मेरी प्यारी छोटी सी बहना रंजना ,
तुम्हारी ये bahin ji ,aap to badi jor se beemaar hain.Aapko manichikitsak ki darkaar hai.और sourri...manochikitsak,pahle waale me mistek ho gaya. टिप्पणियाँ पढ़ीं ।
आप क्या ज्योतिषी हो ? मान गई आपकी पैनी नजर को । सच में, मैं कब से एक मन:चिकित्सक की खोज में हूँ । यदि आपकी जान पहचान में कोई हो तो मेरा केस जल्द से जल्द लेने की सिफारिश करना । आखिर नन्ही मुन्नी बहन किस दिन काम आएगी ? मुसीबत के समय तो पराए भी सहायता के लिए आगे आते हैं । आप तो मेरी बहुत ही अपनी हैं । मेरी कोई छोटी बहन या भाई नहीं था । आपका ‘बहनजी’ सुनकर आँखें भर आती हैं । काश, आप मुझे पहले मिली होतीं ! शायद तब मुझे आपके स्नेह व मार्ग- प्रदर्शन से किसी ‘मन:चिकित्सक’ की आवश्यकता भी न पड़ती । जीवन के बावन वर्ष इस सम्बोधन, स्नेह व मार्ग- प्रदर्शन से वंचित रही । खैर अब क्या किया जा सकता है, जितना जीवन शेष है उसमें अच्छी स्त्री व ‘बहनजी’ बनने की पूरी कोशिश करूँगी । बीच बीच में, जब तब पाँव फिसलेगा तो आशा है आप मेरा पथ- प्रदर्शन करेंगी । हो सकता है जीवन के अन्त तक सुधर ही जाऊँ और ‘करवा चौथ’ आदि व्रत रख पति के पैर छू उनके हाथों से जल ग्रहण कर स्वर्ग का टिकट कटा ही लूँ । वैसे भी मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि यह ना भी हो सका तो आप मेरी भगवान से सिफारिश अवश्य करेंगी ।
अब मैं आपके ‘अद्भुत ज्योतिष’ की बात करना चाहती हूँ । सच में,मैं बड़े जोर से बीमार हूँ । तरह- तरह के डॉक्टरों, वैद्य, होमिओपैथिक वालों से इलाज करवाया । अभी हाल में ही, मेरी दुर्दशा देख पति के एक मित्र 'रेकी मास्टरनी को भी लेकर आये । वे बोलीं कि मुझे नजर लग गई है । अब फुटबॉल से शरीर वाली को देख सींकची पहलवान सी देह वालियों व वालों को जलन तो होगी ही । सोचती हूँ एक काला टीका गाल पर लगाकर ही घर से बाहर निकलूँ । वैसे वे मेरी ‘फोटो’ का इलाज कर रही हैं । कुछ दिन बाद जाकर देखूँगी कि फोटो को कितना स्वास्थ्य लाभ हुआ है । यदि फोटो को लाभ हुआ दिखा तो जो ‘तावीज’ वह मेरे लिये तैयार कर रही हैं उसे काले धागे में अपने गले में लटका लूँगी । तब तो ‘बुरी नजर वाले तेरा मुँह काला’ हो ही जाएगा ।
अन्यथा, मेरे पास मन:चिकित्सक का विकल्प तो है ही । मेरी समस्या यह है कि हमारे जंगल में इस जाति के प्राणी नहीं रहते । ठीक भी है । आपने क्या कभी मोर, शेर, बाघ, लोमड़ी , सियार, गाय आदि को इनके पास जाते देखा है ? मुझे पता है कि वे क्यों नहीं जाते । इन प्राणियों की मादाओं को अपने- अपने समाज में अपना स्थान पता होता है । वे कभी पुस्तकें पढ़ने, गाय ‘हल में जुतने’ आदि की जिद्द नहीं करतीं । इससे नर व मादा दोनों का स्वास्थ्य, विशेषकर मानसिक स्वास्थ्य व संतुलन बना रहता है । और एक हम हैं , जिद्दी मूर्ख स्त्रियाँ , हमें हर समय पुरुषों की बराबरी का शौक चढ़ा रहता है । यदि बेटे को ‘मलाई’ मिली तो बेटी को भी चाहिये । जबकि मुझे अपनी बिटिया की ‘छठी कक्षा’ का ‘लड़की’ नामक पाठ याद है । उसमे इतने अच्छे से माँ बिटिया को प्यार से समझाती है ,” कलमूँही, भाई से बराबरी करेगी ? तुझे क्या पढ़कर ‘कलक्टर’ बनना है ? जा दो रोटी रखी हैं, नमक से खा ले । आ मेरे लाल, देख कितनी मलाई है तेरी कटोरी में ! ‘राजा बेटा’ खाएगा नहीं तो बड़ा कैसे होगा ?” शब्दों में थोड़ी गड़बड़ी हो सकती है , आखिर मानसिक रोगी हूँ ,परन्तु भाव ज्यों के त्यों हैं ।
पत्र लम्बा होता जा रहा है । परन्तु क्या करूँ, पहली बार किसी ने सहानुभूति दिखाई व मेरी बीमार नब्ज पकड़ी है । अब मैं अपना बीमारी का छोटा सा लेखा जोखा दे देती हूँ ताकि आप मेरी इस बिगड़ी मानसिक अवस्था को समझ सकेंगी व मुझसे सहानुभूति भी रखेगीं । भविष्य में जब मैं कोई खुराफाती पोस्ट लिखूँगी, तो कारण समझ, प्यार से मुझे समझा सकेंगी । बचपन में पीडियाट्रिसट के पास गई । १५ वर्ष कि आयु में जैनरल फिजिशियन से पाला पड़ा। उन्होंने एपेन्डिसाइटिस बता सर्जन के पास भेज दिया । यहाँ एनेस्थॉलॉजिस्ट से भी पाला पड़ा । १६ वर्ष की आयु में मन:चिकित्सक के पास गई । २० वर्ष में अल्सर से पीड़ित हुई । सो गैस्ट्रोलोगिस्ट के पास जाना पड़ा । २२ वर्ष में साइनस की समस्या आई तो ई एन टी स्पैशिअलिस्ट के पास गई । फिर गाइनेकोलोजिस्ट.. ओबस्टेट्रशियन के पास गई । इस बीच पैथॉलॉजिस्ट के पास भी जाना पड़ा । फिर रैडिओलॉजिस्ट के पास भी गई । ३१ वर्ष में औप्टिसिअन के पास जा चश्मा लगवाया । ३३ की अवस्था में और्थॉपीडिस्ट के पास इलाज चला, जो आज भी चालू है । फिर ३ सर्जरी हुईं जिसमें दो प्लास्टिक सर्जन ने की । मैंने अपनी नाक सुन्दर नहीं बनवाई , इनसिजनल हर्निया के औपरेशन करवाए । ३८ की उम्र में अस्थमा हुआ , जिसका इलाज एलर्जिस्ट ने किया । ४५ की उम्र में र्यूमेटॉलिजिस्ट से इलाज चला । क्या बताऊँ बहना, इतने लम्बे लम्बे बीमारी के नाम थे ! एक बताती हूँ , ‘सैरोनैगेटिव स्पाइनेलो और्थॉपैथी’ ! और एक था सीधा सादा ‘फाइब्रॉमाइल्जिया’ ! आप तो बीमारियों की जानकार हैं अत: इन सब बीमारियों को समझ सकती हैं । मेरे तो सिर के ऊपर से निकल जाता है सब कुछ ! केवल नर्सेज के लिये जो फिजियॉलॉजी व हाईजीन व रोगों की किताब व क्लिनिकल न्यू्ट्रिशन पढ़ा है सो आप जितना तो नहीं जानती । खैर, फिर बारी आई नैफ्रॉलॉजिस्ट की,यूरॉलॉजिस्ट की, न्यूकलियर मेडिसिन की, इम्यूनॉलॉजिस्ट की ! फिर जाइन्टसेल आर्टराइटिस हो गया व वैस्क्यूलाइटिस हो गया सो वैसक्यूलर सर्जन की, फिर एक टुच्चा सा हृदय का वाल्व बैठ गया सो बारी आई कार्डियॉलॉजिस्ट की । फिर न्यूरॉलॉजिस्ट की । अभी भी मैडिसिन के कुछ क्षेत्र बच गए हैं सो सोचती हूँ कि मन:चिकित्सक के साथ साथ बाकी बचे डॉक्टर्स से भी इलाज करवा ही लिया जाए । किसी को भी छोड़ना अन्याय होगा । शनिवार को २०० कि मी दूर राजकोट जाकर दिखाकर आई हूँ । वे दिल्ली के AIMS में भर्ती होकर कुछ टेस्ट करवाने को कह रहे हैं । आज अपने कार्डियॉलॉजिस्ट से मिलकर आई । उन्होंने डीप वेन थ्रॉम्बॉसिस के लिए कलर
डॉपलर टेस्ट करवाया । तब तक आपकी टिप्पणी नहीं पढ़ी थी, अन्यथा उनसे किसी दूर दराज के शहर के मन:चिकित्सक से भी बात करने को कहती । खैर , मेरी बहना, आप तो हैं ही सो मुझे चिन्ता नहीं । कहीं ना कहीं तो इलाज करवा ही दोगी । यदि घुघूता जी खर्चा देने को मना करें तो आप तो हैं ही ।
पत्र लम्बा हो गया है , परन्तु आप ही मुझे इस अन्धी गली में उजाले की किरण नजर आई हो। अब तो जब भी कुछ होगा आपके ज्योतिष का भरोसा कर इलाज करवा लूँगी ।
हाँ ! एक बात और ! आपने वह ‘तारे जमीन पर’ या कुछ ऐसे ही नाम की फिल्म देखी है क्या ? उसमें जो ‘डिसलैक्सिस’ बच्चा था, वह आपसे कम बीमार रहा होगा । आपने क्या कभी अपनी वर्तनी.. स्पैलिंग्स पर ध्यान दिया है ? हो सके तो आमिर खान से अपने इलाज के बारे में भी पूछ लेना बहना ! मेरी बहन इतनी गलत भाषा लिखे तो मेरा सिर शर्म से झुक जाता है । यदि कोई इलाज ना हो सके तो लिखना छोड़कर पॉडकास्ट कर लिया करना । क्या कहा ? उच्चारण की भी समस्या है ? ओह ! मेरे तो हाथ काँपते हैं, तो टाइप करने में गलती हो जाती है । जबान लड़खड़ाती है तो बोलने में गलती हो जाती है । परन्तु मेरी तो अब उम्र हो चली, परन्तु छोटी, तुम्हें तो ये समस्याएँ नहीं होनी चाहियें ।
बहुत बहुत स्नेह सहित,
बड़ी बहनजी ( घुघूती बासूती )
Wednesday, February 06, 2008
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घुघुतीजी,
ReplyDeleteहम तो कठिन कठिन नाम सुनकर ही डर गये । कक्षा १० के जीव विज्ञान की याद आ गयी ।
लेकिन इस पोस्ट को बुकमार्क करके रख लिया है किसी को डराना होगा तो चुन चुन कर नाम सुनायेंगे ।
ये कैसी बयार चल रही है इन दिनों
ReplyDeleteहर ओर बड़ी तल्खी है इन दिनों....
आपकी बात समझ गए. बढि़या कहा... अच्छा कहा... डॉ घुघूती :)
अपने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति स्त्रियाँ और उनके आस पास वाले सचेत ही कहाँ हैं । जो सचेत हैं उन्हें बीमार कहाँ जाता है । यह क्या रिवाज़ है समझ नही आता है । खैर अगर यह मानसिक बीमारी है तो रंजना जी हम सभी को इससे ग्रस्त होना होगा । थोपी हुई सोच से उबरिये । वैज्ञानिक सोच केवल पुरुषों के लिए नही है।
ReplyDeleteकथित रंजना की IP आदि की जाँच पहले हो ।
ReplyDeleteमहीने भर पहले अभय ने किसी पोस्ट में शायद नीत्शे को क्वोट किया था. कि देर तक गड्ढे में देखो तो पलटकर गड्ढा तुम्हें वापस देखने लगता है, ऐसा ही कुछ. आजकल इस पलटा-पलटी में बहुत कुछ दिख रहा है और बहुत सारे गड्ढे खुल रहे हैं. और सच पूछिये तो मुझे बड़ा अच्छा लग रहा है. मन:चिकित्सक के यहां कोई अपॉयंटमेंट फिक्स हो जाये तो प्लीज़, मुझे भी साथ लिये चलिएगा..
ReplyDeletewah
ReplyDeletewah
ReplyDeleteप्रमोद सिंह जी , अपॉयंटमेंट फिक्स करना तो मैंने अपनी बहन पर छोड़ दिया है । आपको साथ अवश्य ले चलूँगी , दोनों का मनोबल बना रहेगा । जब तक यह ना हो पाए, तब तक आप अपने शहर के और मैं अपनी सड़क के गड्ढे गिनते रहेंगे और उन्हें घूरते रहेंगे । वैसे बहुत से लोगों के घूरने की अपेक्षा मुझे गड्ढों द्वारा घूरे जाना बेहतर लगेगा ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
मैं सचमुच डर गया.
ReplyDeleteबहुत ही तीक्ष्ण लिखा है, जिससे जाहिर होता है कि कल की उस टिप्पणी ने आपको कितनी चोट पहुंचाई है।
ReplyDeleteमैं तो चुपचाप प्रणाम बोलूं आपको और खिसक लूं इधर से, क्या पता मेरी शैतानियों पर आपने मुझे डांट दिया तो मैं तो गया फिर काम से!
aapkey javaab se tasalli hui.....
ReplyDeleteहे राम! ये क्या किया आपने ,इतनी बड़ी मिस्टेक कर कर दी,कुछ गोपनीय भी रखा होता दीदीजी.कोई बात नही आगे से ख़याल रखियेगा.आप तो सचमुच ही खतरनाक बीमार हैं.बड़ी तकलीफ हुई लिस्ट पढ़कर,आँखें भर आयीं.चिंता न कर दिदिया.अभी थोडी हडबडी मे हूँ,लम्बी बिजनेस यात्रा मे जाना है,कलकत्ते से हवाई टिकट करायी थी और मुए बंद स्पेश्लिस्तों ने कलकता बंद करवा कर संकट मे डाल दिया है.भारी समस्या है,कैसे पहुंचूं कलकत्ते समझ नही पा रही.
ReplyDeleteतू चिंता न करना दिदिया,मैं डाक्टरों की फौज खड़ी कर दूंगी तेरे लिए.बस मेरे वापस आने तक इन्तजार कर.
वैसे एक पते की बात bataun.जितने लोगों ने तुझे सताया है न ,मुझे भी ठीक ऐसे ही सताया है,पर मैंने तो कहा ,मैं नही रोने का .सबसे पहले तो अपने पति की वाट लगाई, कोई औकात नही छोडी uski . सारे अरमान पूरे कर लिए ,मस्त रहती हूँ. कोई मुझे सताने आए इतनी हिम्मत अपने आस पास तो किसी मे नही. इसलिए मेरी मान ,जो सामने आए उसकी वाट लगा और मस्त हो जा.आधी बीमारी की इलाज तो यही से हो जायेगी.
वो तो क्या है न की जितने लोगों(मर्दों) की मैंने वाट लगाई है,लगता है इस से ज्यादा अब और कोई लगायेगा तो सारे मर्द औरतों की दुनिया छोड़ कर भाग न खड़े हों,तो फ़िर मेरे मनोरंजन के साधनों का क्या होगा.इसलिए जब कोई उन्हें गरियाता है न तो उनका साइड ले लेती हूँ,हूँ मैं १००% तेरी ही साइड .सो तू चिंता न कर ,ये सब मेरे दिखाने के दांत हैं.खाने वाले दांतों से चुप चाप मरद जात को ऐसे मस्त कुतरती हूँ की रोने लायक ही नही छोडती. तेरा मेरा अभियान एक ही है बहना.
daal me kuch kaala hai, ghunghat ke peeche lala hai.
ReplyDeleteAre baapre aapko bhi gussa aata hai.
रंजना जी , आप बडी महान लगती / लगते हैं ।आपने कहा -
ReplyDeleteजितने लोगों ने तुझे सताया है न ,मुझे भी ठीक ऐसे ही सताया है,पर मैंने तो कहा ,मैं नही रोने का .
क्या माजरा है ? चक्कर क्या है ?
बडी भयानक और सन्दिग्ध टिप्पणी दी है
घुघुती जी, ये तो बहना के वेश मे भाई जी है...
ReplyDeleteया फिर transition मे है, तय नही कर पा रहे है, कि किस तरह बने रहे.