ऐसा क्या होता है
त्वचा के स्पर्श में
जो न करके भी
मन को छू जाता है
जिसकी कर कल्पना
रोमांच हो जाता है ?
स्पर्श, त्वचा का
या मन का
सहला जाता है
कैसा भी हो विपरीत समय
मन के कोमल कोनों को
बहला जाता है ।
कभी निःशब्द रात में
व्याकुल साये सी
गहराती, स्याह आत्मा को
बन उषा किरण
एक आत्मिक स्पर्श
जगमगा जाता है ।
कभी आत्म मंथन के
आत्मघाती कमजोर क्षणों में
बन ओस के कण
झुलसी आत्मा को
जीवन अमृत से
नहला जाता है ।
घुघूती बासूती
Monday, November 10, 2008
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कभी आत्म मंथन के
ReplyDeleteआत्मघाती कमजोर क्षणों में
बन ओस के कण
झुलसी आत्मा को
जीवन अमृत से
नहला जाता है ।
sunder abhivyakti haen mam aap ko meet mae is kiya .
ghughuti jee,
ReplyDeletebada hee maarmik sparsh tha ye, yaad rahegaa smritiyon mein. dhanyavaad.
कभी आत्म मंथन के
ReplyDeleteआत्मघाती कमजोर क्षणों में
बन ओस के कण
झुलसी आत्मा को
जीवन अमृत से
नहला जाता है ।
बहुत सुंदर और सशक्त अभिव्यक्ति !
सुन्दर
ReplyDeleteकभी निःशब्द रात में
ReplyDeleteव्याकुल साये सी
गहराती, स्याह आत्मा को
बन उषा किरण
एक आत्मिक स्पर्श
जगमगा जाता है ।
बहुत सुंदर लगा यह ....
एक कोमल एहसास का सुंदर चित्रण !
ReplyDeleteस्पर्श,
ReplyDeleteएक माँ के वात्सल्य का,
एक पिता के स्नेह का,
एक भाई के सम्बल का,
एक बहन की आत्मीयता का,
एक मित्र के सौहार्द का,
कितना अलग सा होता है।
या, वह विलक्षण स्पर्श
प्रियतम के प्रेम का
जिसमें सब कुछ समाया है
सारी दुनिया
सिमटती सी लगती है जहाँ...
आदरणीया घुघूती जी,
आप से मुझे बहुत प्रेरणा मिलती है।
प्रणाम्...।
बहुत अच्छा ,स्पर्श का सही चित्रण।
ReplyDeleteनन्हा बच्चा बिन बोले तभी तो जान लेता है माँ का स्पर्श....
ReplyDeleteह्रदय स्पर्शी !
ReplyDeleteकभी निःशब्द रात में
ReplyDeleteव्याकुल साये सी
गहराती, स्याह आत्मा को
बन उषा किरण
एक आत्मिक स्पर्श
जगमगा जाता है ।
बहुत अच्छा स्पर्श
भौतिक स्पर्श को आत्मिक स्पर्श का सुंदर टच दिया गया है और ये पंक्तियॉं तो लाजवाब हैं-
ReplyDeleteकभी आत्म मंथन के
आत्मघाती कमजोर क्षणों में
बन ओस के कण
झुलसी आत्मा को
जीवन अमृत से
नहला जाता है ।
bahut sunder rachana
ReplyDeleteशायद इसलिए क्योंकि हम सभी इस दुनिया का पहला अनुभव मां के स्पर्श से ही करते हैं. स्पर्श ही बताता है अपने और परायों की परिभाषा.
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण और आत्म मँथन से उपजी कविता पसँद आई
ReplyDeleteस स्नेह,
- लावण्या
sparsh ka sundar ehsaas bahut khubsurat
ReplyDeleteशुक्रिया1 बढ़िया कविता के लिए बधाई1 कृपया घुघूती बासूती का अर्थ बताये?
ReplyDeleteऐसा क्या होता है
ReplyDeleteत्वचा के स्पर्श में
जो न करके भी
मन को छू जाता है
जिसकी कर कल्पना
रोमांच हो जाता है ?
स्पर्श, त्वचा का
या मन का
सहला जाता है
कैसा भी हो विपरीत समय
मन के कोमल कोनों को
बहला जाता है ।
जीवन के अभूतपूर्व यथार्थ से परिचित कराती कविता
ऐसा क्या होता है
ReplyDeleteत्वचा के स्पर्श में
जो न करके भी
मन को छू जाता है
जिसकी कर कल्पना
रोमांच हो जाता है ?
स्पर्श, त्वचा का
या मन का
सहला जाता है
कैसा भी हो विपरीत समय
मन के कोमल कोनों को
बहला जाता है ।
जीवन के अभूतपूर्व यथार्थ से परिचित कराती कविता
आत्मिक स्पर्श!बहुत खूब!
ReplyDeleteबहुत सुंदर.... अच्छी रचना.
ReplyDeleteबहुत सुंदर!
ReplyDeletebhavana mann ko sparsh kargai...
ReplyDeleteबहुत सुंदर....! हृदय तल को छूने वाले भाव...!
ReplyDeleteसिद्धार्थ जी ने कविता पर जैसे एक बिंदी और लगा कर मान १० गुना कर दिया हो....!
बहुत ही सुंदर कविता ,
ReplyDeleteकभी आत्म मंथन के
ReplyDeleteआत्मघाती कमजोर क्षणों में
बन ओस के कण
झुलसी आत्मा को
जीवन अमृत से
नहला जाता है ।
अद्भुत! शब्द नही हैं कुछ भी कहने को,आपके शब्दों का स्पर्श भी आत्मिक सुख प्रदान करता है, सचमुच बेमिसाल है...
बहुत सुंदर....
ReplyDeletemain fir fir se pahunchi unhi sparsh me chhano me jahan pratyaksh aur sniriti dono ke sparsh se main hi khil rahi thi...
ReplyDeleteatyant sparshik....
हाँ सच तो है....ही वरना कौन है जो आपके मुंह से इतनी प्यारी-प्यारी बातें कहला जाता है...और हमें भी इन उदगारों की रिमझिम फुहारों से नहला जाता है....
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