मुझे मेरे फोन से बचाओ ! सताता है, घंटी बजाता है, घुघूता जी से बतियाता है !
आज सुबह- सुबह फोन की घंटी बजी तो मैंने फोन उठाया । यूँ तो जब पति घर में होते हैं तो मैं फोन कभी नहीं उठाती । पति के साथ साथ किसी भी फोन को आराम नहीं मिलता है । हम विभिन्न फोनों को कुछ इस वर्गीकरण से जानते हैं .. इन्टर्नल, एक्सटर्नल (इसमें भी कम्पनी का और पर्सनल ), मोबाइल नोकिआ, मोबाइल रिलायन्स व हमारा कभी ना बजने वाला मोबाइल । घर के हर कमरे में सारे कनैक्शन हैं ताकि जहाँ भी पति हों वे फोन का उपयोग कर सकें । कॉर्डलैस फोनों के होने पर भी यह व्यवस्था रखनी पड़ती है क्योंकि कॉर्डलैस फोनों को भी चार्ज होने को समय चाहिये । इन सबके अलावा एक लाइन हमारे नेट की भी है । उस दिन नेट ठीक करने आया व्यक्ति सुझाव दे रहा था कि उस लाइन पर भी फोन लगा सकते हैं । मैंने कहा नहीं भाई, हमारा दुख और ना बढ़ाओ ।
मैं तो हूँ टोन डैफ, अलग अलग गायकों में भेद नहीं कर सकती तो फोन की घँटियों का क्या अन्तर कर पाऊँगी ? एक बजता है तो तीन उठा कर देखने पड़ते हैं । उसपर यह कि मित्र व रिश्तेदार, सम्बंधी फोन पर नाम नहीं बताते और मैं अनुमान ही लगाती रह जाती हूँ । कई बार तो दस बारह मिनट के बाद पता चलता है कि मैं किससे बात कर रही थी अपनी भाभी से या पति की ।
बात चल रही थी आज सुबह सुबह फोन की घंटी बजने की परन्तु वह बात आधी रह गई क्योंकि मैं फिर फोन उठाने चली गई थी । वह फोन मैं इनकी भाभी का समझकर बात करती रही परन्तु निकली मेरी भाभी ! वह पता तब चला जब उन्होंने मेरी भतीजी का विवाह करने का निर्णय बताया । हम्म, आज सुबह फोन उठाया तो वहाँ से एक स्त्री स्वर आया ....
‘‘यह क्या बासूता जी का घर है ।’’
‘‘हाँ, मैं, श्रीमती बासूता बोल रही हूँ । ’’
‘‘बासूता जी हैं क्या ?’’
‘‘नहीं वे बाहर गए हुए हैं ।’’
‘‘तुम कैसी हो ?’’
‘‘मैं ठीक हूँ । मैंने आपको पहचाना नहीं ।’’
‘‘मैं श्रीमती राठौर बोल रही हूँ ।’’.............अब यहाँ एक राठौर हैं जिनकी पत्नी कभी यहाँ तो कभी बच्चों के पास रहती हैं । एक राठौर कुछ समय पहले नौकरी छोड़ कर गए हैं । परन्तु दोनों महिलाएँ मुझे तुम नहीं कहेंगी ।
‘‘आप कहाँ से बोल रहीं हैं ?’’
‘‘मैं नोयडा से बोल रही हूँ ।’’......मन होता है कि पूछूँ कि मेरी जान पहचान वाली कोई भी श्रीमती राठौर नोयडा में क्या कर रही हैं और आज अचानक मुझे तुम क्यों कह रहीं हैं ।
मैं थोड़ी प्रतीक्षा करती हूँ कि कोई हिन्ट मिलेगा ।
‘‘तुम कैसी हो बेटा ?’’.......... बेटा ???? यह हमारी जान पहचान वाली दोनों श्रीमती राठौरों में से एक भी नहीं हो सकतीं ।
‘‘मैं ठीक हूँ ।’’
‘‘बच्चे कैसे हैं ?’’
‘‘वे भी ठीक हैं ।’’
‘‘घुघूता जी क्या काम से बाहर गए हैं ?’’
‘‘जी कम्पनी के काम से गए हैं ।’’
‘‘यह बाहर जाने का काम बड़ा खराब है । तुम घर में अकेली रह जाती हो ।’’
‘‘जी ।’’
‘‘जब तक बच्चे घर पर थे तब तक भी ठीक था ।’’
‘‘जी ।’’
‘‘अपना मन कैसे लगाती हो ?’’
‘‘यही आजकल कम्प्यूटर पर थोड़ा लिख पढ़कर ।.’’.. आश्चर्य होता हे कि जिन श्रीमती राठौरों को कभी ‘मैडम मत कहिये’, कहने पर भी वे नहीं सुनती थीं आज क्या हो गया है ।
बेटा, बिटिया कहाँ है आजकल ?........बेटा !!!!!!!!!!! बिटिया? मेरी तो दो बेटियाँ हैं, यह एक का ही हालचाल क्यों पूछ रहीं हैं ?
“देखिये , आपने किन घुघूता जी के घर फोन लगाया था ?”
“मैंने ......... न. पर फोन लगाया ।“......... मैं डायरी में देखती हूँ नम्बर तो हमारा ही है ।
“पूरा नाम बताइये । शायद आप गलत घुघूता जी के यहाँ फोन कर रहीं हैं । शायद आपको जो घुघूता जी ५ साल पहले रहते थे वे चाहिये ।”
“क्या यह के. बी. घुघूता जी का घर नहीं है ?”
“नहीं ।”
“तुम यहाँ कितने साल से हो ?”
“तीन ।”
“ओहो ! सॉरी बेटा । मैं तो जो ८ साल पहले रहते थे उनसे बात करना चाहती हूँ । हम उनके साथ ही कई साल रहे ।”
“वे तो अब मुम्बई में हैं । ”
“उनका नम्बर है तुम्हारे पास ? ”
“जी नहीं । अपने पति से पूछ लूँगी यदि हुआ तो रख लूँगी ।”
“ठीक है बेटा । तुमसे बात करके अच्छा लगा । ”
“मुझे भी ।”............. इस उम्र में कोई सुबह सुबह बेटा कहे तो अच्छा तो लगेगा ही ।
“माफ करना मैंने तुम्हें तंग किया ।”
“नहीं, कोई बात नहीं । आपने तंग नहीं किया ।”...............हम किसी महानगर में तो रहते नहीं, जो हर समय झल्लाए रहें, वैसे भी कम ही होता है कि रॉन्ग नम्बर ( यह तो रॉन्ग नम्बर था भी नहीं ! नम्बर सही था केवल घुघूता गलत थे ।) हिन्दी में आए । आमतौर पर जो आते हैं वे कुछ यूँ होते हैं ।
“बुद्धिबेन छे ? ”
“नहीं । यह गलत नम्बर लगा है ।”
“तमा कौन बोल्ले छे बेन ? ”... मन करता है कि कहूँ निर्बुद्धि बेन ।
“भाई यह नम्बर गलत है । ”मैं फोन रख देती हूँ ।
फिर फोन.....
“बुद्धिबेन ! ”
“नहीं गलत ! ”……. बुद्धि ही तो नहीं है !
“बुद्धिबेन ना बुळावो ना बेन । म्हारे को काम छे ।”
“यह गलत नम्बर लगा है ।”
“बेन अपना नम्बर बताओ तमे ।”... ...मैं बता भी दूँ यदि याद हो तो ।
“आपको कौन सा नम्बर चाहिये ।”
“तुम अपणा बताओ ।”.. फोन बन्दकर प्लग ही निकाल देती हूँ ।
घुघूती बासूती
नोट:
बासूता के स्थान पर दरसल एक अत्यन्त सामान्य , उत्तर भारत में हर दसवें व्यक्ति का सरनेम है ।
Monday, February 18, 2008
मुझे मेरे फोन से बचाओ ! सताता है, घंटी बजाता है, घुघूता जी से बतियाता है !
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रोचक किस्सा। क्या बात है, "कई बार तो दस बारह मिनट के बाद पता चलता है कि मैं किससे बात कर रही थी अपनी भाभी से या पति की।" वैसे फिक्र मत कीजिए। दिल्ली में मेरे एक मित्र है जो रांग नंबर पर भी पांच-दस मिनट आराम से बात कर लेते हैं :=)
ReplyDelete" तमे कोण बोलो छो?" -यह पूछा जाता होगा,बुद्धिबेन से।
ReplyDeleteदेखिये कितनी अच्छी बात है इस देश मे जहा रांग नंबर पर भी लोग हाल चाल पूछ कर ही हटते है..:)मै तो अकसर बोल देता हू जी कोई बात नही फ़ोन करते रहे आपसे बात कर अच्छा लगा,चलिये हम भी फ़ोन फ़्रैंड बन ही जाते है..:)
ReplyDeleteअरे बाप रे आप को पूरी बातचीत याद भी रही, हम तो फोन रखते ही भूल जाते हैं बात कहाँ से शुरू हुई थी।
ReplyDeleteहैल्लो...घुघूती बेन छे?...वात कराओ ने...काम छे :)
ReplyDeleteसही है..:-)
ReplyDeleteआपकी याददाश्त की तो वास्तव में तारीफ़ करनी होगी. वैसे वाकया मज़ेदार रहा. आखिर आपको भी तो कोई बेटा कहने वाला मिला.. :)
ReplyDeleteसही कहा आपने! कितनी ही बार ऐसा होता है कि फ़ोन करने वाला हमसे लगातार पूछ्ता है,पह्चान कौन? विचित्र सी स्थिति हो जाती है, मन करता है,फ़ोन पटक डालें किन्तु शिष्टाचार वश चुप लगा जाते हैं.रही सही कसर टेलिका्लर्स पूरी कर देते हैं.
ReplyDeleteरोचक किस्सा !
ReplyDeleterochak qissa,meri to aur badi pareshaani...ki yahan ke general hospital ka ph no.merey local no se miltaa hai, aksar raat ko ...1 bottle blood bhej dijiye ki avaaz aati hai.....
ReplyDeleteरोचक!!
ReplyDeleteमस्त लगा!!
:) बड़िया अनुभव, हमारे साथ भी कई बार ऐसा हुआ है। महानगर में रह कर भी गुस्सा नहीं हो पाते
ReplyDeleteअच्छा हुआ जो आपने बता दिया अब आपके मन का बोझ कुछ तो हल्का होगा। आप इतने अच्छे से लिखती है कि ऐसे दस और वाक्ये पढे तो भी नही उबेंगे।
ReplyDeleteचलिये, आपके साथ तो ये है की कुछ भी समझ में आ जाता गुजराती.. मेरी सुनिये रौंग नम्बर आने पर क्या समझता हूं..
ReplyDeleteहेल्लो, #$@!%&#*^#%$%$!@%#%$!#^!%#@&^@^$..
और मैं उसका उत्तर जान बूझ कर हिंदी में देता हूं जो उसके लिये भी ऐसा ही होता है, #$@!%&#*^#%$%$!@%#%$!#^!%#@&^@^$....
क्योंकि उनका सभी कुछ तमिळ में होता है.. :D
अरे आपका फॊन तॊ बडा खराब है। एसा करिए इसे मुझे दे दीजीए। मैं निपट लूंगा।
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteबहुत रोचक किस्सा लगा। कभी कभी इन कॉल सेंटरों से सुबह सुबह ही फोन पर जगा देते हैं जिन बातों से हमारा कोई वास्ता नहीं - अरे भई, हमें भारत में किसी रिश्तेदार को पैसे नहीं भेजने। शायद हमारी बात सुनते ही नहीं। तोता रटंत घिसे पिटे बोल निकलते रहते हैं। जी करता है कि फोन के रिसीवर से अपना सर फोड़ लें। सोच कर चोंगा रख देते हैं, अपना ही नुकसान होगा।
ReplyDeleteबहुत ही रोचक, निर्बुद्धि बेन ....क्या अंदाजे बयां है.
ReplyDeleteहा हा हा हा ...सच्चा ! अल्ला बचाए ..
ReplyDeleteमजेदार किस्सा था | बस ये बात हजम नही हुयी की किसी भी आम आदमी के पास चार-पाच फ़ोन हो | पैसे लगते हैं भाई | कोई फ़ोन वाले मुफ्त मे त्तो देते नहीं |
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