क्या संसार में कोई ऐसी स्त्री होगी जिसे ऐसा अंत मिलना चाहिए? एक एक हाथ वाले भिखारी ने लेडीज़ कम्पार्टमेंट में घर लौट रही एक तेईस वर्षीय सेल्सवुमेन सौम्या को मोलेस्ट किया, जब उसने प्रतिरोध किया तो उसने उसे गाड़ी से बाहर फेंक दिया, स्वयं भी गाड़ी से बाहर कूद गया और फिर घायल सौम्या को घसीटकर सुनसान जगह ले गया और उसका बलात्कार कर उसकी हत्या की कोशिश की। अचेत सौम्या को हस्पताल ले जाया गया जहाँ पाँच दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई।
लोग किसी भिखारी के लिए प्रायः बेचारा शब्द उपयोग करते हैं। यदि वह अपाहिज भी हो तो और भी बेचारा। किन्तु इस दुगुने बेचारे ने जिस प्रकार से एक अकेली स्त्री का शिकार किया, उसमें किसी प्रकार की बेचारगी नजर नहीं आती।
एक फास्ट ट्रैक अदालत ने गोबिन्दसामी नामक इस ३० वर्षीय ......, (क्या शब्द उपयोग किया जाए? इस कृत्य को अमानुष तो नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह कृत्य प्रायः मानव ही करते हैं) को मृत्यु दंड दिया है। वैसे इस अपराध के लिए मृत्युदंड बहुत ही उदार सजा है। यदि सौम्या के जीवन के बारे में उस क्षण से, जिस क्षण गोबिन्दसामी उसके सामने आया होगा, लेकर उसकी मृत्यु तक, सोचा जाए तो मृत्युदंड बहुत ही सरल व उदार सजा लगती है। काश कोई तरीका होता कि सम्मोहन या किसी अन्य तकनीक से गोबिन्दसामी को भी वह पीड़ा, वह भय, वह घबड़ाहट, वह दीनहीनता, असहायता, दयनीयता का भाव, वह स्वयं का असम्मान, वस्तुकरण, मानव से किसी के खिलवाड़ के लिए खिलौना बना दिया जाना, फेंक दिया जाना और फिर स्वयं का खिलौने से भी बदतर उपयोग किया जाना व फिर तोड़कर मरने के लिए छोड़ दिए जाना...... यह सब महसूस कराए जा सकते। यह सब महसूस करने के बाद ही उसे मृत्यु रूपी मुक्ति मिलती तो शायद उसे अपने अपराध का बोध होता।
बहुत पहले मैंने दो पोस्ट लिखीं थीं
सौम्या के बारे में पढ़कर मुझे ये पोस्ट्स, वह किस्सा जिसके कारण ये लिखीं, इनपर आई टिप्पणियाँ याद आ रही हैं। सोच रही हूँ कि यदि सौम्या एक हाथ वाले भिखारी का सामना नहीं कर सकी तो वह लड़की क्या यार्ड में किसी पुरुष समूह के संभावित हमले का मुकाबला कर सकती थी? एक हाथ वाला तो दो हाथ वाली से कम सक्षम होना चाहिए ना? भिखारी तो अभिखारी से कमजोर होना चाहिए ना? फिर क्यों हमारी भारतीय लड़कियाँ प्रायः दूब सी नरम, नाजुक व उस ही की तरह रौंद दी जाती हैं? प्रायः रौंदे जाने पर भी फिर से उठ बैठती हैं। क्या उन्हें सदा कमजोर ही बनाया जाता है? कम खिलाया जाता है? कम खाने, नाजुक/दुबले बने रहने की प्रेरणा दी जाती है? मुकाबला न करके रौंदे जाने को अपना प्रारब्ध मान चलना सिखाया जाता है? बचपन से मारपीट, लड़ाई झगड़े, हाथापाई से दूर रखा जाता है? अन्यथा मारपीट तो स्वाभाविक रूप से लड़के सीख ही जाते हैं फिर लड़कियाँ क्यों नहीं? क्या इसलिए कि मारपीट कर सकने वाली लड़कियों से कल कोई सरलता से मारपीट नहीं कर पाएगा, उसे डरा सहमा नहीं पाएगा?
मुझे वह फ़िज़िकल एजुकेशन वाला अध्यापक भी याद आता है जो बढ़ती उम्र की किशोरियों को कम खाकर पतला दुबला बने रहने की दिन रात सलाह देता था, वह अध्यापिका भी जो कहती थी कि इतनी लम्बी हो जाओगी तो बाद में लड़का मिलना कठिन हो जाएगा। जबकि हर फ़िज़िकल एजुकेशन वाले अध्यापक का काम लड़कियों को बलशाली, अपना बचाव करने में सक्षम बनाना होना चाहिए।
न जाने क्यों मुझे लगता है कि हमारे समाज में स्त्री का जो स्थान है (पूजनीय वाला, नारी तुम केवल श्रद्धा हो वाला और श्रद्धा को दर्द थोड़े ही होता है!और श्रद्धा कराते तो नहीं ही करती, आँचल में दूध आँख में पानी वाला, सावित्री वाला) और पुरुष को जन्म से जो ट्रेनिंग दी जाती है(कुलदीपक, जो माँगोगे वही मिलेगा, सारा संसार तुम्हारा है, आँख का तारा राज दुलारा, तुम्हारे लिए कोई बन्धन नहीं हैं, खींसे निपोर कर गाली दो, पॉर्न देखो, लड़कियों पर छींटाकशी करो, छेड़ोगे तो लड़कियाँ तुम पर वारी जाएँगी, डराओगे तो सहेली, माँ बहन पत्नी तुम्हारा आदर करेंगी, श्रेष्ठ हो, चाहे अपाहिज भिखारी ही क्यों न हो, मारो पीटो, मर्दानगी दिखाओ)वे स्त्री के प्रति अपराधों के लिए उत्तरदायी हैं।
समय आ गया है कि हमारी बेटियाँ शक्तिशाली बनें,उनका भरपूर शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक विकास हो। जैसे हर सवा पाँच फुटा छः फुटे से, हर साठ किलो का सत्तर किलो वाले से डरा सहमा नहीं रहता क्योंकि उसे डरना नहीं सिखाया जाता,उसे लगता है कि उसे भी छः फुटे या ७० या सौ किलो वाले की तरह जीने, घूमने का अधिकार है, न मिलने की स्थिति पर कानून उसकी सहायता करेगा और छः फुटे या ७० या सौ किलो वाले भी उनके इस अधिकार को समझते व प्रायः इस अधिकार का आदर भी करते हैं क्योंकि नहीं करेंगे तो कानून उनसे निपटेगा। वैसे ही स्त्री को भी शक्तिशाली बनाकर व उसे कानून का सहारा देकर निर्भय बनाना होगा। उन्हें भी वैसे ही पौष्टिक भोजन कराया जाए जैसा बेटों को कराया जाता है। गोरी सुन्दर रोल मॉडेल देकर गोरा व सुन्दर बनना ही जीवन का उद्देश्य न बनाकर साहसी व शक्तिशाली रोल मॉडेल प्रस्तुत कर साहसी व शक्तिशाली बनना भी उनका ध्येय हो पाए तो बेहतर हो।
जिस प्रकार से समाज में लोगों को अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करने दिया जाता,ट्रक वाला कार को, कार वाला स्कूटर को,स्कूटर वाला पैदल को कुचलकर नहीं जा सकता,उसी प्रकार जो व्यक्ति बलात्कार कर स्त्रियों को निर्भय हो जीने न दे उसे बलात्कार करने योग्य ही नहीं रहने दिए जाना चाहिए।
घुघूती बासूती
नोटः मैं बलात्कार के लिए मृत्युदंड के पक्ष में नहीं हूँ, क्योंकि यदि ऐसा किया जाए तो बलात्कारी बलात्कार के बाद हत्या भी करना चाहेगा। ताकि सबूत न बचें और यदि बलात्कार के लिए मृत्युदंड है तो फिर बलात्कार के बाद की हत्या के लिए एक और बार तो फाँसी पर नहीं चढ़ाया जाएगा अतःपीड़िता की हत्या लगभग निश्चित हो जाएगी। इस केस में तो हत्या भी हुई।
घुघूती बासूती
आपकी पोस्ट पढ़कर हृदय वेदना से भर गया। आपने किन अनुभूतियों के साथ यह पोस्ट लिखी होगी, यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है। आपकी राय से इत्तेफाक रखती हूँ। मुझे राम मनोहर लोहिया जी का एक वक्तव्य याद आ रहा है जो उन्होंने एक भाषण के दौरान कहा था कि ''भारत की आदर्श नारी तो द्रौपदी है, सीता नहीं।'' भारत की स्त्रियों को द्रौपदी बनना होगा, कर्तव्य पालन के साथ ही अपने अधिकारों के प्रति भी सजग रहना होगा, और अपने अपमान का बदला लेना सीखना होगा।
ReplyDeleteबहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना।
ReplyDeleteकाश हमारे देश का पुरुष समाज इस पीड़ा को अनुभव कर सके , जो ऐसी महिलाएं भोगती है ...कोई शब्द नहीं सूझता , क्या लिखे इस पर ! मृत्युदंड भी कम ही लगता है ऐसे अपराधियों के लिए !
ReplyDelete@गोरी सुन्दर रोल मॉडेल देकर गोरा व सुन्दर बनना ही जीवन का उद्देश्य न बनाकर साहसी व शक्तिशाली रोल मॉडेल प्रस्तुत कर साहसी व शक्तिशाली बनना भी उनका ध्येय हो पाए तो बेहतर हो...
बिलकुल सहमत !
स्तब्ध हैं पढ़कर!
ReplyDeleteक्या कहें...
नारी ब्लॉग पर जब भी बलात्कार जैसे विषय पर लिखे हमेशा कहा गया कपड़ो का दोष होता हैं . ब्लॉग जगत के बड़े से बड़े पुरुष लेखक ने हमेशा लड़कियों को ही गलत कहा हैं और कहा गया हैं की उनकी बदलती जीवन शैली इसके लिये जिम्मेदार हैं .
ReplyDeleteपुरुष को ट्रेन किया जाता हैं औरतो पर शासन करने के लिये . ना जाने कितने किस्से हैं जहां बाप और भाई मजबूर करते हैं अपनी ही बहिन और बेटी को अपने साथ सम्बन्ध बनाने के लिये .
कल खबर थी कानपुर के एक महिला पार्क में पुलिस लड़कियों की तलाशी ले रही थी क्यूँ वो वहाँ लडको के साथ अय्याशी करती रहती हैं जबकि वहाँ वो लडकियां थी जो पास के कॉलेज के बाद वहाँ बैठ कर पढ़ती थी
भिखारी था तो पुरुष ही ना , किसी महिला की इतनी हिम्मत की वो उसको ना कह दे . आखिर पूरक का मतलब क्या हैं ? क्यूँ बार बार चिल्लाते हैं सब स्त्री पुरुष पूरक हैं . ये उसी का नतीजा हैं . हर पुरुष की नज़र में एक स्त्री महज और महज उसकी वासना की पूर्ती का जरिया मात्र हैं और उससे ऊपर कुछ नहीं .
जो जितने शालीन हैं वो उतने ही ज्यादा कमीने हैं . कल खबर थी अन आर आई ने पत्नी को मार कर सूट केस में डाल कर जला दिया .
लड़कियों को ताकत की नहीं लड़कियों को शिक्षा देनी चाहिये "नंगे " रहने की ताकि जिसको जहां नोचना खसोटना हो कर ले .
वासुती जी नमस्कार, समाज की नारी दशा का यर्थाथ चित्रन है विकास की इतनी सीढिया चढ्कर भी सोच नही बद्ली आज भी देह रूप ही वस्तउ रूप ही देखा जाता है। आपका मेरे ब्लाग पर भी स्वाग्त है।
ReplyDeleteएक फिल्म देखी थी, नाम याद नहीं है। उसमें शैफ अली हीरो था और उर्मिला मातोंडकर हिरोइन। शैफ असल में विलेन था और वह उर्मिला को फंसाकर जेल करा देता है। जेल का जीवन जीने के बाद उर्मिला ने सेफ से जो बदला लिया वह मृत्यु दण्ड नहीं था। उसने उसे जंगल के किसी खण्डहर में बोरे में बन्द कर दिया चूहों के साथ। उसे चूहे काटते रहे और वह चिल्लाता रहा। उर्मिला ने कहा कि मुझे भी जेल में ये ही अनुभव हुए थे।
ReplyDeleteदूसरा प्रश्न है कि महिलाएं कमजोर रहती हैं। सदियों से इस दुनिया में यही चला आ रहा है कि विवाह के समय लड़की छोटी आयु की, छोटी लम्बाई की और कम शिक्षित होनी चाहिए। इस फार्मूले को आज भी नहीं बदला जा रहा है। लडकियों को छरहरा रहने का जो पागलपन सवार है उसका क्या करें?
Aapkaa aakrosh samajh saktee hun. Aapkee ye post padh ke mera bhee man aise hee aakrosh se bhar utha.
ReplyDeleteऊफ़्फ़ कहने के लिये एक शब्द नहीं है, निंदा करना भी कम होगा और कुछ ज्यादा कहना भी, आपसे सहमत हैं मृत्यु दंड नहीं ऐसे लोगों को तो गल्फ़ में दी जानी वाली कोड़े मारने जैसी कोई बेरहम सजा देनी चाहिये । या फ़िर कोई बायोलोजिकल सजा, जिससे दूसरे लोगों की ऐसे कृत्य करने की हिम्मत ही न हो।
ReplyDeleteयह आलेख इस क्रूर कृत्य के साथ जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विचार करने को विवश करता है। इस समाज में रहने वाले ऐसे दरिंदे के लिए जिस सज़ा की बात आपने की है वह बहुत ही सही प्रतीत होता है।
ReplyDeleteसचमुच दुखद और हैरान करने वाली घटना -काश सौम्या अपने नाम के विपरीत आत्मरक्षा में भी कुशल रही होती ...आपकी यह बात बिलकुल मार्के की है कि आज लड़कियों को छुई मुई बनने की नहीं बल्कि कम से कम आपनी रक्षा में कुशल बनने की है -मां बाप को इस और ध्यान देना चाहिए ...
ReplyDeleteइस शर्मनाक एपिसोड में कुछ तसल्ली देने वाली बात बस अपराधी का पकड़ा जाना और सज़ा पाना है। सौम्या पर हुआ अपराध वापस नहीं हो सकता है और न उसकी जान वापस आ सकती है। बेटियों को सुदृढ और शक्तिशाली बनाने की आपकी सलाह से पूर्णसहमति है। आपकी दूसरी सलाह से भी सहमत हूँ। इन फ़ैक्ट इन्हीं दो अंतरों ने महिलाओं को भारत उपमहाद्वीप के बाहर काफ़ी हद तक सुरक्षित किया है। पहले कभी मैने भी "लड़कियों को कराते और लड़कों को तमीज़" सिखाने की ज़िम्मेदारी पर ज़ोर दिया था
ReplyDeleteराक्षसों के बारे में पढ़ते हैं एक काल्पनिक चित्र सामने आता है बस वो यही है
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
बालदिवस की शुभकामनाएँ!
bahut dukhad ghatna hai bahut samvedan sheel..ese apraadhiyon ko to turant hi saja milni chahiye mere vichar se to mratudhand se behtar koi saja nahi dar se hi apraadh kam hote hain.
ReplyDeleteबहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना...
ReplyDeleteसचमुच अब समय आ गया है.....दुबली-पतली...नाजुक सी लड़कियों की छवि मिटाकर साहसी और शक्तिशाली लड़कियों को आदर्श माना जाए.
माता-पिता के साथ लड़कियों को भी ये डायटिंग और स्लिम रहने की तमन्ना छोड़...अच्छी डायट के साथ शक्तिशाली बनने की कोशिश करनी चाहिए ताकि ऐसी किसी स्थिति का सामना वे साहसपूर्वक कर पाएं.
बलात्कारियों के लिए तो कुछ ऐसी सजा होनी चाहिए कि दूसरों की रूह काँप जाएँ...और ऐसे कृत्य के बारे में वे कभी सोच भी ना सकें.
बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना...
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की खबर हमने ली है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - कितनी जरूरी उधार की खुशी - ब्लॉग बुलेटिन
क्या हो रहा ये सब...???
ReplyDeleteदुखद... दुर्भाग्यजनक....
दुर्भाग्यपूर्ण...
ReplyDeleteऔर आश्चर्य की बात तो ये है कि ये घटना मात्र आपके ब्लॉग पर पढ़ी.. और हाँ सुबह हिन्दुस्तान टाइमस में भी आपके ब्लॉग पर पढ़ी थी.
Jhakjhork rakh dene wali ghatna..
ReplyDeleteme apki baat se sehmat hu mirtudand to bahut choti se saja hai....
ReplyDeletebade afsos ki baat hai ki aajkal insaan janwaro se bhi pare jaa raha hai, mirtudand to bahut choti saja hai....
ReplyDeleteसोच कर ही दिल दहल जाता है ,जिस पर बीती होगी उसने कितने नरक एक साथ भोगे होंगे .स्त्रियों को दोयम दर्जे का समझ कर आदमी द्वारा उसे अपने अनुसार चलाने की मनोवृत्ति पता नहीं कैसे बदलेगी !
ReplyDeleteऐसे आदमी को तो (जीवन भर) चौराहे पर बाँध कर हर आते-जाते से उसके मुँह पर थुकवाना चाहिये.
ऐसे दृष्टांत सुन क्रोध आता है, किन्तु हर व्यक्ति अपने को लाचार पाता है...
ReplyDeleteआपके विचार से दिन प्रति दिन इस पौराणिक देश का चरित्र क्यूँ बिगड़ता जा रहा है ???
क्या हमारे ज्ञानी पूर्वजों का कथन सत्य था कि काल-चक्र कलियुग, और अंत में, घोर कलियुग में पहुँच जाता है???
और तदोपरांत सतयुग आ जाता है, अन्यथा चक्र पूरा हो जाने पर ब्रह्मा की रात हो जाती है उसके दिन समान लम्बी???
बाहर की दुनिया का दोष होने के साथ ही बेटियों के माँ -बाप ,उनकी परवरिश का माहौल भी कम ज़िम्मेदार नही है.माँ-बाप बेटी को 'सौम्या' बनाने के बजाय मज़बूत बनने में भी सहयोग दे सकते हैं ..जैसे वे बेटे को दुनिया का सामना करने में सक्षम नाते हैं वैसे ही बेटी को बाहरी दुनिया के नकार और सकार दोनों के लिए तैयार करना चाहिए.
ReplyDeleteमैं भी चकित हूँ कि कैसे वह लड़की एक हाथ वाले भिखारी का सामना नही कर पायी ... भिखारी को उठा कर तो उसे फ़ेंक देना चाहिए था.लड़कियों को आत्म सुरक्षा की हर स्थिति के लिए तैयार होकर बाहर निकलना चाहिए.हमारे देश में पुलिस की स्थिति तो और भी खराब है ऐसे में लड़कियों को अपने ग्रुप बना कर उनसे फोन पर कांटैक्ट रखना चाहिए.जिससे ऎसी किसी स्थिति में तुरंत मदद मिल सके.
दुर्भाग्यजनक
ReplyDeleteऐसी घटनाएं ही शायद अनजाने में कहीं कन्या भ्रूण हत्या की पृष्ठभूमि बनाने लगती हैं.
ReplyDeleteआदरणीय घुघूती जी,
ReplyDeleteपोस्ट से पूर्ण सहमति…
पोस्ट से हटकर थोड़ा विषयान्तर - सिर्फ़ एक माइनर करेक्शन करना चाहूँगा…। मेरी जानकारी के अनुसार अपराधी "गोविन्द" नहीं, बल्कि "चार्ली" है। चौंकिए नहीं, जिस दुर्दान्त अपराधी की सत्यकथा आपने बयान की है, वह कई वर्ष पहले धर्म परिवर्तन करके ईसाई बन चुका है। परन्तु हमारे मीडिया ने यह खबर देने के लिए उस व्यक्ति का "पुराना नाम" चुना… ऐसा क्यों? सोचिये… :) :)
विवेक रस्तोगी जी से सहमत होने का मन कर रहा है. . कोच्ची से .....
ReplyDeleteबहुत ही अमानवीय घटना है, राक्षसी प्रवृत्ति की हद है ये। आपकी सम्मोहन द्वारा कुछ वैसी ही पीड़ा देने वाली बात काश सच हो पाती।
ReplyDeleteएक बात से असहमति जताना चाहूँगा, लिखते-लिखते बीच में कुछ पंक्तियों में आपका रवैया कुछ ऐसा हो गया है जैसे कि पूरा पुरुष समाज इस घटना के लिये जिम्मेदार हो।
आपकी बात से सहमत हूँ कि मृत्युदण्ड उचित नहीं, विवेक जी का बायलॉजिकल सजा वाला सुझाव अच्छा है।
सदियों से ही ये प्रश्न अन उतरित रहे हैं जिसको इसका जवाब देना है वही तो दोशी है। नारी की त्रास्दी/ दुर्भाग्यजनक स्थिती। आप कैसी हैं? शुभकामनायें।
ReplyDelete@ सुरेश चिपलुनकर जी, 'गोविन्द' नाम दर्शाता है की व्यक्ति पैदाईशी 'हिन्दू' परिवार से सम्बंधित था, अर्थात उस की जड़ तथाकथित 'सनातन धर्म' के जल से सींची गयी थी... कालोपरांत 'चार्ली' नाम रख लेना ही उस की मानसिकता दर्शाता है, अर्थात जीवन में कष्ट (ही कष्ट) आदि आने से दोष 'भगवान्, राम, कृष्ण आदि' को देना... कहावत है न, "घर का जोगी जोगना/ आन गाँव का सिद्ध"!...
ReplyDeleteउफ़ ...
ReplyDeleteएक मासूम की इस क्रूरता से जान लेने की सजा म्रत्युदंड बहुत कम है ! इस हरामजादे बन मानुष को आदिम सजाएँ ही दी जानी चाहिए ताकि सबक रहे !
शुभकामनायें आपको !