प्रिय तुम जब भी जाते हो
पल भर भी ना सो पाती हूँ
जानती हूँ तुम ना आओगे
क्यों राह तुम्हारी तकती हूँ ?
तुम आओगे तो मैं ये बोलूँगी
तुम न आते, आती केवल याद
तुम आते तो मैं यूँ तकती जाती
ज्यूँ मैं चकोर हूँ और तुम चाँद ।
लगता है यूँ ही युग बीते हैं
देख देख तुम्हारी ही ये राह
अब तो प्रियतम तू आ जा
मिट न जाये कहीं ये चाह ।
देखो यूँ नहीं अब रूठा करते
मिलने की ऋतु न बीती जाए
जब जाता इक बार वसन्त ये
फिर ना कोई इसे लौटा पाए ।
समय पंख लगा कर उड़ता जाता
ये न कभी किसी की बाट जोहता
मिलना हो जो तो आ जा अब तो
बिन तुम कुछ मुझे नहीं सुहाता ।
कितनी सूनी सी शामें मेरी
कितने खाली से हैं ये दिन
बिरहा की इस ज्वाला में
जलता मन और काया मेरी ।
सोच न तू ये दिन फिर आएँगे
कल फिर तेरे और मेरे जीवन में
सूख जाएगा जब जल सरिता का
कैसे उसे लौटा कर ले आएँगे ?
चल बहुत ही बाट जोह ली
अब तो विदा की बेला आई
तेरे कुछ सपनों को साथ लिए
जाती हूँ घर अपने, ओ हरजाई ।
घुघूती बासूती
Monday, April 30, 2007
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गहरा दर्शन है आपकी रचना में..वाह!!! बधाई. आपकी लेखनी मुझे पसंद आती है.
ReplyDeleteआप की सुन्दर रचना पढ कर एक सुन्दर गाना याद आ गया........
ReplyDelete"मैं तो तुम संग नैन मिला कर हार गयी सजना.....हार गयी सजना"
क्या बात है ।
ReplyDeleteपता नहीं आप किन परिस्थितियों में कविता लिखती होंगी. मैं यदा कदा जब भग्वद्गीता का अध्ययन करता हूं और जीवन साधना में विशेष उपलब्धि कै बगैर बीतता नजर आता है तो आपकी कविता जैसे भाव मन में आते हैं.
ReplyDeleteशायद भाव महत्वपूर्ण है, सिचयुयेशन सब की अलग-अलग होती हैं.
समय पंख लगा कर उड़ता जाता
ReplyDeleteये न कभी किसी की बाट जोहता
मिलना हो जो तो आ जा अब तो
बिन तुम कुछ मुझे नहीं सुहाता ।
कितनी सूनी सी शामें मेरी
कितने खाली से हैं ये दिन
बिरहा की इस ज्वाला में
जलता मन और काया मेरी ।
bahut sunder rachna hai aapki ...
सुन्दर पंक्तियाँ.
ReplyDeleteI was just searching somethng in google in hindi and then found this GHUGHUTI BASUTI BLOG....
ReplyDeleteand specially your last entry was so nostalgic ...
jab meri bua mujhe bachpan me waise hi Ghughuti basuti karke khilati thi...
Kudos for this amazing bolg....
बहुत सुंदर
ReplyDeleteराह तुम्हारी तकती हूँ
ReplyDeleteपर मिल जाओ तो डरती हूँ
लगता है यूँ ही युग बीते हैं
ReplyDeleteदेख देख तुम्हारी ही ये राह
अब तो प्रियतम तू आ जा
मिट न जाये कहीं ये चाह ।
सुन्दर पंक्तियां.