बगीचे में था
एक फलदार नींबू का पेड़
रसदार नींबुओं से लदा
एक विशाल वृक्ष,
परन्तु
उसकी बूढ़ी टहनियों को
अन्दर ही अन्दर से
दीमक खा रहे थे
बहुत इलाज कराए
एक डाली सूख ही गई ।
फिर जब आया वर्षा का मौसम
तेज हवाएँ उसे डगमगाने लगीं,
मैंने एक अनाम वृक्ष की
सूखी लकड़ी का टेका बना
दिया उसको सहारा ।
आधी वर्षा ॠतु को
तो वह झेल गया
फल भी देता रहा,
दो महीने घर से बाहर रही
लौट कर आई तो देखा
नींबू का वृक्ष तो
सूखकर गिर चुका था
परन्तु उस अनाम वृक्ष की
वह सूखी टहनी
नींबू की टेका,
जड़ें जमाकर
हरे पत्तों से लदी
लहलहा रही थी।
विचित्र है प्रकृति का खेल
विसंगति तो देखो
बैसाखियाँ चल पड़ती हैं
पाँव जड़ हो जाते हैं ।
घुघूती बासूती
Friday, October 24, 2008
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Kya baat hai ...Deepawali ki shubh Kaamna Sa pariwaar tyohar ka anand lijiyega.
ReplyDeletesa sneh,
-Lavanya
सुंदर रचना/जीवन में आशा का संचार करती हुई/दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें/
ReplyDeleteबात हीरा है बात मोती है।
ReplyDeleteबात लाखों की लाज खोती है।
बात हरएक बात को नहीं कहते,
बड़ी मुश्किल से बात होती है।
नयी आश जगाने वाली रचना है।
दीपावली की शुभकामनाएँ।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
आनन्द आ गया इतनी गहरी रचना पढ़ कर.
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
विचित्र है प्रकृति का खेल
ReplyDeleteविसंगति तो देखो
बैसाखियाँ चल पड़ती हैं
पाँव जड़ हो जाते हैं ।
very nice and very apt
sir jee baisakhi ko hatho ka sahara hota hai, jis ko majbut sahara mil jaye wah jab tak dam ho aage badta hee hai. agar hath majbuti se baisakhi nahi pakdengi to baisakhi ke sath khud bhee gir jayega
ReplyDeleteनीम्बू के पेड़ और बैसाखी वाला अनुभव हमारे यहां भी हो चुका है। बढ़िया, सीडलेस, रसदार नीम्बू हुआ करते थे। दीमक ले गईं। बैसाखी छोड़ गयीं।
ReplyDeleteविचित्र है प्रकृति का खेल
ReplyDeleteविसंगति तो देखो
बैसाखियाँ चल पड़ती हैं
पाँव जड़ हो जाते हैं ।
गहरे भाव लिए बहुत सुंदर रचना लगी यह ..दीपावली की बधाई
जिजिविषा.
ReplyDeleteगहरे भाव ... !
ReplyDeleteविचित्र है प्रकृति का खेल
ReplyDeleteविसंगति तो देखो
बैसाखियाँ चल पड़ती हैं
पाँव जड़ हो जाते हैं ।
ठीक कहा ......संजय जी.ने .जिजीविषा
bahut sundar
ReplyDeleteविचित्र है प्रकृति का खेल
ReplyDeleteविसंगति तो देखो
बैसाखियाँ चल पड़ती हैं
पाँव जड़ हो जाते हैं ।
waaah .....ya kaha hai....!
कविता सुंदर, लेकिन उसके पहले चित्र- लाजवाब। एक ही पौधे के पत्तों में इतने, और विलक्षण रंग!!!
ReplyDeleteबहुत गंभीर भाव शब्दों का सहज प्रवाह
ReplyDeleteसुखमय अरु समृद्ध हो जीवन स्वर्णिम प्रकाश से भरा रहे
दीपावली का पर्व है पावन अविरल सुख सरिता सदा बहे
दीपावली की अनंत बधाइयां
प्रदीप मानोरिया
Bahut badiya, diwali ki hardik subhkamnayein.
ReplyDeleteमूरख को तुम राज दियत हो, पंडित फिरत भिखारी, संतों, करम की गति न्यारी (मीरा)
ReplyDeleteआपको दीवाली की बहुत बधाई!
Bahut hi sunder kavita hai.
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनाएं,
ReplyDeleteएक संकल्प लें कि सभी को खुशी देकर ग़म का अँधेरा मिटायें.
yuN to aapka lekhan utkrist hai..lekh bhi padhe or kavitayen bhi.
ReplyDeleteaapke parivesh ki jhalak aapke lekhan mein dikhti hai.
ye kavita kuch zuda si lagii ..gahre saar liye sundar shabd .
yakinan kabil-e-daad ..bandhaii swikaren.