Friday, August 08, 2008

वनफूल

मैं तो हूँ वनफूल पिया रे
नगरों में ना जी पाऊँगी,
तेरे कंक्रीट के उस वन में
मैं, वनफूल, न खिल पाऊँगी।

मैं तो हूँ घुघुति, चिड़िया पहाड़िन
तेरे मैदानों में न चहकूँगी
जलते, तपते उस देश में तेरे
मैं, वनफूल, कभी न महकूँगी।

मैं तो हूँ हिरणी उपवन की
तेरी काली सड़कों पर ना भागूँगी,
आपाधापी और भीड़ भाड़ में
मैं, वनफूल, कभी न रह पाऊँगी।

मैं तो हूँ जंगली फूल का पौधा
तेरे गमले में न बढ़ पाऊँगी,
तेरे उस फ्लैट की बाल्कनी में
मैं ,वनफूल, न मुसकाऊँगी।

मैं सुगन्ध मिट्टी की भीनी, सौंधी
काँच की बॉटल में न समाऊँगी,
तेरी मॉल व बहुमंजिला दुकानों में
मैं, वनफूल, न सुगन्ध बिखराऊँगी।

मैं अमरलता आम्रकुँजों की
नकली पेड़ों पर न लिपट पाऊँगी,
तेरी आलीशान सजी बैठक में
मैं, वनफूल, गुलदस्ता ना बन पाऊँगी।

मैं तो हूँ चंचल झरने की धारा
तेरे स्विमिंगपूल में न समा पाऊँगी,
तेरे महल की ऊँची दीवारों पर
मैं, वनफूल, बन तस्वीर न सज पाऊँगी।

मैं तो हूँ वनफूल पिया रे
तेरी महफिल में न सज पाऊँगी,
रह तेरी गगनचुम्बी अट्टालिका में
मैं, वनफूल, न इठला पाऊँगी।

घुघूती बासूती

15 comments:

  1. बहुत उम्दा रचना है घुघूति जी.

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  2. जो खुश्बु "वनफूल " मेँ है और प्राकृतिक छटा
    वो प्लास्टीक के पत्तोँ से सजे आधुनिक शहरोँ मेँ कहाँ ?
    बहुत सुँदर भाव लिये कविता है -
    स्नेह,
    -~~ लावण्या

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  3. नैसर्गिक आनन्द देती यह कविता विकास के नाम पर अंधी दौड़ में भागती-हाँफती जिन्दगी को शीतलता प्रदान करती है... सुन्दर।

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  4. मैं तो हूँ जंगली फूल का पौधा
    तेरे गमले में न बढ़ पाऊँगी,
    तेरे उस फ्लैट की बाल्कनी में
    मैं ,वनफूल, न मुसकाऊँगी।

    मुझे यह पंक्तियाँ बहुत ही अपनी सी लगी ..बेहद खुबसूरत लिखा है आपने

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  5. प्रकृति की सुन्दरता बिखेरती हुई बहुत प्यारी कविता...हमारा मन पंछी भी उड़ उड़ उस खूबसूरती को पाना चाहता है ..

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  6. आज़ादी की भी यही से सही अभिव्यक्ति

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  7. सुंदर!
    अति सुंदर!
    प्यारी कविता.

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  8. बहुत बढिया! प्यारी कविता!

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  9. बहुत खूब - शायद इसीको कहते हैं टेलीपैथी. आज मैं आपके ब्लॉग पर एक यह निश्चित करने ही आया था कि घुघूती किस चिडिया का नाम है. अर्थ भी पक्का हो गया और बोनस के रूप में इतनी सुंदर कविता भी मिल गयी.

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  10. मैं अमरलता आम्रकुँजों की
    नकली पेड़ों पर न लिपट पाऊँगी,
    तेरी आलीशान सजी बैठक में
    मैं, वनफूल, गुलदस्ता ना बन पाऊँगी।
    अपनी निजता की स्वीकारोक्ति और समर्पण भाव सुंदर बन पड़े हैं

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  11. bahut achchi..apni mitti ki khushbu ka ehsaas karati kavita...

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  12. बहुत ही सार्थक कविता.जिस नैसर्गिक सौन्दर्य को हम पीछे छोडते जा रहे हैं,विकास के नाम पर,उसे खूब सजाया है आपकी कविता में.

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  13. आज कल आप अपना अहसास कविताओं के जरिए उंडेल रही हैं। मुझे इस कविता की कई लाइनों ने आकर्षित किया है।
    मैं तो हूँ जंगली फूल का पौधा
    तेरे गमले में न बढ़ पाऊँगी,
    तेरे उस फ्लैट की बाल्कनी में
    मैं ,वनफूल, न मुसकाऊँगी।
    .........

    .........
    मैं तो हूँ चंचल झरने की धारा
    तेरे स्विमिंगपूल में न समा पाऊँगी,
    तेरे महल की ऊँची दीवारों पर
    मैं, वनफूल, बन तस्वीर न सज पाऊँगी।

    शुक्रिया

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  14. बहुत सुंदर रचना है.....एक दम मासूम ओर सच्ची प्राथना सी ....

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