लीजिए बहनो और भाइयो, यदि आप किसी भ्रम में जी रहे थे तो तुरन्त उससे बाहर निकल आइए। यदि आप भारतीय नारी को महान मानने वालों का लिखा पढ़ते यह सोच रहे थे कि शायद आपका ही घर परिवार एक अपवाद है अन्यथा शेष भारत में तो जो वह कहे वही होता है, उसकी आज्ञा सबको शिरोधार्य होती है, उसकी इच्छा, उसकी आज्ञा, मान ही सर्वोपरि है, तो जाग जाइए। निम्न कथन किसी पाश्चात्य सभ्यता को मानने, जीने वाले दिशा भ्रमित छद्म नारीवादी का नहीं है, अपितु विशुद्ध भारतीय संस्कृति में रचे बसे उस व्यक्ति का है, जो अपने को जनसाधारण का नेता मानता है, जो हर तरह से भारतीय संस्कारों वाला है, लाखों लोग जिसके पदचिन्हों पर चलने को अपना सौभाग्य मानते हैं। लीजिए, आप भी पढ़िए और स्वयं को धन्य मानिए कि ये लोग हमारा प्रतिनिधित्व करते हैं। इनके प्रतिनिधित्व में स्त्रियों को किसी आरक्षण की क्या आवश्यकता? ये तो पहले से ही हमें इतना सम्मान देते हैं। हम निश्चिन्त होकर अपना उत्तरदायित्व इनके हाथों में दे सकते हैं। ये कहें तो चूल्हा फूँक सकते हैं, ये कहें तो शासन कर सकते हैं।
नेता जी का कथन जैसा मैंने समाचारपत्र में पढ़ाः
If.. (they)think that the women would vote independent...then they are mistaken...If I asked Rabri Devi to vote a certain way,do you think she would do otherwise?
Rashtriya Janata Dal president Lalu Prasad voicing his opposition to the women's reservation Bill
TOI 10/3/10 page 20
अनुवादः यदि वे सोचते हैं कि स्त्रियाँ स्वतंत्र वोट देंगी तो वे भ्रम में हैं। यदि मैं राबड़ी देवी को किसी को वोट देने को कहूँ तो क्या वह उसके विरुद्ध जा सकती है?
राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव का कथन।
बहुत लज्जा की बात है कि इस देश में जहाँ नारी तुम यह हो, वह हो, कहा जाता है वहाँ पति अपनी पूर्व मुख्यमंत्री पत्नी की औकात सार्वजनिक तौर पर बता देते हैं। सोचिए कि जो स्वयं किसी का हुक्म बजा रही हो उसके आदेशों पर एक पूरा राज्य काम कर रहा था।
स्त्री की भारतीय समाज में क्या स्थिति है इसका इससे ज्वलंत प्रमाण / उदाहरण और क्या हो सकता है? अब भी यदि हम यह कहते फिरें कि भारत में स्त्रियों का स्थान बहुत ऊँचा है तो क्या कहा जाए? किसी की इतनी हिम्मत नहीं होगी कि सार्वजनिक तौर पर यह कह सके कि वह अपने बनिहार(मजदूर) को आदेश देता है कि किसे वोट दे। किन्तु यहाँ एक नेता बड़े गर्व के साथ ऐसी बात कह रहा है।
कोई मुझे यह बात बता सकता है कि जब हमारे जमीनी नेता स्वयं ही यह बात स्वीकार करते हैं कि स्त्रियों की स्थिति इतनी दयनीय है कि एक स्त्री मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर भी, मतदान देने जैसे अपने अहम सामाजिक व राष्ट्रीय कर्त्तव्य को निभाने में भी पति आज्ञा की अवहेलना नहीं कर सकती, तो फिर वे स्वयं ही उसकी स्थिति सुधारने के लिए उसके लिए आरक्षण की माँग क्यों नहीं करते रहे हैं? वे तो आरक्षण को ही सामाजिक बदलाव व पिछड़ों को आगे लाने की कुँजी मानते रहे हैं। तो जब पिछड़ों को नौकरियों में २७ प्रतिशत आरक्षण मिला था और हाल में ही जब शिक्षा में भी उन्हें आरक्षण मिला था तो क्यों नहीं स्वयं ही आगे आकर उन्होंने व उनके दल ने इस आरक्षण में स्त्रियों के लिए आरक्षण की माँग की? वे तो सब जानते हैं कि स्त्री कितनी दलित,दमित,दबी कुचली हुई है,समाज व परिवार में उसकी स्थिति केवल हुक्म बजाने वाली की है। तो उन्हें तो अपने हिस्से के आरक्षण में से उसे भी आरक्षण देना चाहिए था। वे तो सामाजिक न्याय के लिए लड़ने वाले नेताओं में से हैं। या यह न्याय केवल अपने लिए या अपनी जाति के पुरुषों के लिए ही है। जब बात किसी अन्य के लिए न्याय की हो तो अधिक महत्वपूर्ण नहीं रह जाती।
खैर जो भी हो, नेताजी ने समाज में स्त्रियों की स्थिति बहुत सम्मानित मानने वालों को दर्पण तो दिखा ही दिया। मैं आभारी हूँ।
घुघूती बासूती
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सत्य वचन , मुझे लगता है ये तिलमिलाहट तो बाहर आनी ही थी,अभी तो बहुत कुछ सुनने को मिलेगा ...
ReplyDeleteइब्तिदाए आरक्षण है रोता है क्या आगे आगे देखिये होता है क्या
हा हा हा
सच बहुत कडवा हैं लेकिन आज भी बहुत से घरो मे पत्नी का वोट पति पहले से तय कर देता हैं । हमारे घर मे एक बिहारी स्त्री कृष्णा १६ साल से माँ के पास काम करती हैं आज ५५ साल कि हैं उसका बेटा हमारे एरिया मे बिहारियों के वोट का "संरक्षक " हैं । जब इलेक्शन होते हैं हर घर का "आदमी " बता देता हैं उसके घर मे कितने स्त्री वोट हैं कितने पुरुष वोट हैं और किसको दिये जायेगे । कृष्णा अपना वोट अपने बेटे के हिसाब से देती हैं और कृष्णा कि बहु लक्ष्मी भी वहीँ निशान लगाती हैं जहां उसका पति तय करता हैं । तय करना निर्भर होता हैं प्रति वोट क्या मिलेगा ।
ReplyDeleteकेवल वोटिंग अधिकार देने से क्या होगा पहले जन्म जन्म के परमेश्वर से ऊपर तो उठ सके । वो रबरी हो या कोई और पत्नी , पति कि बात से बाहर नहीं जा सकती ये सत्य हैं , नेता जी सच कहीं हैं घुघूती मैम
लीजिये ये भी कोई बात हुई. वो तो अपनी पत्नी के पतिव्रता होने का ढिंढोरा पीट रहे हैं और आप कह रही हैं कि उन्होंने "स्त्रियों की स्थिति बहुत सम्मानित मानने वालों को दर्पण तो दिखा ही दिया"
ReplyDeleteअभी यहाँ भारतीय संस्कृति के पहरुए आ जायेंगे और कहेंगे कि ये तो बहुत अच्छी बात है, राबड़ी देवी भारतीय नारी का ज्वलंत उदाहरण हैं. वह भारतीय नारी, जो प्रत्येक कार्य अपने पति की इच्छा से करती है. इसमें दर्पण दिखाने वाली कौन सी बात हो गयी ?ये तो संस्कृति के पहरुओं का समर्थन ही हुआ. इनके सामने आप ऐसे दस उदाहरण रख दीजिये. ये उसमें अपना पक्ष पुष्ट करने के तर्क ढूँढ़ लेंगे.
बाकी, इन नेता लोगों से और अपेक्षा भी क्या की जा सकती है?
यही औकात है. नेताजी ने सही कहा. 33% में भी कितनी स्वतंत्र विचारों वाली आएगी यह देखना है. महिला शायद ही आए. पत्नी, बेटी या बहू ज्यादा आएगी.
ReplyDeletelau yadav ki biwi rabri aor mulayam ki bahu dimple stri nahi hai shayad ?
ReplyDeletelau yadav ki biwi rabri aor mulayam ki bahu dimple stri nahi hai shayad ?
ReplyDeletelau yadav ki biwi rabri aor mulayam ki bahu dimple stri nahi hai shayad ?
ReplyDeleteजो स्त्री शून्य स्तर से अपनी पहचान खुद बनाएगी .. वो पति की हर बात क्यूं मानेगी .. पर जो अपने पति के बल बूते पर ही मुख्यमंत्री बनेगी .. वो भला उसकी बात क्यूं नहीं मानेगी .. ऐसी हालत में पति भी पत्नी की बात मानते हैं .. सच तो यह है कि आज महिलाओं की स्थिति में सुधार आ रहा है .. बस हमें दूसरी नारी के प्रति सहिष्णु होना होगा .. और उसके लिए एकजुट होकर लडने की हिम्मत जुटानी होगी !!
ReplyDelete.
ReplyDeleteनारियाँ इतनी निर्भर क्यों हैं, जरा इस पर विचार करें ।
बाई दॅ वे,
यदि मैंनें वोट के लिये ऍडवाँस बुकिंग ले ली है, तो उस धन के एवज़ में पत्नी क्या परिवार का हर सदस्य मेरे कहे अनुसार ही वोट डालेगा ! :)
इस तथ्य को हँसी में ख़ारिज़ नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसके मूल में आर्थिक परतँत्रता काम कर रहा होता है ।
sach kadwa jarur hai par hai.
ReplyDeletejarurat kewal kaduwaaht mehsoos karne ki nahi hai balki usse paar paane ke baare me vichaar karne ki hai!
सच्चाई बयान किया है लालू जी ने स्टेटमेंट में. ये उनके घर की बात होगी. ये नेता जी लोग अपने घर की महिलाओं को ऐसे ही ट्रीट करते हैं.
ReplyDeleteआप लालू के बयान के बाद भी उनसे उम्मीद रखती हैं !
ReplyDeleteक्या आप लालू को अनुकरणीय नेता मानती हैं ?
ReplyDeleteनेताओ का दोगलापन देश के लोगो को दिखाई नही देता !!!
ReplyDeleteनेताजी ने जो स्त्रियों की औकात बताई है,ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि वे शतायु हों और अपने जीवन में ही स्त्रियों की औकात देख कर जी ठंडा करें....इनके सामर्थ्य से बहार है स्त्रियों का सामर्थ्य आंकना...
ReplyDeleteहाँ , इन्होने अपने घर की जो बात बताई है,इससे वे भाई बहन लोग अंदाजा लगा लें कि ये किसीका भी कितना भला सोच या कर सकते हैं....
ReplyDeletehamare desh ki yahi bidambana hai ki aaj bhi gaon ki chhodo shahar mein hi dekh lijiye kitni swatra hain ......
ReplyDeleteAaj jo aarakshan ki baat ho rahi wah kahan tak mahiloyon ke hit mein hoga yah jaldi hi samne aa jayega. Jab tak rajneeti mein bhai-bhatija, vanshbaad ki prampara rahegi bahut adhi apeksha karna bemani hai. Phir ho umeed par duniya kayam hai..... Dheere-Dheere badlao jarur aayega..... Ek din janta jarur jagegi aur dogale netaon ko bahar ka rasta dekhayegi.
Bahut badhai aapko netaon ki kartut sabke samne prastut karne ke liye....
सब से पहले तो नेता जी को बधाई देना चाहूँगा कि कम से कम उन्हों ने सच कहा और हमें विमर्श का समय दिया।
ReplyDeleteवास्तविकता तो लालू जी बोले वैसी ही है। लेकिन यह 100 प्रतिशत सच भी नहीं है। पर फिर भी साठ सत्तर प्रतिशत सच तो है ही। वैसे यह भी है कि अधिकांश मध्यवर्गीय पति-पत्नी इस तरह के फैसले मिल कर लेते हैं। उस में पारिवारिक हित का दृष्टिकोण भी सम्मिलित होता है।
सच तो सच ही होता है..कोई माने या लाख बहाने बनाए..
ReplyDeleteसच्ची बात.. सीधे सपाट शब्दों.
आर्थिक परतन्त्रता सबसे बड़ा कारण है..
ReplyDeleteवैसे मेरे साथ पत्नी की सोच (राजनीतिक) मेल नहीं खाती तो शायद उनका वोट भी अलग ही जाता होगा.
बहरहाल लालू जैसे लोग जो अपनी बीवी को खुदमुख्तारी का हक नहीं देते तो खुद कैसे लोकतन्त्र के समर्थक होने का दिखावा भी कर सकते हैं..
जो हर तरह से भारतीय संस्कारों वाला है, लाखों लोग जिसके पदचिन्हों पर चलने को अपना सौभाग्य मानते हैं। मुझे तो यह चुटकला बहुत सुंदर लगा.आप के लेख मै. धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत खूब !!!!!
ReplyDeleteऔसत पुरुष के लिए नारी की आजादी व्यर्थ के चोंचले हैं. लड़की के सन्दर्भ में उन्मुक्तता को लक्ष्मण रेखा के पार माना जाता है, और लोकप्रियता का मतलब बदनामी.
ReplyDeleteलड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से..
http://laddoospeaks.blogspot.com
Sh. Lalu ji speaks out openly what is there in his heart. I thank him for that because most of the Indian leaders hide their true feelings. The thought aired by Sh.Yadav is prevalent in the society. Indian women lack self confidence. They don't have a opinion of their own. This is the situation in the whole of the Asia. Mrs. Benazir Jardari, when she was PM of Pakistan her husband was minting money although she was a strong political figure even before her marriage and her political career was not a gift of her husband as is in the case of Mrs Rabari Devi.My point is for women political libration is not important librate her socially and mentally.
ReplyDeleteSach me ye bahut dukhad hai.. lekin ek bewakoof neta aur uske kathan se aap bharteeya stree ki samarthya ke bare me nahin jaan sakteen.. yoonki samarthya hi urdu jabaan me aukaat hoti hai, jahan tak mujhe sikhaya gaya hai..
ReplyDeleteaur sharm ki baat to ye bhi hai ki is kathan me lalu ka sath uski alpagya patni rabdi devi bhi detee hain..
लालू जी के कहने से क्या होता है ...उन्हें कैसे पता चलेगा कि उनकी पत्नी ने किसको वोट डाला ...:):)
ReplyDeleteक्या कहा जाये...सब तो कह गये. हम ही देर से आये.
ReplyDeleteहमें तो कोई सन्देह् नही ,लेकिन अधिकांश को भारतीय स्त्री की स्थिति बहुत सुविधाजनक और स्त्री -विमर्श फालतू प्रतीत होता है..उनके लिए यह पोस्ट पढना आवश्यक है !
ReplyDeleteएक ऐसा व्यक्ति जिसने जब चाहा जैसा चाहा अपनी पत्नी से मनवाया ..चाहे वो दर्ज़न भर शिशु पैदा करने की बात हो , अपने साथ जेल ले जाने की बात हो या फ़िर रसोई से सीधे मुख्यमंत्री बनाने की बात हो , उसकें मुखारविंद से इतने उम्दा वि्चार जानकर कोई आश्चर्य नहीं हुआ ..हां उनसे उस समय पूछा जाना चाहिए था कि यदि ऐसा ही था तो पिछले पांच सालों में वे सोनिया गांधी के पीछे पीछे ..मैडम मैडम करते क्यों चलते रहे ????
ReplyDeleteअजय कुमार झा
आपका कथन सही है लेकिन इस जनतंत्र में सही में वोट का अर्थ समझाने की भी ज़रूरत है ।
ReplyDeleteआज भी निम्नवर्गीय और मध्यमवर्गीय परिवार की यही स्थिति है। चुकिं एक गांव से मैं खुद जुड़ी हुई हूँ और आँखों देखा हाल बता रही हूँ...अगर किसी गांव में महिला प्रधान है तो पंचायत में उसका पति ही बैठता है और उसी का फैसला ही सर्वमान्य होता है।उस महिला प्रधान को पता भी नही होता कि पंचायत किस बात की बैठी है...आज भी ऐसे नेताओं की नजर में स्त्री की यही औकात है।
ReplyDeleteआँख खोल देने वाली पोस्ट आभार!