Thursday, February 11, 2010
कुछ बातें सही गलत की सब मर्यादाओं से बाहर की होती हैं !................घुघूती बासूती
जीवन में हम अधिकतर बातों को सही या गलत, काले या सफेद, अच्छे या बुरे के साँचे में डालने के यत्न में लगे रहते हैं। यह हमारे लिए सुविधाजनक होता है। इससे मस्तिष्क को कम से कम कष्ट होता है। सबसे बड़ा लाभ तो यह होता है कि हमें अधिक चिन्तन भी नहीं करना पड़ता । किसी अन्य के बनाए मूल्यों को हम जीवन भर अपना कहकर जीते चले जाते हैं, उनपर न विचार करते हैं, न प्रश्न करते हैं, न यह सोचते हैं कि क्या ये मूल्य हर समय, काल, स्थान व परिस्थिति में खरे ही उतरेंगे, या ये किसी विशेष स्थिति में गलत सिद्ध तो नहीं हो जाएँगे। यह लाभ भी होता है कि चिन्तन न करके हम अपनी उर्जा बचा लेते हैं और यह बची हुई उर्जा हम किसी अन्य द्वारा निर्धारित शत्रुओं* से शत्रुता निभाने में सदुपयोग कर सकते हैं। जो व्यक्ति या बात हमारे द्वारा बनाए या माने गए सही या गलत, काले या सफेद, अच्छे या बुरे के साँचे में न बैठे या तो हम उसके होने को ही नहीं मानते या उसे हम खारिज कर देते हैं या उसे हम जाति, समुदाय आदि से बाहर कर देते हैं।
आज के टाइम्स औफ़ इन्डिया के अनुसार १९ वर्षीय ब्रॉन्सन स्टीवर्ट नामक न्यूज़ीलैंड के एक व्यक्ति पर अपने ही पिल्ले की चोरी करने के लिए कानूनी कार्यवाही हो सकती थी। जब उनके पाँच महीने के पिल्ले बक का पैर एक कार दुर्घटना में घायल हो गया तो उसे जानवरों के डॉक्टर को दिखाया गया। वह और उसका परिवार उसके इलाज के लिए १७३० न्यूज़ीलैंडी डॉलर या उसका पैर कटवाने के लिए ५५५ न्यूज़ीलैंडी डॉलर देने में असमर्थ थे। वे स्वयं सरकारी सहायता पर आश्रित हैं। उन्होंने क्लिनिक को हर सप्ताह ३.५ न्यूज़ीलैंडी डॉलर देने की पेशकश की जो क्लिनिक ने अस्वीकार कर दी। डॉक्टर ने उनका पिल्ला यह कहकर रख लिया कि ऐसे में उन्हें उसके कष्ट से बचाने के लिए यूथेनेशिया /सुखमृत्यु देनी होगी सो पिल्ला उन्हें वापिस नहीं मिलेगा।
ब्रॉन्सन पिल्ले से मिलने के बहाने क्लिनिक गया और पिल्ले को उठाकर भाग गया। उसे कुत्ता चुराने के अपराध, कुत्ते को कष्ट में रखने के अपराध में सजा हो सकती थी। New Zealand's Society for the Prevention of Cruelty to Animals (SPCA) ने उस पर कानूनी कार्यवाही करने की धमकी भी दी। किन्तु ब्रॉन्सन ने कहा कि वह बक को मरता नहीं देख सकता है चाहे उसे सजा होती है तो होए।
सौभाग्य से यह समाचार जब लोगों ने पढ़ा तो सहायता के लिए बहुत से लोग आगे आए और लगता है कि अब बक का इलाज भी हो जाएगा और ब्रॉन्सन को सजा भी नहीं होगी।
इस घटना के बारे में पढ़कर जो प्रश्न खड़े होते हैं वे हैं....
क्या चोरी सही है?
क्या अपने ही पिल्ले की चोरी सही है?
क्या किसी विशेष स्थिति में चोरी भी सही हो जाती है?
क्या किसी के पिल्ले को यूथेनेशिया के लिए छीन लेना सही है?
क्या यूथेनेशिया सही है?
क्या मूक प्राणी की यूथेनेशिया सही है?
क्या मूक प्राणी की यूथेनेशिया तब सही है जब उसके मालिक(?) सहमति दें?
क्या मूक प्राणी की यूथेनेशिया तब सही है जब उसके मालिक उसके इलाज के लिए धन न दे सकें?
क्या धन मिल जाने से अपराध क्षम्य हो जाते हैं?
और भी ऐसे बहुत से प्रश्न मन में उठेंगे व उठते रहते हैं। काले या सफेद में विश्वास करने वाले ग्रे की सम्भावना को नकारते हैं। वे भगवान** पर तो विश्वास कर सकते हैं किन्तु मानवता को नकारते हैं। वे ब्रॉन्सन को कड़ी से कड़ी सजा देना चाहेंगे। उनके अनुसार बक नामक पिल्ले का जीवन महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपर्ण है तो केवल सजा। (जैसे सजा के उद्देश्य से ही मनुष्य को धरती पर लाया गया था और मजा यह कि उसी साँस में जिसके नाम पर सजा देते हें उसे दयालु भी कहेंगे!)
वे कह सकते हैं कि गिल्ली डंडा खेलना गलत है। कारण कुछ भी हो सकते हैं वर्ग, धर्म, देश, संस्कृति, जाति आदि के विरुद्ध होना। वे हमें गिल्ली डंडा खेलने से रोकेंगे, या उसे देखने से रोकेंगे और हम रुक भी जाएँगे क्योंकि हम ब्रॉन्सन स्टीवर्ट नहीं हैं, १९ वर्षीय नहीं हैं, सरकारी सहायता पर आश्रित नहीं हैं। हमारे पास खोने को बहुत कुछ है सो हम डर जाएँगें और ग्रे की सम्भावना से इन्कार कर देंगे। हम मान लेंगे कि संसार में केवल और केवल काला और सफेद है, ग्रे तो कभी देखा या सुना ही नहीं है। हम तो बस ऐसे में एक पोस्ट लिख देते हैं ब्रॉन्सन स्टीवर्ट के बारे में।
*
शत्रुओं*
जैसे वर्ग शत्रु, धर्म शत्रु, देश शत्रु, भाषा शत्रु, संस्कृति शत्रु, जाति शत्रु, नगर शत्रु, समुदाय शत्रु आदि आदि।
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भगवान** या वर्ग, धर्म, देश, भाषा, संस्कृति, जाति, नगर, समुदाय आदि।
नोटः चित्र गूगल से साभार।
घुघूती बासूती
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हर देश का कानून यह तय करता है कि क्या सही है और क्या गलत या फिर वे अधिकारी तय करते हैं जो कानून लागू करते हैं जैसे कि भारत में तो यह होता है कि
ReplyDeleteYou show me the face and I show you the rule .
मेरे ख्याल से ब्रान्सन ने सही किया कम से कम कुत्ते की जान तो बची पर यदि उसे सहायता न मिलती तो....................
ये तो बहुत कठिन भावनात्मक उलझाव वाला मामला है -
ReplyDeleteमनुष्य का होता तो दिस दैट डिसाईड कर देता ..ये अपनुन के मान का नहीं है .
बहुत अजीब मामला है, खोपड़ी चकरा गई। मुझे तो ऐसे लगता है हम सौ साल आगे भविष्य में पहुँच गए।
ReplyDeleteकाले सफेद में तो बस शतरंज की बिसात होती है...सच अगर कहीं होता है तो ग्रे में ही होगा। और 'भगवान'... ये चीज हमेशा उन लोगों के हाथ की कठपुतली होती है जो दूसरों के सही-गलत को तय करने में विश्वास करते हैं।
ReplyDeleteहमें तो बस यही लगता है। रही इस पालतू पशु प्रेम के उदाहरण की... तो हमारी तो राय है कि उन्हें उनकी दुनिया में रहने दो अपने प्रेम/नफरत/सही/गलत/न्याय/अन्याय के भावों का आरोप उस पर थोपना एंथ्रोपोसेंट्रिज्म भर है। मानव जाति के ताकतवर होने की हेकड़ी भर।
apko padhna hamesha hi sukhad hota hai. ek sachhi aur vicharatmak prastuti ke liye badhayi.
ReplyDeleteवैचारिक पोस्ट.
ReplyDeleteये तो न्यूजीलैंड है जी । वहां कुत्ते के जीवन पर भी बहस हो सकती है।
ReplyDeleteलेकिन हम तो हिंदुस्तान में रहते हैं जहाँ मनुष्य की जान की भी कोई कीमत नहीं।
वैसे यूथेनेसिया पर अभी बहस जारी है और कोई फैसला नहीं हुआ है।
मुझे लगता है कि कानू के आधार पर, नैतिकता के आधार, भावानात्मकता के आधार पर इसका अलग अलग जबाब होगा. बस, इतना ही जाने कि कम से कम इन सब बातों पर, पशु पक्षियों पर नजर तो है.
ReplyDeleteब्रॉन्सन स्टीवर्ट के पक्ष में एक वोट इधर से भी ! अपनी खिडकियां खुली हुई हैं हर सम्भावना के लिए , यहां , सही / गलत , श्वेत / श्याम के अतिरिक्त अन्य विकल्पों का भी स्वागत है ! कोई खांचे कोई ढांचे , कोई बंदिशें नहीं ! देश का क़ानून क्या कोई अमिट स्याही है या कोई ईश्वरीय बोल वचन , जिसे खुरचने / बदलने की मुमानियत है :)
ReplyDeleteयह प्रसंग भी अपनें तरह का अनूठा है..
ReplyDeleteas always a "serious post" now you will be told to write something non serious . that is how the pendulum moves ding dong and many keep chasing it from one end to other like ping pong .
ReplyDeleteआह पिंग पॊंग!आज तुम्हें पकडना पड़ता है. कभी तुम मेरे बल्ले पर नाचती थीं, प्राय: वैसे जैसे मैं नचाती थी. तभी तो यह जीवन पैन्ड्युलम ही है.
ReplyDeleteवैसे एक और बिन्दु भी था गिल्ली डंडे का और रोके जाने का और हमारे रुकने का!
घुघूती बासूती
जीवन में हम अधिकतर बातों को सही या गलत, काले या सफेद, अच्छे या बुरे के साँचे में डालने के यत्न में लगे रहते हैं। यह हमारे लिए सुविधाजनक होता है।
ReplyDeleteआपसे सहमत हूं।
सही है, हर देश का कानून वहां के हिसाब से सही होता है.
ReplyDeleteहमारे यहाँ नन्हे मुन्नों की देखरेख दादी-नानी के बताये नुस्खों के हिसाब से होती है लेकिन वही सब आप अमेरिका में पहुंचकर करें तो बच्चे की जान को खतरे में डालने के इलज़ाम में आपको जेल में भी बंद किया जा सकता है.
हमारे लोग बड़े भावुक हैं और प्यार से भरे हुए भी. हम लोग बड़ी मुश्किल से ही रिश्तों से छुटकारा पा सकते हैं, वह भी तभी जब चाहें तो.
परदेस में तो बच्चे भी माँ-बाप के नहीं रहते, ऐसे में कुत्ते के प्रति इतना प्रेम काबिलेतारीफ है.
या शायद जब बच्चों से प्रेम न मिले तो ही लोग पालतू पशुओं में इसे ढूंढते हैं.
सारा खेल ही भावनाओं का है .... और ये जरुरी नहीं है कि भावनाएं सिर्फ इंसानों में ही होती हैं .. जानवर मूक होकर भी सारी भाषा समझते हैं ... तो फिर हमें क्यूँ न उनसे प्यार हो .. जैसे कि किसी की जान बचाने के लिए बोला गया झूठ हज़ार सच से अच्छा होता है इसी तरह किसी विशेष परिस्थिति में की गयी चोरी सही भी हो सकती है ... इसमें देश , भाषा या धर्म का कोई बंधन नहीं होता ...
ReplyDeleteक्या क्या होता है दुनिया मे!!!
ReplyDeleteसारी चीजें रिलेटिव हैं. कापरनिकस को जलाकर मार दिया गया क्योंकि पृथ्वी का घूमना उस समय सत्य नहीं था और आज है. सापेक्षता का सिद्धान्त हमेशा लागू रहता है.
ReplyDeleteसारी चीजें रिलेटिव हैं. कापरनिकस को जलाकर मार दिया गया क्योंकि पृथ्वी का घूमना उस समय सत्य नहीं था और आज है. सापेक्षता का सिद्धान्त हमेशा लागू रहता है.
ReplyDeleteसच है, कुछ चीज़ें सही-ग़लत या ब्लैक एंड व्हाइट से अलग हटकर होती हैं. कानून इसी दर्शन पर बना होता है कि कोई या तो दोषी होता है या नहीं. कानून कभी ये नहीं देखता कि उक्त अपराध किस परिस्थिति में किया गया है. पर समाज में सिर्फ़ कानून ही नहीं होता. यहाँ भावनाएँ होती हैं, मूल्य होते हैं, आस्था होती है जिनकी कानून में कोई जगह नहीं. मेरे विचार से मानव मूल्यों पर विश्वास करना ही सही-ग़लत की कसौटी हो सकती है. अमानवीय कार्य सदैव अनुचित होता है, ग़लत होता है. प्रस्तुत प्रसंग में स्टीवन ने जो किया वह प्रेमवश किया, बाद में और लोगों ने उनका साथ मानवतावश दिया. कानून भी अपनी जगह सही है, पर कितना अच्छा हो कानून में भी दया(मर्सी) शामिल हो जाये.
ReplyDeleteऊपर स्टीवन को स्टीवर्ट पढ़ा जाय.
ReplyDeleteइस मामले में निर्णय तो इस आधार पर होगा कि निर्णय देने वाला किस बात के लिये प्रतिबद्ध है। न्याय अंतत: मानव जाति की भलाई और सुख के लिये ही किया जाता माना जाता है। इस मामले में चोरी का अपराध साबित होता है लेकिन सजा माफ़ हो जानी चाहिये क्योंकि वह चोरी उदात्त मानवीय मूल्यों के लिये की गयी।
ReplyDeleteअमेरिका का ही एक किस्सा सुना था। एक चोर चोरी करकेभाग रहा था लेकिन किसी जगह उसको राष्ट्रगीत सुनाई दिया तो खड़ा हो गया और पकड़ गया। बाद में अदालत ने उसकी इस राष्ट्रभक्ति के चलते उसकी सजा माफ़ कर दी।
वे भगवान पर विश्वास करते हैं परन्तु मानवता को नकारते हैं , मुझे तो लगता है कि सबकुछ यहीं नीहित है ।
ReplyDeleteआपकी बात सही है हर चीज़ को काले सफ़ेद में नहीं बांटा जा सकता है मगर यहाँ पर बात बड़ी साफ़ है:
ReplyDelete१. चोरी गलत है
२. ब्रॉन्सन द्वारा अपने कुत्ते की हत्या ज़बरदस्ती होने से बचाना चोरी नहीं है. (वह अपना ही कुत्ता वापस ला रहा है और उसे भी जान बचाने के लिए)
भगवान् पर विश्वास करने वाले मानवता को नकारते हैं ...इसी में जोड़ दू कि कुछ बाते सही गलत के खांचे में फिट नहीं होती ....
ReplyDeleteआप फिर से गंभीरता पर आ गयी .. प्लास्टर हटने का कमाल है:) ...!!
अपने कुत्ते को मरने से बचाने के लिए ले जाना चोरी कैसे हो सकती है? चोरी यानि किसी दूसरी की चीज़ ले जाना, अजीब कानून है, वो तो भले लोग आ गए उसकी मदद को.
ReplyDeleteवैसे देखा जाये तो आजकल काले और सफ़ेद के खांचो में चीज़ें कहाँ बँटतीं हैं, अधिकतर तो इसी ग्रे में हैं.
हेडर की तस्वीर बहुत ही प्यारी है.
मेरी इच्छा तो भारतीयों और न्यूजीलैंड के कुत्तो के जीवन स्तर का तुलनात्मक अध्ययन करने की हो रही है :)
ReplyDeleteअपनी समझ से तो परे है विचारनीय पोस्ट है । धन्यवाद्
ReplyDeleteन्यूजीलेण्ड के कानून के बारे में हम क्या कह सकते हैं? हमारे लिए तो काला अक्षर भैस बराबर। बस आपकी बिल्ली बड़ी प्यारी लगी। इसे सम्भाल कर रखिए, आते-जाते देखा करेंगे।
ReplyDeleteमानवीय गुन उजागर हुए है अतः सजा माफ होनी चाहिए.
ReplyDeleteAchhi prastuti...
ReplyDeleteMahashivratri ki hardik shubhkamyen..
सजा मिलना है तो डॉक्टर को मिले जो पैसे न मिलने पर बक को मरने का विचार कर रहा था
ReplyDeleteवो चाहता तो उसे ठीक कर के किसी और को दे देता और अपनी भरपाई कर लेता इससे बक को भी समर्थ मालिक मिल जाता
ओर ब्रोन्सन को भी राहत होती की उसका बक ठीक तो है
नियम कितने ही सख्त हो पर मानवीय पहलू हमेशा रहना चाहिए क्योंकि नियम मानव की बेहतरी के लिए है न की मानव नियमो का गुलाम
mere aagrah par meri maa ne ek chhote se bimar puppy (maranaasann kehna zyaada theek hoga) ko clinic mei bharti karaaya, jaha uske haalat mei koi sudhaar na hua. iske baad use euthansia de dia gaya. ab mujhe samajh nahi aata ki puppy ko ilaaj ke liye bharti karva kar maine sahi kiya ya galat...
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