क के पास दो बिल्लियाँ हैं। कोई महान खानदानी, विशेष नस्ल वाली बिल्लियाँ नहीं, एनिमल शेल्टर से ली गईं सबसे कमजोर, घायल, बीमार और परजीवी टिक्स, फ्लीज़ और खुजली से पीड़ित थीं ये। एक की टाँग भी टूटी हुई थी। एक नर और एक मादा। क की महीनों की मेहनत, उसके पति के सहयोग और कितनी ही बार वेट के पास ले जाकर इलाज कराने, सारे वैक्सीनेशन कराने, स्पे कराने से वे स्वस्थ, सुन्दर, पालतू बिल्लियाँ बन गईं।
उन बिल्लियों को सही खुराक मिलती है। उन्हें नहलाया धुलाया जाता है, ब्रश किया जाता है। उनके पास खिलौने हैं, बैठने, लेटने, कहीं चढ़कर बैठने के लिए बिस्तरा, टोकरियाँ, पर्च हैं।
क के कई मित्रों व सहकर्मियों को क के बिल्लियों का इतना ध्यान रखने, उनपर पैसा खर्च करने से बहुत कष्ट होता है। उन्हें यह फिजूलखर्ची लगती है, समय की बर्बादी लगती है।
एक दिन तो एक सहकर्मी मित्र को कुछ अधिक ही जोश आ गया। वह क के इस तरह पैसा बर्बाद करने पर बुरा भला कहने लगा। उसे बताने लगा कि कैसे वह इसी पैसे का सदुपयोग किसी गरीब या अनाथ बच्चे के लिए कर सकती है। क ने कहा," सही कह रहे हो। तुम बताओ यह कैसे किया जा सकता है।"
मित्र ने कई संस्थाओं के नाम बताए और फिर क को प्रेरित किया कि वह बिल्लियों को उनके हाल पर छोड़ इन संस्थाओं में दान देकर बच्चों का उद्धार करे।
क ने कहा, "ठीक है, तुम्हें बाल कल्याण में इतनी रुचि है यह देख मुझे खुशी हुई। कल ही मैं इन संस्थाओं के फॉर्म मंगाकर तुम्हें दे देती हूँ। तुम वहाँ दान करने लगना।"
वह एकदम से हड़बड़ा गया। बोला," मैं? मैं क्यों? ये तो तुम्हारे लिए बता रहा था। मैं अपने पैसे बर्बाद नहीं कर सकता। मेरे पास इतना फालतू पैसा नहीं है।"
क ने कहा," अभी तो तुम मुझे इन संस्थाओं को दान देने का उपदेश दे रहे थे। अब क्या हुआ?"
मित्र बोला," मैं तो इसलिए कह रहा था क्योंकि तुम बिल्लियों पर खर्च करती हो।"
क ने उत्तर दिया," तुम और मैं बराबर कमाते हैं। मैं तो कमसे कम बिल्लियों पर खर्च करती हूँ। तुम किस पर खर्च करते हो? सब अपने पर?"
"हाँ। और मेरे पास किसी अन्य पर खर्च करने को फालतू पैसा है भी नहीं। और यह जो तुम गरीब बच्चों की बजाए बिल्लियों पर पैसा बहाती हो, यह बर्बादी है, मीननेस है, स्वार्थ है। तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। मैं तुम्हें इससे रोक रहा हूँ तो तुम मुझे ही अक्ल बता रही हो। मैं तो कभी बिल्लियों पर पैसे खर्च नहीं करता।"
क ने कहा, " हाँ, केवल अपने पर खर्च करते हो और कर रहे हो। वह बर्बादी नहीं है? मैं कमसे कम किसी का तो ध्यान रख रही हूँ, किसी के साथ तो अपनी खुशी बाँट रही हूँ। मुझे जानवरों से प्यार है तो मैं उनका भला कर रही हूँ। तुम्हें बच्चों से प्यार है तुम उनका भला करो।"
मित्र गुस्से से तमतमाता बड़बड़ाता उठ गया, " भले का तो जमाना ही नहीं है। बच्चे भूखे मर रहे हैं और इन्हें बिल्लियों की पड़ी है! मुझे कहती है कि मैं अनाथालय में दान दूँ, CRY को दान दूँ। मेरे पास क्या फालतू पैसा है! हुँह!"
घुघूती बासूती
पुनश्चः
यह किस्सा बिल्कुल सच है। ऐसे 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे' कभी कभी जीवन में मिल जाते हैं और अपने कुतर्कों से हमें दंग कर जाते हैं। हम बस सोचते रह जाते हैं कि क्या ये सच में अंधे हैं, मूर्ख हैं या इन्हें सच में लगता है कि इनका दायित्व तो बस दूसरों को राह दिखाने भर का है उस राह चलना तो दूसरों का काम है।
घुघूती बासूती
उन बिल्लियों को सही खुराक मिलती है। उन्हें नहलाया धुलाया जाता है, ब्रश किया जाता है। उनके पास खिलौने हैं, बैठने, लेटने, कहीं चढ़कर बैठने के लिए बिस्तरा, टोकरियाँ, पर्च हैं।
क के कई मित्रों व सहकर्मियों को क के बिल्लियों का इतना ध्यान रखने, उनपर पैसा खर्च करने से बहुत कष्ट होता है। उन्हें यह फिजूलखर्ची लगती है, समय की बर्बादी लगती है।
एक दिन तो एक सहकर्मी मित्र को कुछ अधिक ही जोश आ गया। वह क के इस तरह पैसा बर्बाद करने पर बुरा भला कहने लगा। उसे बताने लगा कि कैसे वह इसी पैसे का सदुपयोग किसी गरीब या अनाथ बच्चे के लिए कर सकती है। क ने कहा," सही कह रहे हो। तुम बताओ यह कैसे किया जा सकता है।"
मित्र ने कई संस्थाओं के नाम बताए और फिर क को प्रेरित किया कि वह बिल्लियों को उनके हाल पर छोड़ इन संस्थाओं में दान देकर बच्चों का उद्धार करे।
क ने कहा, "ठीक है, तुम्हें बाल कल्याण में इतनी रुचि है यह देख मुझे खुशी हुई। कल ही मैं इन संस्थाओं के फॉर्म मंगाकर तुम्हें दे देती हूँ। तुम वहाँ दान करने लगना।"
वह एकदम से हड़बड़ा गया। बोला," मैं? मैं क्यों? ये तो तुम्हारे लिए बता रहा था। मैं अपने पैसे बर्बाद नहीं कर सकता। मेरे पास इतना फालतू पैसा नहीं है।"
क ने कहा," अभी तो तुम मुझे इन संस्थाओं को दान देने का उपदेश दे रहे थे। अब क्या हुआ?"
मित्र बोला," मैं तो इसलिए कह रहा था क्योंकि तुम बिल्लियों पर खर्च करती हो।"
क ने उत्तर दिया," तुम और मैं बराबर कमाते हैं। मैं तो कमसे कम बिल्लियों पर खर्च करती हूँ। तुम किस पर खर्च करते हो? सब अपने पर?"
"हाँ। और मेरे पास किसी अन्य पर खर्च करने को फालतू पैसा है भी नहीं। और यह जो तुम गरीब बच्चों की बजाए बिल्लियों पर पैसा बहाती हो, यह बर्बादी है, मीननेस है, स्वार्थ है। तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। मैं तुम्हें इससे रोक रहा हूँ तो तुम मुझे ही अक्ल बता रही हो। मैं तो कभी बिल्लियों पर पैसे खर्च नहीं करता।"
क ने कहा, " हाँ, केवल अपने पर खर्च करते हो और कर रहे हो। वह बर्बादी नहीं है? मैं कमसे कम किसी का तो ध्यान रख रही हूँ, किसी के साथ तो अपनी खुशी बाँट रही हूँ। मुझे जानवरों से प्यार है तो मैं उनका भला कर रही हूँ। तुम्हें बच्चों से प्यार है तुम उनका भला करो।"
मित्र गुस्से से तमतमाता बड़बड़ाता उठ गया, " भले का तो जमाना ही नहीं है। बच्चे भूखे मर रहे हैं और इन्हें बिल्लियों की पड़ी है! मुझे कहती है कि मैं अनाथालय में दान दूँ, CRY को दान दूँ। मेरे पास क्या फालतू पैसा है! हुँह!"
घुघूती बासूती
पुनश्चः
यह किस्सा बिल्कुल सच है। ऐसे 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे' कभी कभी जीवन में मिल जाते हैं और अपने कुतर्कों से हमें दंग कर जाते हैं। हम बस सोचते रह जाते हैं कि क्या ये सच में अंधे हैं, मूर्ख हैं या इन्हें सच में लगता है कि इनका दायित्व तो बस दूसरों को राह दिखाने भर का है उस राह चलना तो दूसरों का काम है।
घुघूती बासूती
खुद देना नही जाने,, दोस्तो को ताने, हुँह
ReplyDeleteहा हा हा...
ReplyDeleteआप भला नहीं कर सकते तो कम से कम दोसरों को तो मत रोको।
ReplyDeleteसच्ची घटनाओं से सिख लेना ज्ञानवान की पहचान है।
Rohitas Ghorela: सब थे उसकी मौत पर (ग़जल 2)
किसी का तो भला हो चाहे मनुष्य के बच्चे हों या पशु के।
ReplyDeleteकृपया इस लिंक पर भी आशीर्वचन प्रदान कीजिये:
http://disarrayedlife.blogspot.in/2014/10/science-vis-vis-india-part-2.html