यह कहावत बचपन से सुनती आई हूँ परन्तु प्रत्यक्ष में देखना अब हुआ। लगता है कि कोई आवारा अक्षय कलश वाला बादल मेरे साथ साथ चल रहा है। 'जहाँ मैं जाती हूँ वहीं चले आते हो' कि तर्ज पर यह बादल पहले सौराष्ट्र में मेरे गाँव पर बरसता रहा फिर जब मुम्बई गई तो वहाँ भी साथ लगा रहा। मूसलाधार बारिश में ही हम यहाँ से निकले और मूसलाधार बारिश, कभी कभी सामान्य भी, में हम मुम्बई की गीली खाक छानते रहे। लौटे तो फिर वही ‘कुत्ता बिल्ली छाप’ बारिश शुरू हो गई। बस इतनी ही गनीमत थी विमान के नीचे तैरते बादल कुछ समय के लिए कंजूस बन गए। राजकोट से २०० कि.मी की कार यात्रा इतनी दुरूह हो गई कि वाइपर भी बारिश से बुरी तरह हार रहे थे। सामने सड़क भी नजर नहीं आ रही थी। कमी थी तो रास्ते में ट्रैफिक जाम था। पता चला कि एक पेड़ सड़क पर गिरा हुआ था और कारों के अलावा, ट्रकों व बसों की एक लम्बी कतार फंसी हुई थी। भाग्य से यह एक कस्बा या छोटे शहर में हुआ था सो ड्राइवर गलियों के बीच से कभी आगे बढ़ाता तो कभी वापिस पीछे जाता हुआ कार को वापिस मुख्य सड़क पर ले आया।
हमारे मुम्बई प्रवास में यहाँ लगभग नहीं के बराबर वर्षा हुई। परन्तु जब से लौटी हूँ यह बादल बरस ही रहा है। पहले तो दो एक दिन कभी कभार ‘आँख मिचौली’ भी खेल लेता था ताकि मैं सुखाने डाले कपड़ों को कभी अंदर तो कभी बाहर टाँगती रहूँ और इस प्रकार मुफ्त में वजन कम करने का आनन्द लूँ। परन्तु मंगलवार से तो मूसलाधार ही बरस रहा है। बुधवार की सुबह से तो जो बरस रहा है तो थमने का नाम ही नहीं ले रहा। अब तो हाल यह है कि बाहर तो बाहर इसने घर के अन्दर भी बरसना शुरू कर दिया है। एक चक्रवात(गुजराती में वावाजोड़ा सा कुछ) और एक भूकंप(गुजराती में धरतीकम्प) ने यहाँ के काली कपासी मिट्टी( न जाने लोग कुछ लाली लिए, खुशी खुशी मूँगफली उगाने वाली इस मिट्टी को काली कपासी मिट्टी क्यों कहते हैं? यह इतनी चिकनी है कि यदि थोड़ी भी गीली मिट्टी पर चल लें तो चप्पलों का भार पाव से अधिक कुछ ही कदम में हो जाता है। फिर अनन्त काल तक चप्पलों से 'मिट्टी छुटाओ' अभियान चलाना पड़ता है।) पर बने मकानों की नींव ही पहले से हिला रखी है। सो इतने दिनों की बरसात की मार खाते खाते अब छत ने भी जवाब दे दिया है। वह घर के दो तीन भागों में पानी को रोकने का अपना युद्ध हार गई है। सो अब कुछ बाल्टियों व टब को अस्थाई तौर पर यह काम सौंप दिया है। छत पर बने गोदाम को तो पहले ही शत्रु पक्ष के हवाले कर दिया है।
कमी है तो पैक करने के उद्देश्य से हमने सारा सामान यहाँ वहाँ बिखेर रखा है। कान लगातार आती वर्षा की आवाज से थक गए हैं। बाहर बगीचा और सड़क पानी में डूबे हुए हैं। कैंचुए व मैंढक आश्रय के लिए हमारे बरामदे की तरफ बढ़े चले आ रहे हैं। स्नानगृहों की नालियों से कतार में तिलचट्टे शरण माँगते हुए चले आ रहे हैं। न जाने क्यों वे वहाँ पहुँचते ही पीठ के बल लेट जा रहे हैं। सो स्नानगृह औंधे पड़े तिचट्टों की मरणस्थली बना हुआ है। आज तो नालियों की जाली पर रखी नैपथेलीन की गोलियाँ भी उन्हें आने से नहीं रोक पा रहीं। हम बस बाहर पड़ी बगीचे की कुर्सियों पर साँपों के विराजमान होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
पास का तालाब लबालब भरा पड़ा है। लगता है अब तक तो कारखाने के पास की दोनों झीलें भी अतिप्रवाह की चपेट में आ गईं होंगी। मैं वर्षा के आँकड़े पाना चाह रही हूँ किन्तु पति दिल्ली गए हुए हैं सो यह काम जरा कठिन है। पता नहीं उनको अहमदाबाद से यहाँ लाने को जो कार गई है वह उन तक पहुँच पाएगी या नहीं। दो दिन से हमारी स्कूल बस नहीं आई। कल वेरावल व आस पास के गाँवों से आने वाले कर्मचारियों रास्ते में बस फँस जाने की आशंका के कारण आधे दिन से कम के काम के बाद ही घर भेज दिया गया। मुझे लग रहा है कि मैं किसी समुद्र में जहाज के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद उसमें से बचाए सामान के साथ एक टापू में फँसी हुई हूँ।
मन में बस एक ही पुकार उठ रही है 'ओ आवारा बादल, कुछ दिन के लिए तो मेरा पीछा छोड़ और किसी अनावृष्टि वाले क्षेत्र में जाकर बरस!'
लगभग पाँच वर्ष पहले मैं ऐसी ही मूसलाधार बारिश में यहाँ रहने आई थी और लगता है कि ऐसी ही मूसलाधार बारिश में यहाँ से जाऊँगी।
पुनश्चः आज आस पास के गाँवों व वेरावल में जिनके घरों में पानी भर गया है उनके लिए भोजन के ५००० पैकेट गेस्ट हाउस में बनाकर भेजे जा रहे हैं। सो कामवाली वहाँ काम कर रही है। वह आज भी नहीं आएगी।
लगता है आवारा बादल ने मेरी सुन ली है। अब वर्षा रुक गई है। काश यह पोस्ट पहले ही लिख दी होती! क्या वह भी मेरा ब्लॉग पढ़ता है? अरे, मेरे पोस्ट करने से पहले ही सुन ली है! क्या वह मेरे कम्प्यूटर पर भी नजर रखता है? जो भी करता हो, मैं तो आशा करती हूँ कि वह भारत के अनावृष्टि वाले क्षेत्रों की तरफ का चक्कर लगा ही आए।
घुघूती बासूती
Friday, July 24, 2009
ऊपरवाला जब देता है तो छप्पर फाड़कर देता है !
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आत्म विश्वास से भरपूर एक अच्छा आलेख।
ReplyDeleteआपकी साधना पूरी हो- शुभकामनाएं॥
क्यूं बादलों से पीछा छुडवा रही हैं .. कुछ दिनों के लिए झारखंड आ जाइए न प्लीज !!
ReplyDeleteहमारे यहाँ एक नूर मोहम्मद "नूर" हैं, वे स्काउट मास्टर भी हैं और 100 में से 95 बार स्काउट वर्दी में देखे जा सकते हैं। वे अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्हें मंच पर पहुँचने का सब से अच्छा फारमूला यही लगा कि तुकबंदी करना सीख लो। कुछ अभ्यास से वह भी सीख लिया। अब वे हर फंक्शन में पहुँच जाते हैं और बोलने के लिए पर्ची भेज कर समय चाहते हैं। अधिकांश में उन्हें बोलने का अवसर मिल भी जाता है। वे वहाँ कुछ भी करें, कविता पढ़ें या भाषण दें, लेकिन अन्त में ये पंक्तियाँ जरूर सुनाते हैं...
ReplyDeleteखुदा जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है,
लेकिन हो जाए नाराज तो चमड़ी उधेड़ लेता है।
इतनी बरसात के बावजूद बिजली आ रही है और आप कम्यूटर/इन्टरनेट से जुडी हुई हैं...ये क्या किसी करिश्मे से कम है?
ReplyDeleteये तो हुई बारिश रुकवाने की अर्जी... क्या कोई बारिश करवाने की अर्जी भी है ? दिल्ली वालों को सख्त जरूरत है इसकी :)
ReplyDeletesachmuch
ReplyDeleteupar wala jab deta hai toh chhappar faad kar deta hai
aur
jab vapis leta hai toh kapde-latte faad kar
leta hai
isliye uske vidhaan ko chalne do
hamaare haath kuchh nahin nhai
hum toh bas prarthna kar sakte hain ki
he chhappar faad kar dene wale !
itnaa toh de ki hum apnaa chhappar
theek karva saken ...ha ha ha ha ha ha
इधर दिल्ली साइड भिजजवाने का कुछ जुगाड़ करिए ना
ReplyDeleteअजी, बादल की बिसात कि आपका ब्लॉग न पढ़े. लेकिन ये तो हालात विकट लग रहे हैं. जरा संभल कर. घघूता जी भी आ गये होंगे सकुशल अब तक ...शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteआपकी रचना पढ़ कर जी तर हो गया..एक हमारा राजस्थान है जहाँ बादल भी आँख मिचोली खेल रहे है और बारिश भी रेतीले धोरों[टीलों]की तरह रूखी हो गयी है...काश कुछ बादल इधर भी बरस जाते तो कम से कम कुछ तो हरियाली हम भी देख लेते...
ReplyDeleteRajnish Parihaarji,
ReplyDeleteचूँकि बादलो की आजकल ब्लोगर्स लोग काफी नुक्ताचीनी कर रहे है इसीलिए वे भी हाथ डालने में कतरा रहे है !
बादल समझदार है...आप की पोस्ट पढ़ कर कम से कम जहाँ बारिश नहीं हो रही वहां जा कर बरसता तो है...बहुत अच्छा आलेख...
ReplyDeleteनीरज
हूँ .... !
ReplyDeleteकल इधर भी हलकी फुलकी बारिश हो ही गयी ....चलो गनीमत है
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
इधर तो हाल बेहाल है,खेती किसानी सब .
ReplyDeleteजन्मदिन बहुत बहुत मुबारक हो जी !
ReplyDeleteआपको जन्मदिन की शुभकामनाएं।
ReplyDelete२५ जुलाई को जन्मदिन की शुभकामनायें।
ReplyDeleteआप के आने से पहले बम्बई बारिश के इंतजार में हलकान हो रही थी, सरकार क्लाउड सीडिंग की जुगाड़ कर रही थी, पता चला उसमें लाखों का खर्चा आता है इस लिए थोड़ी आनाकानी चल रही थी, अब तो उसकी जरूरत ही नहीं रही, आवारा बादल आप के कदमों के निशां देखते चलता है।
ReplyDeleteअब देखिए न भारत सरकार के पास कितना सरल विकल्प आ गया है, कल ही टी वी पर सुना कि यू पी के बीस जिलों में सूखा पड़ गया है और गुजरात में बाढ़ आ गयी है। मनमोहन सिंह को कहते हैं आप को यू पी भेजने का इंतजाम किया जाए…।:)
ह्म्म, चलिए अब तो आप मुंबई जा रही हैं न। फिर वहां की बारिश के मजे और तकलीफ झेलिएगा।
ReplyDeleteजन्मदिन की बधाई व शुभकामनाएं
जन्मदिन की बहुत- बहुत शुभकामनाएँ.
ReplyDelete- Hindi Poetry - यादों का इंद्रजाल
bgvan aapki prarthna sunle aur yha benglor me pani bars jaye .
ReplyDeletedhnywad
ऊपर वाला जब भी देता पूरा छप्पर फाड़ के देता. यह गीत ध्यान आ गया. आप भी सुनें, बहुत सुन्दर है.
ReplyDeleteघुघुती जी, आपको यह घर अनिता आंटी जी ने ही दिलाया है ना? अब उन्ही को पकड़िये कि कहां तिलचट्टों के श्मसान घाट में घर दिलवा दिये हैं.. और इतना इंतजार करने के बाद भी अभी तक एक भी सांप के दर्शन भी नहीं हुये.. मुझे तो सब अनिता आंटी जी कि साजिश लग रही है.. :D
ReplyDeleteahahah yaha log barish ke liye tarash rahe hain aur aap rukwane ki arzi laga rahe hain
ReplyDeletekamaal hai
ji,jo bhigts hai vo barasta hai.
ReplyDeleteशानदार.. लेकिन हमारा छप्पड़ कब फटेगा... बहुत ही खूब लिखा है.. मज़ा आ गया। आपकी कलम की तारीफ करना तो वैसे भी दिये को रौशनी दिखाने के बराबर है।
ReplyDeleteशानदार.. लेकिन हमारा छप्पड़ कब फटेगा... बहुत ही खूब लिखा है.. मज़ा आ गया। आपकी कलम की तारीफ करना तो वैसे भी दिये को रौशनी दिखाने के बराबर है।
ReplyDelete'मैं तो आशा करती हूँ कि वह भारत के अनावृष्टि वाले क्षेत्रों की तरफ का चक्कर लगा ही आए।'
ReplyDelete-काश ऐसा हो पाता.