Monday, September 03, 2007

सन्नाटे

सन्नाटे
सन्नाटे की चीखों ने कान मेरे फाड़े हैं
कब तक करूँ बर्दाश्त कोई बता दे मुझे
क्या कोई शब्द नहीं है इस संसार में
जो गूँजे और तोड़ डाले इस सन्नाटे को ?
पशु, पक्षी, यहाँ तक कि हवा भी चुपचाप है
भंवरे भी मेरे बाग के गाना भूले लगते हैं
तड़ित से कह रही हूँ कि वह जोर से कड़के
बादलों से कर रही निवेदन वे जोर से गरजें ।
सुन रही हूँ केवल मन में उठते विचारों को
अपनी ही साँस लगती मुझे है दहाड़ शेरों की
हृदय का धड़कना है जैसे टिकटिक घड़ियों की
नब्ज सुनाई देती है ज्यों हो थाप ढोलक की ।
ऐसे ही पलों में लोग बात खुद से करते हैं
नजरों में संसार की वे लोग विक्षिप्त लगते हैं
करके कोई तो बात इनसे देखे और ये जाने
किसने बनाया विक्षिप्त किसने दिये ये वीराने ।
.................घुघूती बासूती

14 comments:

  1. बहुत खूब!! बहुत बढ़िया लिखा है आपने!!
    सन्नाटों की गूंज बहुत खतरनाक ही होती है।

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  2. Language... has created the word "loneliness" to express the pain of being alone. And it has created the word "solitude" to express the glory of being alone.
    Paul Tilich

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  3. घूघूती जी
    ये सन्नाटे और गहराते जाते हैं।
    नजरों में संसार की वे लोग विक्षिप्त लगते हैं
    करके कोई तो बात इनसे देखे और ये जाने
    किसने बनाया विक्षिप्त किसने दिये ये वीराने ।
    ये लोग विक्षिप्त क्युं बने कह दो ऐसे लोगों को खुद दोस्त अपने बनें और सन्नाटों से प्यार करें ,फ़िर देखे अपने अन्दर की दुनिया कितनी हसीन है।
    लेकिन कविता बहुत मार्मिक हैं…॥ बधाई

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  4. घुघूतीजी कहां है सन्नाटा,हमरे ब्लाग पर आइये ना वहां पूड़ी है, परांठा है, सिंपैथी है।
    पर आप हैं कि सिर्फ सन्नाटे का छंद सुन रही हैं।
    अजी दिल्ली में ब्लू लाइन में एक दिन बस में सफर कर लीजिये, फिर सपने में भी ना आने का सन्नाटा, मार धड़ाम-धूं धूं, खौं खौं।
    क्षमा करें, अब यह चिरकुट व्यंग्यकार टिप्पणी करेगा, तो क्या करेगा।
    कविता दिल को छूती है। ऐसा सन्नाटा हो काश।

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  5. Anonymous4:02 pm

    जब दर्द ठहर जाता है
    जीना आसान होजाता है
    शब्द ही नहीं
    मौन भी शांत हों जाता है

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  6. अपने बचपन के एक छोटे कस्बे में गरमी की एक दोपहर में.. दिख रही है मुझे एक स्त्री..अकेले घर में अकेली..

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  7. ऐसे ही पलों में लोग बात खुद से करते हैं
    नजरों में संसार की वे लोग विक्षिप्त लगते हैं
    करके कोई तो बात इनसे देखे और ये जाने
    किसने बनाया विक्षिप्त किसने दिये ये वीराने ।

    बहुत ही सुंदर लिखा है आपने कभी कभी दिल की बात यूं आ जाती है
    लफ्ज़ दिल में होते हैं पर सुनायी कही और देते हैं ..


    रहो खामोश मेरे दिल
    यूं धड़क के शोर न मचाओ
    कही अपने लफ्ज़ ही
    कोई सन्नाटा न बुन दे यहाँ

    बधाई

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  8. बहुत भावुकता पूर्ण कविता है।
    दीपक भारतदीप

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  9. आह्ह!! ये सन्नाटा-और ये सन्नाटे की चीख. बहुत गहरी उतर गई. कहाँ कहाँ तक सुनाई दे रही है. वाह!

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  10. शोर सुनना ही पड़ता है - चाहे बाहर का हो या अन्दर का. उस शोर में अपने को एकाग्र करें तभी असली सन्नाटा आता है.
    और कहते हैं कि आता है तो फिर जाता नहीं - सही है या गलत; पता नहीं.

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  11. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....बधाई

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  12. बहुत बढिया रचना है बधाई।

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  13. बहुत ही सुंदर्…॥

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  14. घूघूती जी, गहरी अभिव्यक्ति,बहुत ही सुंदर्…बहुत ही मार्मिक हैं…कविता , बधाई.

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