tag:blogger.com,1999:blog-38818012.post3208231187977982529..comments2023-10-29T13:18:36.222+05:30Comments on घुघूतीबासूती: स्त्रियों के मुद्दे पर : कुछ उत्तर, कुछ और प्रश्न !ghughutibasutihttp://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-30571052710086894372007-09-10T11:43:00.000+05:302007-09-10T11:43:00.000+05:30गम्भीर चिन्तन विषयक लेख है आपका! साथ ही इन समस्याओ...गम्भीर चिन्तन विषयक लेख है आपका! साथ ही इन समस्याओं को सुलझाने हेतु कुछ सुझाव भी दें, तो सबको मार्गदर्शन मिलेगा। ललित जी की टिप्पणी हमें भी अच्छी नहीं लगी। उन्हें सम्माननीय महिलाओं पर व्यक्तिगत अनुमान व प्रश्न नहीं करने चाहिए, भले ही दूसरे पैराग्राफ में ऐतिहासिक कटुसत्य लिखा है। पर सद्भावना और संहति की दृष्टि से यह भड़काऊ हो सकता है। कृपया उक्त टिप्पणी को delete कर दीजिए।हरिरामhttps://www.blogger.com/profile/12475263434352801173noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-35767923287453076982007-09-09T18:40:00.000+05:302007-09-09T18:40:00.000+05:30बहुत ही सशक्त लेख है, इस चर्चा को जारी रखिए।यह सां...बहुत ही सशक्त लेख है, इस चर्चा को जारी रखिए।<BR/>यह सांप्रदायिक चर्चा यहीं रुक जाए तो उचित होगा। व्यर्थ में ही मूल लेख से दूर जा रहे हैं। इस्लामी संस्कृति पर कीचड़ फेंक कर ४ पत्नियों की बात करेंगे, वे लोग द्रौपदी को फिर पांच पतियों के बीच लाकर खड़ा कर देंगे, राजाओं की बहु-विवाह रीत के उदाहरण देकर व्यर्थ का एक नया बखेड़ा खड़ा हो जाएगा। जिन चिन्तनशील मुद्दों पर चर्चा चल रही है, वह खटाई में पड़ जाएगी।महावीरhttps://www.blogger.com/profile/00859697755955147456noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-35102894501747840122007-09-09T13:50:00.000+05:302007-09-09T13:50:00.000+05:30"यत्र नार्येस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता", हमे..."यत्र नार्येस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता",<BR/> हमेशा से हीं नारी हमारे समाज में श्रद्धा की दृष्टि से देखी जाती रही है, आपकी प्रस्तुति वेहद -वेहद प्रशंसनीय है. शब्द और बिंब में ग़ज़ब का तालमेल. बहुत -बहुत वधाईयाँ .रवीन्द्र प्रभातhttps://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-62760462714588023792007-09-08T21:26:00.000+05:302007-09-08T21:26:00.000+05:30काफी चिंतनीय विषय. चर्चा को आगे बढाईये -- शास्त्...काफी चिंतनीय विषय. चर्चा को आगे बढाईये -- शास्त्री जे सी फिलिप<BR/><BR/>मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,<BR/>2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!Shastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-58023502357642776832007-09-08T13:14:00.000+05:302007-09-08T13:14:00.000+05:30बहुत सही.. प्रेरणाजोत बनी रहिए..बहुत सही.. प्रेरणाजोत बनी रहिए..azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-14817661821636248702007-09-08T12:01:00.000+05:302007-09-08T12:01:00.000+05:30बासूती जी,मेरे ब्लाग पे पधारने का बहुत बहुत धन्यवा...बासूती जी,<BR/><BR/>मेरे ब्लाग पे पधारने का बहुत बहुत धन्यवाद । <BR/><BR/>सही कहा आपने । कल चक्र की निरंतरता बनी रहती है । समय घाव तो भर देता है , परंतु दाग के चिन्ह रह ही जाते है । <BR/><BR/>पीड़ा हमारा सहज स्वाभाव नही है , जीवन से मिली विषमता एवं कथोराघत से यह ही सीख पाया हू बस । यात्रा जरी है और साथ ही सीखने - समझने का प्रयास भी । <BR/><BR/>- आशुतोषAshutoshhttps://www.blogger.com/profile/15302420979358848404noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-79638071972556702942007-09-08T09:14:00.000+05:302007-09-08T09:14:00.000+05:30बहुत ही ज्वलंत सवालो और जवाबो से रचा है आपका यह ले...बहुत ही ज्वलंत सवालो और जवाबो से रचा है आपका यह लेख पर यह वक्त अब बदल रहा है <BR/>और बदलेगा ...कुछ कभी इसी तरह का मैंने भी लिखा था <BR/><BR/>तुम पुरुष हो इसलिए तोड़ सके सारे बंधनो को<BR/>मैं चाहा के इस से मुक्त ना हो पाई<BR/>रोज़ नापती हूँ अपनी सूनी आँखो से आकाश को<BR/>चाहा के भी कभी में मुक्त गगन में उड़ नही पाई<BR/><BR/>ना जाने कितने सपने देखे,कितने ही रिश्ते निभाए<BR/>हक़ीकत की धरती पर बिखर गये वो सब<BR/>मैं चाहा के भी उन रिश्तो की जकड़न तोड़ नही पाई<BR/><BR/>बहुत मुश्किल है अपने इन बंधनो से मुक्त होना<BR/>तुम करोगे तो यह साहस कहलायेगा <BR/>मैं करूंगी तो नारी शब्द अपमानित हो जाएगा!!<BR/><BR/>रंजनारंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-74355809916826597002007-09-08T00:04:00.000+05:302007-09-08T00:04:00.000+05:30आपकी कविताएं जितनी स्पर्शी होती है उतने ही ज्वलंत ...आपकी कविताएं जितनी स्पर्शी होती है उतने ही ज्वलंत आपके लेख, चिंतन के लिए मजबूर करने वाले!!<BR/><BR/><BR/>बंधु ललित, इतनी आसानी से किसी के प्रति अनुमान लगा लेने की कला आपने कहां से सीखी। या यूं कहें कि किसी भी प्रसंग मे हिन्दु-मुस्लिम वाला संदर्भ जोड़ने की कला आपने कहां से सीखी बंधु। अगर ऐसी कोई संस्था हो जो यह सब सीखाती हो तो काश वह बंद की जा सके!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-51423384148333949552007-09-07T23:58:00.000+05:302007-09-07T23:58:00.000+05:30घुघूती जी,स्त्री का सँघर्ष सदीयोँ को पार करता हुआ ...घुघूती जी,<BR/>स्त्री का सँघर्ष सदीयोँ को पार करता हुआ आज २१ वीँ सदी के प्रथम चरण तक आ पहुँचा है -- <BR/>आप ने अपने विचार साफ तरीके से लिखे हैँ ..<BR/>आगे भी पढने की उत्सुक्ता बनी रहेगी ..<BR/>आशा है आप के स्वास्थ्य मेँ सुधार है <BR/>..ध्यान रखियेगा, <BR/> स स्नेह, <BR/>-- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-80686320707417726022007-09-07T22:57:00.000+05:302007-09-07T22:57:00.000+05:30मसीजीवी जी निश्चिन्त रहिये । मेरे पास हिन्दु मुस्ल...मसीजीवी जी निश्चिन्त रहिये । मेरे पास हिन्दु मुस्लिम वाली बात के लिये भी उत्तर हैं । यह अच्छा ही है कि लोग ऐसे प्रश्न पूछें । शीघ्र ही उत्तर दूँगी थोड़ा सा स्वास्थ्य के कारण देर हो सकती है ,किन्तु उत्तर अवश्य दूँगी ।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-29015056622876647442007-09-07T22:55:00.000+05:302007-09-07T22:55:00.000+05:30घुघुती जी आपने बड़े सरल ढगं से उस शक्ति खीचतान को स...घुघुती जी <BR/>आपने बड़े सरल ढगं से उस शक्ति खीचतान को समझाया है जिसकी मैं ने अपने कमेंट में चर्चा की थी। रचना जी ने बहुत सुन्दर कविता के सहारे अपनी बात कही है। ललित जी बेवजह सांप्रदायिक प्रवति दिखा रहे हैं, और देवियों ने पुरुषों की तारिफ़ में अगर लिखना शुरु कर दिया तो क्या समाज उनके चरित्र पर लाछन न लगाएगा। पुरुष स्त्री की तारिफ़ करे तू श्रंगार रस और अगर स्त्री करे तो कुल्टा॥<BR/>चर्चा जारी रखिए पलीजAnita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-4629358441492250132007-09-07T22:15:00.000+05:302007-09-07T22:15:00.000+05:30इस अच्छी खासी चर्चा में हिंदू-मुसलमान के आने की ज...इस अच्छी खासी चर्चा में हिंदू-मुसलमान के आने की जगह कैसे निकाली गई भई ?<BR/><BR/>घुघुतीजी फिलहाल ऐसी टिप्पणियों को इग्नोर मारें और जारी रहें।मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-32844495294464969992007-09-07T20:44:00.000+05:302007-09-07T20:44:00.000+05:30@abhay tiwari you have said what i wanted to sayso...@abhay tiwari <BR/>you have said what i wanted to say<BR/>so not repeating . Mam is a senior lady and an icon and one has to meet her to understand what she isAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-6151246692594429882007-09-07T19:38:00.000+05:302007-09-07T19:38:00.000+05:30बहुत ज़बरदस्त तरीके से अपनी बात रखी है आपने घुघूती ...बहुत ज़बरदस्त तरीके से अपनी बात रखी है आपने घुघूती जी.. <BR/><BR/>श्रीमान ललित, आप लेख समझने की कोशिश करें.. लेखक के विषय में अपने अनुचित अनुमान न निकालें.. और उस ऊर्जा का इस्तेमाल स्वयं अपने दिमाग की ग्रंथियों को सुलझाने में करें, वह बेहतर होगा.. <BR/>आप यहाँ जिस मानसिकता का प्रदर्शन कर रहे हैं न सिर्फ़ वह साम्प्रदायिक है बल्कि ठीक वही पुरुष-वर्चस्ववादी है जिसका घुघुती जी ने उल्लेख किया है..<BR/><BR/>आप को अधिकार किसने दिया कि आप किसी स्त्री से इस तरह के सवाल करें? ये निहायत अशिष्टता, मूर्खता और अहंमन्यता है.. <BR/><BR/>क्या किसी "देवी" से बात करने का यही तरीका जानते हैं आप?अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-10776975132656996302007-09-07T18:10:00.000+05:302007-09-07T18:10:00.000+05:30सर्वप्रथम "या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता...सर्वप्रथम "या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता, नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरी" फिर "गतिस्वं गतिस्वं त्वमेकां भवानि" तक ऋषि, मुनि, देवों, सभी ने नारी की पूजा की है। हिन्दू शास्त्र कहते हैं "यत्र नार्येस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता", शंकराचार्य ने भी देवी की स्तुति में अनेकानेक काव्य लिखे हैं।<BR/><BR/>हिन्दू लोग नारी की रक्षा, सम्मान को बचाने के लिए अपनी जान देते आए हैं, देते रहेंगे।<BR/><BR/>इस्लाम में नारी को कुछ निम्न स्थान दिया गया है। एक पुरुष को चार-चार विवाह की अनुमति होती है। भारत में विदेशी आक्रमणों के बाद विशेषकर मुगल शासनकाल में नारी की ऐसी दयनीय स्थिति शुरू हुई थी। किन्तु अब धीरे धीरे समाज परिवर्तन हो रहा है आशा है शीघ्र ही नर-नारी दोनों बराबर होकर कदम से कदम मिलाकर विश्व को प्रगति पथ पर ले जाएँगे।<BR/><BR/>आपके लेखों में पुरुष वर्ग के प्रति जितनी निराशा, विरोधाभास और वैचारिक जहरीलापन प्रकट हो रहा है उससे लगता है कि शायद आपको किसी इस्लाम अनुयायी पुरुष से धोखा, दर्द मिला हो। पिता, पुत्र, भाई, पति-प्रेमी का सच्चा स्नेह-प्रेम न मिल पाया हो। निवेदन है कि निष्पक्ष, निरपेक्ष होकर शान्त मन से सोचें...<BR/><BR/>अनेक पुरुषों ने नारी की वन्दना मे, प्रशंसा में, काव्य से लेकर महाकाव्य तक लिखे हैं। लेकिन महिलाओं द्वारा पुरुष की प्रशंसा में कितने काव्य लिखें हैं? 'देवियाँ' में भी ऐसी कृतघ्नता क्यों?ललितhttps://www.blogger.com/profile/16095464463179535684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-35119190180100372192007-09-07T17:10:00.000+05:302007-09-07T17:10:00.000+05:30हे नर , क्यों आज भी इतने कमजोर हो तुम क्यों आज भी ...हे नर , क्यों आज भी इतने कमजोर हो तुम<BR/> <BR/><BR/>क्यों आज भी इतने कमजोर हो तुम<BR/>कि नारी को हथियार बना कर<BR/>अपने आपसी द्वेषो को निपटाते हो<BR/>क्यों आज भी इतने निर्बल हो तुम<BR/>कि नारी शरीर कि<BR/>संरचना को बखाने बिना<BR/>साहित्यकार नहीं समझे जाते हो तुम<BR/>तुम लिखो तो जागरूक हो तुम<BR/>वह लिखे तो बेशर्म औरत कहते हो<BR/>तुम सड़को को सार्वजनिक शौचालये<BR/>बनाओ तो जरुरत तुम्हारी है<BR/>वह फैशन वीक मे काम करे<BR/>तो नंगी नाच रही है<BR/>तुम्हारी तारीफ हो तो<BR/>तुम तारीफ के काबिल हो<BR/>उसकी तारीफ हो तो<BR/>वह "औरत" की तारीफ है<BR/>तुम करो तो बलात्कार भी "काम" है<BR/>वह वेश्या बने तो बदनाम है <BR/><BR/>हे नर<BR/>क्यों आज भी इतने कमजोर हो तुमAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-82931091659849129392007-09-07T16:54:00.000+05:302007-09-07T16:54:00.000+05:30समर्थ सार्थक लेखन। चर्चा चालू रखिये। अगली पोस्ट की...समर्थ सार्थक लेखन। चर्चा चालू रखिये। अगली पोस्ट की प्रतीक्षा में।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.com