Monday, July 28, 2008

आतंकवादी क्या चाहते हैं?

भारतीयों के लिए आतंकवाद नया नहीं है। वर्षों से हम इसे झेल रहे हैं। आज तक हम आतंकवाद से निपटने के लिए कोई नीति नहीं बना सके। आज हमारे गृहमंत्री कह रहे थे कि वे योजना बना रहे हैं। अधिक सही यह कहना होगा कि वे योजना बनाने की योजना बना रहे हैं। क्या हमारा जीवन इतना सस्ता है? कितने जीवन जाने के बाद योजना बनाने की योजना बनेगी? क्या यह बात मंत्रीजी मृतकों, आहतों व उनके परिवारों को कह सकते हैं? हमारे देश में मंत्रियों व बड़े दलों के नेताओं के सिवाय किसी की जान की कीमत नहीं है। मानती हूँ कि आतंकवादियों को अपना निशाना चुनने की छूट होती है और इतने बड़े देश की हर गली का पहरा देना कठिन है। पुलिस और गुप्तचर विभाग का काम कठिन होता है, विशेषकर तब जब हमारे अपने कुछ देशवासी आतंकवादियों का साथ दे रहे हैं। जबतक आतंकवाद बाहर से ही आता था वे कभी भी भारत के कोने कोने में अपने अड्डे नहीं बना सके। अब जब यह हमारा अपना घरेलू उत्पाद बनता जा रहा है तो उनकी पहुँच भी हमारे आपके घर तक हो गई है। पुलिस का एक बड़ा हिस्सा नेताओं की सुरक्षा में लगा रहता है। पुलिस बल बढ़ाना तो दूर की बात है यहाँ तो ढेरों पद खाली पड़े रह जाते हैं। पुलिसकर्मी बहुत कम वेतन व सुविधाओं के साथ लम्बी पारी में काम करते हैं। न ही आतंकवाद पर कोई पारदर्शी नीति ही बनी है। परन्तु यह सब कारण तब समझ में आते यदि सोलह में से आधे बम भी बरामद कर निष्क्रिय कर दिये जाते।

कब तक हम सरकार के जागने की प्रतीक्षा करते रहेंगे? क्या हम स्वयं सचेत व जागृत नहीं हो सकते? क्या यह सम्भव नहीं है कि हमारे समाज के ही किन्हीं सम्मानित लोगों के अन्तर्गत हम सुरक्षा समितियाँ बनाएँ? किसी भी संदिग्ध व्यक्ति या गतिविधि की सूचना पुलिस को दी जाए। बस कानून को अपने हाथ में न लेने का ध्यान रखा जाए।

किसी समुदाय को दोष देना सबसे सरल होता है। यह गल्ती हम अक्सर कर देते हैं। हमें सबसे पहले यह सोचना होगा कि क्या विस्फोटक पदार्थ केवल हमारे समुदाय की जान लेता है। क्या सच में आतंकवादी को किसी धर्म या समुदाय से कोई वास्ता होता है? वह तो केवल अपने गुट में लोगों की संख्या बढ़ाना चाहता है। जब हम किसी समुदाय विशेष को दोषी मानते हैं तो हम उन्हें अपने से अलग कर देते हैं। आतंकवादी क्या चाहते हैं? क्या उनका उद्देश्य केवल यहाँ वहाँ सौ पचास लोगों को मारना व घायल करना होता है? क्या ऐसे वे हमें समाप्त करने की आशा करते हैं? क्या वे कुछ इमारतें ध्वस्त करके भारत को नष्ट कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं। उनका उद्देश्य तो केवल घृणा फैलाना है, दंगे करवाना है। ताकि वे हमें बाँट सकें। हममें आपसी संदेह पैदा कर सकें। दंगे ही वे तरीका हैं जिससे उन्हें नए साथी अपने दल के लिए मिलते हैं। हर दंगे से हममें से कुछ लोग समाज से दूर हो जाते हैं। यदि हम अपने देश, अपने समाज को बचाना चाहते हैं तो हमारा कर्त्तव्य है कि हम उन्हें अपने उद्देश्य में सफल न होने दें। समाज के हर नागरिक का कर्त्तव्य है कि आतंकवादियों को शह न दें, उन्हें किसी प्रकार की सहायता न दें अपितु पुलिस को उनकी खबर दें, चाहे वह हमारा कितना भी अपना ही क्यों न हो। यही एक तरीका है जिससे हम अपने समाज को सुरक्षित बना सकते हैं।

यह आतंक केवल हमें क्रोधित कर घृणा व दंगे फैलाने के लिए किया जा रहा है। याद रहे कि यदि हम बँट गए तो इसका कोई अंत नहीं है। आज हम धर्म के आधार पर बँटेंगे, कल जाति, भाषा, प्रदेश के नाम पर। फिर कुछ भी नहीं बचेगा, न देश न हम। यही तो आतंकवादियों का उद्देश्य है। क्या हम उन्हें सफल देखना चाहते हैं?

घुघूती बासूती

20 comments:

  1. Anonymous4:21 am

    आपके विचारों से पूरी तरह सहमत. किसी समुदाय विशेष को निशाना नहीं बनाना चाहिए. पर अगर कोई आतंकवाद में लिप्त या आतंकवादियों की सहायता करता पाया जाए. तो उसपर देशद्रोह की धाराओं के तहत आरोप तय किए जायें, उसकी हर ज्ञात चल अचल संपत्ति तुंरत कुर्क कर ली जाए. उसके परिवार वाले, नाते रिश्तेदारों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए, यहाँ तक की उन्हें बिजली, पानी, माकन, स्वस्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित कर दिया जाए. यानि दर दर की ठोकरें खाने पर मजबूर कर दिया जाए. फ़िर वह चाहे हिंदू हो या मुस्लिम या सिख या ईसाई.

    संतान के आतंकवादी निकलने पर माता-पिता को सज़ा देना क्या उचित होगा? पर दहेज़ विरोधी कानून में यह प्रावधान हो सकता है तो आतंकवाद विरोधी कानून में क्यों नहीं? कोई बेटा ऐसा नहीं होगा जो अपने माँ बाप को भीख मांगते देख न पिघले. इस्राइल की यही नीति है. इस तरह के कड़े क़ानून अपराधियों में खौफ पैदा करेंगे, जिससे वो आतंकवादी बनने से पहले हज़ार बार सोचेंगे. लंबे समय में ऐसे ही कड़े उपाय दहशतगर्दी मिटा पाएंगे, जैसे की पंजाब में गिल ने आतंकवाद को पटकनी दी थी. वरना भगवन मालिक!

    जब आप देश के खिलाफ युद्ध कर रहे हैं तो आपको कोई अधिकार नहीं है की आप देश की सुविधाओं-सहूलियतों का उपयोग करें.

    ReplyDelete
  2. आपका आभार ! आप हमारी तरफ आयीं वरन टटके और सारगर्भित विचार-श्रंखला से हम वंचित रह जाते.ये देश की बदकिस्मती है और क्या कहा जाए ...हमने आईने देखने छोड़ दिए हैं.
    आंतकवाद समाज-देश में जन्म क्यों ले पता है?
    इसकी जड़ें अपने घर में ही हैं ये ज़रूर मुमकिन है कि हवा-पानी इसी पड़ोस से मिल रहा हो!

    www.hamzabaan.blogspot.com पर पढें खतरे में इसलाम नहीं.

    ReplyDelete
  3. आपकी बात सही है - हमारे आपके लिए. पर जिनके परिजन गए हैं, क्या हम उनको यह सब समझा सकते है? सच्चाई यह है कि हमारे देश में सुरक्षा व्यवस्था भी वैसे ही चल रही है जैसे बाकी सारी व्यवस्थाएं - यानी भगवान्-भरोसे. बात-बात में बाहरी शक्ति, धार्मिक-साम्प्रदायिक पार्टी आदि को दोष देते रहने के बजाय अगर हम देश को शक्तिशाली, धीर, सहिष्णु और सचेत बनाएं तो शायद कुछ बात बने. पर ऐसा कैसे हो - हमारे नेताओं का काफिला चलने से पहले तो सारी सड़कें खाली करा ली जाती हैं - आम लोगों की जान की कीमत ही क्या है? हमले में नहीं मरेंगे तो किसी रईसजादे की गाडी के नीचे मर जायेंगे, भूख से बिलबिलाकर मरने वालों की भी कमी नहीं है वरना क़र्ज़ न चुकापाने पर आत्महत्या भी कर सकते है

    ReplyDelete
  4. बिल्कुल सही, आपकी बात से पूरी तरह से सहमत हूँ, जरूर हम लोग ये कर सकते हैं, बस जरुरत है एक initiative की, हिंद के अच्छा सोचने वालों की कमी नही है, बस एकजुट होने की जरुरत है ....

    ReplyDelete
  5. अभी एक अखबार ने अहमदाबाद विस्फोटों के अगले दिन उत्तर प्रदेश के कई शहरों में पुलिस सतर्कता और सावधानी व नागरिकों की जागरूकता का जायजा लेने के लिए नकली बम साइकिलों में लटकाकर अनेक सार्वजनिक स्थलों पर खड़े कराए। ये साइकिलें घण्टों लावारिस खड़ी रहीं लेकिन न तो किसी पुलिस वाले ने इसकी सुधि ली और न ही किसी आम नागरिक की निगाह उनपर गयी। यह उस दिन हुआ जिस दिन आतंकवादियॊं के अगले हमले की आशंका सबको थी।
    जब हम इतने लापरवाह हो सकते हैं तो हमारी vulnerability में कोई संदेह कैसा?

    ReplyDelete
  6. यह कार्य सिर्फ घृणा या आतंक फैलानें मात्र के लिए नही...यहाँ राजनितिज्ञों द्वारा अपनी रोटीयां सेंकना भी शामिल है।वर्ना इतनें लम्बे समय से इस दहशत की आग को बुझानें के लिए कोई ठोस कदम क्यूँ नही उठाएं गए?बस योजनाएं ही बनती रही हैं।वैसे आप के विचारों से भी पूर्ण सहमत हूँ।

    ReplyDelete
  7. Anonymous11:19 am

    यथार्थ लेख.आपके सभी विचारों से सहमति रखती हूं.हम सभी को सचेत और सतर्क रहने की ज़रूरत है .

    ReplyDelete
  8. केवल ,पुलिस ,प्रशासन या सरकार का काम सुरक्षा का नही है हम सभी को भागीदारी समझनी होगी ?दलों को" दलगत राजनीति "से ऊपर उठना होगा ओर वोट बेंक के मोह से दूर....कानून को न केवल कडा करने बल्कि उसे समुचित ओर न्यायपूर्ण तरीके से लागू भी करने की जरुरत है .सभी लोगो ने कुछ न कुछ विचार दिए ही है.....

    ReplyDelete
  9. घुघूती जी आपकी बातों से पूरी तरीके से सहमत हूं। हमें ही एकजुट होना होगा

    @डाक्टर
    यह क्या लिखा आपने!! राजनेता, राजनीति से ऊपर.. पक्का कह रहा हूं या तो मैं इन नेताओं को नहीं समझ पा रहा हूं या फिर आपसे कहीं चूक हो रही है। यह नेता लोग राजनीति से ऊपर उठकर बात करेंगे.. काश! भारत में यह दिन आए.. मेरे मरने के बाद भी आ जाए.. मैं जहां भी रहूंगा, खुश हो जाऊंगा।
    हां, हमारा समाज जरूर एक हो सकता है। इसके लिए मुझे आपको, हर एक को मेहनत करनी होगी। अपना सोच बदलना होगा। सहयोग करना होगा..

    ReplyDelete
  10. "आतंक केवल हमें क्रोधित कर घृणा व दंगे फैलाने के लिए किया जा रहा है।"

    बम जहाँ कहीं भी फटे हो. हैदराबाद,जयपुर,अहमदाबाद...मन्दीर या मस्जीद या मजार में...दंगे कब हुए?

    बम दंगे फैलाने के लिए नहीं फोड़े जा रहे है, इसलिए नेताओ से लेकर नागरीको तक को कम से कम इस एक कारण को तो सूची से नीकाल देना चाहिए. संकटकाल में लोग लड़ते नहीं, एक होते है.

    बाकी जो भी लिखा है...सहमती है.

    ReplyDelete
  11. आपने पूरी तरह सही लिखा है.

    ReplyDelete
  12. आतंक के खिलाफ हमारी एक जुटता ही आतंकियो को तोड सकती है....

    आपके विचारो से सहमत हूँ।

    ReplyDelete
  13. आपके विचारो से सहमत हूँ. हम सभी को समवेत प्रयास करने होंगे. मात्र प्रशासन से अपेक्षा करके बैठे रहने से कुछ भी न होगा. सब अपनी भागीदारी समझें, सजगता दिखायें और अपने पूर्ण प्रयास करें, निश्चित ही स्थितियाँ सुधरेंगी. बहुत अच्छा आलेख.

    ReplyDelete
  14. हमारी भी सहमति है आपसे. प्रयास जनता और सत्ता दोनों को करने होंगे. आतंक तब तक आतंक होता है जब तक दूसरे आतंकित होते है. सब एकजुट होकर मुकाबला करें तो कुछ हो सकता है. बड़िया प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.

    ReplyDelete
  15. आपके लिखे लेख से पूरी तरह से सहमत हूँ ..और यह सब देख कर बहुत स्तब्ध कर देता है .कब ख़तम होगा या सब पता नही

    ReplyDelete
  16. Kya Kahe...... Pat anhi sale chahte kya hai... mujhe to samajh hi nahi aa raha hai ki Iska upaay kya hai?? kuch Sujaaw dijiye


    New Post :
    Jaane Tu Ya Jaane Na....Rocks

    ReplyDelete
  17. "किसी समुदाय को दोष देना सबसे सरल होता है। यह गल्ती हम अक्सर कर देते हैं।"
    मैं आपसे सहमत हूँ.
    बहुत ही विचारोत्तेजक लेख लिखा आपने.
    हम सब अगर आपकी तरह ही सोचें तो जरुर ही समस्या का हल निकल आएगा.
    साधुवाद.

    ReplyDelete
  18. मैं सबके विचारो से सहमत हूँ, लेकिन क्या हम जो सोच रहे है वही हल है,
    मेरा एसा मानना है की ऐसै हालत में सरदार पटेल या इंदिरा गाँधी को होना चाहिए था,
    किसी में कुछ करने की हिम्मत नही होती, हालत दिन ब दिन बिगड़े है, ऐसै हालातो में बोल्ड प्रधानमंत्री की ज़रूरत है

    ReplyDelete
  19. jab tak voto ki chinta rahegi aise vishfot to hote rahenge.....

    ReplyDelete
  20. हर व्यक्ति की अपनी मानसिकता होती है। कुछ स्वस्थ मानसिकता के मालिक होते हैं और कुछ बीमार। और बीमार मानसिकता का व्यक्ति कब क्या कर डाले, यह सोचा नहीं जा सकता।

    ReplyDelete