मुझे चिट्ठों पर दी गई पाठकों की टिप्पणियाँ पढ़ना भी बहुत अच्छा व मनोरंजक लगता है। बहुत से मित्र बहुत अच्छे से विश्लेषण कर टिप्पणी देते हैं। कोई कोई कभी कभार कटु टिप्पणी भी दे जाता है। परन्तु टिप्पणी के मामले में तो मुझे लगता है, यही सोचना चाहिए कि जो दे उसका भी भला जो न दे उसका भी भला।
बस एक बात जो मुझे समझ नहीं आती वह यह है कि बहुत से पाठक बहुत से चिट्ठों पर टिप्पणी में कहते हैं बहुत बढ़िया। परन्तु उसी चिट्ठे पर पसन्द में एक भी चटका ( या चटखा ? )नहीं लगा होता। इसका एक कारण तो यह हो सकता है कि वे ये चिट्ठे ब्लॉगवाणी पर न पढ़कर किसी अन्य स्थान पर पढ़ते हैं। फिर भी मैं तो यदि किसी चिट्ठे पर लिखी रचना को पसन्द करूँ तो कोशिश यही रहती है कि याद से पसन्द भी दर्शा दूँ। इस काम को करने के लिए मुझे भले ही वापिस ब्लॉगवाणी पर चिट्ठा सूची पर ही क्यों न जाना पड़े। जिस चिट्ठे पर एक भी पसन्द दर्ज न हो, जहाँ तक हो सके, मैं उसे पढ़कर यदि पसन्द आए तो पसन्द करने का पुनीत काम अवश्य कर आती हूँ। यह बात बहुत से मित्रों को बचकानी चाहे लगे परन्तु हम इतने बड़े (या छोटे से ही) साहित्यकार तो नहीं बने कि पाठकों की पसन्द नापसन्द या टिप्पणियों का हम पर कोई प्रभाव ही न पड़े। मुझ पर तो पड़ता है। टिप्पणी के साथ साथ पसन्द का भी अपना ही महत्व है।
बोलिए पसन्द ? नापसन्द ? कोई टिप्पणी ?
घुघूती बासूती
Sunday, January 04, 2009
कहते तो हो 'बहुत बढ़िया' तो फिर पसन्द पर क्लिक क्यों नहीं करते ?
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मैं भी अधिकतर यही करता हूं.. जब कुछ अच्छा लगता है तो जरूर पसंद पर चटखा दबाता हूं.. और क्या कहूं, अपनी पोस्ट तो हर बार ही पसंद आ जाती है.. :D
ReplyDeleteवैसे सच कहूं, आपकी आज कि पोस्ट ठीक-ठाक लगी.. फिर भी पसंद में आने वाला तो है ही.. एक पसंद मेरी ओर से.. :)
आपने सही कहा. पसन्द क्लिक करने का पुनीत काम अवश्य करना चाहिए. आगे से मैं इस का ध्यान रखूंगा. शुरुआत आप के इस लेख से कर रहा हूँ.
ReplyDeletePD ji ki baat se sahmat hun. mai bhi..
ReplyDeleteमुझे लगता है कि पसंद व पाठ अलग अलग जगह होना इसकी वजह है। मतलब सिरिल को अब ऐसा औजार बनाना चाहिए के पोस्ट को चिट्ठे पर ही ब्लॉगवाणी के लिए पसंद किया जा सके।
ReplyDeleteप्रशान्त जी, आपकी बात से सहमत हूँ। यह कोई यादगार सा लेख नहीं होगा बस केवल मन में उठी एक बात की मित्रों से हुई चर्चा भर ही रहेगा। चटखा न भी दबाते तो भी ठीक रहता । :D
ReplyDeleteघुघूती बासूती
Mai yadi koi post blogwani mai padhati hu aur achhi lagti hai to chatkha bhi laga deti hu....
ReplyDeleteper yadi blog mai hi padhti hu to yah kaam nahi karti per ab yah baat humesha yaad rakhungi...
apki is post mai ek chatkha meri taraf se bhi hoga.
सबके मन की बात कह दी आपने...लेकिन 'पसंद' करने में एक दिक्कत है। आप देख ही नहीं सकते कि किसे आप पसंद आए हैं। कुछ ऐसा हो जाए कि जिस-जिस ने आपकी पोस्ट को पसंद किया, उससे भी मुलाकात हो जाए, तो मजा आ जाए...
ReplyDeleteबढ़ियाबात कही जी आपने ...मेरी भी कोशिश रहती है यह
ReplyDeleteआपकी बात पसंद आयी। अब इस आशय का चटखा लगाने का पुनीत कार्य भी जाकर कर दे रहा हूं :)
ReplyDeleteवैसे जब भी मैं एग्रीगेटर के जरिए किसी पोस्ट पर जाता हूं और समायाभाव या तकनीकी परेशानी की वजह से टिप्पणी नहीं छोड़ पाता हूं, तब भी रचना पसंद आने पर चटखा लगाना नहीं भूलता।
बात तो आपकी सही है पर चटका कहां लगाना है? इतनी देर से ढूंढ रहा हूं, कुछ दिखाई नही दे रहा है. शायद मेरे जैसे अनाडियों के लिये तो ये भी नई मुश्किल है कि चटका कहां लगाना है ? कोई समझाये हम तो दिन मे दस बार चटका लगादे.
ReplyDeleteरामराम.
आपने सही कहा. पसन्द क्लिक करने का पुनीत काम अवश्य करना चाहिए. आगे से मैं इस का ध्यान रखूंगा. शुरुआत आप के इस लेख से कर रहा हूँ.
ReplyDeleteप्राइमरी का मास्टर का पीछा करें
ताऊ(जी ?) नमस्कार। यह सुविधा www.blogvani.com पर दी गई है। हममें से बहुत अधिक लोग यहाँ पर ब्लॉग पढ़ते हैं। मुझे अनुमान नहीं था कि आपको इसके बारे में पता नहीं है। ब्लॉगवाणी खोलने पर आपको सभी ब्लॉग की सूची दिखाई देगी। यहीं पर हर ब्लॉग के नाम से पहले पसन्द करने की सुविधा दी गई है। ब्लॉगवाणी पर दाँए हाथ पर यह भी दिखाया जाता है कि किस ब्लॉग को कितने लोगों ने पसन्द किया, कितनी टिप्पणी मिली व कितने लोगों ने पढ़ा। यदि अभी तक आप यहाँ नहीं आए हैं तो एक बार आकर देख लीजिए।
ReplyDeleteटिप्पणी व पसन्द करने की इतनी कोशिश करने के लिए धन्यवाद।
घुघूती बासूती
मैं इस मामले में थोड़ा आलसी रहा हूँ। अपने ब्लॉग के साइड कालम में पसन्दीदा ब्लॉग्स की ताजा प्रविष्टियाँ सीधे मिल जाती हैं इसलिए ब्लॉगवाणी पर जाने की जहमत नहीं उठानी पड़ती। नये ब्लॉग्स की सूचना चिठ्ठाजगत की मेल से मिल जाती है।
ReplyDeleteआजतक अपनी पोस्ट को भी पसन्द करने के लिए चटका नहीं लगा पाया था। हाल ही में कविता जी ने इसके महत्व को बताया था, लेकिन आलस्य नहीं टूट रहा था। अब यहाँ पंचों की राय देखते हुए यह पुनीत कार्य आज से ही शुरू करता हूँ।
वैसे यह सुविधा ब्लॉगर वालों को पोस्ट के साथ ही देनी चाहिए।
सही कहा आपने, लेख यदि पसंद है तो पसंद पर भी चटका लगना चाहिए ! भाई हम तो ऐसा अक्सर करतें है !
ReplyDelete[img]http://img.photobucket.com/albums/v411/hells/more/23_28_101.gif[/img]
अब मैं भी किया करूंगा ऐसा ही. धन्यवाद.
ReplyDeleteये लो! हमें तो पता ही नहीं था की ऐसा भी कुछ करना पड़ता है. निश्चित रूप से बहुतों को पता नहीं होगा. समस्या यह है कि हर कोई ब्लॉगवानी से नहीं पहुँचता. हमने पहले ही चटका लगानी की कोशिश की तो एक दूसरा पन्ना ब्लॉगवानी का खुला जिसमें आपकी सभी प्रविष्टियाँ थी. फिर उसमे से इस वाले पर चटका लगाया तब कहीं आपका ब्लॉग खुला. मदाम काम बढ़ जाता है फिर आजकल नेट का कोई भरोसा भी नहीं है. कब अगला पन्ना खुले या ना खुले. हमारी सोच तो यह है कि यह पसंद/नापसंद वाला ब्लॉगवानी का अपना सिस्टम "सूपरफ्ल्वस" है.
ReplyDeleteविवेक जी का कहना सही है कि पसंद के साथ यदि यह पता चल सकता कि इसे किन किन लोगों ने पसन्द किया, तो इस पसन्द करने की प्रक्रिया का आनन्द बढ़ जाता.
ReplyDeleteवैसे मैं इस काम को किया करूंगा, क्योंकि वस्तुतः इससे चिट्ठाकार का मनोबल तो बढे़गा.
प्रविष्टि के लिये धन्यवाद.
गाहे बगाहे मैं यह पुनीत कार्य करता रहता हूँ . आज से नियमित करूँगा जो पसंद आएगा चटकाया जाएगा . सादर
ReplyDeleteबात पर सभी जन गौर फर्मायें। यह सर्वजन हिताय है। पर फिर इसका हाल भी टके सेर ना हो जाये।
ReplyDeleteवादा तो सभी ने किया है ,ओर दावा भी की आज से ओर अभी से आप के बांल्ग से शुरुआत करते है.... जा कर देखिये भी कोई चटका लगा कर भी गया है या बस नेताओ की तरह से वादे ही किये है, हम भी आप की बात से सहमत है, आज से सब के चिठ्ठो पर चटका शुरु.
ReplyDeleteधन्यवाद
प्रौढ़ शिक्षा की क्लास हो गयी ।
ReplyDeleteअरे मैं तो बिल्कुल पसंद बनाता हूँ, और आग्रह करता हूँ और लोग भी ऐसा करें
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/
हम तो एडवांस मे पसंद किये है . टिपियायेगे कल [पढकर :)
ReplyDeleteSahi kaha aapne.
ReplyDeletebahut achha point yaad karaya aapne,agli baar se yaad se pasand par clickkarne ki koshish karenge.
ReplyDeleteदेखिए जी बात ऐसी है कि जो टिप्पणी की जाती है वह पब्लिक देखती है . इसलिए उसमें सब लोग अच्छा अच्छा लिख देते हैं . किंतु आप यह न मान लें कि जिन कविताओं पर ढेरों लोगों ने वाह वाह बहुत खूब लिखा होता है वे वास्तव में लोगों द्वारा पसन्द की गई हैं . दर असल हमारे ब्लॉग जगत में टिप्पणी सर्किल्स बने हुए हैं . और अक्सर टिप्पणी अपने जानने वाले लोगों की ही आती हैं तो वे बुरा तो लिख नहीं सकते क्योंकि उन्हें वापस टिप्पणी चाहिए . क्यों नाराजगी मोल लें . अभी हमारे यहाँ लोग इतने उदार तो हुए नहीं कि अपनी आलोचना सह सकें . हाँ तारीफ चाहे झूठी भी कर दो उसे पचा जाएंगे . जबकि पसंद वाला विकल्प दिल की आवाज पर क्लिक किया जाता है और हमने महसूस भी किया है कि जो चीज वास्तव में लोगों को पसन्द आती है वह क्लिक भी की जाती है . वही उसकी असली वैल्यू है . मेरे विचार से टिप्पणी और पसंद को एक ही डण्डे से हाँकना सही नहीं होगा . हाँ जिन लोगों को इस विकल्प के बारे में जानकारी नहीं है उन्हें जानकारी देने तक तो ठीक है जैसे हमारे ताऊ , पर उन्हें बाध्य करना ठीक नहीं . वैसे मुझे विश्वास नहीं है कि ताऊ जी यहाँ मजाक नहीं किए . क्योंकि मेरा मानना है कि जो जानकारी ताऊ जी को नहीं वह मुझे कैसे हो सकती है आखिर मैं ही तो ..
ReplyDeleteचलिए छोडिए मैं तो मजाक कर रहा था :)
एकदम सही बात है,अब यहां भी छायावादी किसिम का प्यार जताएंगे तो कैसे चलेगा, प्रेम औऱ पसंद का फिजिकल फार्म तो होना ही चाहिए.
ReplyDeleteअरे भाई अब से पहले तो मुझे यह पता तक नहीं था...आज के बाद देखूंगा कि ये कैसे होता है....??और दूसरी बात यह कि....रात गए जब कंप्यूटर पे (नेट पे)आता हूँ....तो दो ही बातें हो पाती हैं......कुछ ब्लॉग देखना....अपना कुछ रचना....और यदि समय और नींद साथ दे तो टिप्पणियाँ देना....असल में हर व्यक्ति के काम की प्रकृति कैसी है....और उसके पास कुल वक्त कितना है...ये भी तो "सोचनीय"है.....!!
ReplyDeleteJi shukriya aapke comments ka|
ReplyDeleteजानकारी के लिये
ReplyDeleteआपका बहुत आभार घुघूती जी
ब्लोगवाणी पर आप की यह पोस्ट सबसे Top पर है आज :)
बधाई हो जी ~~
-लावण्या
Sach baat kee taraf dhyaan dilaayaa .
ReplyDeleteपसन्द - आप का कहना उचित है, वाजिब है, जायज है
ReplyDeleteशायद अभी तक हम यही समझते हैं कि सिर्फ टिप्पणी करने का ही महत्व है और पसंद (digg) करने के महत्व से अनजान हैं। आपके इस पोस्ट से अब लोगों को पसंद करने का महत्व भी समझ में आ जायेगा। बहुत अच्छा पोस्ट है!
ReplyDelete"तुम एक पैसा दोगे, वो दस लाख देगा", मैंने कई बार आपके ब्लॉग को पसन्द किया है, अब "दस लाख" बार आप करेंगी ही… :) :) :) बेहतरीन लिखती हैं आप, हमेशा कुछ नया "हट के" :)
ReplyDeleteकोशिश तो यही रहती है आगे से और ख्याल रखेंगे.
ReplyDeleteआज तो खुब चटखे लगे है, आपकी पोस्ट पर :) बेचारी को दर्द हो रहा होगा.... :)
ReplyDeleteहमारे मित्र की एक कम्पनी है... (एक वेबसाइट बेस्ड) उसपर कई यूजर हैं जो मेंबर तो हैं पर कुछ कंट्रीब्यूट कम करते थे. हमने सलाह दी की एक लिस्ट बना दो featured members की. उसके बाद अचानक ही लोग खूब कंट्रीब्यूट करने लगे. वही बात है टिपण्णी दिखाती है, उसके साथ नाम भी दीखता है :-)
ReplyDelete:)
Deleteआपने जो कहा सच कहा।
ReplyDeleteबात तो आपने सही उठायी है और विवेक जी ने पूरी विवेचना भी कर दी है...मगर कई बार ऐसा होता है या यूं कहूं कि अक्सर होता है कि वो पसंद नापसंद वाला चट्खा बटन कई बार दिखता भी नहीं
ReplyDeleteवैसे आगे से मैं भी ध्यान रखता हूं
बात बिल्कुल दुरुस्त लगी.
ReplyDeleteमेरे साथ अक्सर होता यूं आया है कि कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा पढने के चक्कर में टिप्पणी छूट जाती है.
सीख सही है. खयाल रखूंगा.