ममतामयी माँ
लावण्यमयी माँ
त्यागमयी माँ
गरिमामयी माँ
सौम्या माँ
साड़ी में लिपटी माँ
बिन्दिया वाली माँ
लम्बे काले बालों वाली माँ।
आज की सफेद बालों वाली माँ
बिन बिन्दिया वाली माँ
बिन चरयो वाली माँ
बिन चूड़ी वाली माँ
बिन बिछिये वाली माँ
हल्के रंग पहनने वाली माँ
बैंगन, उरद ना खाने वाली माँ
हल्दी कुमकुम में ना जाने वाली माँ
दाँए हाथ में मौली बँधवाने वाली माँ।
दुर्भाग्यवती माँ
पिताजी की पत्नी माँ
पिताजी के नाम से जानी जाने वाली माँ
पिताजी की पूर्व सौभाग्यवती माँ
पिताजी की विधवा माँ
मेरे भाई की माँ
मेरे भतीजे की दादी माँ ।
हाँ, मेरी भी माँ
मेरी माँ के रूप में ना जानी जाने वाली माँ
मेरी बच्चियों की भी नानी माँ
उनकी नानी के नाम से ना जानी जाने वाली माँ
मेरे नाना की बेटी मेरी माँ
मेरे मामा की बहन मेरी माँ
मेरी मौसियों की भी बहन मेरी माँ
उनकी बहन के नाम से ना जानी जाने वाली माँ।
आज जब मंदिर जाती हो
या जब घर में पूजा होती है
तो क्या आशीर्वाद देते हैं
पंडितजी तुम्हें माँ ?
क्या अचानक सौभाग्यवती भवः
की जगह बुद्धिमती भवः कहते हैं ?
या फिर कहते हैं चिरंजीवी भवः ?
पूरे जीवन इस आशीर्वाद के बिन
तुम जीयी और खूब लम्बी उम्र जीयीं
पिताजी तो चिरंजीवी भवः सुनते सुनते चले गए
और तुम सौभाग्यवती सुनते सुनते
दुर्भाग्यवती बन गईं।
तुम्हें पुत्रवती भवः के आशीर्वाद भी खूब मिले होंगे
किन्तु फिर भी तुम्हारी गोद में
मैं आ ही गई
तब तुम क्या रोई थीं माँ
या केवल उदास हुईं थीं ?
माँ, तुम्हारा तो नाम ही खो गया
याद नहीं कभी किसीने तुम्हें
तुम्हारे नाम से पुकारा हो
माँ, तुम्हारा तो व्यक्तित्व ही
पिताजी से था
क्या किसीने कभी तुमसे पूछा कि
तुम क्या चाहती हो ?
पढ़ना है या बालिका वधू बनना है
नौकरी करनी है या गृहणी बनना है
कितने बच्चों की माँ बनना है
माँ बनना भी है या नहीं
मैंने भी नहीं पूछा कि क्या
मैं तुम्हारी कोख में आ जाऊँ ?
बस आ गई।
और अब तुम्हारे जीवन के
ये अनुत्तरित प्रश्न मुझे कचोटते हैं
क्या ये सब प्रश्न
तुम्हारे मन में भी उठते थे?
या तुमने उनको दबाना सीख लिया था
या फिर उन्हें सुनना
अपनी ही आवाज को सुनना
बन्द कर दिया था
कभी कभी सोचती हूँ माँ
कि इक दिन शायद मैं भी
तुम सी हो जाऊँ
प्रश्न करना छोड़ दूँ
क्या प्रश्न करना छोड़कर तुम संतुष्ट हो?
क्या मैं संतुष्ट हो जाऊँगी
जब आँखें मूँदकर चलूँगी
पति से दस कदम पीछे
जब अपनी खोज करना छोड़ दूँगी
जब अपनी पहचान को ढूँढना छोड़ दूँगी
कुछ विक्षिप्त सी स्थिति होगी
जब खोए हुए स्वयं को
ढूँढना भी छोड़ दूँगी
एक मेरी निजता ही तो मेरी है
नाम किसी का
घर किसी का
पता किसी का
एक मैं ही तो मेरी अपनी हूँ।
घुघूती बासूती
Monday, August 11, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
क्या मैं संतुष्ट हो जाऊँगी
ReplyDeleteजब आँखें मूँदकर चलूँगी
पति से दस कदम पीछे
जब अपनी खोज करना छोड़ दूँगी
जब अपनी पहचान को ढूँढना छोड़ दूँगी
कुछ विक्षिप्त सी स्थिति होगी
जब खोए हुए स्वयं को
ढूँढना भी छोड़ दूँगी
एक मेरी निजता ही तो मेरी है
नाम किसी का
घर किसी का
पता किसी का
एक मैं ही तो मेरी अपनी हूँ।
mam
hats off to you for your continuous writing on such issues
kitni gahri baate samet li hai aapne is ek rachna mein..
ReplyDeleteबहुत बढिया रचना है।सही लिखा-
ReplyDeleteक्या मैं संतुष्ट हो जाऊँगी
जब आँखें मूँदकर चलूँगी
पति से दस कदम पीछे
जब अपनी खोज करना छोड़ दूँगी
जब अपनी पहचान को ढूँढना छोड़ दूँगी
कुछ विक्षिप्त सी स्थिति होगी
जब खोए हुए स्वयं को
ढूँढना भी छोड़ दूँगी
एक मेरी निजता ही तो मेरी है
नाम किसी का
घर किसी का
पता किसी का
एक मैं ही तो मेरी अपनी हूँ
बहुत संवेदन शील रचना है आप की....विलक्षण.
ReplyDeleteनीरज
बहुत ही अच्छा,
ReplyDeleteदुर्भाग्यवती माँ
पिताजी की पत्नी माँ
पिताजी के नाम से जानी जाने वाली माँ
पिताजी की पूर्व सौभाग्यवती माँ
पिताजी की विधवा माँ
मेरे भाई की माँ
मेरे भतीजे की दादी माँ ।
सुंदर.... बहुत ही बढ़िया
http://nitishraj30.blogspot.com
http://poemofsoul.blogspot.com
One of the finest post wht i ever gone thru in last 3years.... Simply Outstanding.
ReplyDeleteThanks
Rajesh Roshan
ममतामयी माँ
ReplyDeleteलावण्यमयी माँ
त्यागमयी माँ
गरिमामयी माँ
सौम्या माँ
साड़ी में लिपटी माँ
बिन्दिया वाली माँ
लम्बे काले बालों वाली माँ।
बहुत सुन्दर कविता। बधाई स्वीकारें।
बहुत मार्मिक रचना जो चिंतन को बाध्य करती है. सोच रही हूँ बराबर साथ चलते हुए भी अपनी निजता की तलाश चलती रहती है.
ReplyDeleteमार्मिक...
ReplyDeletebhut gahari rachana. ati uttam. jari rhe.
ReplyDeleteहम सब के मन की बात कह दी आपने अपनी कविता में ,वो भी कितने सरल ढंग से.इसीलिये मैं बार बार आपके चिट्ठे पर आती हूं,कुछ पाने के लिये,कुछ बांटने के लिये.मेरा प्रणाम स्वीकार करें.
ReplyDeleteमाँ से बेटी का संवाद जो शायद खुद भी माँ हो चुकी है। अदभुत कविता है। बधाई।
ReplyDeleteसुंदर भाव और सच्ची बात लिख दी है आपने इस रचना में .बेहद पसंद आई यह
ReplyDeleteक्या किसीने कभी तुमसे पूछा कि
ReplyDeleteतुम क्या चाहती हो ?
पढ़ना है या बालिका वधू बनना है
नौकरी करनी है या गृहणी बनना है
कितने बच्चों की माँ बनना है
माँ बनना भी है या नहीं
मैंने भी नहीं पूछा कि क्या
मैं तुम्हारी कोख में आ जाऊँ ?
कितनी बड़ी बात आपने सहजता से कह दी.....?कितनी पीड़ा ओर सच है इनमे ?सच आपने भावुक कर दिया.....
संवेदनशील अद्भुत रचना- बहुत जबरदस्त!!बहुत मार्मिक!!
ReplyDeleteमर्म को छूती कविता।...बेहद भावपूर्ण।
ReplyDeleteकितना कुछ, कितने सवाल समेटे बैठी हैं आप अपने मन में।
ReplyDeleteयह सब अक्सर आपकी कविताएं बता जाती है।
स्पर्शी रचना।
" माँ ",
ReplyDeleteआपकी कविता के
एक एक शब्द मेँ जीवित है!
- लावण्या
adbhut
ReplyDeleteसुंदर, संवेदनशील मार्मिक .
ReplyDelete"माँ का प्यार एक चाँदनी, शीतल ठंडी छाँव
ReplyDeleteसुख सारे इस गोद में, दुःख जाने कित जाव."
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजितनी सुंदर, उतनी ही मार्मिक... When will we learn to respect the individuality where the children are not owned by the parents and the wife is not the shadow of her husband?
ReplyDeleteमाँ के विविध रूपों का भलाभांति वर्णन किया है।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर,सहज,सत्य अंतस को अभिभूत कर झकझोरने वाली पंक्तियाँ.....
ReplyDeleteमैं नतमस्तक हूँ.आभार इतना सुंदर लिखने के लिए....
मां , ये रूप भी है और कई और रूप भी है मां के
ReplyDeleteविलक्षण, मार्मिक एवं अद्भुत संवेदनाऒं का संगम..
ReplyDeleteमाँ के लिये जितना पढ़ा जाये कम है,आपने बहुत हृदय-स्पर्शी रचना लिखी है.
ReplyDeleteआपको व आपके पूरे परिवार को स्वतंत्रता दिवस की अनेक शुभ-कामनाएं...
जय-हिन्द!
एक मेरी निजता ही तो मेरी है
ReplyDeleteनाम किसी का
घर किसी का
पता किसी का
एक मैं ही तो मेरी अपनी हूँ।
इस निजता की अनुभूति
कोई साधारण बात नहीं है.
============================
माँ के निमित्त आपने
झखझोर देने वाली अभिव्यक्ति की है.
सच बहुत मर्मस्पर्शी....बहुत गहरी.
एक महाकाव्य जैसा कैनवास
उभर आया....यकीनन.
============================
डा.चन्द्रकुमार जैन
आपकी पोस्ट पहले भी पढी थीं | माँ पर लिखी यह कविता अच्छी लगी | नारी पर बहुत कुछ कहती है |
ReplyDeleteमाँ, यह एक शब्द ही काफ़ी है ! अपने आप में महाकाव्य !
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteक्या किसीने कभी तुमसे पूछा कि
ReplyDeleteतुम क्या चाहती हो ?
पढ़ना है या बालिका वधू बनना है
नौकरी करनी है या गृहणी बनना है
कितने बच्चों की माँ बनना है
माँ बनना भी है या नहीं
मैंने भी नहीं पूछा कि क्या
मैं तुम्हारी कोख में आ जाऊँ ?
बस आ गई।
adbhut rachna hai...sambhaal kar rakhne yogya.
शानदार कविता शब्द नही है कुछ भी कहने को , जो कुछ कह सकते थे आप कह चुकी है
ReplyDeleteहमने भी तो अपनी मां से ऐसे कितने सवाल पूछे और वो होठ का एक कोना थोड़ा सा हिलाकर चुप हो जाती और पूछने लगती रात की सब्जी या फिर कपड़ों के प्रेस होने के बारे में।
ReplyDeleteहमने भी तो अपनी मां से ऐसे कितने सवाल पूछे और वो होठ का एक कोना थोड़ा सा हिलाकर चुप हो जाती और पूछने लगती रात की सब्जी या फिर कपड़ों के प्रेस होने के बारे में।
ReplyDeleteanupam
ReplyDeleteदिल को छू गई।
ReplyDelete