मुझे लगता है कि अनीता जी के इतने बड़े दिल के लिए शायद मुम्बई छोटी पड़ी तो नवीं मुम्बई बनानी पड़ी।
अनीता जी से मिलने के स्वप्न पिछले वर्ष भी देखे थे। एक बार नेट पर बतियाते हुए संजीत(आवारा बंजारा) ने कहा, आइए आपको अपनी एक दोस्त से मिलवाता हूँ। मैंने कहा नेकी और पूछ पूछ। बस उस दिन संजीत ने अनीता जी से जो मिलवाया तो हमने कई बार नेट पर घंटों बातें कीं। हमने पाया कि हम दोनों की उम्र एक है,मजाक करने, टाँग खिंचाई के शौक भी एक से थे। हीही हाहा करते हुए समय भाग जाया करता। मैं तो सदा की उल्लू हूँ और सुबह उठने की न कोई जल्दी न कोई मजबूरी, परन्तु अनीता जी तो सुबह साढ़े छः बजे कॉलेज के लिए निकलती हैं, फिर भी न जाने बतियाने के लिए कहाँ से देर रात को शक्ति निकाल लेतीं थीं।
खैर,पिछले साल जब मैंने बताया कि हम मुम्बई रहने आ रहे हैं तो उन्होंने अक्खी मुम्बई की तरफ से मेरा खुले दिल से स्वागत किया। किन्हीं कारणों से पिछले साल हमारा जाना टल गया। इस बार फिर से हमारी बदली की बातें चलीं तो एक बार फिर यह खबर अनीता जी को सुनाई। उनका फोन नम्बर लिया। फिर जैसा कि मैं सदा करती हूँ, वह नम्बर लिए बिना मैं अपने घुघूत के साथ मुम्बई पहुँच गई। तब पाया कि नम्बर तो साथ लाई ही नहीं। संजीत से नम्बर माँगकर अनीता जी को अपने आगमन की सूचना दी। उन्होंने अपने अन्दाज में मुझे नवीं मुम्बई में ही फ्लैट किराए पर लेने को पटा लिया,अब मनोविज्ञान पढ़ाती हैं तो मन को जीतना तो उनके बाएँ हाथ की कनिष्ठिका का खेल है। मैंने घुघूत जी को मना लिया। सो हम दोनों वर्षा की फुहारों का आनन्द लेते हुए नवीं मुम्बई पहुँच गए। (मुम्बई वासियों को याद रहे कि वहाँ ढंग की वर्षा लेकर हम ही १२ तारीख को पहुँचे थे! मूसलाधार बारिश में 'दो बेचारे' मुम्बई में मकान ढूँढ रहे थे।)
हमने कुछ फ्लैट देखे, दो पसन्द आए और अगले दिन निर्णय बताएँगे कहकर अनीता जी को फोन किया कि आपके घर पहुँच रहे हैं। उसके बाद का दृष्य तो अनीता जी ने अपने लेख में विस्तार से बताया है। जो नहीं बताया वह मैं बताती हूँ। गले एक बार नहीं दो बार लगाया था। वे बेचारी पहली बार से उबर भी न पाईं थीं कि मैंने दूसरा कन्धा भी नहीं छोड़ा। इस मामले में मैं समानता की घोर पक्षधर हूँ, एक कंधे को पकड़ूँ तो दूसरे को कैसे छोड़ देती?
पीठ पर ठंडी जलकण मिश्रित ठंडी बयार थी तो हाथ में अनीता जी ने संसार का सबसे स्वाद लीची का शरबत पकड़ा दिया। कुछ तो चार दिन से भटकने व अब फ्लैट पसंद आने का कमाल था और शेष अनीता जी के हाथों का जादू था। अमृत तुल्य उस शरबत का स्वाद मैं कभी नहीं भूलूँगी। सामने गर्मागरम पकोड़ों की प्लेट रख दी। खाएँ कि बतियाएँ कि उनके सुन्दर घर को ताकें कि ठँडी हवा का मजा लें, समझ ही नहीं आ रहा था। सबका मिलाजुला मजा लेते हुए समय भागता गया और हम आभासी दोस्त आमने सामने बैठे आनन्दित, पुलकित हो रहे थे। लग ही नहीं रहा था कि हम पहली बार मिल रहे हं। कहीं कोई संकोच नहीं था।
जब पता चला कि अनीता जी के पति विनोद जी पौधों के शौकीन हैं तो छत पर बने उनके गमलों वाले बगीचे को भी देखने पहुँच गए। वहाँ की हरियाली देख मन विभोर हो गया। देर बहुत हो चली थी और हमें मुम्बई के दूसरे छोर चर्चगेट जाना था सो विदा ली।
अगले दिन हम लोग दलबल सहित फ्लैट के कागज आदि पक्के करवाने पहुँचे। दो फ्लैट में से एक को चुनना था। चुना और वाकपटु दलाल की बातें सुनते रहे। किराए के मकान का यह दूसरा अनुभव था। पहले वाला तो सन ८० में जब मुम्बई गए थे तो घुघूत जी ने ही खोजा था। बहुत माथापच्ची हुई। अन्त में जब हस्ताक्षर करने का समय आया तो मैंने कहा कि आप लोग यह सब करिए, मैं तो अनीता जी के घर जा रही हूँ। तभी उनका फोन आया। मेरे कान मोबाइल की घंटी पर ध्यान देने के आदी नहीं हैं सो दो बार वे पहले भी घंटी बजा चुकी थीं और मोबाइल पर्स में ही बजता रहा था।
अनीता जी के घर जाकर फिर से लीची का शरबत पीया, न पिलातीं तो मैं खोजकर स्वयं ले लेती। वे सामने बैठी सब्जी काटती पकाती रहीं। मैं बिना रुके बोलती रही। फिर कम्प्यूटर पर बैठ संजीत को परेशान करने का यत्न करने लगे। वह परेशान होने के मूड में नहीं था, व्यस्त था। युनूस जी से पहली बार नेट पर हैलो हाय किया। संजीत को फोन पर परेशान किया। दोनों ही बच्चियाँ बनीं छेड़खानी करने के मूड में थीं। न जाने कितने लोग हमारी छेड़खानी का शिकार होते परन्तु उनके सौभाग्य से घुघूत जी आ गए। सो शैतानियाँ रुकीं।
बातें करते दस बज गए और विनोद जी घर आ गए। सबने मिलकर स्वादिष्ट भोजन किया। इलाके के बारे में जानकारी ली। इतना अपनापन पाकर हमारा मन झूम रहा था। नई जगह बसने की चिन्ता काफूर हो गई थी। अन्त में हमने जल्द ही फिर मिलने के लिए उनसे विदा ली।
यह तो ट्रैलर था........ महीने के अन्त तक हम सामान समेटकर मुम्बई पहुँच रहे हैं। मुम्बई, सावधान!
घुघूती बासूती
Wednesday, July 22, 2009
बारिश की फुँहारें, लीची का शरबत, गरमागरम खस्ता पकौड़े और अनीता जी का साथ
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अरे वाह!! हमारे इन्टरेस्ट की बात तो आपने बताई खाने पीने की.
ReplyDeleteअच्छा लगा आपकी मिलन कथा पढ़कर.
सुनाते रहें आगे भी. :)
लीची का शर्बत और पकौडे, आप उनकी फ़ोटो ही लगा देती तो हम देखकर ही सन्तोष कर लेते। आज की रात तो पक्का लीची के शर्बत के सपने आयेंगे।
ReplyDeleteफुहार लूटती मुंबई में आपका स्वागत है।
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteखाते-पीते की गयी मुलाकात तो बढ़िया रही।
झूमने वाली बात तो होगी ही क्योंकि लीची का शरबत होता है ऐसा ही। अच्छा हुया आपने ज़्यादा कुछ खोजा नहीं :-)
आपने लिख दिया है तो मुम्बई को सावधान होना ही पड़ेगा
और हाँ, हम तो किसी छेड़खानी का शिकार नहीं हो पाये :-D
चलिए मुंबई पहुँच गई हैं तो कभी मिलने का अवसर तो मिलने की संभावना तो हो ही गई है।
ReplyDeleteचाय और पकौडे का स्वाद तो हमने भी अक्सर लिया है पर लीची के शरबत के साथ पकौडे एकदम नया है. साथ में यह अनुभव... मजा आ गया
ReplyDeleteट्रेलर देख लिया जी । आपकी छेड़ख़ानी का शिकार भी बन गए । अब हेलमेट पहनकर पूरी तरह से तैयार हैं । आप पधारें । स्वागत है । हमारी ओर से हमारा छोटू आपसे निपटेगा ।
ReplyDeletewaah ye baarish,ye dost,ye sharbat aur pakode,sunder lekh,man moh liya.
ReplyDeleteबेचारे मुंबई वाले। :)
ReplyDeleteआज सुबह (22-07-09) को अचानक ख्याल आया कि घुघुती जी की पोस्ट कई दिन से नही आ रही है और नेट पर आते ही आपकी पोस्ट मिल गई।
ReplyDelete"नीरज जी की बात सही है कम से कम लीची के जूस और पकोडो की फोटो ही लगा देते" हा हा हा
प्रणाम स्वीकार करें
कम से कम खाने पीने के समान की फोटो लगा देनी चाहिए :)
ReplyDeletedo bindas log ek shahar me....???? khuda khair kare :)
ReplyDeleteकितना अच्छा लगता है कि आप एक नए शहर में पहुंचें और कुछ मित्र वहां मौजूद हों . तब शहर नया और अपरिचित कहां रह जाता है . नया शहर मुबारक हो ! मित्र की आत्मीयता मुबारक हो !
ReplyDeleteअरे वाह.आपने तो बहुत लुत्फ उठाया.
ReplyDeleteआप का स्वागत है.. और इन्तज़ार भी!
ReplyDeleteअरे वाह..आप मुंबई बसने आ रही हैं और वो भी नवी मुंबई...फिर तो खोपोली वहां से दूर नहीं...याने जन्नत के नजदीक आ रही हैं...अनीता जी के खाने की तारीफ बहुत सुनी है...खाना नसीब पता नहीं कब होगा...जब वो बुलाती हैं तो हम जा नहीं पाते और जब हम जाने को होते हैं तो वो नहीं मिलती...उनके घर पर हुए बतरस के काव्य सम्मलेन की यादें दिल में अभी तक ताज़ा हैं...आप आयीये मुंबई और सूचित करिए फिर आपको दिखाते हैं की खोपोली क्या है...और ये भी बताएँगे की लीची के शरबत में अगर पाईन एप्पल का शरबत मिलाया जाये तो क्या मजा आता है...
ReplyDeleteनीरज
वाह! अनीता जी तो बहुत अच्छी ब्लॉगर ही नहीं, मेहमाननवाज भी बहुत अच्छी हैं।
ReplyDeleteहमारे लिये तो उन्हे खिचड़ी बनानी होगी - ज्यादा पानी और अरहर की दाल वाली। :)
बहुत बढिया विवरण .. अनिता जी ने शरबत और पकौडे में क्या मिलाया था .. अभी तक मिलन का नशा उतरता नहीं दिखाई दे रहा ।
ReplyDeleteहम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आप दोनों का मिलन कितना सुखद रहा होगा. मुंबई की जगह नवी मुंबई हमें भी अधिक भाती है. जल्दी बता दें कि फ्लॅट कहाँ लिया है.
ReplyDeleteबाप रे ! आप ने तो हमारी शैतानियों की बात सब को बता दी अब दूसरों को कैसे उल्लू बनायेगें…।:)
ReplyDeleteजी बरसात की ठंडक तो आप ही ले कर आयी थीं कोई शक नहीं, और बरसात आप के आने के इंतजार में अभी भी पैर पसारे बैठी है।
वैसे आप का बम्बई आना हमारे लिए बहुत शुभ सावित हो रहा है, बम्बई के ब्लोगर बंधु जिन्हों ने पुरानी किताब की तरह हमें इग्नोर कर रखा था अब शायद आप के बहाने हमारी तरफ़ भी ध्यान दें( पता नहीं )।
ज्ञान जी मैं ने खूब सारे पानी वाली खिचड़ी बनानी सीख ली है आप ने कब की टिकट बुक की है?…।:)
संजीत लगता है अभी तक कंफ़्युजड है…:)
घुघूती जी वैसे आप के ब्लोग के हैडर पर लगे फ़ूल इतने सुंदर है कि शोले के गब्बर सिंह की तर्ज पर कहना पड़ेगा 'ये फ़ूल मुझे दे दे ठाकुर'…
डरीं की नहीं ?
achcha laga aap logon ki is bhentvarta ka lekha jkha padh kar.
ReplyDeleteह्म्म, प्रियंकर जी की बात से सौ फीसदी सहमत हैं अपन तो।
ReplyDeleteअनीता जी, मैं क्यों कन्फ्यूज्ड हुं? समझ में नई आया।
चलिए आप लोगों में जम गई ये अच्छी बात है, अब तो मुंबई की खैर नहीं ;)
tabhi itne dino se aapki post nhi aai thi ?
ReplyDeletenavi mumbai me rhne ke liye shubhkamnaye .
लीची का शर्बत और पकौडे, आप ने मुंह में पानी भर दिया। बरसात का हसीन मौसम हो, और ये तीनों चीज़े मिल जाएं, फिर तो कहना ही क्या। क्या खूब लिखा है।
ReplyDeleteघुघूती जी ,
ReplyDeleteआपको जन्म दिन की शुभकामनाएं
अनीता जी से मिलने की बहुत रोचक यादें हमारे संग बांटने का , शुक्रिया -
नया घर , मुबारक हो -
खूब आनंद आये आप सभी को नवी मुम्बई में , आगे के ब्लोगर मित्रों से मिलने की बातें भी लिखियेगा
स स्नेह,
-लावण्या
बहुत-बहुत बधाई हो मुम्बई जाने की और जन्म दिवस की।
ReplyDelete