Ghughuti Basuti
बहुत सुन्दर एह्सास !बढिया रचना।
वाह! बहुत खूबजब मैं उन्हें सूँघती हूँवे मुझमें तेरा नामसूँघ लेती हैं।
सुवासित!
बहुत ख़ूब !कम शब्दों मे बहुत कुछ कहती हुई रचना।
बिल्कुल! लोग पौधों पत्तियों, कलियों से बात करते हैं और वे लहलहा कर बढ़ती हैं. कुछ वैसा ही है. जड़-चेतन सब में स्पन्दन है, सब में अतिमानव का अंश है, सब में चैत्य है - मैं तो इसी भाव में ले रहा हूं इन पंक्तियों को!
"जब मैं उन्हें सूँघती हूँवे मुझमें तेरा नामसूँघ लेती हैं।"तारीफ के लिये शब्द नही मिल रहा
अहा! उसकी ई-खुशबू हमें भी महसूस होने लगी।
बहुत रूमानी खुशबू है ।
बहुत अच्छा ! दीपक भारतदीप
बहुत सुंदर और रूमानी ..खुशबु सी फैल गई जेहन में इसको पढ़ के :)
बहुत सुन्दर एह्सास !बढिया रचना।
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब
ReplyDeleteजब मैं उन्हें सूँघती हूँ
वे मुझमें तेरा नाम
सूँघ लेती हैं।
सुवासित!
ReplyDeleteबहुत ख़ूब !
ReplyDeleteकम शब्दों मे बहुत कुछ कहती हुई रचना।
बिल्कुल! लोग पौधों पत्तियों, कलियों से बात करते हैं और वे लहलहा कर बढ़ती हैं. कुछ वैसा ही है. जड़-चेतन सब में स्पन्दन है, सब में अतिमानव का अंश है, सब में चैत्य है - मैं तो इसी भाव में ले रहा हूं इन पंक्तियों को!
ReplyDelete"जब मैं उन्हें सूँघती हूँ
ReplyDeleteवे मुझमें तेरा नाम
सूँघ लेती हैं।"
तारीफ के लिये शब्द नही मिल रहा
अहा! उसकी ई-खुशबू हमें भी महसूस होने लगी।
ReplyDeleteबहुत रूमानी खुशबू है ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा !
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
बहुत सुंदर और रूमानी ..खुशबु सी फैल गई जेहन में इसको पढ़ के :)
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