खेल रहे सब बच्चे कंचे, क्यों ना जाकर उनसे खेलूँ मैं
गुड़िया ले घर घर खेल, क्यों ना सखियों संग खेलूँ मैं
क्यों ना छोड़ मोटी पोथी को, कुछ कॉमिक पढ़ डालूँ मैं
पिक्चर जा रही सब सखियाँ, क्यों ना उन संग जाऊँ मैं
आज नहीं घर में कोई, क्यों माँ की साड़ी ना पहनूँ मैं
पहन आभूषण सुन्दर , क्यों नवयौवना ना बन जाऊँ मैं
पहन ऊँची एड़ी की सैन्डल, क्यों ना बड़ी बन जाऊँ मैं
नित देखता रहता है मोहन, क्यों राधा ना बन जाऊँ मैं
लगा आँखों में काजल सुरमा, क्यों ना स्वप्न सजाऊँ मैं
हृदय की नई धड़कन को, क्यों बेकाबू ना हो जाने दूँ मैं
आज बना बालों का जूड़ा, क्यों न उसमें फूल लगाऊँ मैं
सुन मधुर गानों की धुन, क्यों न उनपर पैर थिरकाऊँ मैं
ले गिटार सामने वाले लड़के का, क्यों न संग बजाऊँ मैं
आ रहे कार्टून टी वी पर, क्यों न आसन वहीं जमाऊँ मैं ?
जाग जाग ओ पागल लड़की ! उठ छोड़ जीवन का सब रस
रसायनशास्त्र की हर रिएक्शन रट, न्युमेरिकल कर ले बस
छोड़ दे धुनें गिटार की, भौतिकी में ध्वनि को पढ़ लेना तुम
सुन ना हृदय की धड़कन अब, श्वसनतंत्र को पढ़ लेना तुम
जोड़ ना इस मन को किसी से, बीजगणित पढ़ लेना तुम।
माँ, बाबा तुम लौट आए हो, जल्दी से खाना मुझे दे दो तुम
बारह बजे तक मुझे पढ़ना है, ग्यारह बजे कॉफी दे देना तुम
बाबा, पाँच बजे का अलार्म लगा है, भूल ना जाना उठाना तुम ।
घुघूती बासूती
१९.८.२००७
सही तो कह रही है आप....बहुत आभार.
ReplyDeleteहम तो चले कंचे खेलने, सायकिल चलाने, धूप में तपने, आम चुराने
ReplyDeleteचोरी से फिल्में देखने, सायकिलों की हवा निकालने,
कॉमिक्स पढ़ने
जोर जोर से बेसुरा गाना गाने
जो बीत गई सो गई। अब कहाँ आने वाली।
ReplyDeleteइस अच्छी सूची में से कुछ एक ही कर लें तो भी बहुत है।
अच्छी रचना है।
भई वाह ही वाह जी
ReplyDeleteखूब रिवर्स गीयर में गयीं।
बहुत ही अच्छा गीत। बधाई हो।
ReplyDeleteबहुत खूब!बचपन कहाँ भूलता है।
ReplyDeleteकैसा मोहक किंतु सच्चा चित्र खींचा है आप ने.. पढ़कर मन मुग्ध हो गया..
ReplyDeleteसुंदर!!
ReplyDeleteविगत स्मृतियां साकी है वाले अंदाज़ में फ़्लैश बैक में चल रही हैं इन दिनों आप और इसी फ़्लैश बैक का नतीजा है कि आपकी स्मृतियां अब शब्दों के रुप में हमारे सामने आ रही हैं।
बचपन तो ऐसा ही है, भुलाये नहीं भूलता। आपकी इस रचना ने एक बार फिर ताजा कर दीं बचपन की यादें। बहुत अच्छा लिखा है। बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteचंचल किशोर की चपलता को बहुत सुंदर रुप दिया है… अतिसुंदर!!!
ReplyDeleteघुघूती जी आपने तो सबका बचपन याद दिला दिया है...अच्छा लगा पढ़कर....
ReplyDeleteसुनीता(शानू)
मजा आ गया
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
हमारी बेटी के साथ भी कुछ ऐसा हो रहा है,आपका
ReplyDeleteचित्रण अच्छा लगा.