कई काम ऐसे होते हैं जिन्हें करने से पहले ही हमें पता होता है कि कुछ न कुछ गलती तो होगी ही। किन्तु फिर भी वह काम कर ही डालते हैं,क्योंकि यदि गलती के भय से काम करना छोड़ दें तो कभी कुछ भी नहीं कर पाएँगे। ऐसी गलतियों की पकड़े जाने की संभावना तब अधिक होती है जब काम सार्वजनिक या अंशतः सार्वजनिक हो, जैसे बच्चे के नामकरण, जन्मदिन या विवाह में काफी संख्या में लोगों को न्यौता देकर समारोह या पार्टी करना, कोई बैठक जैसा कुछ करना।
कितनी भी कोशिश कर लो गलती की संभावना तो बनी ही रहती है। शायद इसीलिए आजकल लोग विवाह जैसे कार्यक्रम भी पेशेवरों की सहायता से करते हैं। इसका एक लाभ यह होता है कि कुछ भूलचूक हो जाए तो पेशेवर के नाम मढ़ी जा सकती है, दूसरा आप भी निश्चिन्त रह मेहमान की तरह समारोह का मजा ले सकते हैं।
खैर, यह थी भूमिका, मुख्य मुद्दा तो मेरी वह गलती है जिसे मैं सदा याद रखूँगी। बात तबकी है जब मेरी बड़ी बिटिया का पहला जन्मदिन हमने धूमधाम से मनाया। हमारे लिए किसे बुलाएँ या किसे नहीं कोई धर्मसंकट का मुद्दा नहीं था। कारखाने की बस्ती थी। पति के साथ काम करने वाले सभी वहीं रहते थे। उन्हें ही सपरिवार बुलाना था। उनके अतिरिक्त मेरे कॉलेज की दो छात्राएँ भी पास के कारखाने में कार्यरत अधिकारियों से विवाह कर पास में ही रहती थीं सो उन्हें बुलाना था। सो सूची तैयार करना कुछ कठिन नहीं था। दफ्तर से ही सबके नामों की सूची लेकर पति ने निमन्त्रण दे दिए। मैं भी इस मामले में तो कोई गड़बड़ नहीं होगी सोच निश्चिन्त हो अपनी रसोई सम्भालने में लग गई। मेहमानों की आवभगत, खाने पीने व मनोरंजन में कोई कसर न रहे, हम दोनों इसी कोशिश में लगे रहे। केक पर केक बनते गए। आइसिंग होती रही। यह 'केक बनाओ' कार्यक्रम भी कम मनोरंजक नहीं था। हम सब सहेलियाँ मिलकर काम भी करती रहीं व मिलकर करने के कारण आनन्द भी लेती रहीं। उस जमाने में खाने का और्डर प्लेस करने का चलन नहीं हुआ था। सो हफ्तों से घर पर ही तैयारियाँ चल रही थीं।
मैंने घर में एँपण दिए। बुलु ने बंगाली विधि से अल्पना बनाई। आज भी उस अल्पना के सामने थककर पस्त हुए हम तीनों की फोटो देखकर वे स्नेहिल से दिन याद आ जाते हैं, जब थोक के भाव मित्र व सहेलियाँ थीं, जब सब काम मिलकर हुआ करते थे।
जब हमने मेहमानों को विदा कर दिया तो मीना व संजू ने पूछा, "भाभी, 'मामी' नहीं आईं?"
मैं आश्चर्य में बोली" अरे! वे तो आईं ही नहीं। क्या बात है तबीयत तो ठीक है उनकी? "
मैं तुरन्त घुघूत के पास गई और कहा कि 'मामी' नहीं आईं।
वे बोले," ओह, उन्हें तो बुलाया ही नहीं।"
मैं तो सन्न रह गई। जो मामी मुझे या बिटिया को छींक भी आ जाए तो हाल पूछने भागी आतीं थीं उन्हें ही निमन्त्रण नहीं दिया गया!
'मामी'(पूरी बस्ती की वे मामी ही थीं!) के पति इसी कम्पनी से रिटायर हो चुके थे। अब वे अपने बेटे के साथ रहते थे। बेटा दो साल के लिए कम्पनी द्वारा विदेश भेजा गया था। सो जो सूची पति ने ली थी उसमें उसका नाम नहीं था। हमसे ऐसी भूल हो गई थी कि कुछ समझ नहीं आ रहा था।
मैंने मीना व संजू को जाकर बताया," मामी को तो निमन्त्रण ही नहीं भेजा हमने!"
"क्या? भाभी ऐसा कैसे कर सकती हो आप ? उन्होंने तो हमारे साथ जाकर जन्मदिन का उपहार भी खरीद रखा था।"
मैंने कहा."कल सुबह ही उनके पास चलते हैं। मुझे उनसे माफी माँगनी है।"
अगले दिन मैं मीना के साथ मामी के घर केक आदि लेकर गई। हाथ जोड़कर माफी माँगी। उन्हें अपनी भूल का कारण बताया और उनके वक्ष से लगकर बोली कि "अब मैं क्या करूँ मामी?"
मामी ने क्षमा कर दिया। अन्दर जाकर उपहार लाकर बिटिया को दिया।
यह भूल जीवन की कुछ भूलों में से ऐसी है जो आजीवन कचोटती रहेगी। जब भी इस भूल की याद आती है तो लज्जित हो जाती हूँ, किन्तु साथ में मामी के स्नेह से सराबोर भी हो जाती हूँ। मामी ने हमारी भूल को अपने बड़प्पन से ढक दिया। अब तो न मामी रहीं न उनका पुत्र, केवल कुछ मधुर यादें शेष हैं और शेष है अपनी गलती और उनके स्नेह का अहसास।
जानती हूँ कि ऐसी भूलें भविष्य में भी करूँगी। तब क्षमा करने को शायद कोई मामी सी सरल व उदारहृदया मिले या न मिले, कह नहीं सकती। गलती करना लगभग निश्चित है, मामी जैसी का मिलना अनिश्चित।
घुघूती बासूती
Monday, October 26, 2009
मैंने भी अनगिनित गलतियाँ की हैं।
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मासूम गलती भी कोई गलती होती है भला !
ReplyDeleteखैर गलतियां होती रहती हैं...सबक लेने की जरूरत है
ReplyDeleteअपनी भूल पर खुद ही माफ़ी बड़प्पन की ही निशानी है .
ReplyDeleteगलतियाँ होना भी मानव स्वभाव का अंग है . ......
ReplyDeleteईश्वर ने मनुष्य को गलतियां करने की गुंजाइश दी है तो माफ़ कर देने का एक अनूठा सदगुण भी दिया है .
ReplyDeleteक्या ऐसा समारोह हो सकता है जिसमे इस प्रकार की गलतियाँ न हुई हों? यह बताईये कि घुघूत जी की आपने कितनी खिंचाई की थी?
ReplyDeleteअनजाने में की गई गलती गलती नही होती और फिर ह्रदय से माफ़ी भी तो मांग ली ये भी सच है कि अब उनके जैसे मामी मिलना कठिन है |
ReplyDeleteAksar aisi galtiyan Shaadi-Byaah me hi hoti hain.. Lekin Maami ne Apko Maaf kar Diya... Isse Badkar Bhala kya ho sakta hai..
ReplyDeleteआप ने सहजता से बहुत बड़ी बात कह दी। पर हर कोई मामी तो नहीं जो माफ कर दे।
ReplyDeleteअक्षमाशील व्यक्ति कभी भी सुख-शान्ति को उपलब्ध नहीं हो सकता ।
ReplyDeleteअर्थात विश्रांत नहीं हो सकता ।अस्तु।
सभी से गल्तियाँ तो होती ही रहती हैं...
ReplyDeleteअच्छा लगा यह संस्मरण।
ReplyDeletenice
ReplyDeleteओह...हम तो अभी तक मुगालते में थे की गलतियां सिर्फ हमसे होती हैं , चलिये कोई तो जोडीदार मिला !
ReplyDelete...तो अब गलती करने वाले तीन लोग हुए एक तो 'मैं' , दूसरी 'आप' और ये तीसरा समीर लाल जी नें किसी 'सभी' का नाम बताया है !
ReplyDeleteऔर हाँ टिप्पणी लिखने में कोई गलती हो गई हो तो कृपया क्षमा करियेगा !
मैं तो इसमें अन्योक्ति अलंकार ढूँढ़ रही हूँ...! और सोच रही हूँ कि सब ढूँढ़ें.....!
ReplyDeleteअपनी भूल पर खुद ही माफ़ी बड़प्पन की ही निशानी है .
ReplyDeleteअपने निकटस्थ को भूलने की भूल अक्सर होती है। लेकिन आपने जिस सहृदयता से उनके घर जाकर माफी मांगी और उन्होंने माफ किया यह अच्छा पहलू है।
ReplyDeleteकितनी मासूमियत है इस में पर आज कल न तो कोई माफ़ी मांगता है और न कोई इतनी सरलता से माफ़ कर देता है ...वक़्त बहुत तेजी से सब कुछ बदल रहा है ...
ReplyDeleteक्षमा कर सकने का बड़प्पन तो बड़ी बात है हम तो गलती करने पर क्षमा मांगने लायक ईगोमुक्त हो सकें इतने भर की कामना करते हैंं..आप कर पाईं ये कम बात नहीं
ReplyDeleteक्षमा बड़न को चाहिए....
ReplyDeleteक्षमा करने वाले की इज्जत ही बढ़ती है.
कंचनजी ने गौर कराया , व्याकरण में पढ़े उस अलंकार का ! पता नहीं 'मामीजी' की तरह सब होते हैं की नहीं ?
ReplyDelete@ मसिजीवी , घुघूती जी को तो माफ़ कर दिया 'मामीजी' ने | आप कह रहे हैं वे कर पाई ! ये साहित्य के गुरूजी लोग अन्योक्ति , अत्युक्ति , अतिशियोक्ति के सूक्ष्म भेद भी समझाते / सिखाते होंगे !
ReplyDeleteगलतियाँ और भूलें भला किससे नहीं होतीं? किन्तु ऐसी गलती सच में जिन्दगी भर याद रह जाती है।
ReplyDeleteसुन्दर संस्मरण!
पढ़कर अच्छा लगा ।
ReplyDeleteआप सह्रदय हैं ! शुभकामनाएं !
ReplyDeletekahte he galtiyo se hi isaan seekhataa he/ seekhne ki yah bhi ek seedi he/
ReplyDeleteshama karna aour shama maangana dono me himmat chahiye/ himmatvaali post he bhaiji.
ब्लौग-जगत में उठे व्यर्थ के तूफ़ान की बाबत इसे सामयिक पोस्ट कहूँ क्या?
ReplyDeleteAapka yah sansmaran padhna sukhad laga...
ReplyDeleteSahi kaha,utsav me aisi galtiyan hona bahut hi sahaj hai,parantu itna bada dil milna mushkil hai jo itni aasaani se kshama kar de..
" हा पस्तावो विपुल झरनू
ReplyDelete- स्वर्ग थी ऊतर्यूं छे "
गुजराती कहावत है,
पछतावा
स्वर्ग से उतर कर आया
विपुल झरना है -
- उदारमना , मामी जी को नमन
सुन्दर यादें
बटोरीं हैं आज आपने घुघूती जी
बहुत स्नेह के साथ
- लावण्या
प्रसन्नता हुई पढ़कर
ReplyDelete:)
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