आशा है हर वर्ष की तरह इस वर्ष इस दिन कोई हंगामा नहीं होगा । किन्तु यह आशा करना कुछ अधिक ही आशावादी होना है । मेरी समझ में नहीं आता कि कोई क्या कर रहा है या नहीं कर रहा है, में कुछ लोगों की इतनी रुचि कयों होती है । क्यों नहीं हम जियो और जीने दो में विश्वास कर सकते ? भाई , यदि पसन्द है तो मनाओ, नहीं पसन्द तो मत मनाओ । यदि कोई आपको पकड़ कर जबर्दस्ती नहीं मनवा रहा तो फिर क्या कष्ट है ? इतने सारे दिन हम मनाते हैं, या कहिए न भी पसन्द हों तो भी मनवाए जाते हैं । बाल दिवस है,नारी दिवास है, क दिवस ,ख दिवस ,ग दिवस और ऐसे ही अनेक दिवस ! तो इस प्रेम दिवस में क्या बुराई है ? शायद यही कि इस दिन लोग प्रसन्न चित्त हाथ में गुलाब, कार्ड ,व कभी -कभी उपहार लेकर अपने प्रिय या प्रिया को मिलते हैं । हाथ में चाकू, डंडा ,तलवार या बंदूक लेने से तो यही अधिक अच्छा है ।
हमारे देश में, जहाँ कन्याओं को जन्म लेने से पहले ही, उन पर होने वाले दहेज व विवाह के खर्च से बचने के लिए, मार दिया जाता है, यदि नवयुवक युवतियाँ अपने जीवन साथी का चुनाव स्वयं कर लें तो इस में बुराई क्या है ? आवश्यक नहीं है कि हर मैत्री, प्रेम व आकर्षण विवाह तक पहुँच ही जाएगा । परन्तु ऐसा होने के आसार बढ़ तो बहुत जाएँगे । इससे तो शायद कुछ अजन्मी कन्याओं की जान ही बच जाएगी । माना कि हर प्रेम विवाह सफल नहीं होता, किन्तु हर अभिभावकों द्वारा ठहराया हुआ विवाह कौन सा सफल होता है ? संशय तो दोनों में बना रहता है ।
प्रेम एक नैसेर्गिक भावना है । इसे दबाने का कोई कारण नहीं है । यदि हम बच्चों को बचपन से ही सही मूल्य सिखाएँ तो वे जीवन के सही निर्णय लेने में समर्थ हो जाएँगे । वैसे भी संसार इतनी तेजी से बदल रहा है, उसकी गति को थामा तो नहीं जा सकता । जो एक पीढ़ी को ठीक लगता है
वह उससे पहले की पीढ़ी को आंदोलनकारी लगता था ।
सो बेहतर यही होगा कि हम भी कह दें हैप्पी वैलेन्टाइन्स डे !
घुघूती बासूती
Thursday, February 07, 2008
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हम आप से सहमत हैं।
ReplyDeleteindia mae valentine day ko basant kae naam se saalo sae manayaa jata hae
ReplyDeleteदेखिए जी ऐसा है, वेलेन्टाईन्स डे मनाने मे कुछ भी बुरा नही, हम खुद तभी इसका विरोध करते हैं जब हमारी कोई वेलेन्टाईन नही होती, जिस साल हमरे पास कौनो वेलेन्टाईन होती है गुलाब देने के लिए उस साल हम विरोध नही करते। नही होती कोई उसी साल हम इसके विरोध में अभियान चला देते है और उन लोगों का हमे बहुत साथ मिलता है ऐसे अभियान मे जिनकी कोई वेलेन्टाईन नही होती!! ;)
ReplyDeleteबिल्कुल मनाते वैलेंटाइन डे
ReplyDeleteपर कोई राष्टरीय अवकाश का तो जुगाड करो
आफिस जाएं, या वी डे मनाएं
:)
हम आप से सहमत हैं, प्रेम एक नैसेर्गिक भावना है और इसे दबाने का कोई कारण नहीं है ।
ReplyDeleteखोज तो हमहुं रहे हैं... वैलेंटाईन को। जय बाबा वैलेंटाईन
ReplyDeletebilkul sahi. Everybody has their own right to celebrate the things.
ReplyDeleteaapka kahana bilkul sahi hai. prem ek naisargik bhaav hai, ise dabaayaa nahii jaa sakataa. Lekin yah bhi satya hai ki prem ka ijhaar dil se dil tak hotaa hai. islie is kee aavaaj duniyaa na sune tabhi achhaa hai...
ReplyDeletebilkul sahi lekha hain.
ReplyDeleteAnd on the other hand, there are the many "Divas"es that are forced on to us. Those that are made into dry days are the worst of the lot... come to think of it, all the forced ones are dry days (or maybe it's the other way round).
ReplyDeleteAs someone else also commented... it's the frustrated ones who no one wants to go out with who are the most vociferous.
मैं आपके विचार से सहमत हूँ|
ReplyDeleteमैं संजीत जी की बात से पूरी तरह सहमत हूं। दरअसल यह इस सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप की परम्परा है कि जो चीज जिसके पास नहीं होती है वह उसका विरोध करता है।
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