क्यों तुम आते हो
क्यों तुम आते हो जाने को
क्यों तुम जाते हो आने को
नित दिन का यह जाओ कहते
इक टुकड़ा मुझसे मेरे मुझ का
संग अपने तुम ले जाते हो
जब तुम कहते हो 'तुम हो '
उस टुकड़े का इक टुकड़ा
वापिस मुझे दे जाते हो
इतने टुकड़ों में बँट गई हूँ
कितने टुकड़े पास तुम्हारे
कितने मेरे पास बचे हैं
ना लग पाता अनुमान
शायद इस गणित के लिए
नया गणित ही रचना होगा
शायद नाम मोह गणित ही
उसका मुझे रखना होगा ।
घुघूती बासूती
Saturday, September 01, 2007
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बेहद ताज़गी है , तटका
ReplyDeleteघुघूती बासूती जी,बहुत सुन्दर! सच है यह मोह हमेशा हम को बाँटता रहता है...
ReplyDeleteहाँ इंसान का वज़ूद ही इधर-उधर तारों में बिखरा पड़ा है
ReplyDeleteऔर हम अपने वातावरण के किसी खास के साथ ज्यादा जुड़ाव अनुभव करते हैं
कभी तो बेचैनी इतनी हो जाती है कि तड़प सँभलती नहीं-
ऐ हक़ीकते मुंतज़िर कभी नज़र आ लिबासे-मज़ाज़ में
कि हज़ारों सज़दे तड़प रहे हैं मेरी एक ज़बीने-नियाज में
जब इतना कुछ रचा है तो एक नया गणित भी रच ही डालिये. शुभकामनायें.
ReplyDeleteyou are pating very nice poems nowdays what will be my luck if i will able to hear from yo, miss you too much,
ReplyDeleteman1
सम्बंध में यह जोड़-बाकी कभी-कभी हमने भी महसूस किया है. पर उसे अलग करना होता है. उसमें हिसाब है - स्पन्दन नहीं.
ReplyDeleteबहुत अच्छा और बहुत सरल लिखा आपने.
घुघूती बासूती जी,बहुत सुन्दर
ReplyDeleteघुघूती बासूती जी,
ReplyDeleteनया नाम " मोह गणित " बहुत पसँद आया और आपकी कविता भी !
--लावण्या ...
बहुत बढिया प्रस्तुति
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteघुघूती बासूती जी,आप की गणित की क्लास हम कब जाँइन कर सकते है जरा जल्दी से जवाब भेजियेगा .........................................आप मेरी नारद रजिस्टर होने मे मदद करे़ मेने नारद पर पजियण लिंक मे मेरा नाम 20-25 दिन पहले आ चुका है पर आज तक मेरी पोस्ट नारद पर नही आ पा रही ..... मेरी सहायता करे़....................
ReplyDeleteहम तो समझे थे की यहा गणित पढाया जायेगा है..:)पर शुक्र है बच गये जी..मुकेश जी आप नाहक परेशान है आपका लेखन नारद जी को पसंद नही आया होगा..मस्त रहिये वैसे भी नारद पर आजकल जाता कौन है..:)
ReplyDeleteजैसे आपकी कविताएं दिन ब दिन और सुंदर होती जा रही है वैसे ही, दिन ब दिन आप जटिल भावनाओं को सरल शब्दों मे आसानी से उकेरने मे और सफ़ल होती जा रही हैं।
ReplyDeleteशुक्रिया जटिल भाव-गणितों को सरलतम तरीके से समझाने के लिए!!
नित दिन का यह जाओ कहते
ReplyDeleteइक टुकड़ा मुझसे मेरे मुझ का
संग अपने तुम ले जाते हो
जब तुम कहते हो 'तुम हो '
बहुत बढिया
उस टुकड़े का इक टुकड़ा
ReplyDeleteवापिस मुझे दे जाते हो
इतने टुकड़ों में बँट गई हूँ
कितने टुकड़े पास तुम्हारे
बहुत सुंदर है ..घुघूती बासूती जी,
dhanyavaad
ReplyDeleteAapki kavitaayen padee. Bahut achchhi hai.