Tuesday, August 14, 2007

शब्दों की वापसी

तेरा आना
शब्दों की वापसी है
उन भूले बिसरे शब्दों की वापसी
जिनसे नाता टूट गया था
कैसे कहते लिखते थे ये शब्द
मैं बिल्कुल भूल गई थी
कि शब्दों में छिपे रहते हैं भाव
मैं भूल गई थी
शब्दों में होते थे अर्थ
मैं यह भूल गई थी ।
शब्दों का मिठास
कड़वाहट, खट्टापन
खारा व कसैला स्वाद
ना याद रहा था ।
बस कुछ शब्द ही
रह गए थे शब्दकोष में
‘आओ’ ,’जाओ’,’खाओ’,’नहाओ’
‘नमक अधिक है’
‘बहुत मीठा है’
‘ठंडा है' या 'गरम है’ ;
क्या यह ही सच था
या यह मेरा भ्रम है ?
घुघूती बासूती

6 comments:

  1. शब्द ही लौटे होंगे...

    पसंद आई।

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  2. क्या बात है..

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  3. अब लौट आये लगता है, वाह!! बहुत खूब लौटे. बधाई.

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  4. प्रणाम!
    क्या खूब कहते है भूल गई मगर लिख भी गये है कितना सुंदर!
    बातो ही बातों मे जाने क्या-क्या कह डाला
    खट्टा-मीठा,हर मौसम का स्वाद चखा डाला...

    सुनीता(शानू)

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  5. ह्म्म, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है आपके मन की!!
    कोशिश कर सकता हूं इसे समझने की!!

    वह सिर्फ़ बिटिया का आना ही नही था, वह बहुत से एहसासों का भावों का भी फ़िर से आना था।
    वह सिर्फ़ बिटिया का आना नही था, वह स्मृतियों के झरोखे का फ़िर से खुल जाना था।
    वह बिटिया का ही फ़िर से आना नही था, वह तो किन्ही दिनों का भी फ़िर से आना था।

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  6. शब्दों से थक कर अब सिर्फ निःशब्द भावों को अनुभव कीजिए....

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