्दी में छोड़कर बाक़ी अख़बार टेबल पर रखते हैं.

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  24. अखबारों के तीसरे और चौथे पन्ने ऐसी ही खबरों से भरे पड़े होते हैं. इसमें सिर्फ़ अखबार वाले दोषी नहीं है. कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्हें किसी भी तरह अखबार के तीसरे पन्ने पर छपने का शौक होता है, चाहे वो फोटो कैसी भी हो. खैर ऐसे लोगों को तो मैंने केवल पेज थ्री फ़िल्म में देखा था, जो किसी के मातम के दिन भी सज-धजकर पहुँचते हैं. पर, ऐसी कुछ लड़कियों से मिली हूँ, जिन्हें पेज थ्री की खबरें चटखारे ले लेकर पढ़ने में मज़ा आता है...मैं एक इंस्टीट्यूट में बतौर काउंसलर काम कर रही थी, वहीं एक कलीग ने बताया कि वो तो सिर्फ़ पेज थ्री ही पढ़ती है. उसे सेलिब्रिटीज़ की खबरें पढ़ना अच्छा लगता है. वो भी उनकी तरह लाइमलाइट में रहना चाहती है.
    अब बताइये, खाली बेचारे रोजी-रोटी के मारे पत्रकारों और बड़े-बड़े कॉपरेट घरानों के पैसे से चल रहे अखबारों को क्या कहें?
    अली जी आपको जीबी कह रहे हैं, अह्म भी कहा करें क्या, घुघूती बासूती लम्बा लगता है ज़रा????

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  25. सभी समाचार पत्रों की यही स्थिति है । इन्हें सद्बुद्धि मिले ।

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  26. आजकल के हालात का सही चित्रण!

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  27. ऐसी बेहूदी खबरों के मामले में चैनलों ने प्रिंट मीडिया को बहुत पीछे छोड़ रखा है.

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  28. बढ़िया आलेख...

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  29. Aksar aise khabron se bhari pate rahte hai akhbaar...

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  30. aisi hi utpatang khabro se akhbaar ki entertainment value badti hai .........

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  31. बहुत ही आछा लगा मेरे को ये घुघूती बासूती पड़ कर

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