मैं और मेरी सहेली लगभग सदा साथ रहते थे। एक बार हम मेरे घर की ओर जा रहे थे। हम आपस में बात कर रहे थे जिसमें ‘गंदा बच्चा’ शब्द आया। सामने से एक लम्बा सा, बच्चा ना दिखने वाला, लड़का आ रहा था । वह हमसे उलझ गया कि वह गंदा बच्चा नहीं है। हमने कितना कहा कि तुम्हें नहीं कहा परन्तु वह तो अड़ गया कि उसे ही कहा है। जब वह बिल्कुल नहीं माना तो मैंने कहा, "ठीक है, तुम्हें ही कहा था । अब क्या किया जाए ?" उपाय तो उसके भी पास कोई नहीं था। वह भन्नाता, झल्लाता अपने रास्ते, जो हमारे रास्ते पर ही पड़ता था, चला गया।
स्वाभाविक है कि उसके बाद से उसका नाम हमारे लिए गंदा बच्चा ही हो गया। उसको देखते से ही मन में यही शब्द आता था। यदि वह मुझे या मेरी सहेली को कभी दिखता तो हम कहते कि आज गंदा बच्चा दिखा था। हम ही क्या हमारी अन्य सहेलियों के लिए भी उसका यही नामकरण हो चुका था। दूर से भी कोई उसे आता देखता तो एक दूसरे को बता दिया जाता कि गंदा बच्चा आ रहा है।
एक बार हमारे कॉलेज में मेला था। हम सबके पास अलग अलग स्टॉल थे। लड़कियों के कॉलेज में मेला हो और शहर भर के लोग ना आएँ यह कैसे हो सकता था ? खूब भीड़ जमा थी। मेरी सहेली का घर पास ही था और उसके पास स्कूटी भी थी। सो जब किसी चीज की आवश्यकता पड़ी तो वह अपने घर से लाने के लिए स्कूटी पर चली गई।
रास्ते में एक राउन्ड एबाउट, ट्रेफिक आइलैंड पर स्कूटी घुमाने पर उसकी स्कूटी फिसलकर, स्किड हो गई। उसकी बाँह , घुटने आदि भी छिल गए और कपड़े गंदे हो गए व घुटनों से पैन्ट्स फट भी गईं। जब वह गिरी तो एक व्यक्ति उसे उठाने आया। उसने सहेली की स्कूटी पकड़ ली और स्कूटी को साथ लेकर उसको घर तक छोड़ आया। हाँ, आपने सही अनुमान लगाया, यह और कोई नहीं वही गंदा बच्चा था।
शायद उसने सच में यह सोचा कि हम उसे गंदा बच्चा कह रहे हैं या शायद हमसे बात करने के लिए उसने यह बहाना बनाया, पता नहीं। परन्तु जो भी हो वह एक अच्छा व्यक्ति था।
घुघूती बासूती
देखा गया है की अक्सर हमारे अनुमान इंसान की फितरत को लेकर ग़लत निकलते हैं......जो व्यक्ति अच्छा होता है वो हर हाल में अच्छा होता है.
ReplyDeleteनीरज
कुछ लोग मुफत ही बदनाम हो जाते हैं। शायद वह "गंदा बच्चा" उनमें से ही एक था।
ReplyDeleteवाकई कभी कभी हमारी निगाहे धोखा खा जाती है..
ReplyDeleteलेकिन एक बात समझ नही आई.. आपकी कॉलेज और स्कूटी??? आपने तो जब कॉलेज की होगी तब स्कूटी कहा होती थी:)
कई बार हम अनजाने ही ऐसी बातें कह जाते हैं और ये नहीं सोचते की वे बातें किसी को दुखी कर सकती हैं....हर गन्दा बच्चा अन्दर से शायद हम लोगों से भी अच्छा होता हो!
ReplyDeleteगलतफ़हमी मे कई बार ऐसा हो जाता है.आपका संस्मरण बहुत रोचक लगा.नामकरण भी कई लोगों का इसी प्रकार हो जाता है.हमारे एक मिलने वाले अपनी हर बात में लफ़डा शब्द का प्रयोग ज़रूर करते थे,अस्तु हम भाई बहनों ने उनको देखते ही कहना शुरु कर दिया था,देखो लफ़डा आ रहा है.
ReplyDeleteऐसा अक्सर होता है.
ReplyDeleteकुश जी, स्कूटी नहीं तो स्कूटी जैसा ही कोई वाहन, शायद कोई मोपैड जैसा वाहन ! वाहन के मामले में ट्राइसिकल से आगे नहीं जा पाई। सो ब्रान्ड पर मेरा कोई ध्यान नहीं जाता। मेरे लिए तो वाहन केवल दो पहिया, तिपहिया और चौपहिया होते हैं। चौपहिया में कार, जीप, ट्रक, बस, मिनी बस या कुछ ऐसे ही अन्तर कर पाती हूँ। अन्यथा सब मेरे लिए एक से ही हैं। अचानक से यदि पूछोगे कि मैं किस कार का उपयोग करती हूँ तो नहीं बता पाऊँगी।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
शुक्रिया घुघूती जी.. मुझे भी यही लगा था.. मगर थोड़ी शंका थी तो आपसे पूछ लिया.. और आपके त्वरित उत्तर ने हमे मोहित कर दिया.. धन्यवाद
ReplyDeleteइस पोस्ट को पढ़ रहा था तो धीरे धीरे डर मन में घर करता जा रहा था कि गंदा बच्चा अपने को गंदा बच्चा साबित ना कर दे.. लेकिन सच कह रहा हूं पढ़ कर बड़ा अच्छा लगा कि गंदे बच्चे ने आप लोगों के मन मस्तिष्क से गंदा बच्चे की छवि समूल निकाल दी..। इसे दादा-दादी अपने पोते-पोतियों को कहानी के रूप में सुना सकते हैं। और अंत में मोरल आफ द स्टोरी के रूप में बता सकते हैं कि आपकी छवि आपके कर्र्मो के साथ बनती है, पूर्व अवधारणा के तहत नहीं।
ReplyDeleteइस वाक्ये के लिए आपको बधाई।
हम कई बार जिसका नाम अपने मन में रख लेते हैं वह वही चित्र अखित्यार कर लेता है ..और वह भ्रम भी वही व्यक्ति ख़ुद ही तोड़ता है ..रोचल लगा इसको पढ़ना
ReplyDeletevakai bhut sahi hai ye. aesa aksar hamare sath ho jata hai. bhut badhiya laga lekh.
ReplyDeletebhut sahi. par aesa ho jata hai kabhi kabhi hamare sath.
ReplyDeletemujhe bhi mere sabhi tamil mitra sabhi "ganda ladka" kahte hain..
ReplyDeletemagar ve sabhi hindi me pahla shabd yahi sikhe hain.. isame meri koi galti nahi hai.. :D
kabhi -kabhi jo baat dikhati hai wah hakikat nahi hoti.
ReplyDeleteप्रेरक अनुभव.
ReplyDeleteसच है इंसान को पहचनाने में हम कभी-कभी किअनी बड़ी भूल कर बैठते हैं.
प्रेरक प्रसंग है। बहुत रोचक शैली में लिखा है। आनन्द आगया।
ReplyDeleteहोता है अक्सर... मेरे साथ भी एक बार हूआ था इस तरह, मै क्लास ८ मे पढती थी, और एक ५वी के बच्चे से झगडा हो गया, बहूत भयानक, और एक दिन मुसीबत मे उसने बहूत मदद की... एक ही इंसान के दो रूप देखने को मिल गये... एक ही इंसान कभी अच्छा लगता है, कभी गंदा भी लगता है।
ReplyDeleteसही है जी - हममें ही गन्दा बच्चा है और हममें ही अच्छा बच्चा।
ReplyDeleteसिर्फ़ प्रतिशत का ही फर्क है ! अच्छा और बुरा दोनों इंसान में ही है ! बहुत बढिया जी !
ReplyDeleteachcha anubhav ........
ReplyDeleteअच्छा है ऐसे छोटे छोटे सबक हमें जिंदगी का आइना दिखाते है ......
ReplyDeleteओर हाँ ....अपनी दोस्त से कहिये हेलमेट लगा कर चले ....
ReplyDeleteHappy Endings ho gayee jee ;-)
ReplyDeleteसिक्के दे दो पहलू होते हैं. जो दिख रहा हो जरूरी नहीं कि वो सही हो.
ReplyDeleteचलो अंत भला तो सब भला.
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ReplyDeleteसूरत और सीरत में बड़ा फ़र्क होता है, घूघुती ।
भगवान ऎसे ही थोड़े कह गये..
" भोली सूरत दिल के खोटे..नाम बड़े और दर्शन छोटे "
यदि वह अंत में गंदा बच्चा ही साबित होने वाला था...
तो आज आप यह प्रकरण कतई न लिखतीं, है ना ?
इसीलिए कहते हैं कि सोच-समझ कर और खुद के अनुभव से राय बनानी चाहिए। गंदे बच्चे से जो अनुभव मिला उससे उसे वह उस विशेषण का हकदार तो कतई नहीं बनता ।
ReplyDeleteकई बार हम गलती से ही सही किसी के बारे में ग़लत धारणा बना लेते हैं, लेकिन यह सच है कि जो सही होता है वोह एक न एक दिन अपने को सही साबित कर ही देता है. बहुत ही सुंदर संस्मरण है. आभार.
ReplyDeleteगन्दा बच्चा कह गयीं,दो सखियाँ अन्जान।
ReplyDeleteबढ़ी बतकही राह में, उलझ गये श्रीमान॥
उलझ गये श्रीमान, घोर आपत्ति जतायी।
गले पड़ा यह नाम, बात नाहक फैलायी॥
गिरी सखी‘सिद्धार्थ’,पड़ गया गहरा गच्चा।
मदद लिये जो दौड़ा,वह था‘गन्दा बच्चा’॥
रोचक प्रसंग है. ठीक ही कहा गया है: "Appearances are deceptive". मैं भी अपनी कहानी "खाली कप" में ऐसे ही किसी से मिला था बीस साल पहले.
ReplyDeleteबच्चा गंदा था ही नहीं वो तो आप की बातचीत ने बना दिया था.
ReplyDeleteउसने भी सिद्ध किया ना......
मनुष्य मूलतः परोपकारी होता है -इस सत्यकथा का वह पहलू पूरी तरह उजागर नही हुआ कि उक्त अनपेक्षित और अहेतुक व्यवहार का आप की सहेली और आप पर क्या प्रभाव पडा .
ReplyDeleteवाह, बच्चा तो अच्छा निकला। ;)
ReplyDeleteइस किस्से से चेख़व की एक कहानी याद आ गई जिसमें एक व्यक्ति अपनी नौकरानी से अपने किसी भी प्रकार के संबंध की न होने की सफ़ाई देते देते ख़ुद ही लोगों के मन में यह विचार पैदा कर देता है कि हो न हो उसका नौकरानी से कोई संबंध अवश्य है। :D
शुभम।