'क्या कवि कविता से बड़ा है' लेख पढ़ा । अब मैं तो कान सुनी बात पर विश्वास नहीं करती । वैसे भी कान कुछ कमजोर हैं । ओह, यह लेख था और क्योंकि पढ़ा था इसलिए कान से कोई सम्बन्ध नहीं । कोई बात नहीं, आँखें भी कमजोर हैं । खैर विज्ञान की छात्रा रही हूँ । तो भाई, 'सिद्ध करो' के सिद्धान्त पर चलती हूँ । सो इंची टेप की खोज में लग गई । जब यह कविता लिखना शुरू नहीं किया था तब कुछ सिलाई, कढ़ाई ,कपड़े सीने जैसे काम कर लिया करती थी । अब तो कढ़ाई बहुत दूर की बात है, कड़ाही का भी कम से कम उपयोग करती हूँ । हाँ, जब वह कविता में हो तब अलग बात है । अब तो बस कुछ शब्दों को पिरो कर पंक्तियाँ बनाती हूँ फिर उन सबको सिल कर एक कविता बनाती हूँ । कभी कभी कुछ थेगली लगी सी भी बन जाती हैं, पर उन्हें भी अपने चिट्ठे पर चिपका लेती हूँ । फिर कोई यह न कहने पाए कि मैं पक्षपाती हूँ । अगड़े-पिछड़े, होशियार-कमजोर, काले-सफेद, अच्छी-बुरी, ऐसी सभी भावनाओं से सदा ऊँचे उठे रहना चाहती हूँ । सो समदर्शी बन सभी कविताओं को चिपका देती हूँ । आगे पढ़ने वाले का भाग्य !
इंचीटेप तो कुछ घंटो की खोज से मिल गया । यह बात और है कि उसके साथ-साथ बहुत सारे अधूरे बने ब्लाउज, आधी फॉल लगी साड़ियाँ, तीन चौथाई कढ़ी साड़ी आदि भी मिल गई । इन्हें कुछ और पीछे छिपा, मैं इंचीटेप से लैस हो कवि को ढूँढने निकल पड़ी । रास्ते में कई मोर मिले, नाग साँप भी मिल गए, भाँति-भाँति के प्राणी मिले । पर यह कवि नाम का जीव नहीं मिलना था सो नहीं मिला । फिर ध्यान आया कि कई दिन पहले 'स्त्री भी व्यक्ति बन गई है' यह यहीं कहीं पढ़ा था । मैंने भी तो अपनी माँ को एक कविता लिख बताया था कि 'देख माँ मैं व्यक्ति बन गई'। अभी आप सब को बताना बाँकी है । प्रतीक्षा कीजिए, आपकी बारी भी देर सवेर आ ही जाएगी । सो इंचीटेप उठाया और स्वयं को नाप डाला ।
अब कविता तो पड़ोस में ही रहती है सो उसे नापने चल पड़ी । उसकी माँ को इस तरह अपनी बिटिया को नापना पसन्द नहीं आ रहा था । उन्हें बताना पड़ा कि यह सब साहित्य की सेवा के लिए है । गुजरात में आपको एक से एक नए नाम मिलते हैं, सो साहित्य नामक व्यक्ति भी कुछ घर छोड़ कर ही रहता है । कविता को तो वह बुरा नहीं लगता पर उसकी माँ को वह पसन्द नहीं । सो वे अड़ गईं कि 'साहित्य' की सेवा के लिए तो उनकी बेटी को बिल्कुल भी नापने न देंगी । अब मुझे उन्हें साहित्य क्या होता है बताना पड़ा । यह भी बताना पड़ा कि कभी कभी वह इन्जीनियर न होकर पुस्तकों में पाया जाता है ।
उन्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था । बल्कि अब तो वह पुस्तकों की अलमारी को भी शक की नजर से देख रहीं थीं कि साहित्य कहीं वहीं न छिपा बैठा हो । वैसी ही निगाहों से वे बिटिया को भी देख रहीं थीं । सो मैंने कहा कि कविता, शब्द कोष तो होगा ही, लाओ, तुम्हारी माँ को साहित्य का अर्थ दिखा दें । यह शब्दकोष क्या होता है आँटी ? उसके पूछने पर वह भी बताया । फिर अपने घर से शब्दकोष ले जाकर उन्हें उसमें साहित्य का अर्थ दिखाया । तब जाकर वे मुझे कविता की लम्बाई नापने देने के लिए तैयार हो गईं ।
अब तो परिणाम सामने था । फैसले की घड़ी आ गई थी । विज्ञान पर पूरा विश्वास है अतः जो भी निर्णय यह प्रयोग मुझे देगा मैं उसे नतमस्तक हो स्वीकार कर लूँगी । किन्तु यह क्या ? मेरी और कविता की लम्बाई बिल्कुल बराबर थी । सो सोचा प्रयोग दोहराया जाए । अतः उसके घर के हर प्राणी से स्वयं और कविता को नपवाया । सबने ध्यान से नापा, देखा । कविता की माँ तो कहीं अन्दर से अपना चश्मा भी निकाल लाईं । परिणाम बार बार वही निकल रहा था । सो मुझे लगता है कविता कवि से बड़ी नहीं और कवि कविता से बड़ा या बड़ी नहीं । दोनों एकदम बराबर हैं । आपको विश्वास न हो तो आप भी ये प्रयोग दोहरा लें । यदि कविता न मिले तो हमारे पड़ोस वाली को नाप लें, यदि उसकी माँ अनुमति दें तो । कवि तो, मैंने कहा न अब स्त्री जब व्यक्ति बन गई है तो कवि भी । सो कविता के पड़ोस में मैं भी रहती हूँ । आप अपना प्रयोग कर मेरी बात एक बार फिर सिद्ध कर सकते हैं ।
घुघूती बासूती
अस्वीकरण (Disclaimer):
इस लेख की कविता, इंचीटेप, कड़ाही ,मोर, नाग ,साँप, कवि आदि बिल्कुल काल्पनिक हैं । यही नहीं, यह लेख भी काल्पनिक है ।
घुघूती बासूती
Sunday, May 06, 2007
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अरे हजब हगो हो .. सुबह आप की तरह मैं भी कविता को नापना चाहता था तो मिली नहीं आप ने याद दिलाय और कहा कि पड़ोस वाली कविता को नापो तो उसकी माँ तो नहीं मिली पापा मिल गये ..आप ने कहा था माँ से पूछ लेना पापा का जिक्र तो था नहीं तो हम बिना पूछे नापने लगे. और जो झन्नाटेदार झांपड़ पड़ा कि घूम गये. आप भी ना ...क्या क्या सलाह देती हैं...बू हू हू....
ReplyDeleteहाहाहा काकेश जी ! मैंने तो अस्वीकरण (Disclaimer) दे ही दिया था कि इस लेख की कविता, इंचीटेप, कड़ाही ,मोर, नाग ,साँप, कवि आदि बिल्कुल काल्पनिक हैं । फिर भी आपने अस्वीकरण पढ़े बिना ही इतनी जल्दी की । आप काल्पनिक कविता को कल्पना में ही काल्पनिक इंचीटेप से नापते तो मार कविता के पिताजी से तो न पड़ती ,किसी और के कोमल हाथ से ही पड़ती यदि उन्हें इन कल्पनाओं का पता चलता तो।
ReplyDeleteभविष्य में ध्यान रखियेगा । मेरी पूरी सहानुभूति आपके साथ है ।
नोट :अब किसी सहानुभूति को ढूँढने न निकल पड़ना ।
घुघूती बासूती
घुघूती बासुती जी, आप ये क्या कर रही हैं? अच्छा कर रही हैं? साहित्य और कविता के हित में कर रही हैं? छूटे हुए ब्लाऊज निपटा सकती थीं, साड़ी का फॉल फरिया सकती थीं, मगर आप कविता को नापने निकल पड़ीं! मुझसे नहीं कह सकती थीं? अप्रगतिशील खेमे के इतने सारे छोकरे मुंह में सुरती दाबे गली की दीवार पर इधर-उधर थूकते बेकार बैठे रहते हैं, उनका कुछ सृजनात्मक इस्तेमाल होता! लेकिन नहीं, आपको तो कवि के बड़प्पन का खब्त चढ़ा हुआ था? कितनी हमारे दिल को ठेस लगी है इसका आपको अंदाज़ नहीं है! ठीक है, चलिये, अस्पताल का खर्चा ही मनीआर्डर कर दीजिये। हम आपको माफ़ करने के संबंध में विचार करेंगे।
ReplyDeleteबदली हुई शैली पढ़ कर अच्छा लगा। यह तो ठीक ही हुआ कि अन्य पाठकों की टिप्पणियाँ भी देख लीं और इसके परिणाम स्वरूप अब किसी कवि या कविता की नाप करने से बचा जायेगा ;)
ReplyDeleteमतलब ये कि अब आपने नापना शुरु कर ही दिया
ReplyDeleteबढिया है और प्रमोद जी आप के पास इत्ते सारे लोग है[quote] अप्रगतिशील खेमे के इतने सारे छोकरे मुंह में सुरती दाबे गली की दीवार पर इधर-उधर थूकते बेकार बैठे रहते हैं[/quote] तो आप तो एजेन्सी खॊल ही लो,कु्छ अप्रगतिशील लोग प्रगति तो कर जायेगे
बदली शैली शुबान अल्लाह!
ReplyDeleteआपका यह रूप भी मुझे बहुत पसंद आया
ReplyDeleteबहुत ख़ूब ....:)
कविता के बराबर सुन्दर भी। ( यह प्रविष्टी भी )
ReplyDeleteलेख पसन्द आया चाहे काल्पनिक ही था...परन्तु हो गई न एक नयी उलझन तैयार जैसे... अंडा बडा या मुर्गी....
ReplyDeleteवैसे लम्बे तंडगे समर्थ कवि भी बचकानी कविता लिख देते है.... जिसको कोई इन्ची टेप नही नाप सकता.. मगर फिर भी उन्हें वाहवाही मिल ही जाती है...
समरथ को नही कछु दोष गुसांई
Hey,
ReplyDeleteThere's a guy next door called Kavi Kumar. Apart from the obvious alliterative attraction of his name, he seems a good candidate for proving or disproving this exceedingly scientific hypothesis of yours.
You know you're welcome anytime.
Another fun post, btw..
Neha
बासूतीजी बचाओ...........
ReplyDeleteकविता रो बाप म्हारे लारै लट्ठ लेय पड़ियो है, भाई आप रा कॉलेज रा भायला रे सागे लेर म्हनै ढ़ूंढ रियो है... म्है आपरी ई पोस्ट रो लिंक भेज दियो पण लागै बां रै कने पूग्यो कोनी :(
म्हनै बचा ल्यो... बू हू हू
हमने तो चौड़ाई में नापा, कवि ही बड़ा निकला--हा हा!!
ReplyDeleteयह लिखने का अंदाज भी खूब पसंद आया. अब लविता कम और लेख ज्यादा में आ जाईए, नापने नपाने का झंझट भी खत्म ह्प जायेगा. बहुत उत्तम, बधाई!!