Monday, November 24, 2008

इक और विष का प्याला

अपने जीवन में इतना कुछ
इन आँखों ने देखा परखा है,
होता है अन्याय स्त्री पर
बचपन से देखा समझा है।


इतना कि वह सब बहता है
रग रग में बन कर हाला,
कमी है तो आओ ले आओ
इक और विष का प्याला !


घुघूती बासूती

27 comments:

  1. इतना कि वह सब बहता है
    रग रग में बन कर हाला,
    कमी है तो आओ ले आओ
    इक और विष का प्याला !


    बहुत गहरी वेदना की अभिव्यक्ति है ! शुभकामनाएं !

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  2. होता है अन्याय स्त्री पर
    बचपन से देखा समझा है।

    हमने भी देखा है... शायद समझा आप से थोड़ा कम !

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  3. आपसे सहमत हूँ सौ प्रतिशत .

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  4. बहुत बढ़िया लिखा है आपने.
    पता नहीं कब तक होता रहेगा.

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  5. बहुत गहरी बात!!

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  6. aapane stri jivan ki vyatha ko...sunder aur uchit shabdon mein dhhala hai!...thanks for visit and nice comment too!

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  7. इधर उधर अन्याय होते जरूर देखा है.

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  8. बहुत बढ़िया ...

    कमी है तो आओ ले आओ
    इक और विष का प्याला !

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  9. यह वेदना और नैराश्य आसपास पर्याप्त दीखता है। पर परिदृष्य बदलता नजर नहीं आता। :(

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  10. Anonymous6:46 pm

    sahi kaha aaj hi ye paristithi badali nahi,bahut gehre marmik bhav dard ka ehsaas dila gaye

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  11. देखा भी है, समझा भी है, नासमझी में कभी किया भी है, उस का पश्चाताप भी किया है, और उस अन्याय को समाप्त करने को लड़े भी हैं और लड़ते भी रहेंगे, जब तक संभव है।

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  12. स्‍कूल के दिनों में महादेवी वर्मा की एक कविता पढ़ी थी 'मैं नीर भरी दुख की बदली'..वह याद आ गयी।

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  13. आपके अंदर के आक्रोश को व्यक्त करती सी लगीं ये पंक्तियाँ !

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  14. भारतीय परम्परा में जो विषपान करके अमृतदान करता है वह आराध्य है -आपकी कविता उस लीक से हट कर है !

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  15. लगा आपने दिल की बात कह दी ..इ स्वामी के ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी पढ़ी थी ..तब से धन्यवाद देना चाहती थी इस बेबाक अभिव्यक्ति के लिए.

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  16. बहुत दिनों बाद पढ़ा आपको...एक बेहद शशक्त रचना...
    नीरज

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  17. Anonymous7:59 am

    bahut sundar, such hai, ek shiv ne piya tha aur ek yehan

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  18. शायद इसीलिए कहा गया है- जीवन है अगर जहर, तो पीना ही पडेगा।

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  19. ह्म्म मतलब ये कि आपका चिंतन-मनन जारी ही है।
    गलत बात, आप आराम फरमाओ फिलहाल तो बस :)

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  20. आपबीती या जगबीती पर केन्द्रबिन्दु तो नारी ही है।

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  21. कविता बहुत सुंदर है मगर सच यह है कि अन्यायी सिर्फ़ कमज़ोर को दबाते हैं. अबला पर अन्याय करने वाले अनेकों मिल जायेंगे मगर दुर्गा को देख वही अन्यायी ज़मीन पर लोटते हैं.

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  22. हो प्याला गर गरल भरा भी
    तेरे हाथों से पी जाऊं
    या मदिरा का प्याला देना
    मैं उसको भी पी पाऊँ
    प्यार रहे बस अमर हमारा
    मैं क्यों न फ़िर मर जाऊं

    यह मेरी तरफ़ सी जोड़ने का दुस्साहस है
    आपकी रचना बेजोड़ है

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  23. aap ki kavita hamesha anupam hoti hai...ye bhi hai.

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  24. कम शब्दों में आपने कितनी बड़ी व्यथा कह दी है.....

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