Thursday, April 16, 2009

कौन कहता है कि उम्र के साथ मनुष्य खड़ूस नहीं होता जाता ?

कौन कहता है कि उम्र के साथ मनुष्य खड़ूस नहीं होता जाता ? बिल्कुल हो जाता है। मैं हूँ न इसकी जीती जागती उदाहरण ! दो साल से भी अधिक समय से मेरे मित्र मुझे कहते रहे हैं कि बाराहा का उपयोग करो किन्तु मैं हूँ कि अपनी तख्ती को ही सीने से चिपकाए बैठी रही। मुझ मूर्ख से ढंग से डाउनलोड नहीं हो पाया तो वह भी करवाया। फिर भी मैं तख्ती पर लिखती रही। पोस्ट लिखने तक तो ठीक था, टिपियाने का काम भी उसी पर लिख कॉपी पेस्ट करती रही। किसी ने फिर हिन्दी राइटर की सलाह दी। सलाह तो नेक थी, हिन्दी राइटर का उपयोग करना भी कोई रॉकेट साइंस सा नहीं था परन्तु वही पुराने का मोह ! चिपकी रही तख्ती से। तब तक जब तक मेरे कम्प्यूटर ने परेशान होकर कहना नहीं शुरू कर दिया कि वर्चुअल मैमोरी बहुत कम है। बार बार कहना शुरू किया। इतना कि मैं परेशान हो गई। टिपियाने की बीमारी तो है ही। उस पर हर पल तख्ती से कॉपी पेस्ट करते करते मैं तो नहीं शायद मेरा कम्प्यूटर परेशान हो गया था। या उसे अपनी मालकिन की मूर्खता पर शर्म आ रही थी। सो जब पानी सिर के ऊपर आ गया तो उसने असहयोग आन्दोलन शुरू कर दिया। कहते हैं न लातों के भूत बातों से नहीं मानते तो मैं क्यों बिना धमकाए मानती ? खैर देर आयद दुरस्त आयद। आज मैंने बाराहा का भी उपयोग किया और हिन्दी राइटर का भी। एक बार भी मेरे कम्प्यूटर ने मुझे चेतावनी नहीं दी।

आप पूछेंगे कि इसका उम्र से क्या सम्बन्ध। तो सम्बन्ध यह है कि जब उम्र कम होती है तो हर नई वस्तु आजमाए बिना रहा नहीं जाता। जब उम्र बढ़ती है तो हर नई वस्तु का उपयोग टाला जाता है। यह उम्र केवल वर्षों से नहीं नापी जाती आपके जीवन के प्रति मनोभावों, नजरिए, नए के प्रति जिज्ञासा व उत्साह से नापी जाती है। मेरी उम्र के बहुत से मित्र हर दिन नया आजमाते हैं और मैं नए से कतराती हूँ। सो वे किसी भी उम्र में युवा हैं व मैं :( वृद्धा,खड़ूस वृद्धा ! खैर, इस मामले में तो खड़ूसपन खत्म हुआ। नया अपनाने में कष्ट भी हुआ। मुझे यह जो पॉप अप खिड़की शब्द लेकर उपस्थित हो जाती है जरा भी नहीं सुहाती। उससे खीज होती है। बिन माँगे सुझाव सी लगती है। शायद इसे भी चुप कराने का कोई उपाय होगा। खड़ूसपन से छुटकारा पाने का एक और सबूत मेरा बाराहा का उपयोग करके पंजाबी लिखना था।

फिर भी अंत में यही कहूँगी कि तख्ती का उपयोग अधिक सरल था। उसमें हर अक्षर को लिखने के लिए a का उपयोग नहीं करना पड़ता। kसे क बनता है न कि ka से। हलन्त के लिए x लगाना होता है। फिर हलन्त आता ही कितनी बार है ? सो मुझे वह तरीका अधिक पसन्द है। फिर वह पुराना मित्र है। जब मुझे हिन्दी लिखने का शौक चर्राया था तब अपने छोटे पुत्रीवर को बताया। उसने ढूँढ कर मुझे www.hindikalam.com के बारे में बताया। वह हिन्दी लिखना पढ़ना न के बराबर ही जानता है परन्तु मेरी सहायता तो की। बाद में बड़ा पुत्रीवर जब घर आया तो मेरे कम्प्यूटर में यह तख्ती नामक औजार या जो भी कहो डाल गया। तब से मैं इसकी भक्त बनी रही।

आज तख्ती से क्षमा माँगते हुए बड़े दुख से उसे कहना पड़ा कि बहुत हुआ साथ तुम्हारा। अब कुछ नया भी आजमाऊँगी। यह लेख हिन्दी राइटर की सहायता से लिखा है। वैसे www.hindikalam.com का यह लाभ है कि जब किसी अन्य के कम्प्यूटर का उपयोग करना हो तो औन लाइन जाकर हिन्दी लिखी जा सकती है। परिवार में मेरे सिवा कोई हिन्दी लिखता पढ़ता नहीं है,(मेरा लिखा भी नहीं !) सो अन्य के कम्प्यूटर पर यही काम आता है।

घुघूती बासूती

31 comments:

  1. बदल सकें खुद को अगर काल खंड के साथ।
    जीने का मतलब मिले मिले सफलता हाथ।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    ReplyDelete
  2. कुछ तो अंतर आ ही जाता है ... उम्र बढने के साथ साथ ... कोई नया काम करने में हिम्‍मत की थोडी कमी हो ही जाती है ... जो कम उम्रवाले आसानी से कर लेते हैं।

    ReplyDelete
  3. खडूसियत और उम्र का सम्बन्ध होता तो नौजवानों को चेंज मैनेजमेंट पढने की ज़रुरत कहाँ पड़ती? बच्चे मित्र, शहर और विद्यालय बदलने से क्यों डरते भला? आपका ही उदाहरण लें तो जब आपकी उम्र कम थी (कुछ वर्ष या महीने ही सही) तब आप तख्ती पर अड़ी रहीं और आज जब उम्र थोड़ी बढ़ गयी तो आपने भी बदलाव को आखिरकार स्वीकार कर ही लिया.

    ReplyDelete
  4. एक खडूस व्यक्ति अपनी कमजोरी और गलतियां कभी स्वीकार नहीं करता। इस शब्द की व्याख्या के लिये तो अजीत जी कभी कोई पोस्ट लिखें तो समझा जा सकता है। तो आप खडूस हैं या नहीं अपन तो तभी मानेगें।
    क्यों अपने बारे में एक भ्रम फ़ैलाने की ठानी हुई हैं आप। सुंदर और सादगी आपके व्यवहार में, आपके लिखे से दिखाई देती है।

    ReplyDelete
  5. अब आप भी हिन्दी राइटर की सहायता से लिखने लगीं । ठीक है यह, और सुगम भी, पर आदत पड़ जाने पर ।

    इसके उपयोग के लिये इतनी रम्य-रचना लिख दी आपने । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  6. कुछ नया करने पर बधायी! अब आप अपने आप को खड़ूस नहीं कह सकतीं!

    ReplyDelete
  7. आप उम्र की कहते हैं, आदमी किसी भी उम्र मे खड़ूस, हो सकता है। इन्स्क्रिप्ट हिन्दी टाइपिंग आठ दस दिन में सीखी जा सकती है। महीने भर बाद उस में अंग्रेजी से भी अधिक गति मिलती है। लेकिन यह सोच कर कि शायद अंग्रेजी टाइपिंग से ही काम चल जाएगा आदमी महिनों और बरसों टूल्स की तलाश में गुजार देता है। यह खड़ूस पन नहीं तो और क्या है? मैं ने पिछले साल जब इन्स्क्रिप्ट सीखी तो एक सप्ताह में सीख गया और पोस्टें लिखने लगा। एक माह में गति आ गई। इस में गल्ती की कोई संभावना तक नहीं रही। आप सब टूल्स छोड़िए इन्स्क्रिप्ट टाइपिंग सीखिए। हिन्दी आसान टाइपिंग ट्यूटर उपलब्ध है।

    ReplyDelete
  8. तख्ती की चाहने वाली आप अकेली नहीं हैं। हमारे देबाशीष सब जुगाड़ जानते हैं लेकिन तख्ती के सिवा और कोई अपनाते नहीं!

    ReplyDelete
  9. अब यही हाल तो मेरा भी है =आपने कुछ बोझ हल्का किया !

    ReplyDelete
  10. बार बार इच्छा होती है मगर इंसक्रिप्ट टाइपिंग नहीं सीख पाया....खडूस कौन? :)

    ReplyDelete
  11. शायद हां या शायद नहीं ! अरे...रे...ज़रा ठहरिये इस बाबत मुझे कुछ पता नहीं !

    ReplyDelete
  12. कम से कम आप इतना सीख तो रही हैं। मेरे पापा की उम्र 58 साल है वो पिछले 12 साल से एक पत्रिका के संपादक है लेकिन, बिना सहायक के कुछ नहीं कर पाते हैं। कागज़ पर लिखकर सहायक को देते हैं वो टाइप करता है। उनका एक ब्लॉग भी भैया ने बनाया था, नाम रखा मेरा मतलब। वो आज तक एकदम खाली पड़ा है। जब भी पूछो कि कब आप कुछ लिखेंगे जवाब मिलता है- जब मेरा मतलब होगा।

    ReplyDelete
  13. वैसे हम जैसे लोग भी इस मामले में आलसी है आज भी गूगल की सेवा का इस्तेमाल ऑनलाइन ही करते है...बारहा थोडा मुश्किल लगा हमें..वैसे आदत आदत की बात होती है जी

    ReplyDelete
  14. बेहतरीन आलेख...वैसे खड़ूसियत का उम्र से नाता नहीं। पैदाइशी खड़ूस भी होते हैं। मेरी माताजी की उम्र सत्तर के आसपास है मगर आधुनिक घरेलु उपकरणों के प्रति उनकी ललक बरकरार है।

    लेकिन जो आप कहना चाहती हैं वह सम्प्रेषित हो रहा है....मेरा मानना है कि यह अनुपात 50-50 हो सकता है..

    ReplyDelete
  15. बात आदत की भी है ! एक बार जिसकी आदत लग गयी दूसरा कितना भी अच्छा हो आजमाने का मन नहीं करता.

    ReplyDelete
  16. यूँ ही नई तकनीकों का स्वागत करती रहें. शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  17. जिस काम से लगाव हो वह आसान लगता है। जो मन को ना भाए वह आसान होते हुए भी कठिन नजर आने लगता है।आप चाहे किसी भी उमर के हों।

    ReplyDelete
  18. takhti ki jo sabse aasan baat hai vo yahio hai ki us se typing jaldi ho jaati hai....! baar baar a ka prayog nahi karna padta to samay bhi bachta hai.

    ReplyDelete
  19. नया नौ दिन पुराना सौ दिन की कहावत है अपने यहाँ , उम्र से नहीं दिमाग से होता है व्यक्ति खडूस

    ReplyDelete
  20. yah bhi ek sach hai aap jo likhate ho uasame tark bhi hota hai our sachchaaee bhi jo mujhe bahut pasand aatee hai....

    ReplyDelete
  21. जिस की आदत बन जाए वही आसान लगता है फिर ..

    ReplyDelete
  22. Anonymous6:17 pm

    खडूस वडुस कुछ नहीं, बात सिर्फ आदत पड़ जाने की है. जो किसी न किसी सीमा तक हर मानव में रहती है. आप अपने आप को वृद्धा कहती हैं और 40 साल बाद बिना किसी उल्लेखनीय गलती के पंजाबी में एक पैरा ग्राफ लिख कर उछल पड़ती है. अपने समकालीनों से ऎसी उम्मीद कर के देखिए, सब पानी भरते नज़र आयेंगे!

    हिन्दी राइटर मुझे काफी पसंद आया है. इसके अलावा फायर फोक्स के कुछ Add-ons भी ठीक ही हैं. वैसे आजकल writeKA Scripto का प्रयोग भी भा रहा है, हिन्दी, पंजाबी को ऑफलाइन लिखकर, बिना ब्राउज़र खोले अपने ब्लौग पर पोस्ट प्रकाशित करने का यह अंदाज भी बढिया लगा. मेरे ख्याल से यह डायल-अप वाले कनेक्शन या कम डाटा-सीमा वाले ब्रॉडबैंड वाले ब्लागरों के लिए भी ठीक ही रहेगा. इसके पुराने वर्सन की चर्चा रवि रतलामी जी दो साल पहले कर चुके हैं.

    बाराहा, कैफे हिन्दी का प्रयोग कभी किया हो याद नहीं आता.

    ReplyDelete
  23. पूरा पढ़कर प्रसन्नता हुई. प्रारंभिक पंक्तियोने तो हमें defensive में डाल दिया था.सवाल aptitude का है.

    ReplyDelete
  24. शायद आप वृद्ध हो रही हो पर अभी आप खड़ूस नहीं हुई है . अपने कुछ नया अजमाया और प्रयोग किया ये इस बात का प्रमाण है की अभी आपमें कुछ करने और सीखने की चाह है .

    ReplyDelete
  25. आपकी पोस्ट पढकर इतनी तसल्ली तो हुई कि खैर हम अकेले ही नहीं है तख्ती से चिपके हुए........

    ReplyDelete
  26. बूढे खडूस नहीं अडूस होने लगते हैं जैसे कि आपका कम्प्यूटर जो अड गया कि तख्ती फख्ती हटाओ और कोई और उपाय अपनाओ। आखिर उसके अडने से ही आप ने भी कुछ बदलाव की सोची :)

    अच्छा है इसी बहाने कुछ बदलाव का मौका मिला।

    ReplyDelete
  27. और हमेँ तो आज भी "हिन्दिनी " ही सबसे ज्यादा पसँद है :)
    - लावण्या

    ReplyDelete
  28. abhi tak copy-paste kar ke hindi likh rahi hun--

    baraha-ko-har baar programme mein jaa kar set karna padta hai-

    -ab aap ne nayi site sujhaayee hai-lekin yah bhi to google transliteration jaisee hi hai.-

    ReplyDelete
  29. हम तो ना तख़्ती इस्तेमाल करते है.. ना बारहा.. हा मगर खाड़ुस तो नही हुए.. वो अलग बात है क़ी अभी उम्र भी तो कहाँ हुई?

    ReplyDelete
  30. चलिए लगता है सर्वस्म्मति से मुझे अखड़ूस घोषित किया गया है सो अब स्वयं को अखड़ूस ही बनाए रखना होगा। अखड़ूस मानने के लिए धन्यवाद।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  31. चलिए लगता है सर्वसम्मति* से मुझे अखड़ूस घोषित किया गया है सो अब स्वयं को अखड़ूस ही बनाए रखना होगा। अखड़ूस मानने के लिए धन्यवाद।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete