वर्षा केवल पानी नहीं लाती, वह अपने साथ लगभग सभी इन्द्रियों की तृप्ति का साधन भी लाती है। कई महीनों से झुलसे हुए शरीर को वह फिर से हर इन्द्रीय सुख ग्रहण करने के लिए तैयार कर देती है। पहली फुहार पड़ते से ही मानव मन मोर की तरह नाच उठता है। उसका शरीर भीगता क्या है कि बस रोम रोम हर रस का स्वाद पाने को आतुर हो जाता है। वर्षा अपने साथ दृष्टि सुख के लिए चहुँ ओर हरियाली और अमृत से सिंचा हुआ जीवन लाती है, बिजली की आकाश में चमक लाती है। घ्राणेन्द्रीय सुख के लिए मिट्टी की सोंधी सुगन्ध लाती है, हरी घास व स्वच्छ हवा की सुगन्ध भी लाती है। श्रवण सुख के लिए बादलों की गर्जना, अलग अलग सतहों( जैसे टिन की छत, प्लास्तिक की छज्जों की छाया, कन्क्रीट की छत, काँच की खिड़कियों, ) पर टपकती, बरसती, गगरी उड़ेलती वर्षा की आवाज़ भी अपने साथ लाती है। त्वचा पर पड़ती ठंठी बूँदें या फिर उसे पीटती सी मूसलाधार वर्षा, उसे सहलाती भिगोती, ठंडक पहुँचाती वर्षा छुअन सुख देने से भी नहीं चूकती। और यदि कोई पपिहरा हृदय मानव हुआ तो वह यह सब सौन्दर्य देख, वर्षा में खेलते, नाचते, खिलखिलाते, मुँह खोलकर आकाश को निहारेगा ही और अमृत तुल्य जल भी चख लेगा। सो पाँचों इन्द्रियों को संतुष्ट करती यह वर्षा और भी बहुत सारी अनुभूतियाँ जगाती है, बहुत सारी यादों के तालाब के स्थिर जल पर बौछारें करती हुई , उनका मंथन करती हुई न जाने कितने मोती खोजकर हाथ में धर देती है।
प्रकृति के जीवंत होने की जितनी तीव्र अनुभूति वर्षा में होती है और कभी नहीं होती। प्रकृति में वनस्पतियों का पुनर्जन्म होते देखकर ही शायद मानव ने प्राणियों के पुनर्जन्म की अवधारणा रची होगी। सूखी, प्यासी, जबरन बाँझ सी बनी धरती, लगता है कि वर्षा की पहली फुहार के साथ ही गोद भराई की रस्म पूरी कर रही हो। पहली बौछार पड़ी नहीं कि जली झुलसी भूरी व मटमैली सी हो चुकी उसकी संतानें फिर से हरी भरी हो जी उठती हैं और धरती नई संतानों को जन्म देने को आतुर हो उठती है। चारों तरफ, यहाँ वहाँ, खाद वाले खेत में, बेजान से मैदान में, पुरानी दीवारों व टूटती इमारतों की दरारों में, नया जीवन अंकुरित होने लगता है। क्या संसार में इससे अधिक सुन्दर, प्रेरणादायक या अधिक आशावादी कोई दृष्य हो सकता है? यदि वह महीनों से सूखी पड़ी मृत घास फिर से जीवित हो सकती है तो हम और हमारा मन क्यों नहीं?
(यही वर्षा कभी कभी बादल रूपी डमरू बजाती शिव सा ताँडव भी करती है और प्रलय भी ले आती है!)
मुझे बचपन से लेकर अब तक की हर बरसात, हर जगह की बरसात के दृष्य, गंध व आवाजें याद हैं। हर बरसात के पानी की ठंडक याद है। उसका स्वाद याद है। हर घर की हर खिड़की, दरवाजे, बालकनी, छज्जे से दिखते दृष्य याद हैं, वर्षा में नहाए पेड़ याद हैं। कितने तो हरे रंग के शेड होते हैं! आड़ू, आम, खुमानी, केले, अंजीर,लीची, चीकू, दाड़िम, अंगूर, संतरे, खजूर, लुकाट, अमरूद, गलगल, नींबू, सीताफल, इमली, बादाम, जामुन, बेर, आँवले, रीठे, कटहल, नाशपाती, पपीते, नीम, पीपल, बरगद, गुलाब, पारिजात, रबर, बाँस, चीड़, हिसालू, किलमोड़े, काफल, सेब, चेरी, देवदार, बाँज और न जाने कितने पत्तों के कितने सारे हरे शेड! और उनसे टपकती, उनमें झिलमिलाती वर्षा की बूँदे!
हर पेड़ की अलग ही सुगन्ध! आज भी आँख मूँदकर बचपन के जाने पहचाने पत्तों को यदि तोड़कर हाथ से थोड़ा मसलूँ तो विश्वास है कि सूँघकर उनका नाम पहचान सकूँगी। आज चाहे घर से निकलकर बाएँ जाऊँ या दाएँ, इसमें ही गड़बड़ा जाती हूँ किन्तु बचपन की हर गली कहाँ मुड़ती थी, किस पेड़ किस फूल की सुगन्ध लिए होती थी, याद है।
वर्षा में नहाए हर पेड़ का अपना अनुपम सौन्दर्य होता है। कटहल का पेड़ चाहे सबसे सुन्दर पेड़ों में गिना जा सकता है तो काँटेदार बेर भी इस मौसम में वैसे ही नहा धोकर सुन्दर दिखता है जैसे अपने विवाह के दिन कोई भी दुल्हन या दूल्हा!
मेरे इस घर की हर खिड़की से जो दृष्य दिखता है वह वर्षा में और भी सुन्दर व साफ हो जाता है वैसे ही जैसे धुँधले चश्मे को धोने के बाद सबकुछ साफ दिखता है। मैं पिछली बरसात से इस बरसात की प्रतीक्षा में हूँ। पूर्व में हराभरा घास का मैदान, उसपर लगे पेड़ों के झुन्ड और वह मैदान धीरे धीरे ऊपर को जाता हुआ पहाड़ी बन जाता है। उसके पार से सूर्योदय होता है। मैं सुबह की चाय सूर्योदय देखते हुए, कभी कभी उबाल आ जाने से गिराते हुए बनाती हूँ। यही दृश्य खाने के मेज, व माँ के कमरे की एक खिड़की से भी दिखता है। पश्चिम में खाड़ी, खाड़ी के बाद पहाड़ और पहाड़ पर होता हुआ सूर्यास्त का दृष्य! आकाश व बादल सुनहरे से लेकर लाल व संतरी हो जाते हैं और पानी की चाँदी अचानक सोना बन जाती है। प्रायः यह दृष्य मैं अपने कम्प्यूटर का उपयोग करते समय देखती हूँ। यही दृष्य मेरे कमरे की एक खिड़की व बैठक की बालकनी से भी दिखता है। यदि कभी सूरज आँख मिचौनी खेलने के मूड में होता है और मैं सूर्यास्त दैखने के, तो मैं इन्हीं तीनों खिड़कियों /बालकनी से दौड़ भागकर उसे देख ही लेती हूँ।
उत्तर में यदि मैं पास न देखूँ, केवल दूर बहुत दूर देखूँ तो पहाड़ और रात में जगमगाती बत्तियाँ दिखती हैं। कुन्तु यदि दूर न देखकर पास देखूँ तो नजरबट्टू सा एक नाला दिखता है। काश, मैं उसे कुछ अधिक देखती और कोसती। मैं तो चारों तरफ फैले पहाड़ों, पानी व हरियाली को देखती थी और नजरबट्टू होते हुए भी इस स्वर्ग को नजर लगा बैठी।
और ठंडी हवा! उसे मैं कैसे भूल सकती हूँ? यहाँ जैसी हवा तो कभी किसी ए सी ने भी नहीं दी।
वर्षा तुम जल्दी आना!इससे पहले कि मैं ये दृष्य छोड़ कहीं और चली जाऊँ तुम फिर से धो पोछकर मुझे मनमोहक दृष्य दिखा जाना। मुझे भर आँख व भर स्मृति यहाँ के सुन्दरतम दृष्य दिखा जाना। मैं इन दृष्यों को भी अपनी स्मृति में कैदकर अपने साथ ले जाऊँगी।
घुघूती बासूती
Tuesday, June 01, 2010
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'आमीन'
ReplyDeletejaldi aaye, khoob aaye, bas kosi ki baadh n aaye..
ReplyDeleteआमीन।
ReplyDeletehum bhi taras rahe hai
ReplyDeleteab to baras jaao
वर्षा तुम जल्दी आना!
ReplyDeleteवर्षा तुम जल्दी आना और देर तक रुकना।
ReplyDeleteहम तो अभी तक शहर की बारिश ही देखते रहे थे, जहां लोग पहले उसके आने का इंतजार करते हैं और फ़िर पानी भरने जैसी समस्याओं के कारण बारिश के आते ही और दुखी हो जाते हैं। अब पिछले दो साल से थोड़ा खुले में बारिश को महसूस किया है तो इसका महत्व समझ आया है। बहुत अच्छी तरह से आपने वर्षा की खूबसूरती और अहमियत को महसूस करवाया है।
ReplyDeleteआभार स्वीकार करें।
कमाल की पोस्ट.
ReplyDeleteबुला लो जी वर्षा को। हम भी तरस रहे हैं।
ReplyDeleteअब तो वाकई वर्षा के आने का समय हो भी चुका…
ReplyDeleteअब आ भी जाओ…
yar sab ko intjar hai
ReplyDeleteWe are also waiting for the rain ........
ReplyDeleteवर्षा तुम जल्दी आना! arthat Monsoon tum jaldi aana, prashanshniya rachna hetu badhai..........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लेख ,,,एक मनभावन सा मधुरा एहसास करता हुआ,,,,वर्षा ऋतु के बात ही कुछ और है ,,,,.hamare blog par to maansoon aa bhi gaya ek baar aa kar dekhe ,धन्यवाद
ReplyDeleteसबको वर्षा का इन्तजार है!
ReplyDeletebahut sundar .man mitti ki saoundhi se bhar utha .
ReplyDeletebahut hi sundar rachana. warsha ke sath sath man ke bhawo ka bhi bahut sundar chitran. badhai.
ReplyDeleteशब्दचित्र प्रशंसनीय ।
ReplyDeletesukhad sanyog ki bas jaipur mein abhi abhi barkha ki inayat hui hai.
ReplyDeleteजिस दिन मैं आऊँ अपने देश...
ReplyDeleteवर्षा भी संग संग आ जाए...यही कामना है...
वर्षा तुम जल्दी आना और झूम के आना....
ReplyDeleteaji ham bhi yahi pukaar rahe hain idhar ki varsha tum jaldi aana der tak rukna aur jhoom ke barasna.....
ReplyDeleteअरे सॉरी टाइटल पढ़कर मैं आ गई।
ReplyDeleteवर्षा मत कहो सॉरी
ReplyDeleteबरसो खूब सारी
सृष्टि रहेगी आभारी।
मीनाक्षी जी का
इंतजार है
बारिश आएगी
आप आएंगी
न भी आईं
तो प्रत्येक
बारिश में
आप जरूर
याद आएंगी।