दो सप्ताह पहले अचानक अपनी स्कूल की सहेली मिल गई। यूँ तो हम प्रायः मिलती रहती हैं और हालचाल पूछ अपनी राह चल पड़ती हैं। किन्तु उस दिन वह अपनी बिटिया के घर थी सो फ्री थी। सो घंटों हमने बातें कीं। सड़क पर खड़े होकर नहीं कीं, नेट पर मिलीं थीं सो नेट पर ही कीं। अचानक उसने एक फोटो भेजी और बोली, "पहचान तो कौन हैं।" सड़क पर सफेद कुर्ता पजामा पहने, कंधे पर एक झोला लटकाए एक वृद्ध थे। साथ में ही एक स्त्री व एक नवयुवक थे। सब साथ भी थे और अलग भी।
मैं पहचान न पाई। यह तो समझ गई कि यह चंडीगढ़ की कोई सड़क थी। सहेली ने बताया, "हमारे एक सहपाठी की बहन व उसका बेटा हैं और साथ में.... सच में नहीं पहचानी?"
"न।"
"अरे, मिस्टर प्यारेलाल हैं!"
उसका यह कहना था कि मुझे उन वृद्ध में अपने प्रिय सर नजर आने लगे। गला अवरुद्ध होने लगा। तेरतालिस साल पहले मैं उनकी छात्रा बनी थी। उन जैसा अध्यापक न मैंने पहले कभी देखा न बाद में। वे तो इतने प्यारे थे कि हम सबके चहेते थे। सदा सोचती कि सर का नाम प्यारेलाल के अतिरिक्त कुछ हो ही नहीं सकता था। वे अंग्रेजी पढ़ाते। हम मंत्रमुग्ध हो उनको सुनते। उनकी कक्षा में न कभी शोर होता न कभी कोई बोर होता। हाँ, हर दो एक महीने में एकबार अचानक सारी क्लास को पढ़ने का मन न होता और सब सर से अनुरोध करते, "सर प्लीज़ कुछ सुनाइए।" आखिर सर मान जाते और लाइब्रेरी से लाई जाती मार्क ट्वेन की एक पुस्तक.... 'द एडवेन्चर्स औव टॉम सॉयर'. पुस्तक तो शायद सबने पढ़ी थी किन्तु सर के मुँह से सुनने का आनन्द ही कुछ और था।
सर को देख तब भी सोचती थी कि अध्यापक किसी कॉलेज में गढ़े नहीं जाते, वे जन्मजात होते हैं। क्योंकि यदि गढ़े जाते तो फिर वे बीसियों अध्यापक जिनसे मैं पढ़ चुकी थी उनके जैसे ही प्यारे क्यों न थे? (उसी समय के गणित के अध्यापक जो हमारे क्लास टीचर भी थे वे भी विशेष थे। उनसे भी बहुत स्नेह था। किन्तु शेष सब भी तो उन्हीं बी एड कॉलेजों से पढ़कर आए थे जहाँ से ये दोनों।) खैर, सर का जो स्थान हमारे दिलों में था वह कोई और न ले सकता था। उस दिन फोटो देखकर एक बार फिर से समझ आ गया कि उनका स्थान क्या व कहाँ था। वे फिर से मेरे हृदय के उस खाली से स्थान, जहाँ कभी वे बसते थे, में आकर वैसे ही विराजमान हो गए जैसे नगर भ्रमणकर वापिस मंदिर में लौटी कोई प्रतिमा या साल भर हॉस्टल में रहकर लौटकर आया अपना बच्चा घर में पुनः बस जाता है।
उस दिन से ही मन था कि किसी तरह सर से पूछ सकूँ कि सर क्या मैं आपकी फोटो अपने ब्लॉग पर लगा सकती हूँ। किन्तु न तो उनका फोन नम्बर मेरे पास है, न मेरी सहेली के पास। कोशिश करने पर मिल भी सकता है। किन्तु सर के जीवन में न जाने कितनी घुघुतियाँ छात्राएँ बनकर आईं होंगी। कई तो सालों साल उनसे पढ़ी होंगी। मैं तो केवल दो साल ही उनसे पढ़ी थी। अब साढ़े इकतालिस साल बाद अस्सी से भी अधिक की उम्र वाले सर को फोन कर कैसे परेशान करूँ? सहेली ने कहा था कि अगली बार वह उनसे मिलने का प्रयास करेगी। मैंने कहा था कि सर को मेरा नमस्ते भी कह देना।
जब भी कोई अच्छे अध्यापक वाली पुस्तक पढ़ी, फिल्म देखी जैसे 'टु सर, विद लव', सर आपकी बहुत याद आई। जब जब घर में 'द एडवेन्चर्स औव टॉम सॉयर' पर नजर पड़ी तो आपकी ही याद आई। जब भी अपने बच्चों के लिए सबसे अच्छे अध्यापकों की कल्पना की तो भी सर आप ही की याद आई। जब भी कक्षा में पढ़ाने गई तो सर आप सा बनने की कोशिश की।
आज के दिन 'सर' को कैसे याद न करूँ? फोटो न लगाने से भी कोई अन्तर नहीं पड़ता। संसार के सबसे प्यारे वृद्धों में से एक, सबसे प्यारे, सबसे न्यारे, देखते से ही आँखें नम करवाने वाले, गले लगने का न्योता सा देने वाले, मेरे सर, अवरुद्ध गले से ....सर प्रणाम, नमस्ते, हैलो, हग्स और सर बहुत बहुत आभार कि आप अध्यापक ही बने कुछ और नहीं, अन्यथा मेरा व कितने ही अन्य छात्रों का जीवन कितना बंजर सा रह जाता और हमारें दिलों में आपके लिए जो स्थान है वह भी खाली रह जाता।
आपकी छात्रा,
घुघूती बासूती
अद्भुत संस्मरण! मुझे भी अपने गुरुजी याद आ गये एक बार फ़िर से।
ReplyDeletehttp://hindini.com/fursatiya/archives/40
अनूप ई-पंडित से पूछ कर अपने गुरुजी वाली कड़ी को 'जीवन्त' कीजिए।
Deleteऐसे "सर" की याद साझा करने के लिए आभार ..जब मिलें तो मेरा भी नमन कहें सर से ...
ReplyDeleteबहुत प्यारी पोस्ट....
ReplyDeleteजानती नहीं...देखा नहीं...मगर जाने कैसे आपके सर की तस्वीर आँखों के आगे आ गयी....
मेरा नमन उन्हें...और सभी गुरुजनों को...
शुभकामनाएं
अनु
सच कहा, अच्छे शिक्षक गढ़े नहीं जा सकते हैं।
ReplyDeleteसही कहा, हस सब के जीवन में एकाध गुरुजी ऐसे जरूर होते हैं और जिसके में नहीं है उसकी किस्मत खराब ही कही जायेगी।
ReplyDeleteसच,ऐसे अध्यापक कहीं गढ़े नहीं जाते...वे जन्मजात होते हैं.
ReplyDeleteकई बार हमारी रुचियों को दिशा इन्ही के मार्गदर्शन से मिलती है.
सुन्दर संस्मरण
ReplyDeleteरोल मॉडल बनने के लिए एकदम मुफीद सरजी हैं आपके| उसी श्रेणी से हैं, जिनके कारण आज भी टीचिंग को एक नोबल प्रोफेशन माना जाता है|
ReplyDeleteमेरे कुछ दोस्त शिक्षक हैं, वे कहते हैं कि हम भले ही छात्रों को भूल जाएं, छात्र हमें कभी नहीं भूलते... वे याद दिलाते हैं कि मैं फलां हूं तो याद आता है, लेकिन अच्छे छात्रों की छवि भी शिक्षक के मन में अंकित हो जाती है...
ReplyDeleteउन दो सालों में आपकी ओर से भी गुरुजी के हृदय पर कोई तो अंकन हुआ होगा, एक बार कोशिश कीजिएगा
, शायद पहचान जाएं... :)
मुझे बचपन से ही अच्छे शिक्षक मिले, लेकिन सबसे प्यारे मेरे सर भी अंग्रेजी ही पढ़ाते थे और वो भी ट्यूशन. वो व्यवसाय से शिक्षक भले ना रहे हों, पर उन्होंने ना सिर्फ हम सब के दिल में अपनी जगह बनायी बल्कि मेरे जीवन को दिशा देने में भी उनका बड़ा योगदान रहा. सन 2004 में उनका देहांत हो गया, पर मेरे दिल में उनकी आज भी वही जगह है.
ReplyDeleteउम्र के कारण न पहचानें तो अलग बात है। अन्यथा गाँव के हिन्दी स्कूल से शहर के अंग्रेजी स्कूल गई थी। जाते ही सप्ताह भर के भीतर परीक्षाएँ भी हुईं। कहाँ हम ट्विंकल ट्विंकल पर अटके हुए थे और यहाँ द पिल्ग्रिम्स प्रोग्रेस आदि उपन्यास सिलेबस में थे। कठिनाई से पास हुई। किन्तु तीसरे ही टेस्ट से अंग्रेजी में जो प्रथम आना शुरु किया तो सिलसिला स्कूल छोड़ने तक न टूटा। सर ने तीसरे टेस्ट पर कक्षा में जो कहा था वह सदा याद रहेगा। शायद सर को भी लम्बे समय तक रहा हो। किन्तु उनका पुत्र हमारी उम्र का था और पुत्री उससे भी बड़ी। सो सर नब्बे के पास पहुँच रहे होंगे।
ReplyDeleteजो भाव मन में उठे वे शायद सर तक भी पहुँच जाएँ। वैसे वे जानते हैं कि उनके सब छात्र उन्हें बहुत प्रेम करते हैं।
घुघूती बासूती
बता नहीं सकता, यह पढकर कितना अच्छा लगा। मेरा अनुभव यही है कि शिक्षक सचमुच छात्रों को भूल जाते हैं लेकिन अच्छे शिक्षकों को छात्र सदा याद करते हैं। जहाँ तक सभी के उन्हीं कॉलेजों से पढकर आने के बावजूद भिन्न होने की बात है, उसका कारण यही है कि व्यवहार, सरलता, विनम्रता आदि हमारे यहाँ आज भी किसी भी कॉलेज में पढाई नहीं जाती, न किसी नौकरी में सिखाई जाती है - घर से सीखकर आये तो ठीक वर्ना किस्मत और सीखने की ललक है तो शायद वातावरण से अपने आप सीख लें, वर्ना तो ... ढाक के वही तीन पात।
ReplyDeleteवैसे शिक्षक के प्रोफ़ेशन नहीं माना जाना चाहिये, यह तो एक सेवा है जो कि समाज के लिये शिक्षक दे रहा है।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को पढ़कर अपने गुरूजी याद आ गये। बहुत दिनो से 'आनंद की यादें' में यह कड़ी जोड़ना चाहता हूँ लेकिन लिख नहीं पा रहा।
ReplyDeleteइस पोस्ट को पढ़कर लिखने की इच्छा और बढ़ गई। भाउक कर दिया आपने। वाकई अच्छे शिक्षक धरती पर अवतरित होते हैं। ..आभार।
प्यारा सा संस्मरण, कईं लोग जीवन भर के लिए हमें कृतज्ञ कर जाते है। गुरू शायद इसीलिए पूजे जाते है, अपने सहज गुणों से हमारे जीवन को भी हौले से उत्कृष्ट पावन और आशावान बना जाते है।
ReplyDeleteबालमन बहुत कोमल होता है. सीमेंटिक्स में पैठ बना लेती हैं कुछ अच्छे अघ्यापकों की यादें.
ReplyDelete(१)
ReplyDeleteआप उम्र में , हमसे छोटी होतीं तो शायद हम भी आपके गुरूजी हो गये होते...पर प्यारे लाल अपना नाम हरगिज़ ना रखते ! हो सकता है कि तब आपकी पोस्ट में हमारा भी नाम दिखाई दिया होता :)
(२)
शिक्षक दिवस हर बरस आता है और सम्मानित होने के नाम पर उबकाई सी आने लगी है ! क्या ये मुमकिन है कि शिक्षक दिवस कैलेंडर्स से खुरच कर फेंक दिया जाए ?
(३)
कई दिन गुज़रे आपसे फोन पर बात करने की कोशिशे बेकार हुईं , आपके पड़ोसियों को सन्देश दिया पर वो भी किसी काम ना आया ! खाली घंटियां बजाने वाले फोन अगर बात नहीं करवा सकें तो उन्हें डस्टबिन में फेंक दिया जाना चाहिए !
१.प्यारेलाल नहीं तो प्यारे अली रख सकते थे. वह भी न भाता तो अली लाल या लाल अली? अन्यथा हरा, नीला, पीला जो भी पसंद हो. बस पढाना बढ़िया पड़ता.
Delete२. बिल्कुल सम्भव है. हमने तो अपने घर के तीन कैलेंडर से खुरच डाला. उबकाई के लिए, अदरक या पुदीना सही रहता है.
३, :) एक फोन को विदा कह दिया है अब बचे हैं घर पर चार दो मोबाइल दो लैंड लाइन. आपको चारों के नम्बर देने पडेंगे. मोबाइल कि समस्या यह है कि वह पर्स में रह जाता है. पर्स अलमारी में. अब वहाँ पड़ा घंटियाँ बजता भी रहे तो सुनने वाली कोई नहीं.
४. टिप्पणी स्पैम मुक्त कर दी है तभी तो उत्तर दे रही हूँ. आभार.घुघूतीबासूती
@ बस पढ़ाना बढ़िया पड़ता,
Deleteहमें लगा कि नाम बढ़िया हो तो काम चल जाएगा :)
ये लो अब टिप्पणी भी स्पैम हुई !
ReplyDeleteसच कहा सर न होते तो ये सर कभी ऊंचा न होता
ReplyDeletehappy teachers day..
ReplyDeleteसचमुच अच्छे गुरुजन सदा याद आते रहते हैं कभी सख्त किन्तु अच्छे पढाने वाले भी याद आते रहते हैं
ReplyDeleteI became your fan after seeing how beautifully you put your comments in that blog where temple donations were dealt. Thank you.
ReplyDeleteअद्भुत संस्मरण!!!
ReplyDeleteबस इतना ही कहना काफी होगा कि आलेख बहुत ही भाया. अभी कोच्ची में हूँ और नेट भी साथ है परन्तु भरोसेमंद नहीं.
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ReplyDeletekitni saadagi se aap apni baat kehti hai..ek purity hai aapmei or aapki likhawat mei...i was searching the meaning of ghughuti basuti in google today and found your blog...amazing...immediately became ur fan and follower on blog..thank u
ReplyDeleteRegards,
Megha
Megha, thank you for your comment and encouragemet.Your name has a very special soft spot in my heart.
ReplyDeleteghughuti basuti