[ ललित जी को भी उत्तर दिये जाएँगे धीरे धीरे ! बात निकली है तो दूर तलक जायेगी।
यह मेरा काफी समय पहले लिखा लेख है । शायद काफी लोगों को स्त्री के स्त्री का शत्रु होने का रहस्य या कहें कारण , यहाँ मिल जाएँगे । ]
हमने व हमारे समाज ने क्या गलतियाँ की हैं और क्या गलतियाँ अभी भी करे जा रहे हैं इसका कुछ कुछ परिणाम तो हमें वर्तमान में देखने को मिल रहा है, किन्तु भविष्य इन परिणामों को बहुत विकराल रूप में हमारे सामने प्रस्तुत करेगा । जब तक यह परिणाम हमारे इस मूल रूप से अन्धे समाज को भी दिखने लगेगें, तब तक बहुत नहीं तो काफी देर हो चुकी होगी । समस्याएँ बहुत हैं व अधिकतर हमारी अपनी बनाई हुई ही हैं ।
इस समय मैं भारतीय समाज में स्त्रियों के स्थान , भ्रान्तियों व उनसे उत्पन्न होने वाली हानियों कि चर्चा कर रही हूँ । आज तक इन सबसे मुख्य व प्रत्यक्ष रूप से केवल स्त्रियों को हानि होती थी । अतः हमारा समाज , जो कि मुख्य रूप से पुरुषों के लिए ही बना है, जहाँ का धर्म, संस्कृति , कायदे कानून, सब कुछ पुरुषों के हितों को ही ध्यान में रखकर बनाए गए हैं , चैन की नींद सो सकता था व अपने घर का कचरा कालीन के नीचे दबा सकता था । यहाँ यह भी कह दूँ कि केवल भारत या एक धर्म या समाज ही नहीं सब धर्म, संस्कृति, कायदे कानून, पुरुष के हितों को देखकर बने हैं । किन्तु आज हानि व हमला पुरुष के हितों , सुख चैन, सुविधाओं पर है । उसका व उसके समाज का अस्तित्व ही खतरे में है । स्त्रियों का तो खतरे में है ही , किन्तु वह बहुत ही सूक्ष्म बात है, पुरुष व पुरुष के अस्तित्व के सामने । सो हो सकता है, पुरुषों के साथ साथ वे अन्धी स्त्रियाँ भी , जो स्त्री के अस्तित्व, उसके आदर व उसके जीवन के महत्व को नहीं मानती, वे भी जाग जाएँ क्योंकि आखिर उनके लाड़ले बेटों का भविष्य दाँव पर लग गया है ।
हमारा इतिहास गवाह है कि स्त्री पर जब भी , जैसे भी हो सकता था, अत्याचार किया गया । कुछ पुरुषों ने किया, कुछ स्वयं शक्ति चखने के लिए एक स्त्री ने दूसरी पर किया । यह शक्ति परीक्षण वह पुरुष पर तो कर नहीं सकती हैं ,अतः जैसे ही परिवार में उसकी स्थिति कुछ सुदृढ़ होती थी, तो वह परिवार में नई आई सदस्याओं पर कुछ रैगिंग की तर्ज पर यह शक्ति परीक्षण करती हैं । बार बार पुरुष यह कह कर कि स्त्री ही स्त्री की सबसे बड़ी शत्रु है , अपना पल्ला झाड़ लेता है । किन्तु जब आपके बच्चे की रैगिंग में टाँग टूट जाए या जान चली जाए, तो आप महाविद्यालय प्रशासन को यह कह कर कि विद्यार्थी ही विद्यार्थी का सबसे बड़ा शत्रु है बरी तो नहीं कर देते । तो फिर परिवार में हुए अत्याचार से स्वयं को परिवार का मुखिया होने के नाते कैसे बरी कर लेते हो ?
स्त्री को घर से निकाला गया , जलाया गया, मारा गया, मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया । उसे वश में रखने के लिए कभी उसे कुछ लालच दिया गया तो कभी उससे कुछ सुविधाएँ छीन ली गईं । लालच के रूप में सुन्दर रंग बिरंगे वस्त्र , आभूषण , रंगीन सौभाग्य चिन्ह व सब प्रकार का भोजन ग्रहण करने का अधिकार । दंडित करने व लाइन में रखने के लिए यही सब सुवधाएँ उससे छीन ली जाती थीं । उसे बताया जाता था कि ये सब सुख उसे तभी तक प्राप्य हैं जब तक वह अपने जीवन के आधार, अपने स्वामी, अपने पति को जीवित व प्रसन्न रख पाएगी । ये सब निर्जला व्रत उपवास इसी भय की देन हैं । वह पति व अपनी सुविधाओं व बहुत बार अपने जीने के अधिकार को बचाने के लिए भौतिक रूप से जो बन पड़ता था करती थी । किन्तु अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखने के लिए पति का जीवन कैसे भी बचाना अनिवार्य था । सो भौतिक रूप से सब कुछ करने के बाद वह अन्ध श्रद्धा की शरण लेती थी ।
विश्वास न हो ऐसी स्थिति की कल्पना करिये जहाँ आपका जीवन एक पतली डोर से लटका हुआ हो, जीवित जलाए जाने की तलवार आपके सिर पर लटक रही हो । उदाहरण के लिए यदि आपका जीवन किसी ऐसी शक्ति के हाथ में हो जो बहुत शक्तिशाली, क्रूर , अविवेकी व तर्कविहीन हो, लकीर की फकीर हो , जिस पर किसी न्याय की गुहार का कोई प्रभाव न पड़ता हो । वह शक्ति या व्यक्ति आप से कहे कि जब तक आप के सिर पर बाल हैं आप जीवित रहेंगे और जिस दिन ये बाल झड़े, आपको जीवित चिता के हवाले कर दिया जाएगा । अब आपके लिए ये बाल प्राणों से भी अधिक प्रिय होंगे । आप एक बार खाना भूल जाएँगे किन्तु बालों की साज संवार , सफाई, व स्वास्थ्य के विषय में कभी नहीं भूलेंगे । वे बाल आपकी जान हैं, धर्म हैं , या ये कहें कि वे ही आपका जीवन हैं । अब आप जब सब तरह से उनकी रक्षा करते नहीं थकते और फिर भी देखते हैं कि समय असमय आपके मित्रों , भाइयों, चाचा , ताऊओं के बाल झड़ ही जाते हैं और ऐसा होने पर उन्हें घसीट कर चिता पर रख दिया जाता है । उनकी चीखें आपके कानों के परदों को फाड़कर आपके अन्तर्मन तक को दहला जाती हैं । सोते जागते, खाते पीते ये चीखें आपका साथ नहीं छोड़ती । तब आप आध्यात्म, अलौकिक , दैवीय, अतिमानवीय शक्तियों का भी सहारा लेने लगते हैं । आपने देखा था कि दो मित्रो के बाल तब झड़ गए जब उन्होंने खाली पेट चाय पी थी या दो और के तब जब उन्होंने अपने बालों से तंग आकर उन्हें गाली दी थी । सो अब आप खाली पेट चाय पीना छोड़ देते हैं, बालों को कभी भूले से भी गाली नहीं देते हैं । यदि कोई सुझा दे कि गले में यह हरे मोती का धागा डाल लो तो बाल अधिक समय तक टिकते हैं, सो आप वह भी कर लेते हैं । यदि कहें कि बुधवार को दाढ़ी न बनाने से बाल सुरक्षित रहते हैं तो क्या आप केवल दाढ़ी बनाने के सुख के लिए जीते जी चिता में डाले जाने का खतरा , भय, आशंका मोल लेंगे ? सो अब आप चाहेंगे कि आशीर्वाद में भी यदि कोई आपको बालवान या बालवता कहे तो बेहतर है क्योंकि आपका चिरंजीवी होना तो उनके होने पर निर्भर है । आप प्राण जाएँ पर बाल न जाएँ में पूर्ण विश्वास करेंगे । सो इसको कहते हैं कंडिशनिंग ! अब न केवल आपके चेतन मन को बालों से मोह है अपितु आपका अवचेतन मन भी बालों के प्रति मोहित है । सो अब समाज कहता है कि बालों को इतना प्रेम करना, उनका ध्यान रखना, उन्हें जान से अधिक चाहना आपका स्वभाव है । यही आपके संस्कार हैं, यही आपका धर्म है, यही आपके देश की संस्कृति है । बिल्कुल सही है । जिन बालों के रहते आप पलंग पर सो सकते हैं , भांति भांति के व्यंजन खा सकते हैं, रंग बिरंगे कपड़े पहन सकते हैं , सबसे बड़ी बात कि जी सकते हैं, उन बालों पर आप क्यों न बलिहारी जाएँगे । यह तो है इस जन्म की बात !
घुघूती बासूती
चर्चा चालू है । अभी नया लिखने की स्थिति में नहीं हूँ । शीघ्र ही इस विषय पर और लिखूँगी ।
समर्थ सार्थक लेखन। चर्चा चालू रखिये। अगली पोस्ट की प्रतीक्षा में।
ReplyDeleteहे नर , क्यों आज भी इतने कमजोर हो तुम
ReplyDeleteक्यों आज भी इतने कमजोर हो तुम
कि नारी को हथियार बना कर
अपने आपसी द्वेषो को निपटाते हो
क्यों आज भी इतने निर्बल हो तुम
कि नारी शरीर कि
संरचना को बखाने बिना
साहित्यकार नहीं समझे जाते हो तुम
तुम लिखो तो जागरूक हो तुम
वह लिखे तो बेशर्म औरत कहते हो
तुम सड़को को सार्वजनिक शौचालये
बनाओ तो जरुरत तुम्हारी है
वह फैशन वीक मे काम करे
तो नंगी नाच रही है
तुम्हारी तारीफ हो तो
तुम तारीफ के काबिल हो
उसकी तारीफ हो तो
वह "औरत" की तारीफ है
तुम करो तो बलात्कार भी "काम" है
वह वेश्या बने तो बदनाम है
हे नर
क्यों आज भी इतने कमजोर हो तुम
सर्वप्रथम "या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता, नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरी" फिर "गतिस्वं गतिस्वं त्वमेकां भवानि" तक ऋषि, मुनि, देवों, सभी ने नारी की पूजा की है। हिन्दू शास्त्र कहते हैं "यत्र नार्येस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता", शंकराचार्य ने भी देवी की स्तुति में अनेकानेक काव्य लिखे हैं।
ReplyDeleteहिन्दू लोग नारी की रक्षा, सम्मान को बचाने के लिए अपनी जान देते आए हैं, देते रहेंगे।
इस्लाम में नारी को कुछ निम्न स्थान दिया गया है। एक पुरुष को चार-चार विवाह की अनुमति होती है। भारत में विदेशी आक्रमणों के बाद विशेषकर मुगल शासनकाल में नारी की ऐसी दयनीय स्थिति शुरू हुई थी। किन्तु अब धीरे धीरे समाज परिवर्तन हो रहा है आशा है शीघ्र ही नर-नारी दोनों बराबर होकर कदम से कदम मिलाकर विश्व को प्रगति पथ पर ले जाएँगे।
आपके लेखों में पुरुष वर्ग के प्रति जितनी निराशा, विरोधाभास और वैचारिक जहरीलापन प्रकट हो रहा है उससे लगता है कि शायद आपको किसी इस्लाम अनुयायी पुरुष से धोखा, दर्द मिला हो। पिता, पुत्र, भाई, पति-प्रेमी का सच्चा स्नेह-प्रेम न मिल पाया हो। निवेदन है कि निष्पक्ष, निरपेक्ष होकर शान्त मन से सोचें...
अनेक पुरुषों ने नारी की वन्दना मे, प्रशंसा में, काव्य से लेकर महाकाव्य तक लिखे हैं। लेकिन महिलाओं द्वारा पुरुष की प्रशंसा में कितने काव्य लिखें हैं? 'देवियाँ' में भी ऐसी कृतघ्नता क्यों?
बहुत ज़बरदस्त तरीके से अपनी बात रखी है आपने घुघूती जी..
ReplyDeleteश्रीमान ललित, आप लेख समझने की कोशिश करें.. लेखक के विषय में अपने अनुचित अनुमान न निकालें.. और उस ऊर्जा का इस्तेमाल स्वयं अपने दिमाग की ग्रंथियों को सुलझाने में करें, वह बेहतर होगा..
आप यहाँ जिस मानसिकता का प्रदर्शन कर रहे हैं न सिर्फ़ वह साम्प्रदायिक है बल्कि ठीक वही पुरुष-वर्चस्ववादी है जिसका घुघुती जी ने उल्लेख किया है..
आप को अधिकार किसने दिया कि आप किसी स्त्री से इस तरह के सवाल करें? ये निहायत अशिष्टता, मूर्खता और अहंमन्यता है..
क्या किसी "देवी" से बात करने का यही तरीका जानते हैं आप?
@abhay tiwari
ReplyDeleteyou have said what i wanted to say
so not repeating . Mam is a senior lady and an icon and one has to meet her to understand what she is
इस अच्छी खासी चर्चा में हिंदू-मुसलमान के आने की जगह कैसे निकाली गई भई ?
ReplyDeleteघुघुतीजी फिलहाल ऐसी टिप्पणियों को इग्नोर मारें और जारी रहें।
घुघुती जी
ReplyDeleteआपने बड़े सरल ढगं से उस शक्ति खीचतान को समझाया है जिसकी मैं ने अपने कमेंट में चर्चा की थी। रचना जी ने बहुत सुन्दर कविता के सहारे अपनी बात कही है। ललित जी बेवजह सांप्रदायिक प्रवति दिखा रहे हैं, और देवियों ने पुरुषों की तारिफ़ में अगर लिखना शुरु कर दिया तो क्या समाज उनके चरित्र पर लाछन न लगाएगा। पुरुष स्त्री की तारिफ़ करे तू श्रंगार रस और अगर स्त्री करे तो कुल्टा॥
चर्चा जारी रखिए पलीज
मसीजीवी जी निश्चिन्त रहिये । मेरे पास हिन्दु मुस्लिम वाली बात के लिये भी उत्तर हैं । यह अच्छा ही है कि लोग ऐसे प्रश्न पूछें । शीघ्र ही उत्तर दूँगी थोड़ा सा स्वास्थ्य के कारण देर हो सकती है ,किन्तु उत्तर अवश्य दूँगी ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
घुघूती जी,
ReplyDeleteस्त्री का सँघर्ष सदीयोँ को पार करता हुआ आज २१ वीँ सदी के प्रथम चरण तक आ पहुँचा है --
आप ने अपने विचार साफ तरीके से लिखे हैँ ..
आगे भी पढने की उत्सुक्ता बनी रहेगी ..
आशा है आप के स्वास्थ्य मेँ सुधार है
..ध्यान रखियेगा,
स स्नेह,
-- लावण्या
आपकी कविताएं जितनी स्पर्शी होती है उतने ही ज्वलंत आपके लेख, चिंतन के लिए मजबूर करने वाले!!
ReplyDeleteबंधु ललित, इतनी आसानी से किसी के प्रति अनुमान लगा लेने की कला आपने कहां से सीखी। या यूं कहें कि किसी भी प्रसंग मे हिन्दु-मुस्लिम वाला संदर्भ जोड़ने की कला आपने कहां से सीखी बंधु। अगर ऐसी कोई संस्था हो जो यह सब सीखाती हो तो काश वह बंद की जा सके!!
बहुत ही ज्वलंत सवालो और जवाबो से रचा है आपका यह लेख पर यह वक्त अब बदल रहा है
ReplyDeleteऔर बदलेगा ...कुछ कभी इसी तरह का मैंने भी लिखा था
तुम पुरुष हो इसलिए तोड़ सके सारे बंधनो को
मैं चाहा के इस से मुक्त ना हो पाई
रोज़ नापती हूँ अपनी सूनी आँखो से आकाश को
चाहा के भी कभी में मुक्त गगन में उड़ नही पाई
ना जाने कितने सपने देखे,कितने ही रिश्ते निभाए
हक़ीकत की धरती पर बिखर गये वो सब
मैं चाहा के भी उन रिश्तो की जकड़न तोड़ नही पाई
बहुत मुश्किल है अपने इन बंधनो से मुक्त होना
तुम करोगे तो यह साहस कहलायेगा
मैं करूंगी तो नारी शब्द अपमानित हो जाएगा!!
रंजना
बासूती जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लाग पे पधारने का बहुत बहुत धन्यवाद ।
सही कहा आपने । कल चक्र की निरंतरता बनी रहती है । समय घाव तो भर देता है , परंतु दाग के चिन्ह रह ही जाते है ।
पीड़ा हमारा सहज स्वाभाव नही है , जीवन से मिली विषमता एवं कथोराघत से यह ही सीख पाया हू बस । यात्रा जरी है और साथ ही सीखने - समझने का प्रयास भी ।
- आशुतोष
बहुत सही.. प्रेरणाजोत बनी रहिए..
ReplyDeleteकाफी चिंतनीय विषय. चर्चा को आगे बढाईये -- शास्त्री जे सी फिलिप
ReplyDeleteमेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!
"यत्र नार्येस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता",
ReplyDeleteहमेशा से हीं नारी हमारे समाज में श्रद्धा की दृष्टि से देखी जाती रही है, आपकी प्रस्तुति वेहद -वेहद प्रशंसनीय है. शब्द और बिंब में ग़ज़ब का तालमेल. बहुत -बहुत वधाईयाँ .
बहुत ही सशक्त लेख है, इस चर्चा को जारी रखिए।
ReplyDeleteयह सांप्रदायिक चर्चा यहीं रुक जाए तो उचित होगा। व्यर्थ में ही मूल लेख से दूर जा रहे हैं। इस्लामी संस्कृति पर कीचड़ फेंक कर ४ पत्नियों की बात करेंगे, वे लोग द्रौपदी को फिर पांच पतियों के बीच लाकर खड़ा कर देंगे, राजाओं की बहु-विवाह रीत के उदाहरण देकर व्यर्थ का एक नया बखेड़ा खड़ा हो जाएगा। जिन चिन्तनशील मुद्दों पर चर्चा चल रही है, वह खटाई में पड़ जाएगी।
गम्भीर चिन्तन विषयक लेख है आपका! साथ ही इन समस्याओं को सुलझाने हेतु कुछ सुझाव भी दें, तो सबको मार्गदर्शन मिलेगा। ललित जी की टिप्पणी हमें भी अच्छी नहीं लगी। उन्हें सम्माननीय महिलाओं पर व्यक्तिगत अनुमान व प्रश्न नहीं करने चाहिए, भले ही दूसरे पैराग्राफ में ऐतिहासिक कटुसत्य लिखा है। पर सद्भावना और संहति की दृष्टि से यह भड़काऊ हो सकता है। कृपया उक्त टिप्पणी को delete कर दीजिए।
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