आज मैं मतदान करूँगी। लंगड़ाते हुए जाऊँगी किन्तु अपनी उपस्थिति अवश्य दर्ज करवाऊँगी। मेरे पैर के अँगूठा टूट गया है। अधिक चलना व खड़ा होना मना है किन्तु मैं जाऊँगी। जाकर मैं भी हूँ यह दर्शाऊँगी, अपने अस्तित्व का प्रमाण अवश्य दूँगी। ताकि मेरी आवाज का भी मूल्य हो।
बहुत समय पहले, ९० के दशक में हम कर्नाटक में रहते थे। हम प्रायः एक जगह दो या तीन वर्ष ही रहते थे। कभी कभी तो ७ महीने या ९ महीने में भी स्थानांतरण हुआ है। भारत के बहुत से राज्यों में जगह जगह हम रहे हैं। बच्चियों की पढ़ाई कॉलोनी के स्कूलों में जैसे तैसे होती रही। उन्होंने कभी नवम्बर में आन्ध्रा प्रदेश में जाकर तेलुगु सीखी तो कभी ग्रीष्म अवकाश के अन्तिम दिनों में नई जगह जाकर सारा गृहकार्य निपटाया। बड़ी बिटिया ने बारहवीं(नर्सरी व के जी मिलाकर ) तक बारह स्कूलों में पढ़ा था। सात राज्यों (दो राज्यों में दो दो बार अन्यथा ९ कहलाते)व दो देशों में अपनी पढ़ाई पूरी की थी। जब वह सातवीं कक्षा में आई तो भाभी ने कहा कि अब बच्चियों को लेकर किसी एक स्थान पर ही रहो। ताकि वे कहीं की तो अधिवासी(डोमिसाइल) कहलाएँ। बच्चियाँ बाबा के बिना रहने को तैयार नहीं थीं, उसपर कौन इस बात की गारंटी दे सकता था कि मैं पाँच साल एक जगह रहूँ और जब मैडिकल आदि के दाखिले का समय आए तब तक नियम कानून पाँच साल से बढ़कर सात या दस साल या कुछ भी के डोमिसाइल के न बन जाएँ। सो हम भटकते रहे।
९० के दशक में हम कर्नाटक में रहते थे। कुछ नियम ऐसे थे कि आशा जगी कि उसे वहाँ दाखिला मिल सकता था। वहीं से बड़ी बिटिया ने बारहवीं की। बहुत अच्छे अंक पाए। ऐसे जिनसे उससे कम अंक पाने वाले उसके अधिकतम सहपाठी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पा गए। जैसा कि मुझे भय था वैसा ही हुआ। उसकी परीक्षाओं के दौरान ही नियम बदले और वह फ्री सीट की अधिकारी नहीं रही। दान देकर सीट पाना उसे स्वीकार नहीं था। स्कॉलरशिप की अधिकारी वह बी एस सी करने लगी। फिर एम एस सी की। स्वर्ण पदक पाया। पी एच डी की। अब पोस्ट डॉक्टॉरल रिसर्च कर रही है।
पति के काम के कारण मंत्रियों से भी मुलाकात हो जाती थी। सो मैंने राज्य के शिक्षामंत्री से बिटिया के अंक व उसे दाखिला न मिलने की विसंगति पर बात करने की ठानी। हमारा भला न भी हो तो हमारे जैसे लोगों जो विभिन्न राज्यों में भटकते हुए,चाहे अपने स्वार्थ में ही, देश व देशवासियों के लिए कारखाने चलाकर स्टील,उर्वरक,रसायन (केमिकल),दवाइयाँ, सीमेंट आदि का उत्पादन करते हैं। हम कठिन से कठिन परिस्थितियों में रहते हैं। सरकारी नौकरी न भी हो तो भी किसी को तो शहरों से दूर रहकर यह सब उत्पादन तो करना ही है। फिर हमारे लिए डोमिसाइल की मुसीबत क्यों होनी चाहिए? मैं उनसे यही बात कहना चाहती थी। कम से कम किसी प्रतिशत से अधिक अंक पाने पर तो दाखिला मिलना ही चाहिए।
उनका जो उत्तर था वह मैं कभी नहीं भूल सकती। उनका कहना था," ठीक है कि आप कर देते हैं, राज्य की उन्नति के लिए काम करते हैं। किन्तु आप हमारा वोट बैंक नहीं हो। कितनी बार आप वोट देते हैं? हम वह कार्य करते हैं जिससे वोट देने वाली जनता खुश रहे। आपसे सहानुभूति है किन्तु हमें अपने मतदाताओं को देखना है करदाताओं या उत्पादनकर्ताओं को नहीं।"
उस दिन से मैंने यह निश्चय किया कि चाहे अकेला चना भाड़ न भी फोड़ सकता हो वह मतदान कर अपने अस्तित्व का प्रमाण अवश्य देगा। सो मैं मतदान अवश्य करती हूँ। यदि आप भी चाहते हैं कि आप हाशिये में न ठेले जाएँ, आपकी समस्याओं पर कोई ध्यान दे तो मत अवश्य दें। हम जैसे मध्यम वर्ग के लोगों, जाति पर विश्वास न करने वाले लोगों ने मतदान में उत्साह न दिखाकर अपने आप को किनारे कर लिया है। किसी दल को हमारी समस्याओं, हमारे विचारों, हमारे मूल्यों से कोई लेना देना नहीं रह गया है। और दोषी हम स्वयं हैं। यदि हम चुनावी प्रक्रिया से अपने को अलग रखेंगे तो यही होगा। अतः मेरा निवेदन है कि मतदान करें। अन्धों में काने को चुनें। सब अन्धे हों तो जिसकी श्रवणशक्ति बेहतर हो उसे चुनें। सब बहरे हों तो जिसकी घ्राण शक्ति बेहतर हो उसे चुनें। जो भी हो मतदान अवश्य करें। अपनी आवाज का मूल्य पहचानिए।
अब मतदान केन्द्र जाना है सो शेष कल।
घुघूती बासूती
Thursday, April 30, 2009
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ये हुई न बात कुछ ...
ReplyDeletemain Vote nahi de paunga is bar.. mera nam patna ke voter list me hai aur ghar ja nahi sakta.. kuchh bhi pata nahi ki agle chunav ke samaya kis jagah par rahun.. so kisi jagah ke voter list me aane ke liye aavedan bhi nahi kar sakta hun.. iska koi ilaj kisi ko pata ho to please batayen,..
ReplyDeletede aai mai bhi... calipers se ... log kahate rahe are aap kyo aa gai?? aap ke vote se koi haar na jaata ?? maine muskura kar kah diya bahut se log nahi a rahe the na..socha mujhe dekh kar chal denge :):)
ReplyDeleteकंचन जी, आपने बिल्कुल सही किया। जब हमारे हिस्से का कोई खा नहीं सकता, जी नहीं सकता तो हमें अपने हिस्से क मतदान भी स्वयं करना होगा। आप तो प्रेरणा देती ही हैं। यदि सब आपकी तरह सोचने लगें तो राजनीति सुधर जाए।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
''ठीक है कि आप कर देते हैं, राज्य की उन्नति के लिए काम करते हैं। किन्तु आप हमारा वोट बैंक नहीं हो। कितनी बार आप वोट देते हैं? हम वह कार्य करते हैं जिससे वोट देने वाली जनता खुश रहे। आपसे सहानुभूति है किन्तु हमें अपने मतदाताओं को देखना है करदाताओं या उत्पादनकर्ताओं को नहीं।"
ReplyDelete-मंत्री जी का यह बयान अत्यंत गैरजिम्मेदाराना है, लेकिन सभी पार्टियों के वास्तविक सोच को उजागर करता है |
फिलहाल तो आप अंधों में काने को ही चुनने को मजबूर हैं , यह बात अलग है कि चुने जाने के बाद पता चले कि वास्तव में वह काना, काना नहीं अंधा ही था और साथ में बहरा भी |
प्रेरणा लेनी चाहिए... पर मैं भी पीडी की तरह वोट नहीं कर पाया :( पुणे के वोटर लिस्ट में नाम ही नहीं है अपना.
ReplyDeleteबिल्कुल सही!! अपने मताधिकार का प्रयोग हर हालत में करना चाहिये. अधिकतर मतदाताओं की उदासीनता ही इन्हें फायदा पहुँचाती है.
ReplyDeleteबहुत सही कहा है आपने ,इस देश में केवल उसी की सुनी जाती है जिसके पास वोट बैंक होता है .इस लिए कुछ लोग आज अपनी वोट बैंक की ताकत का एहसास भी करा रहें हैं .
ReplyDeleteवोट मैने दिया है। पर इस प्रधानमन्त्रीय व्यवस्था से मोह भंग सा होता जा रहा है। बहुत विखण्डन होता है इस व्यवस्था में।
ReplyDeleteहमारा वोट सर्वोच्च नेता चुनने के लिये सीधा होना चाहिये।
आदरणीया घुघूती बासूती जी,
ReplyDeleteआपका ब्लॉग पिछले कुछ समय से पढ़ रहा हूँ. आज सोचा एक टिप्पणी भी लिख दूं. वाकई गज़ब का सम्मोहन है आपके शब्दों में, साथ ही समसामयिक विषयों पर आपकी प्रतिक्रया भी सटीक होती है. आपके इस लेख में यह पंक्ति "अपनी आवाज का मूल्य पहचानिए" एक हौसला जगाती है, अतः आप जैसे महानुभावों की ही प्रेरणा से हिंदी ब्लॉग जगत में प्रवेश कर रहा हूँ अपने ब्लॉग "हमसफ़र यादों का......." के माध्यम से. बस आपके आशीर्वाद की कामना करता हूँ. शेष शुभ!
अपनी आवाज का मूल्य सभी को पहचानना चाहिए.. आपके जज्बे को सलाम.. हमारे प्रांत में मतदान 7 मई को है और हम अवश्य मतदान करेंगे।
ReplyDeleteहमने तो सुबह मतदान करके ही नास्ता किया था. आपका संकल्प अनुकरणिय है.
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट. साल दो साल में तबादले से एक समस्या और आती है वो वोटर लिस्ट में नाम जुडवाने का. हम लोगों ने भी अपने कैम्पस में अभियान चलाया था.हम बी वर्त्तमान चुनाव प्रणाली से असंतुष्ट हैं. ज्ञान दत्त जी का समर्थन करते हैं.
ReplyDeleteवोट का इस्तेमाल तो करना चाहिए।
ReplyDeleteबढि़या! हम भी डाल के आये अपना वोट! आपकी चोट जल्दी ठीक होने के लिये शुभकामनायें।
ReplyDeleteलोकतंत्र में मतदान करना भी नैतिक दायित्व है . प्रत्येक व्यक्ति को मतदान अवश्य करना चाहिए .धन्यवाद
ReplyDeleteआप सेaगुजारिस है कि समय है वद्लाब का पर ये बदलाब ही हो तो ठीक पर अकेले क्या करोगे
ReplyDeleteमैं आप को मंच का सदस्य बनाना चहताहून कि आप मच में अपनी धर दार प्रस्तुती ल्लिखे
आप का आभार
मतदान अधिकार ही नहीं कर्तब्य भी है .. और हमें इसका पालन करना ही चाहिए .. सुंदर पोस्ट .. वैसे पैर में अधिक चोट तो नहीं आयी है।
ReplyDeleteमतदान की आवाज को मैनेज करना आज का राजनेता जानता है। हमें (जनता को) राजनीति को मैनेज करना सीखना होगा। नागरिक संगठनों के माध्यम से।
ReplyDeleteघुघूती जी , आपकी बात से सहमत ! आम जनता का हर एक वोट कीमती है परँतु सर्वोच्च व्यक्ति के चुनाव मेँ ये मत काम आना भी जरुरी है
ReplyDeleteआपकी बिटीया को मुबारक वे डाक्टर हो गईँ - और आपकी चोट जल्द ठीक हो ये कामना है
- लावण्या
बहुत सुंदर, सधी हुई पोस्ट।
ReplyDeleteअपने अनुभवों के जरिये आपने जिस निष्कर्ष की तार्किक परिणति बताई, वह मध्यमवर्ग को वोटिंग के लिए प्रेरित करने की ठोस वजह बताती है।
हमने भी इस बार लंबे अंतराल के बाद वोट दिया। मध्यप्रदेश में पहली बार।
आपकी हर पोस्ट जीवंत होती है।
वोट तो हम हमेशा सही प्रत्याशी को ही डालते हैं ...लेकिन जब सरकार बनाने के लिए वो किसी भी पार्टी के साथ मिल जाते हैं तब अफ़सोस होता है ...और उसके बाद इस प्रणाली से विश्वास उठ जाता है ..
ReplyDeletei
घुघुती बसूती जी,
ReplyDeleteउम्मीद करता हूँ आप चॊट से अब तक उबर चुकी होंगी और अपने प्रजातांत्रिक दायित्व का निर्वाह भी कर चुकी होंगी।
आपने जो मुद्दे उठाये हैं वो सब वैसे के वैसे ही हमारा यथार्थ हैं, और आहत भी करते हैं। अपने कर्तव्य को पहली प्राथ्मिकता देने वाले जब आपके तरह दो टूक जवाब पाते है,विशेषतः उनसे जो इन सब हालातों के लिये जिम्मेवार हैं।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
लोकसभा चुनावों के मद्देनजर, हिन्द-युग्म द्वारा आयोजित कावुअ पल्लवन में मेरी रचना पढियेगा, आशीर्वाद की प्रतीक्षा में।
पहले नहीं करता था पर पिछले विधानसभा से महत्व समझा औऱ करने लगा ..उम्मीद है बाकी लोग भी वक्त के साथ वोट का महत्व समझ जाएगे
ReplyDeletevote dene ko bhi ek tyohar ki tarah manana chahye hame
ReplyDeleteमुकेश जी,
ReplyDeleteनमस्कार । आपने यदि कविता का लिंक भी दिया हो्ता तो पढ़ने में सरलता होती। आपके परिचय पर जाकर आपके चिट्ठे पर गई। आपकी कविताएँ पसन्द आईं।
टिप्पणी के लिए धन्यवाद। यूँ ही पढ़ते व टिप्पणी करते रहिएगा।
घुघूती बासूती