आज संजीत जी का रायपुर के एक महिला संघ द्वारा १४ फरवरी को अपनी बेटियों को बाहर ना निकलने देने के निर्णय पर लिखा लेख 'बाहर ना निकलें बेटियाँ पर बेटे?' पढ़ा ।
यह लेख पढ़कर बरबस हँसी आ गई । वैसे, पुरुषों व लड़कों से इस हँसी के लिए क्षमा पहले ही माँग लेती हूँ । बराबरी माँगने वालियों को बराबरी देनी भी होती है ।
बात बहुत पुरानी है ,( मैं स्वयं ही काफी पुरानी हूँ !) लगभग १९७० से १९७३ के बीच की । तब भी हम शहर से दूर एक फैक्ट्री की कॉलोनी में रहते थे । यह हरियाणा में आती थी । वैसे मूल निवासियों का लगभग पंजाबी संस्कृति व वातावरण था । यह वह जमाना था जब पुत्र कभी गलत नहीं होते थे, तब भी जब माता पिता अपने पुत्र को किसी लड़की को छेड़ते देखते थे । तब भी जब मारपीट करते थे । हम कॉलोनी में थे तो काफी सीमा तक सुरक्षित थे ।
कंपनी का एक स्पोर्ट्स क्लब था । जिसमें टेबल टैनिस, बैडमिंटन,टैनिस, बिलियर्ड आदि की सुविधाएँ थीं । टेबल टैनिस व बैडमिंटन खेलने की सदस्यता बच्चे भी ले सकते थे । साथ खेलना बहुत कठिन होता था क्योंकि लड़के हमें खेलने नहीं देते थे । इसलिये यह नियम बनाया गया कि सात बजे तक लड़के खेलें व उसके बाद लड़कियाँ व कर्मचारी व उनकी पत्नियाँ ।
उन्हीं दिनों कॉलोनी में लड़कों की शरारतें बढ़ती जा रही थीं । वे शरारतों की सीमाएँ लाँघ कर सबके लिए सिरदर्द बनती जा रही थीं । मैनेजमेंट, कामगार युनियन व सिक्योरिटी वालों की बैठक बुलाई गई और निर्णय लिया गया कि शाम को आठ बजे के बाद कोई भी लड़का अपने घर के बाहर नहीं दिखेगा । ठीक पौने आठ व आठ बजे फैक्टरी का भौंपू बजता था और सब लड़के घरों के अन्दर ! सड़क पर यदि वे दिखे तो उन्हें सजा दी जाएगी । सजा भी कैसी, उट्ठक बैठक या मुर्गा बनाने जैसी । दो तीन लड़कों को सजा मिली और फिर जहाँ आठ बजे सड़कें खाली हो जाती थीं । अब लड़कियाँ, स्त्रियाँ आराम से रात देर तक घूम सकती थीं व हम मजे से खेलकर क्लब से लौटते थे ।
अब सोचती हूँ तो समझती हूँ कि कानून था तो बुरा परन्तु शायद एक बार लड़कों को भी बन्धन क्या होता है अनुभव हुआ होगा । लड़कों व लड़कियों की सारी समस्या का कारण वहाँ का वातावरण था । वहाँ बच्चे साथ पढ़ते थे परन्तु एक दूसरे से बात नहीं कर सकते थे । अब देखती हूँ तो यहाँ साथ पढ़े बच्चे कितनी भी उम्र हो जाने पर एक दूसरे से उसी पुरानी मित्रता से मिलते हैं । यही एक स्वस्थ वातावरण को जन्म देता है ।
घुघूती बासूती
Saturday, February 16, 2008
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आपके पास तो किस्सों का ढेर है.
ReplyDeleteआपका ये अनुभव पढ़कर मुझे हंसी आ रही है। मजेदार है। वैसे बंदिश और छूट, लड़कों-लड़कियों दोनों के लिए, की सीमा तो तय करनी ही पड़ती है। अपने और अनुभव लिखते रहिए अच्छा लगता है।
ReplyDeleteबड़े दिनों बाद दिखीं आप, दिखते रहा कीजिए!!
ReplyDeleteकिस्सा मजेदार है!!
सही है बंधन का एहसास लड़को को भी दिलाना जरुरी ही है!!
मजेदार......
ReplyDeleteहाहाहााह कल्पना करके मजा आया कि लडकों को कैसा लगता होगा।
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