Monday, August 20, 2007

किशोर मन



खेल रहे सब बच्चे कंचे, क्यों ना जाकर उनसे खेलूँ मैं
गुड़िया ले घर घर खेल, क्यों ना सखियों संग खेलूँ मैं
क्यों ना छोड़ मोटी पोथी को, कुछ कॉमिक पढ़ डालूँ मैं
पिक्चर जा रही सब सखियाँ, क्यों ना उन संग जाऊँ मैं
आज नहीं घर में कोई, क्यों माँ की साड़ी ना पहनूँ मैं
पहन आभूषण सुन्दर , क्यों नवयौवना ना बन जाऊँ मैं
पहन ऊँची एड़ी की सैन्डल, क्यों ना बड़ी बन जाऊँ मैं
नित देखता रहता है मोहन, क्यों राधा ना बन जाऊँ मैं
लगा आँखों में काजल सुरमा, क्यों ना स्वप्न सजाऊँ मैं
हृदय की नई धड़कन को, क्यों बेकाबू ना हो जाने दूँ मैं
आज बना बालों का जूड़ा, क्यों न उसमें फूल लगाऊँ मैं
सुन मधुर गानों की धुन, क्यों न उनपर पैर थिरकाऊँ मैं
ले गिटार सामने वाले लड़के का, क्यों न संग बजाऊँ मैं
आ रहे कार्टून टी वी पर, क्यों न आसन वहीं जमाऊँ मैं ?

जाग जाग ओ पागल लड़की ! उठ छोड़ जीवन का सब रस
रसायनशास्त्र की हर रिएक्शन रट, न्युमेरिकल कर ले बस
छोड़ दे धुनें गिटार की, भौतिकी में ध्वनि को पढ़ लेना तुम
सुन ना हृदय की धड़कन अब, श्वसनतंत्र को पढ़ लेना तुम
जोड़ ना इस मन को किसी से, बीजगणित पढ़ लेना तुम।

माँ, बाबा तुम लौट आए हो, जल्दी से खाना मुझे दे दो तुम
बारह बजे तक मुझे पढ़ना है, ग्यारह बजे कॉफी दे देना तुम
बाबा, पाँच बजे का अलार्म लगा है, भूल ना जाना उठाना तुम ।

घुघूती बासूती
१९.८.२००७

13 comments:

  1. सही तो कह रही है आप....बहुत आभार.

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  2. हम तो चले कंचे खेलने, सायकिल चलाने, धूप में तपने, आम चुराने
    चोरी से फिल्‍में देखने, सायकिलों की हवा निकालने,
    कॉमिक्‍स पढ़ने
    जोर जोर से बेसुरा गाना गाने

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  3. जो बीत गई सो गई। अब कहाँ आने वाली।
    इस अच्छी सूची में से कुछ एक ही कर लें तो भी बहुत है।
    अच्छी रचना है।

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  4. भई वाह ही वाह जी
    खूब रिवर्स गीयर में गयीं।

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  5. बहुत ही अच्छा गीत। बधाई हो।

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  6. बहुत खूब!बचपन कहाँ भूलता है।

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  7. कैसा मोहक किंतु सच्चा चित्र खींचा है आप ने.. पढ़कर मन मुग्ध हो गया..

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  8. सुंदर!!

    विगत स्मृतियां साकी है वाले अंदाज़ में फ़्लैश बैक में चल रही हैं इन दिनों आप और इसी फ़्लैश बैक का नतीजा है कि आपकी स्मृतियां अब शब्दों के रुप में हमारे सामने आ रही हैं।

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  9. बचपन तो ऐसा ही है, भुलाये नहीं भूलता। आपकी इस रचना ने एक बार फिर ताजा कर दीं बचपन की यादें। बहुत अच्छा लिखा है। बधाई स्वीकारें।

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  10. चंचल किशोर की चपलता को बहुत सुंदर रुप दिया है… अतिसुंदर!!!

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  11. घुघूती जी आपने तो सबका बचपन याद दिला दिया है...अच्छा लगा पढ़कर....

    सुनीता(शानू)

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  12. मजा आ गया
    दीपक भारतदीप

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  13. हमारी बेटी के साथ भी कुछ ऐसा हो रहा है,आपका
    चित्रण अच्छा लगा.

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