पिताजी
पिताजी में सदा हर काम, हर बात, जीवन के प्रति उमंग होती थी. छोटी छोटी बातें उन्हें खुश कर देती थीं. मैंने उन्हें कभी किसी काम को टालते नहीं देखा. ( माँ कभी कभी मजे से टाल देती थीं , सिवाय पुस्तक, पत्रिका, समाचार पत्र पढने को ) हर समय उर्जा और उत्साह से भरे होते थे. मृत्यु से तीन महीने पहले तक मेरे पास थे. सुबह शाम इतना तेज चलते हुए सैर करते थे कि सब लोग देखकर दंग रह जाते थे. छोटे छोटे बच्चे अपने अपने गेट पर खड़े होकर उनकी प्रतीक्षा करते थे. वे एक दूसरे की भाषा नहीं समझते थे. किन्तु बच्चे उन्हें नमस्कार करने को खड़े रहते थे.
उनकी मृत्यु से तीन महीने पहले मैंने उन्हें कहीं पांच किलोमीटर दूर पैदल चलकर अपने साथ घूमने जाने को कहा तो वे उसी क्षण चल पड़े.
पिताजी को उनके भगवान, माँ के प्रति अद्भुत अकूत प्रेम, उनके उद्यम, उनकी निडरता से अलग करके नहीं देख सकती.
जाने से एक माह पूर्व मेरी उपस्थिति में ही उन्हें मृत्यु का आभास हो गया था. या उनके शब्दों में काल उन्हें एक महीने का नोटिस दे गया था.
उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या तुम माँ का ध्यान रखोगी , उन्हें अपने साथ रखोगी और भाई के पास से ले जाती , लाती रहोगी. मेरे हाँ कहने के बाद उन्होंने बस मुझे अपने परिवार और बच्चियों का ध्यान रखने को कहा और उसके बाद एक भी बार संसार की समस्याओं के बारे में नहीं सोचा.
उस एक महीने उन्होंने लगातार केवल राम नाम ही जपा. हाथ से माला ले लेने पर वे उँगलियों पर काल्पनिक माला जपते रहे. अपनी अन्य दैनिक पूजा, आराधना को शायद बिस्तर पर होने के कारण छोड़ दिया. या शायद वे अपने हिस्से की कर चुके थे. कोई मिलने आता तो मुस्करा कर हाथ जोड़ देते. और फिर अपने जाप में लग जाते. भाई के प्रति उनका स्नेह ही उनका अंतिम सांसारिक लगाव रह गया था.
उन्हें न भोजन, न पानी , न दवा में रूचि रह गयी थी. न उन्हें कोई कष्ट था, न पीड़ा. डॉक्टर ने उनपर कोई जबरदस्ती न खिलाने न, दवा की जिद करने को कहा था. उनका कहना था कि उनके organs और शरीर धीरे धीरे बंद हो रहे हैं, बस उनके आराम का ध्यान रखना है.
जब भी उनके अंतिम दिनों को याद करती हूँ तो लगता है उनका जपा यह मन्त्र उनपर फलीभूत हुआ. बिलकुल जैसे फल पकने पर अपनी शाखा से अलग हो जाता है वे प्राणों/ जीवन/ शरीर से अलग हो गए.
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे
सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम् .
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्.
रात एक बजे उनके पूरी शक्ति से बिलकुल स्पष्ट अंतिम शब्द थे , हे राम !
पापा, हमारे लिए भी जपा था न!
जन्मदिन की शुभकामनाएँ पिताजी! आपको बहुत बहुत प्यार. आपके लिए कभी नहीं रोई. कोई कारण ही नहीं था या है. जैसा स्वच्छ , स्वस्थ, कार्यशील , विवेकपूर्ण , आनन्दमय जीवन आपने जिया, विरले ही जी सकते हैं. आपके पास कितना कम धन था और कितना अधिक आनन्द था.
आपके लिए ही निर्वाण षट्कम में 'चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम्' कहा गया होगा.
वैसे मैं सदा आपके साथ शिव को ही जोडती थी. मुझे बचपन भर लगता था वे आपके मित्र हैं. किन्तु आप अंत समय राम जपते रहे.
एक और बात सदा कुछ भी अच्छा, बहुत स्वाद खाते, बहुत अच्छा पहनते, जीते समय याद आती है. आप सदा कहते थे, 'तुमने खा लिया, मेरा पेट भर गया. ' आशा है आप सदा की तरह तृप्त होंगे. चाहे भूमि के कणों में, चाहे वायु में, चाहे आकाश में या अपने प्रिय पेड़ पौधों, हरियाली में या यदि कोई राम है तो उसके पास या किसी संसार की वृहत चेतना में बहते हुए. साथ में मेरा स्नेह भी बहता होगा पापा. Love you.
घुघूती बासूती
बहुत दिनों बाद ब्लॉग लिखा ना।
ReplyDeleteमाताजी -पिताजी की स्मृति को प्रणाम।श्रद्धावनत।
ReplyDeleteपिता की जगह कभी न भरी,सदा हर काम में याद आते है,उनकी अंतिम बार देखी मुस्कुराहट अभी भी ताजा बना हुई है मेरी याद में ,🙏
ReplyDeleteपू.स्व. पिताजी को हार्दिक श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteजन्मदिन पर नमन पिताजी के लिए ऐसे ही याद आते हैं पिता मुझे भी आ गए आपका लिखा पढ़कर
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि पिताजी को...।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteमर्म को छू गई आपकी अभिव्यक्ति। आपके पिताजी को नमन।
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