हम कभी भी यह मानकर नहीं चल सकते कि हम अन्तिम सच जानते हैं। यहाँ तक कि विज्ञान भी यह दावा नहीं कर सकता। जिसे हम आज सच मानते हैं वह कल झूठ साबित हो सकता है। फिर पूर्वाग्रहों की तो बिसात ही क्या!
कल के टाइम्स औफ इन्डिया में जो समाचार पढ़ा उससे मेरा सदा यह कहना कि हम कोई भी बात शत प्रतिशत दावे के साथ कम ही कह सकते हैं, काफी हद तक सही सिद्ध हुआ।
समाचार दिल दहला देने वाला है। २३ वर्ष पहले एक बेल्जियम निवासी कार दुर्घटना का शिकार हुआ। उसे २३ वर्ष तक कोमाग्रस्त माना जाता रहा। डॉक्टर लगातार अन्तर्राष्ट्रीय मान्य मापदण्डों से २० वर्ष तक उसका परीक्षण करते रहे और उसे कोमा की वेजीटेटिव स्थिति में ही समझते रहे। उसकी आँखों की, मौखिक या मोटर प्रतिक्रियाओं की अनुपस्थिति के कारण उसे चेतनाशून्य समझते रहे। परन्तु जब ३ वर्ष पहले नए उपकरणों से उसका परीक्षण किया तो पाया कि उसका मस्तिष्क लगभग सामान्य काम कर रहा था। मरीज का केवल शरीर ही पूर्ण रूपेण लकवाग्रस्त था। उसके आसपास क्या हो रहा है इसकी चेतना उसे थी। वह सबकुछ सुन भी सकता था।
वह अब कम्प्यूटर की सहायता से संदेश लिख सकता है। वह एक विशेष उपकरण की सहायता से पुस्तकें पढ़ सकता है। उसने कहा कि इतने वर्ष तक वह अपने को स्वप्न ही दिखाकर समय बिताता रहा। वह चिल्लाता था किन्तु कोई आवाज नहीं होती थी। जिस दिन चिकित्सकों को उसकी स्थिति का पता चला उस दिन उसका पुनर्जन्म हुआ। अब जब सब जानते हैं कि वह मृत नहीं है तो वह चाहता है कि वह पढ़े, बात करे और जीवन का आनन्द ले। वह कहता है कि जिस स्थिति को उसने जिया उसके लिए कुण्ठा शब्द बहुत ही छोटा है।
अब उसके चिकित्सक सोच रहे हैं कि हो सकता है कि उसके जैसे ही अन्य रोगी भी हों जिन्हें चेतनाशून्य माना जा रहा हो।
उस व्यक्ति की स्थिति की कल्पना ही कितनी भयावह है। उसके सामने ही सब उसकी स्थिति का विष्लेषण करते होंगे। हो सकता हो कि कोई यह भी कहता हो कि कुछ भी नहीं किया जा सकता, कि उसे यन्त्रों से जीवित रखना गलत है। अभी दो एक वर्ष पहले ही एक वेजीटेटिव स्थिति वाली स्त्री का आहार बन्द कर उसे मुक्ति दी गई थी। तब यह नीति शास्त्र का मुद्दा बना था। स्त्री के माता पिता ने विरोध किया था और पति ने उसकी स्थिति देखते हुए आहार बन्द करने की न्यायिक अनुमति प्राप्त कर ली थी।
कोई भी परिवार उतनी लम्बी अवधि तक ऐसे रोगी की सेवा करने में अक्षम ही होगा। यह दायित्व समाज व सरकार ही उठा सकते हैं।
और एक अन्य बात जो इससे सिद्ध हो जाती है वह यह कि संसार में सबकुछ संभव है सिवाय हमारे ज्ञान के कभी भी परिपूर्ण होने के।
घुघूती बासूती
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सोचपरख बात आपने कही, हाँ, अपने देश में होता तो सालभर बाद ही घरवाले अंग दान कर देते उसके !
ReplyDeleteएक अन्य बात जो इससे सिद्ध हो जाती है वह यह कि संसार में सबकुछ संभव है सिवाय हमारे ज्ञान के कभी भी परिपूर्ण होने के।
ReplyDeleteबहुत बडा सत्य है !!
"कोई भी परिवार उतनी लम्बी अवधि तक ऐसे रोगी की सेवा करने में अक्षम ही होगा। यह दायित्व समाज व सरकार ही उठा सकते हैं।"
ReplyDeleteआपने बिल्कुल सही लिखा है !
उस व्यक्ति के बारे में सुन रोंगटे खड़े हो गये.
ReplyDeleteसच कहा आपने: संसार में सबकुछ संभव है सिवाय हमारे ज्ञान के कभी भी परिपूर्ण होने के।
ज्ञान की अंतिम सीमा क्या है ? संभवतः यह कभी भी निर्धारित नहीं किया जा सकेगा !
ReplyDeleteसामान्यतः हम परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेते जाते हैं, भले ही आगत समय (भविष्य) के ज्ञान के आलोक में ये निर्णय मिथ्या सिद्ध हो जायें पर ...ये तो माना ही जायेगा की निर्णय, तत्कालीन समयानुसार ,उचित और तब के
'ज्ञात सत्य' के अधिकतम निकट थे !
हम जितनी खोज करते रहेंगे, प्रकृति के नये नये नियम दिखाई देंगे... फिर भी अनंत...
ReplyDeleteइस कायनात में सबकुछ मुमकिन है और वो इसलिए, क्योंकि कायनात को बनाने वाला हर रोज़ एक नया खेल रचाता है हम सबके लिए..
ReplyDeleteजीवन का सच। संसार में सबकुछ संभव है सिवाय हमारे ज्ञान के कभी भी परिपूर्ण होने के।
ReplyDeleteI know someone who was in coma for two years and his wife refused to terminate his life-support, eventually that old man was fine at age of 80 and from past 10 years had one of the most productive social life. During my stay in Iowa, that couple was almost like my grand parents, and I still feel amazed that how wonderful life is?
ReplyDeleteयह विश्व अनंत है और ज्ञान भी।
ReplyDeleteइस चमत्कारी पोस्ट के लिए आभार!
ReplyDeleteजो हम जान चुके वह तो सीमित हो गया
ReplyDeleteऔर सत्य की कोई सीमा नही है
प्रणाम स्वीकार करें
लोमहर्षक जानकारी!
ReplyDeleteविचित्र है ईश्वर की माया!!
होइहैं वही जो राम रचि राखा
बहुत तथ्यपरक पोस्ट.मुझे तो मुन्नाभाई के कोमाग्रस्त आनन्द मुखर्जी की याद आ गई. कभी-कभी फ़िल्में भी भविष्यवाणी करती है क्या?
ReplyDeleteक्लिनिकल डेथ उसी को कहते है जब मस्तिष्क काम करना बन्द कर दे जब तक मस्तिष्क काम कर रहा है व्यक्ति जीवित ही कहलायेगा । इसलिये शरीर मे मस्तिष्क सबसे बड़ा है
ReplyDeleteanant aur agyaat ka sab kucch anant aur aur agyaat hai - param satta ko iseeliye anirvachaneeya kaha jaata hai -
ReplyDeletebahut khoob...
ReplyDeleteu r invited for the kavya goshthi programme on 28 nov from 5-7 pm at Alka Pande's residence plot No 74, sector-1, koperkhairne, vashi, navi mumbai. Kulwant singh 09819173477
are yahan zindaa aadami ki bisaat nahi, aap adhmaron ki baat kar rahi hain...!!!
ReplyDeleteI do not have yr phone number so I have written here..(above)
ReplyDeleteBahut bahut aabhar ......bahut hee achchi lagi aapki yah post....
ReplyDeleteBilkul nayi jankari thi yah mere liye...
Bilkul sahi kaha aapne...koi yah dava nahi kar sakta ki wah poorn hai...
बहुत ही चमत्कारिक घटना है। इससे सिद्ध होता है, जहां चाह, वहां राह।
ReplyDelete------------------
भीड़ है कयामत की, फिरभी हम अकेले हैं।
इस चर्चित पेन्टिंग को तो पहचानते ही होंगे?
U r invited for a kavya Goshthi programme on 5th december 2009, saturday, 5.00 pm to 7.00 pm at 77 sabarigiri, anushaktinagar, mumbai. dinner is arranged after the programme. Please be there to honoutr us. kulwant singh
ReplyDeleteआप सादर आमंत्रित हैं पांचवा खम्बा में . अगर आप अपना ईमेल पता भेज दें तो आमंत्रण पत्र भेजा जा सकेगा .
ReplyDeleteडॉ महेश सिन्हा
sinhamahesh@gmail.com
आपको अमर उजाला में पढता रहता हूँ. लेख का अंत इससे बेहतर और क्या हो सकता था की "और एक अन्य बात जो इससे सिद्ध हो जाती है वह यह कि संसार में सबकुछ संभव है सिवाय हमारे ज्ञान के कभी भी परिपूर्ण होने के" बहुत सुन्दर आलेख बधाई.
ReplyDeleteइसीसे तो पता चलता है कि हमारा ज्ञान कितना सीमित है । संसार में सबकुछ संभव है सिवाय हमारे ज्ञान के कभी भी परिपूर्ण होने के।
ReplyDelete