प्रकृति से रिक्त
रंगों से अछूती
धूल के गुबार हैं।
न कोई आम्रमंजरी
न कोई मंजरी महक
डीजली,पैट्रौली बास है।
कोयल नहीं कूकती
चिड़िया नहीं चहकती
वाहनों की बस गूँज है।
सरसों नहीं फूलती
न गेहूँ की बालियाँ
बोनसाई बरगद ही वृक्ष है।
ठंड तो पड़ी नहीं
अंगीठी सेकी नहीं
ए सी ने गिराया तापमान है।
हृदय में न उमंग
मन में न तरंग
ये ही क्या वसंत है?
घुघूती बासूती
Wednesday, January 20, 2010
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इधर ठण्ड से तो जान जा रही है -बसंत ,,,तोबा तोबा ?
ReplyDeleteठंड तो पड़ी नहीं
ReplyDeleteअंगीठी सेकी नहीं
ए सी ने गिराया तापमान है।
आप शायद आजकल पुणे में रह रही है , इसलिए ऐसा कह रही है, यहाँ टन ग्लोबल कूलिंग हो गया है ! खैर, वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये !
एक बात और कहनी थी कि आपके ब्लॉग को खोलते वक्त कई बार मेरा कंप्यूटर हैंग हो जाता है , क्या ऐसा अधिक विजेट लगे ल्होने की वजह से तो नहीं ?
अभी नाम से आया है असल में न जाने कब आएगा वाकई ठंड जबरदस्त है इस बार :)
ReplyDeleteजीबी,
ReplyDelete"वनन में बागन में बगरयो बसंत है" विस्मृत हो चला है ! आपने बहुत ही भावपूर्ण कविता कही है ! ओह....बिजली गुल, तो बसंत के साथ टिप्पणी भी गुल ....!
यदि यही वसन्त है तो यह क्या है?
ReplyDeleteबरन बरन तरु फूले उपवन वन,
सोई चतुरंग संग दल लहियतु है।
बंदी जिमि बोलत विरद वीर कोकिल है,
गुंजत मधुप गान गुन गहियतु है॥
आवे आस-पास पुहुपन की सुवास सोई
सोने के सुगंध माझ सने रहियतु है।
सोभा को समाज सेनापति सुख साज आजु,
आवत बसंत रितुराज कहियतु है॥
"सेनापति"
यह महानगरीय कविता है। जरा नगर से बाहर जा कर देखिए वन और उपवन में वसंत तो है।
ReplyDeleteजनसंख्या ऐसे ही बढ़ती रही तो एक दिन कविताओं में ही रह जायेगा.
ReplyDeleteआइये अपनी जडो की ओर वहा वैसा ही वसन्त आया है जैसा आपने देखा होगा
ReplyDeleteवसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये !
ReplyDeleteहृदय में न उमंग
ReplyDeleteमन में न तरंग
ये ही क्या वसंत है?..
वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये...
चलिये आप शुरु आत करे, कल से कार मै घुमना बन्द, ऎ सी को बन्द करे, फ़्रिज भी एक तरफ़ रख दे, फ़िर आप को देख कर लोग भी यही करेगे, ओर फ़िर आयेगा अति सुंदर सुगंधित आप की पसंद का बसंत, चारो ओर हरियाली ही हरियाली.
ReplyDeleteवसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये
अब तो महानगरो से बाहर भी ऐसा हीं हो रहा है……
ReplyDeleteइस बार वसंत पंचमी जल्दी आ गयी, वसंत तो अभी आया ही नहीं. कुछ वर्षों के बाद तो मेरे ख़्याल से सिर्फ़ गर्मी और सर्दी ही रह जायेगी वसंत और शरद् का तो पता भी नहीं चलेगा.
ReplyDeleteAapke sneh aur prerak prasang ke liye bahut bahut shukriya maam... lekin afsos ki koi us lekh ka bhav nahin pakad paaya.. sabne nakaratmak soch ya dar hi samjha.. khair... aap pahli baar blog par aayeen aasheerwad diya ye kafi hai..
ReplyDeleteyahan kiski tareef jyada karoon kavita ki ya chitra ke chayan ki???
ye mere liye bhi mushkil sawal hai..
Jai HInd...
निश्चित ही कुछ दिनों में वसंत का मादक स्वरूप नष्ट हो जायेगा - ऐसा लगता है । महानगरीय वसंत की एक बानगी तो आपने दे ही दी । आभार ।
ReplyDeleteमुम्बई महानगरी में प्रवासी वसंत.
ReplyDeleteइस बार तो बसंत भी धोखा दे रहा है।
ReplyDelete--------
औरतों के दाढ़ी-मूछें उग आएं तो..?
ज्योतिष के सच को तार-तार करता एक ज्योतिषाचार्य।
काहे को बसंत, बस अंत अब आयो है !
ReplyDelete"ठंड तो पड़ी नहीं
ReplyDeleteअंगीठी सेकी नहीं
ए सी ने गिराया तापमान है।"
"हृदय में न उमंग
मन में न तरंग
ये ही क्या वसंत है?.."
बहुत खूब
सुना है, उत्तर भारत मे बहुत शीत लहर है, इस बार. वैसे तो, यहाँ मुबंई मे तो ठडं का कुछ खास असर नहीं. शीत और बसंत का कुछ पता नहीं.
aur kuch lge na lge shadiyo ke ki bhar se to basant pancmi ki upsthiti hai hi
ReplyDeleteआपने गीत को अपना स्नेह दिया आभारी हूँ. इस बहाने आपके रचना संसार से परिचित होने का सौभाग्य मिला.
ReplyDeleteआपकी सोच अलग है. अच्छी है.
आपका ब्लाग बडी मुश्किल से खुलता है. ये क्या कारण है?
पत्थरों के जंगल में 'घुघूती' को ऐसा ही बसंत तो मिलेगा!
ReplyDelete..ह्रदय स्पर्शी कविता के लिए आभार.
ज्ञानदायिनी मातु का जो करते हैं ध्यान!
ReplyDeleteमाता उनके हृदय में भर देती हैं ज्ञान!!
बहुत खूब
ReplyDelete..ह्रदय स्पर्शी कविता के लिए आभार.
ReplyDeleteबसंत की कविता मे ए.से. का यह प्रयोग अच्छा लगा
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