Thursday, August 23, 2007

तेरी खुशबू


तेरी खुशबू मुझमें
कुछ यूँ बसी है कि
मोंगरे की कलियाँ
जानती हैं नाम तुम्हारा
जब मैं उन्हें सूँघती हूँ
वे मुझमें तेरा नाम
सूँघ लेती हैं।

घुघूती बासूती

10 comments:

  1. बहुत सुन्दर एह्सास !बढिया रचना।

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  2. वाह! बहुत खूब

    जब मैं उन्हें सूँघती हूँ
    वे मुझमें तेरा नाम
    सूँघ लेती हैं।

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  3. बहुत ख़ूब !

    कम शब्दों मे बहुत कुछ कहती हुई रचना।

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  4. बिल्कुल! लोग पौधों पत्तियों, कलियों से बात करते हैं और वे लहलहा कर बढ़ती हैं. कुछ वैसा ही है. जड़-चेतन सब में स्पन्दन है, सब में अतिमानव का अंश है, सब में चैत्य है - मैं तो इसी भाव में ले रहा हूं इन पंक्तियों को!

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  5. "जब मैं उन्हें सूँघती हूँ
    वे मुझमें तेरा नाम
    सूँघ लेती हैं।"

    तारीफ के लिये शब्द नही मिल रहा

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  6. अहा! उसकी ई-खुशबू हमें भी महसूस होने लगी।

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  7. बहुत रूमानी खुशबू है ।

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  8. बहुत अच्छा !
    दीपक भारतदीप

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  9. बहुत सुंदर और रूमानी ..खुशबु सी फैल गई जेहन में इसको पढ़ के :)

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