अपने जीवन में इतना कुछ
इन आँखों ने देखा परखा है,
होता है अन्याय स्त्री पर
बचपन से देखा समझा है।
इतना कि वह सब बहता है
रग रग में बन कर हाला,
कमी है तो आओ ले आओ
इक और विष का प्याला !
घुघूती बासूती
Monday, November 24, 2008
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इतना कि वह सब बहता है
ReplyDeleteरग रग में बन कर हाला,
कमी है तो आओ ले आओ
इक और विष का प्याला !
बहुत गहरी वेदना की अभिव्यक्ति है ! शुभकामनाएं !
bahut achche
ReplyDeleteहोता है अन्याय स्त्री पर
ReplyDeleteबचपन से देखा समझा है।
हमने भी देखा है... शायद समझा आप से थोड़ा कम !
आपसे सहमत हूँ सौ प्रतिशत .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने.
ReplyDeleteपता नहीं कब तक होता रहेगा.
बहुत गहरी बात!!
ReplyDeleteaapane stri jivan ki vyatha ko...sunder aur uchit shabdon mein dhhala hai!...thanks for visit and nice comment too!
ReplyDeleteइधर उधर अन्याय होते जरूर देखा है.
ReplyDeletesundar abhivyakti
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteकमी है तो आओ ले आओ
इक और विष का प्याला !
यह वेदना और नैराश्य आसपास पर्याप्त दीखता है। पर परिदृष्य बदलता नजर नहीं आता। :(
ReplyDeletesahi kaha aaj hi ye paristithi badali nahi,bahut gehre marmik bhav dard ka ehsaas dila gaye
ReplyDeleteदेखा भी है, समझा भी है, नासमझी में कभी किया भी है, उस का पश्चाताप भी किया है, और उस अन्याय को समाप्त करने को लड़े भी हैं और लड़ते भी रहेंगे, जब तक संभव है।
ReplyDeleteस्कूल के दिनों में महादेवी वर्मा की एक कविता पढ़ी थी 'मैं नीर भरी दुख की बदली'..वह याद आ गयी।
ReplyDeleteआपके अंदर के आक्रोश को व्यक्त करती सी लगीं ये पंक्तियाँ !
ReplyDeleteभारतीय परम्परा में जो विषपान करके अमृतदान करता है वह आराध्य है -आपकी कविता उस लीक से हट कर है !
ReplyDeleteलगा आपने दिल की बात कह दी ..इ स्वामी के ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी पढ़ी थी ..तब से धन्यवाद देना चाहती थी इस बेबाक अभिव्यक्ति के लिए.
ReplyDeleteआखिर ...कब तक ? :-(
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद पढ़ा आपको...एक बेहद शशक्त रचना...
ReplyDeleteनीरज
bahut sundar, such hai, ek shiv ne piya tha aur ek yehan
ReplyDeleteशायद इसीलिए कहा गया है- जीवन है अगर जहर, तो पीना ही पडेगा।
ReplyDeleteह्म्म मतलब ये कि आपका चिंतन-मनन जारी ही है।
ReplyDeleteगलत बात, आप आराम फरमाओ फिलहाल तो बस :)
आपबीती या जगबीती पर केन्द्रबिन्दु तो नारी ही है।
ReplyDeleteकविता बहुत सुंदर है मगर सच यह है कि अन्यायी सिर्फ़ कमज़ोर को दबाते हैं. अबला पर अन्याय करने वाले अनेकों मिल जायेंगे मगर दुर्गा को देख वही अन्यायी ज़मीन पर लोटते हैं.
ReplyDeleteहो प्याला गर गरल भरा भी
ReplyDeleteतेरे हाथों से पी जाऊं
या मदिरा का प्याला देना
मैं उसको भी पी पाऊँ
प्यार रहे बस अमर हमारा
मैं क्यों न फ़िर मर जाऊं
यह मेरी तरफ़ सी जोड़ने का दुस्साहस है
आपकी रचना बेजोड़ है
aap ki kavita hamesha anupam hoti hai...ye bhi hai.
ReplyDeleteकम शब्दों में आपने कितनी बड़ी व्यथा कह दी है.....
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