अली जी का किस्सा 'कोतो टोको' पढ़कर मुझे अपने पति के घर का एक किस्सा याद आ गया। बात बहुत पहले की है, लगभग ३५ वर्ष पहले की, जब फाउन्टैन पेन उपयोग किए जाते थे और खरीदने से पहले उनसे लिखकर निब की जाँच की जाती थी।
दादा पैन की दुकान पर गए। पैन चुना और फिर उससे लिखकर देखा। प्रायः ऐसे में व्यक्ति अपना नाम ही लिखता है या हस्ताक्षर करता है। दादा ने भी वही किया। दादा का नाम पढ़कर दुकानदार बोला," साहब आप तो अपनी ही जात वाले हो। आपसे दो रुपया कम लूँगा।"
उस जमाने में दो रुपए कम नहीं होते थे। परन्तु जाति में विश्वास न करने वाले दादा बोले," तुम अपना पूरा पैसा लो, मैं तो अपने दोस्त का नाम लिख रहा था।"
दुकानदार बोला, " साहब, आप बहुत ईमानदार हो, दो रुपए बचाने के लिए भी झूठ नहीं बोले।"
उस बेचारे को क्या पता था कि दादा ने ईमानदारी नहीं की थी और झूठ बोला था, जातिवाद से बचने के लिए!
आज भी जब कभी किसी पेन को हस्ताक्षर करने से पहले चलाकर देखती हूँ तो दादा का यह किस्सा याद आ जाता है।
घुघूती बासूती
Tuesday, May 19, 2009
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पोस्ट छोटी सी ---लेकिन अपने आप में बहुत बड़ा संदेश लिये हुये।
ReplyDeleteजातिवाद तो आज भी किसी न किसी रूप में विद्यमान है।
ReplyDeleteRochak kissa.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
मुझे बहुत खिज होती है जब कोई कहता है, अरे आप तो हमारे क्षेत्र से हो, हमारी जाती के हो, आप भी जैन हम भी जैन...क्या बकवास है.
ReplyDeleteबहुत प्रेरक प्रसंग..
ReplyDeletebahut hi satik post
ReplyDeleteआदरणीया घुघूती जी आप बहुत २ खूबसूरत /खूबसीरत लिखती हैं ! आपके कांसेप्ट निहायत साफ सुथरे और मुझे अच्छे लगते हैं ! ये बात अलग है कि आपके ब्लाग पर हमेशा / हर दिन आने के बावजूद , दस्तखत करने में क़ोताही करता हूं !
ReplyDeleteप्रेरक!
ReplyDeleteपोस्ट अच्छी लगी और प्रेरक भी ।
ReplyDeleteमुहल्ले, नगर, क्षेत्र, जात का होना कोई बुरी बात तो नहीं। पर इसीलिए छूट देना वह गलत बात है। इस का मतलब है कि वह औरों से अधिक ले रहा था।
ReplyDeleteअब हम तो किसी को भी अपनी जात का मानते हैं। पूछते हैं तो कह देते हैं कि भाई तुम हम दोनों गंजे, हुए न एक जात के।
अच्छी पोस्ट है।
ReplyDeleteहाँ पैन की निब चैक करते समय अपने हस्ताक्षर किसी दूकानदार के सामने न करे और जिस पुर्जी पर हस्ताक्षर किये हो वह फाड़ दे या नष्ट कर दे क्या है कि आजकल समय बहुत खराब है कोई भी चीटिंग कर सकता है मेरे दादा जी अभीतक यही सिखाते चले आ रहे है कृपया आप भी मेरे दादाजी की बात का ध्यान रखिये . बहुत बढ़िया संस्मरण है आपके बहुत बढ़िया आलेख के लिए आभार.
ReplyDeleteउस बेचारे को क्या पता था कि दादा ने ईमानदारी नहीं की थी और झूठ बोला था, जातिवाद से बचने के लिए!
ReplyDeleteलेकिन यह झूंठ भी बडा सूंदर है. शुभकामनाएं.
@ द्विवेदीजी, आपके बडॆ मजे हैं हमको कोई नही कहता कि आप भी ताऊ हम भी ताऊ?:)
रामराम.
प्रेरक प्रसंग है..........पर मुझे लगता है जातिवाद आज भी उतना ही प्रबल है......जीना कल था.....
ReplyDeleteजातिवाद के खिलाफ़ एक सकारात्मक सोच एवं आलेख. पता नहीं कब हम सब धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा की पहचान से अपने आप को मुक्त करा पायेंगे, और सिर्फ़ एक इंसान के रूप में पहचाने जायेंगे.
ReplyDeleteसाभार
हमसफ़र यादों का.......
हां यह जातिवाद, क्षेत्रवाद, धर्मवाद, पुरुषवाद, नारीवाद --- सब व्यर्थ बंटवारा है!
ReplyDeleteतीक्ष्ण कटाक्ष!
ReplyDeleteआत्मसात करने योग्य सुन्दर संस्मरण. मसला वैसे गंभीर भी है. आभार.
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट।
ReplyDeletebhut steek ktaksh.
ReplyDeletemjhe kheejhoti hai jab har shah me log apni jati ka alg smuh bna lete hai aur vhi se shuru ho jati hai rajniti.
नाम-उपनाम में जातियां तलाशने वाले लोगों से कोफ्त होती है...
ReplyDeleteहमेशा की तरह सार्थक पोस्ट
पोस्ट अच्छा लगा। कभी-कभी झुठ सत्य के कान काटने लगता है। यह इसका एक उम्दा उदाहरण है।
ReplyDeleteप्रेरक, सकारात्मक.
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट ! लोग अक्सर जात पूछते हैं... ये चीजें ख़त्म हो जाए तो क्या कहने.
ReplyDeleteek sahi baat aapne bahut achchhe dhang se kahi ...
ReplyDeleteaapko aur aapke dada ko humara salaam
Meri Kalam - Meri Abhivyakti
Ghughuti Jeem, could you please provide the full feed of your blogs? Thanks
ReplyDeleteऐसा तो अक्सर होता है..पुरानी याद को ताजा कर हम से बांटने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteजाति-वाद अभी भी उतना ही प्रवल है जितना की पहले थी।
ReplyDeleteराजनीति में तो और भी ज्यादा।
हमेशा की तरह !
ReplyDeleteमैंने तो अधिकांश जगहों पर अपना उपनाम ही लिखना बंद कर दिया है , मैं क्यों अपनी जाती को अपने और अपने कर्मो के बीच में
ReplyDeleteaapki is choti si post me bahut badi baat kahi gayi hai ,, yadi hum sab daadaji ke is baat ka anukaran karen to , baat hi kya hai .. desh me kahin bhi koi jaatiwaad nahi rah jaayenga ..
ReplyDeleteitni acchi post ke lekhan ke liye badhai ..
meri nayi kavita padhiyenga , aapke comments se mujhe khushi hongi ..
www.poemsofvijay.blogspot.com
बडा रोचक किस्सा है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बडा रोचक किस्सा है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }