धानसिंह का भाई मानसिंह
माँ मेरे पास दस वर्ष बाद रहने आईं हैं। जब तक पिताजी थे दोनों लगभग हर वर्ष सर्दियाँ हमारे साथ गुजारते थे। भारतीय समाज में जहाँ बेटी के घर का पानी भी नहीं पिया जाता था वहाँ मैंने उन्हें हमारे पास आने व रहने के लिए लगभग ३१ वर्ष पहले के जमाने में कैसे सहमत किया यह एक अलग कहानी है। यहाँ तो मैं आपको माँ से सुने किस्से सुनाने जा रही हूँ। माँ से बात करते हुए वे अपनी वर्षों पहले पढ़ी कविताएँ, कहानियाँ या उपन्यास में लेखक ने क्या कहा था आज भी सुना देती हैं। कभी शकुन्तला ने दुष्यन्त को कमल के पत्ते पर नाखून से खुरचकर क्या पत्र लिखा था, कभी किसी कवि की कल्पना तो कभी अपनी दूसरी कक्षा में पढ़ी कविता। माँ ८६ वर्ष की हैं।
उनके बताए कुछ किस्से तो पहले भी सुना चुकी हूँ। लीजिए यह एक जो उन्होंने मुझे तब सुनाया जब मैंने उन्हें नींबूपानी दिया और कहा कि पी लीजिए अन्यथा गरम हो जाएगा तो उन्हें यह याद आया।
धानसिंह का भाई मानसिंह, कोठलपुर में उतरा है
मिलना है तो मिल लो, नहीं तो शीतलपुर को जाता है।
एक स्त्री के पति से मिलने कुछ मेहमान आए। स्त्री भात पका रही थी। वह भात पकाने पर उसका माँड निकालती थी। माँड में बहुत से बी विटामिन होते हैं व ढेर सारा शक्तिवर्धक कार्बोहाइड्रेट। अब यह सब उसे पता था या नहीं, मैं कह नहीं सकती परन्तु यह गरमागरम माँड वह अपने पति को पीने को देती थी। माँड पीना कोई बहुत गर्व का काम नहीं माना जाता होगा। शायद गरीब ही पीते होंगे। सो वह चाहती थी कि इससे पहले कि माँड ठंडा हो जाए पति रसोई में आकर माँड पी ले। मेहमानों के सामने कैसे कहे कि आइए माँड पी लीजिए। सो उसने ये पंक्तियाँ कहीं। मैं और आप ना भी समझ पाएँ परन्तु पति समझ गया और रसोई में आकर माँड पीकर वापिस अपने मेहमानों के बीच चला गया।
चलिए इन पंक्तियों का अर्थ समझते हैं।
धानसिंह= धान से बना चावल
मानसिंह= माँड, क्योंकि धान से बने चावल से बना है इसलिए धानसिंह का भाई (कवि वाली छूट ली गई है।)
कोठलपुर= कोठल या कुठला जो पुराने जमाने में लकड़ी से बना एक कटोरा जैसा होता था। क्योंकि माँड उसमें निकाला गया इसलिए कोठलपुर में उतरा है।
शीतलपुर= शीतल या ठंडा हो जाएगा।
घुघूती बासूती
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बहुत ही रोचक किस्सा.....दाद देनी पड़ेगी आपकी माताजी की याददाश्त की और उस स्त्री की प्रत्युत्पन्नमति (presence of mind) की.
ReplyDeleteएक बात और, काफी दिनों के बाद आपकी यह पोस्ट पढने को मिली है, सब कुशल-मंगल तो है ना ??
साभार
हमसफ़र यादों का.......
बड़ा ही खूबसूरत किस्सा । इन पंक्तियों में छिपा अर्थ भी कितना रोचक है । आभार ।
ReplyDeleteवाह। अद्भभुत।
ReplyDeleteपुराने लोगों के मुंह से अब भी कई मुहावरे लोकोक्तियां सुनने बैठो तो बस सुनते रह जाओ....ऐसी ऐसी कहावते कहते हैं कि बस.....दिल खुश हो जाता है।
एक बार मेरे गांव में कोई बूढी अम्मा अपने पति से कह रहीं थी कि तुम क्यों 'मुन्न महेस' बने बैठे हो कुछ बोलते क्यों नहीं । तब 'मुन्न महेस' शब्द का मतलब पता किया
'मुन्न महेस' = आँख मुंदे रहने वाले महेश अर्थात शंकर भगवान.....अगल बगल क्या हो रहा है, क्या नहीं उससे शंकर जी को जैसे कोई मतलब नहीं, बस आँख मूंद पडे रहेंगे चाहे दुनिया जले या कटे।
इतनी गूढ बातें, क्या हम आजकल के सामान्य वार्तालाप में पा सकते हैं ?
अच्छी पोस्ट ।
आदरणीया माता जी को चरण स्पर्श - बडा मज़ा आया उनका कहा और ये जो आपने सुनाया किस्सा !
ReplyDeleteस्नेह सहित,
- लावण्या
वाकई, दिलचस्प किस्सा रहा! मजा आया.
ReplyDeleteबचपन में याने पचास साल पहले ऐसी बहुत सी बातें पहेलियाँ बन जाती थीं।
ReplyDeleteदादी जी की तरह मेरे दादी जी और दादा जी भी ऐसे कई भोजपुरी लोकोक्तियाँ सुनाते रहते हैं। अक्सर उनमे इतने मजेदार बाते होती हैं, जिनके साथ हँसते हँसते पेट उखड़ जाता है पर हँसी बन्द नही हो पाती।
ReplyDeleteवाह जी वाह !!
ReplyDeleteइतने गूढ़ अर्थों वाली पंक्तियाँ पढ़ कर मजा आया !!
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माँ जी को प्रणाम...यकीन के साथ कह सकती हूँ कि ऐसे हज़ारो किस्से उनकी यादों की पोटली मे भरे पडे होंगे...
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आपको फिर से देख कर अच्छा लगा..
bhut hi aannd agya .kitni shjta se usne apni grhsthi ko dhap diya .bahut hi rochakta se aapne maa ki bato ko sbke samne rkha .
ReplyDeletemaa ko prnam .
kafi dino ke intjar ke bad apki post pdhne ko mili .
abhar.
wow! gazab ki kahani hai, kitni tez thi wo aurat bhi...sun kar maza aaya.
ReplyDeleteबेहद रोचक ! उस स्त्री की बुद्धिमता के क्या कहने. ऐसे कुछ किस्से हमने भी सुने हैं.
ReplyDeleteरोचक कहानी
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ReplyDeleteमेरा ख्याल है कि 'लोकजीवन में संप्रेषण की ये कला' ही , कालांतर में परिष्कृत गुप्तचर विज्ञान की परिष्कृत कोड लैंगुएजेज के विकास का आधार बनी होगी !
ReplyDeleteआप विश्वास करें , इंसानी सभ्यताओं में तकनीकी / वैज्ञानिक उन्नति और संस्कृतियों में बहुआयामी प्रगति का मूलाधार 'लोक अनुभव' ही होते हैं !
मुझे भी याद आ गई माँ की बताई बात माँड से संबांधित...!
ReplyDeleteमाँ ने भी मेरी दादी से सुनी थी ये बात...! हमारे यहाँ (बस्ती में) माँड को पसावन कहा जाता है और सच कहा कि ये गरीबों का मेवा है। ऐसे में जब संयुक्त परिवार में महिलाएं चुपके से बच्चो को दुढ़ देती थीं तो चिल्ला कर कहती थी (अपनी जेठानी देवरानी को सुनाकर)" जल्दी पी पसावन..इनके गले से नही उतरता पसावन भी देखो जरा..!" सफेद गरम पसावन दूध के गिलास में दूध सा ही तो लगता था। :)
Mataji ko pranam.Unake sunaye prasang sunati rahiye.aabhaar.
ReplyDeletewah!
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