यह बात मेरी समझ में २३.१०.०९ के टाइम्स औफ़ इन्डिया के मुम्बई संस्करण को पढ़कर आई। आपको आश्चर्य हो रहा है? नहीं होना चाहिए। प्रगतिपथ पर ६.५% की आर्थिक दर से आगे ही आगे बढ़ते देशों में कभी कभी मानवता को पीछे छोड़ देना ही श्रेयस्कर माना जाता है। चैन्नई जैसे महानगर में मनुष्य ठीक हस्पताल के सामने भी तेज धूप में तिलतिलकर दम तोड़ दे तो गाँववासियों या वनवासियों को शहरियों से कम से कम ईर्ष्या तो नहीं रह जाएगी। मरना ही है तो क्यों न धूप में भूखे प्यासे बीमार पड़े रहने की अपेक्षा किसी घने वृक्ष की छाया तले या नदी, पोखर के किनारे मरा जाए?
समाचार के अनुसार चैन्नई शहर में प्रान्त के सबसे बड़े सरकारी हस्पताल के गेट के बाहर एक ४५ वर्षीय पुरुष बाँई टाँग में प्लास्टर लगा २० दिन तक पड़ा रहा। उसकी टाँग से खून बह रहा था। लोगों के अनुसार २० दिन पहले उसे हस्पताल के बाहर छोड़ दिया गया था। अन्त में वह हस्पताल में वापिस ले जाया गया किन्तु वहाँ के मुर्दाघर में!
इन बीस दिनों वह भिखारियों द्वारा दिए गए भोजन, पानी पर जीवित रहा। सेल्वराज नामक रिपोर्टर ने जब गुरूवार को उससे बात करने की चेष्टा की तो वह हिन्दीभाषी केवल इतना ही कह पाया, नामः सुधीर। जब उसे हस्पताल में भर्ती करने के प्रयत्न असफल रहे तो एक स्वयं सेवी संस्था को बुलाया गया। उसे एम्ब्युलैन्स में ले जाया गया किन्तु वह मर गया। उसका शरीर मुर्दाघर को शव परीक्षण के लिए सौंप दिया गया।
हस्पताल के अधिकारियों के अनुसार बिना सगे सम्बन्धियों वाले मरीजों को दाखिल न करना या जब उनकी सहायता के लिए कोई न हो तो उन्हें हस्पताल के बिस्तरे से उठाकर बाहर छोड़ आना सामान्य बात है। एक उच्च अधिकारी के अनुसार "इस मरीज का ध्यान रखने वाला कोई नहीं था। उसे साधारण फ्रैक्चर था जिसे साफ रखना था। हमारे हस्पताल में यह काम नर्सें नहीं करती। उस काम में सम्बन्धी ही मरीज की सहायता करते हैं। हमारे यहाँ कर्मचारियों की कमी है, छोटी मोटी पट्टी मरीज (या शायद सम्बन्धी?) ही करते हैं। इसके सिवाय हम कोई palliative care centre(वह जगह जहाँ दर्द कम करने की दवा दी जाती हो,आवश्यक नहीं कि रोग दूर किया जा सके) तो हैं नहीं!"
सुधीर, तुम भाग्यवान हो, मरकर बड़े हस्पताल में शव परीक्षण तो करवा सकोगे। जीवित बाहर धकेले गए तो क्या है मरकर तो बिन सगे सम्बन्धियों की सहायता के ही चीरफाड़ तो हो ही जाएगी तुम्हारी! वैसे भी केवल टाँग तुड़वाकर ही अकेले क्यों आए, अधिक गम्भीर स्थिति में नहीं, तो कमसे कम कम्पाउन्ड फ्रैक्चर तो करवाकर ही बड़े हस्पताल में आना था!
घुघूती बासूती
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This is a criminal treatment and offense.
ReplyDeleteभयावह ...बहुत दुखद है यह सब पढना ...पर ऐसी घटनाओं की जानकारी दी जानी भी जरुरी ही है जो सामाजिक व्यवस्था के चरमराते ढांचे की भयावहता को प्रस्तुत कर सके और हमें आगाह कर सकें ....!!
ReplyDeleteये सब एक तरह से अविश्सनीय सा लगता है। मानवता कहाँ जा रही है...क्या हाल है इस देश का, इस दुनिया का...
ReplyDeleteयही तो विडम्बना है,
ReplyDeleteमानवता का उपहास,
नैतिकता का ह्रास!
देखकर कष्ट होता है!
Svapndarshi Ji is correct. The responsible can get suspended for this if a complaint is made.
ReplyDeleteहमें समझना चाहिए कि हमारी व्यवस्था कहाँ पहुँच चुकी है और कहाँ जा रही है?
ReplyDeleteजुगाड़ वाला सगा सम्बन्धी क्या करेगा जबकि आज सही सगे सम्बन्धी ही छोड़ देते हैं मरने के लिए।
ReplyDeleteतीन चार माह पहले ही मेरा एक मित्र इसी प्रकार अपने ही घर के दरवाजे के सामने पड़े रहता था और उसके भरे पूरे परिवार का एक भी सदस्य पानी तक देने नहीं आता था। आखिर मे उसने दम तोड़ दिया।
आपकी संवेदनशीलता को सलाम..
ReplyDeleteहम इंसानों से अधिक स्नेह जानवरों में होता है, अगर ऐसा जानवरों की बस्ती में हुआ होता तो अंत समय तक सुधीर के पास कुछ जानवर आंसू जरूर बहा रहे होते ! मगर उस अभागे ने इंसानों में जन्म लिया ......
ReplyDeleteउस अस्पताल के उच्च अधिकारी पर उसके बयान के लिए फौजदारी मुकदमा दायर करना चाहिए.एकदम गैरजिम्मेदाराना तर्क था.
ReplyDeleteआर्थिक सफलता ही जिस देश , फर्म या व्यक्ति का मुख्य लक्ष्य हो जाए .. वह मानवता और नैतिकता को तो ताक पर रख ही देगर .. कहां तक होनवाला है यह अधोपतन .. समझ में नहीं आता !!
ReplyDeleteआप मेरे से उम्र में और तजुर्बे में काफी बड़ी है, फिर भी आपकी बात से सहमत नहीं हूँ ! आप क्या सोचती है उस इंसान के कोई सगे संबन्धी नहीं थे ?
ReplyDeleteज्यादा न कहके बस इतना ही कहूंगा कि आप गलतफमी में है मैडम,
रिश्तेदारो के भरोशे ( चाहे वह कोई अपना एकदम सगा ही क्यों न हो) कभी मत रहियेगा !
मेरा तो यह तजुर्बा और सजेसन है कि इन्सान जहां पर रहता है वहा उसे दोस्त बनाने चाहिए ! सच्चा मित्र दुःख-सुख में फिर भी काम आ जाता है मगर रिश्तेदार.............भगवान् बचाए !!!
ढ़ेर सारे प्रश्न चिन्ह है. अविश्वसनीय व अपराधिक कृत्य है.
ReplyDeleteSACH YE MANAVTA KAHAN JA RAHI HAI.AAPNE ACHCHA MUDDA UTHAYA HAI.
ReplyDeleteबेहद दुखद है । ऐसी घटनाएं होती रहती हैं लेकिन कोई जिम्मेदारी नहीं लेता ।
ReplyDeleteऐसे अस्पतालों कि आवश्यकता ही कहाँ है ?जहाँ रोग कि क्वालिटी देखि जाती हो ?
ReplyDeleteविकास कि क्या यही कीमत होगी?
डाक्टर ,अस्पताल ,प्रबन्धक ,नर्स रेल दुर्घटनाओ में रेलवे अधिकारी ,रिश्तेदार ,दोस्त सब इसी दुनिया के है और इसी सदी के है ,क्या मानवता अपनी नौकरी प्रतिष्ट `मुनाफे अपने ऐशो आराम के सामने इस तरह गौण हो जावेगी ?
चेन्नई के ही एक अस्पताल के सामने यह दृश्य मै देख चुका हूँ आश्चर्य कि वह गरीब बीमार एक दक्षिणभाषी था लेकिन वहाँ उसका कोई सम्बन्धी न था उसे न हिन्दी आती थी न इंग्लिश् मैने किसी तरह भरती करवाने मे उसकी मदद की । पता नहीं इंसानियत को यह क्या होता जा रहा है ।
ReplyDeleteसुधीर को कोई सगा सम्बंधी ही छोड गया होगा। लेकिन अस्पताल वाले मरीज को बाहर फेंक दें, यह अमानवीयता है। अस्पताल में भी सैकडों मरीज होते हैं और वे सभी को नर्स मुहैया नहीं करा सकते इसी कारण वे परिवारजन की मांग करते हैं लेकिन यदि रोगी अकेला ही है तो ऐसी अमानवीयता दिखाना तो निंदनीय है।
ReplyDeleteहम कहाँ जा रहे हैं
ReplyDelete:(
इस गरीब देश में इतनी सुविधाएं कहां से उपलब्ध हों कि हर आदमी को छत, हर मरीज़ को डाक्टर और हर गरीब को पेट भर भोजन मिले। ऐसी घटना से भावुक तो हुआ जा सकता है पर कोई हल नहीं निकाला जा सकता!
ReplyDeleteपर ठहर वो जो वहां लेते हैं फ़ुटपाथों पर
छाते-छप्पर भी जिन्हें हैं नहीं मय्यसर
पहले उन सब के लिए एक इमारत कर लूं
फिर तेरी मांग तारों से भरी जाएगी....नीरज
बहुत ही अफसोसजनक।
ReplyDeleteदुखद।
ReplyDeleteडाक्टरी नेगलेक्ट का शिकार मैँ स्वयम हूँ। कुछ बेहतर होता तो मेरा बेटा अपंग न होता।
पर नहीं मालूम कि क्या किया जा सकता है।
क्या ये सच्ची घटना है? सहज ही मन स्वीकार करने को तैयार नहीं कि कोई चोट खाया व्यक्ति बीस दिनों तक अस्पताल के बाहर पड़ा रहा और किसी ने सुध न ली।...लेकिन फिर मान लेता हूँ कि अपने इस महान देश में ऐसा सब कुछ संभव है।
ReplyDeleteसेल्वराज और आपने इस प्रकरण की रपट का प्रसार कर अच्छा किया है । सुधीर प्रवासी न होता तोक्या पता उसके आत्मीय उसके निकट होते?
ReplyDeleteSarkari Hospital ke bahar aise nazare to Aam hain... lekin jahan tak Rishtedaron ki baat hai, to aajkal Apna Khoon hi apna nahi hota... Phir bhala Gairon se kya Shikayat...
ReplyDeleteदिल को झकझोर दिया आपने......अमर उजाला में बहुत बार पढ़ा है आपको. बहुत अच्छा लिखते हैं आप
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