Saturday, January 03, 2009
हमारे महिला मंडल की पिकनिक (स्कूली दिनों को याद करते हुए पिकनिक से लौटकर गृहकार्य में लिखा पिकनिकी विवरण)
हमारा महिला मंडल हर साल पिकनिक मनाता है। हर साल १०० से १५० कि. मी.से कम की दूरी में हमें एक नया स्थान खोजना होता है। इस बार हमने मांगरोल नामक एक छोटे से शहर के एक कल्याण धाम नामक आश्रम व मंदिर को चुना । क्रिसमस के दिन हम सुबह ५:५० पर घर से निकले और ६ बजे बस में बैठ गए। कुछ आगे चलकर अन्य स्त्रियों व बच्चों को बस में चढ़ाया। कुल मिलाकर ३४ स्त्रियाँ व २० बच्चे थे। सबकी उपस्थिति ली गई। जैसा कि सदा होता है एक महिला व उसके बच्चे देर से आए। परन्तु हमारी चाय, कॉफी व नाश्ता उससे भी देर से आए। सो लगभग ६:३० पर हमारी बस,एक जीप व एक कार पिकनिक के लिए निकल पड़ी। रास्ते भर अन्ताक्षरी व हँसी मजाक चलता रहा। लगभग ७:४५ बजे बस रोककर सबको बस में ही चाय नाश्ता दिया गया। नाश्ते में स्वादिष्ट मेथी की पूरियाँ व आलू की सब्जी थी। साथ में गरमागरम चाय व कॉफी भी। खापीकर हम फिर से चल पड़े,या कहिए बस चल पड़ी,हम अपनी सीट पर ही बैठे रहे। लगभग ८:४५ पर हम लोग मांगरोल पहुँच गए। मन्दिर के परिसर के बाहर हमारी बस खड़ी हुई। सब लोगों ने मन्दिर के दर्शन किए। वहाँ बहुत सुन्दर झाँकियाँ भी बनी हुई थीं जिन्हें देख बच्चे बहुत खुश हुए।
परिसर में ही एक तालाब, झूले, स्लाइड आदि थे। हमारे साथ एक चौकीदार भी था जिसे हमने बच्चों की रखवाली पर तैनात कर दिया। फिर हम अपने खेल खेलने लगे। पहले खेल में दो दल बनाए गए। फिर नियत समय के अन्दर उन्हें चार डिब्बों में से मिलेजुले दानों में से राजमाह, मटर, काले चने, सफेद चने आदि के दाने अलग अलग डिब्बों में रखने थे। ये डिब्बे थोड़ी दूरी पर रखे गए थे। सो काफी दौड़भाग व मेहनत की गई। दोनों दलों के लिए छोटे छोटे पुरुस्कार थे। यह खेल खेलते खेलते ही काफी समय बीत गया। अब हमने चाय कॉफी पी। फिर बच्चों के लिए 'पासिंग द पार्सल' खेल रखा गया। प्रत्येक आउट होने वाले बच्चे को चिट उठाकर उसमें लिखा हुआ काम जैसे,गाना, नाचना, कविता या चुटकुला सुनाना आदि करना था और फिर उसे चिट में लिखा पुरुस्कार मिलता था। फिर एक और खेल खेला गया। इसमें एक एक पैसों से भरा कप दिया गया। ५,१०,२०,२५,५० पैसे,१ रुपये, २ रुपये व ५ रुपये के सिक्के दिए गए थे। १० संख्याएँ लिख दी गईं थीं, जैसे १ रुपया १५ पैसे, ९ रुपये ८५ पैसे आदि। दो मिनट का समय दिया गया था। पाँच पुरुस्कार रखे गए थे।
तब तक खाना तैयार हो गया था। गरमागरम मटर पनीर,गुजराती ऊँधिया,दाल,रायता,पूरी,भात,मूँग की दाल का हलवा सबने मिलकर खाया। फिर हाउजी याने तंबोला खेला गया। कुछ गप्पशप के बाद चाय कॉफी पीकर हम एक्वेरियम देखने निकले। फिर तरह तरह के पत्थर, रत्न व समुद्री जीवों का संग्रहालय देखा। ताराघर बंद था। फिर बच्चों को छुकछुक गाड़ी व झूलों पर बैठाया। वहाँ पर एक वृद्धाश्रम भी था जहाँ वृद्ध आराम से टहल रहे थे व गुजराती अन्दाज में हौले हौले झूला झूल रहे थे। एक गौशाला भी थी। हमने दोनों देखे। तबतक वापिस आने का समय हो गया। सबको रास्ते के लिए नाश्ता प्लास्टिक के डिब्बों में पैक करा हुआ दिया। जो लगभग सभी अपने साथ घर ले आए। वापिसी में सब थक गए थे सो अन्ताक्षरी का कार्यक्रम नहीं हुआ।
इस तरह हँसते,खेलते मस्ती करते हुए हमने अपनी और मैंने यहाँ पर अपनी पाँचवी पिकनिक मनाई। हमारे यहाँ मनोरंजन के साधन बहुत कम हैं सो हम यूँ ही कभी पिकनिक, कभी मेला (अन्नपूर्णा), कभी नवरात्रियों में गर्बा,रावण दहन,गुजराती नव वर्ष की पार्टी,अंग्रेजी नव वर्ष की पार्टी,मिलकर होली खेलने आदि का आयोजन कर अपना मन बहलाव व मेल मिलाप करते रहते हैं। ३१ को नव वर्ष का आयोजन होगा,(हो गया, अब मेरी पोस्ट करने के आलस के चक्कर में वह तो रुका नहीं ) जिसमें हम परिवार सहित जाएँगे(गए)। फिर एक दिन महिला मंडल में भी इसका आयोजन होगा। बस ऐसे ही हँसते,खेलते,मिलते मिलाते जीवन का एक और वर्ष निकल जाएगा।
घुघूती बासूती
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बढिया । इस पिकनिक पर आधारित टेस्ट भी लिया जा सकता है । गृह-कार्य में ८.५/१०
ReplyDeleteहमारे जमाने में चित्र कहाँ लगा पाते थे !
बहुत सुंदर लगी आप की यह पिकनिक, ओर आप ने बहुत सुंदर ढंग से विवरण भी दिया, धन्यवाद
ReplyDeleteअरे हम तो ९.५ अंक पा ही पा जाते, परन्तु वह क्या हुआ, सबसे बेहतरीन चित्र, छुकछुक गाड़ी के और रंग बिरंगे भवन आदि के तो ब्लॉग पर डाले, परन्तु लगे ही नहीं।:( (हम तो और बढ़िया लिखते पर मास्साब ने कॉपी खींच ली की तर्ज पर ! :D )
ReplyDeleteघुघूती बासूती
बहुत लाजवाब रही आपकी पिकनिक और खास तौर पर लजीज खाना. घर के बाहर पिकनिक मे कुछ भी खाओ, कितना आनन्द आता है. अगली पार्टि के विवरण का इन्तजार करते हैं.
ReplyDeleteरामराम.
घुघूती जी नमस्कार,
ReplyDeleteआप मुझसे ये बताओ कि मांगरौल है कहाँ पर. ऐसी कौन सी जगह है जो दिल्ली से सौ किलोमीटर दूर है और मुझे नहीं पता.
जमाये रहियेजी।
ReplyDeleteअरे भाई, मैंने कब कहा मैं दिल्ली में रहती हूँ ? दिल्ली में रहती तो क्या छोटी जगह कहती , मनोरंजन के साधन नहीं हें कहती? यह जगह सौराष्ट्र, गुजरात के समुद्र तट के पास है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
बहुत अच्छा करती है आप की महिला मंडली...जीवन में ऐसे छोटे लेकिन महत्वपूर्ण जगहों का भ्रमण उल्ल्हास भर देता है...रोज मर्रा की ऊब से छुटकारा मिलता है सो अलग....चलिए आप के साथ हम पाठकों की भी पिकनिक हो गई...
ReplyDeleteनीरज
आप की पिकनिक बहुत अच्छी रही। आप ने अच्छा, सुंदर स्थान चुना।
ReplyDeleteनए साल की बहुत बहुत शुभ कामनाएँ।
waah.....picnic me to hum bhi mazaa le liye,bahut achhi rahi picnic
ReplyDeleteham bhi jaa rahe hai ji .ek hafte ki picnic par banglore..aapki bhi shaandar hai.
ReplyDeleteभाई आपकी पिकनिक यात्रा पढ़ कर हमारी भी पिकनिक पर जाने की इच्छा होने लगी है . सचित्र बढ़िया पोस्ट.
ReplyDeleteये तो सचमुच बड़ी ललचाने वाली पिकनिक रही -लजीज व्यंजन और सुमुखियों की टोली ! वाह जमीन पर ज्न्नत ! आगे भी आप सभी की पिकनिक चलती रहे -शुभकामनाएं !
ReplyDeleteबहुत सुंदर.......अच्छा लगा पढ़ कर.....
ReplyDeleteAap ke sath is picnik mai bara maza aaya aur mujhe apne bhi bachpan ki picnic yaad aa gayi.
ReplyDeleteaap ke likhne ka andaz achha hai.
ये सब इतना सविस्तार बतलाने का बहुत शुक्रिया -
ReplyDeleteमूँग की दाल का हलवा
आहाहा..और ऊँधियुँ भी ?
क्या खुशबु आ रही है !!
बस्स मज़ा आ गया ..
यह पिकनिक बहुत मनोरँजक लगी जी
घुघूती जी,
आपको सपरिवार नव वर्ष मेँ अनेकोँ शुभकामनाएँ तथा आपकी लेखनी यूँही चलती रहे यह शुभकामना सहित बहुत स्न्हे सहित,
- लावण्या
सुन्दर! ऐसे ही पिकनिक मनाती रहें।
ReplyDeleteअरे वाह, नए साल की इससे अच्छी सामाजिक शुरूआत कहाँ सम्भव थी.
ReplyDeleteइस पिकनिक-रपट के लिखने का आपका अंदाज कुछ यूं बना है कि ब्लौग-पृष्ठ से भी दाल-रायते और गुजराती ऊँधिया की महक यहाँ तक चली आयी है....
ReplyDeleteथोड़ा सा तो हम भी घूम लिए.....मज़ा आ गया भई....सच....!!
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