ब्रेड बँटवारा और स्त्री /पुरुष विमर्श
समीरलाल जी उड़नतश्तरी की तश्तरी पर ब्रेड परोस लाए। और आज की मंहगाई में पेट पर बेल्ट कसते हुए ब्रेड का विभाजन भी बहुत बढ़िया तरीके से किया। सभी सद्भाव बनाए रहने वालों को उत्तर ३ ही सही लगा। परन्तु उसमें एक परेशानी है।
बँटवारा तो बराबर हुआ किन्तु पेट भी क्या बराबर भरा? बिल्कुल नहीं। सो यह तो पुरुष के साथ अन्याय हुआ।(अब मुझसे यह न पूछें कि पुरुष १ टुकड़ा क्यों खाता है और स्त्री आधा ही क्यों? शायद स्त्री को भूख कम लगती है़ शायद वह डायटिंग कर रही है, शायद पति को भूख अधिक लगती है। जो भी हो यह पहले से सुनिश्चित है कि वे कितना खाते हैं। इसपर बहस नहीं हो सकती।)
यदि ब्रेड के एक टुकड़े का भार ३० ग्राम है तो पति रोज ३० ग्राम खाता है और पत्नि १५ ग्राम। अब गरीबी वाले पाँचवे दिन यदि दोनों आधी आधी खाएँगे तो पत्नी को तो उसकी निश्चित खुराक १५ ग्राम मिल जाएगी किन्तु बेचारे पति को तो १५ ग्राम खा आधे पेट ही रहना होगा। सो यह सरासर अन्याय होगा।
सही तरीका होगा कि ब्रेड के तीन टुकड़े किए जाएँ। हर टुकड़ा १० ग्राम का। अब यदि पत्नी एक टुकड़ा जो १० ग्राम का है,खाए तो उसे अपनी दो तिहाई खुराक मिल जाएगी। पति दो टुकड़े खाए तो उसे भी २० ग्राम याने दो तिहाई खुराक मिल जाएगी।
तो देखिए हल सदा वे ही नहीं होते जो सामने दिख रहे होते हैं। हल ढूँढने पर मिल भी जाते हैं और वे लीक से हटकर भी हो सकते हैं। इसीलिए कहते हैं,डब्बे से निकलकर सोचिए। Think out of the box!That may also be called lateral thinking!
वैसे समीरलाल जी का यह स्त्री /पुरुष विमर्शियों में सद्भाव स्थापित करने का तरीका बहुत बढ़िया लगा। क्या ही अच्छा होता कि थोड़ा सा मक्खन व जैम भी ब्रेड पर लगा होता तो विमर्शों में मिठास भी घुल जाता।
घुघूती बासूती
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सुन्दर, सहज हल।
ReplyDeleteइसीलिए कहते हैं,डब्बे से निकलकर सोचिए।
ReplyDeleteसत्य कहा. क्या हल निकाला है!
good methmatics mam
ReplyDeleteand how about guest does wife shares from her share or husband
जब तक दोनों में त्याग की भावना हो. समस्या वैसे ही नहीं आएगी. वैसे आपका कैलकुलेशन पसंद आया.
ReplyDeleteबहुत बढिया हल.
ReplyDelete@ रचनाजी, ’गणित’ शब्द से अपरिचित हैं ? क्या हमारी तरह आप भी अंग्रेजी-विरोधी हैं इसलिए जानबूझकर methmatics लिखा है? - ताकि लोग अंग्रेजी छोड़ दें ?
ReplyDeleteगुलामी की पराकाष्ठा वह होती है जब गुलाम यह समझ ही न पाये कि वह गुलाम है ।
खूबसूरत हल ! प्रविष्टि का आभार ।
ReplyDeleteगणित बढिया है और हल भी अच्छा किया है .. पर स्त्री पुरूष विमर्श पेट भरने के लिए नहीं होता .. जहां वो स्थिति आती है तो संघर्ष करके पूरे परिवार का पेट पालते हुए दोनो को किसी और मुद्दे पर सोंचने की फुर्सत ही नहीं होती .. जहां पेट भरने के बाद दोनो पति और पत्नी खाली होते हैं .. वहीं से अतिरिक्त अधिकारों को पाने के झंझट की शुरूआत होती है !!
ReplyDelete:) गणित से बचने के लिए तो कॉमर्स लेकर सी ए बने..अब ब्रेड के चक्कर मे फिर..:)
ReplyDeleteअबसे एक दिन पहले ही स्टॉक भर लेंगे..
वैसे, आपकी सलाह उचित है.
वहां समीर लाल जी को जो कमेन्ट दिया था वही जस का तस यहां चिपका रहे हैं :-
ReplyDelete"हमने तो सारा हिसाब किताब पत्नी पर छोड़ा हुआ है , कितनी बन थीं ? किसको कितना मिला ? कब ख़त्म हुई ? जब ये ही पता नहीं , तो वो हमें क्या दर्जा देती हैं कैसे पता चलेगा ? यानि की हम जैसों पर एक अदद पहेली की गुंजाइश के साथ ही साथ अनुज प्रमेन्द्र प्रताप सिंह को टेंशन में डालने वाली एक पहेली का भी स्पेस है "
जीबी,
अब निवेदन ये है की अगर आप लोग मियां बीबी की बराबरी समझाने के लिए हमसे इतना गणित करवाओगे तो भैय्या हम तो भूखा रहना ही पसंद करेंगे !
गणित से इतना परहेज क्यों?
ReplyDeleteजन्म से लेकर मृत्यु तक गणित ही तो चलता है। इतने महीने में दाँत निकलने चाहिए, इतने में चलना, बोलना होना चाहिए। फिर कितनी उम्र हो गई,कितने अंक आए, कितने प्रतिशत आए, कितनी पगार मिली, कितने का सामान आया, कितना जोड़ हो गया भैया? यही सब तो चलता रहता है। फिर मरने पर भी लोग पूछते हैं कि क्या उम्र थी मृतक की। यदि हाल की औसत जीवन अवधि की अपेक्षा अधिक हो तो कम चचच, कम हो तो अधिक शोक!
यदि ब्लॉगर हो तो कितनी टिप्पणी मिलीं, कितनों ने पढ़ा, कितनों ने पसन्द किया, कितनीवीं पोस्ट हो गई यह आदि आदि। लोग एक पोस्ट यही कहते हुए लिख देते हैं कि शतक पूरा हुआ।
टी वी की टी आर पी या ऐसा ही कुछ, खिलाड़ियों के शतक,कितने ओवर में कितने रन चाहिए? क्या क्रिकेट देखते हुए मस्तिष्क लगातार कितने रन प्रति ओवर अब चाहिएँ का हिसाब नहीं करता रहता?
किसी रोग की घातकता भी इसी गणित से आँकी जाती है और किसी दवा की सार्थकता भी। गणित से बचा नहीं जा सकता।
घुघूती बासूती
"एक रोटी मिलेगी तो आधी आधी खायेंगे नहीं तो छाती से छाती मिलाकर सो जायेंगे ।' यह किसी लेखिका का वाक्य है ( शायद मन्नू भंडारी ..य़ा.. याद नही आ रहा ) लेकिन इस एक वाक्य ने मेरे बचपन में स्त्री और प्रेम के प्रति मेरी प्रगतिशील धारणाओं को पुष्ट किया ।
ReplyDeleteआपका हल ज्यादा सटीक और तार्किक है. उडनतश्तरी पर हमारे द्वारा दिया गया जवाब बदलने का सोच रहे हैं.:) शुभकामनाएं.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया समाधान !!!!!!!
ReplyDeleteगणित तो आप ने हल कर दी। पर ऐसा कोई जुगाड़ नहीं हो सकता कि दोनों भर पेट खाएँ और मेहमान को भी खिलाएँ।
ReplyDeleteअच्छा हल सुझाया आपने!
ReplyDeleteमेरा जवाब निश्चित रूप से 3 ही होगा ...!
ReplyDeleteअभी देखी समीरजी की पोस्ट तो हमारा जवाब इस प्रकार है।
ReplyDeleteजरूरी है जानना कि छठे दिन क्या होगा? क्या नया ब्रेड का पैकेट आयेगा? क्या ये हर हफ़्ते की समस्या है?
अगर ऐसा है तो सबसे आसान हल है कि
एक हफ़्ते पांचवे दिन पति उपवास करे और पत्नी आधे के बदले पूरा ब्रेड खाये लेकिन अधिक खाने के ऐवज में ५ मील की दौड लगाये इससे उसका स्वास्थ्य बढिया रहेगा। अगले हफ़्ते पत्नी उपवास करे और पति एक ब्रेड खाये, अब चूंकि पति नियमित रूप से ज्यादा भोजन खा रहा है इसके लिये उसको भले ही रोज से अधिक भोजन न मिला हो लेकिन ५ मील की दौड दौडनी पडेगी। भाई इतने दिनों से अधिक भोजन करने की आदत जो तोंद में दृष्टिगोचर हो रही होगी, उसको भी तो सुधारना है।
इसके कुछ हफ़्तों के बाद, दोनों सप्ताह के बाकी दिन भी थोडी दौड लगायें और वो भी साथ में। इससे उन्हे आपस में बातचीत करने का अधिक समय मिलेगा और स्वास्थ्य तो सुधरेगा ही।
हम इसलिये ऐसा लिख रहे हैं कि पिछले हफ़्ते दौडते समय एक पानी से भरे गड्ढे से बचते समय हमने छलांग लगायी और शायद ठीक से अपने बांये पैर पर लैंड नहीं कर पाये। उसके तीन दिन बाद जब मैराथन की तैयारी में २१ मील दौडे तो उसके बाद से पैर में दर्द है और अब एक हफ़्ते तक दौड न पायेंगे। उससे भी दुखद है कि १७ जनवरी को हमारी मैराथन दौड है और उसकी ट्रेनिंग का ये सबसे महत्वपूर्ण पडाव है और हम पैर पर बर्फ़ की पट्टी लगाये टिप्पणी लिख रहे हैं :(
वाह पूरा दिमाग ही डिब्बे से बाहर आ गया...
ReplyDelete:)
गुलामी की पराकाष्ठा वह होती है जब गुलाम यह समझ ही न पाये कि वह गुलाम है ।
ReplyDeletegulami ki parakshtha tab hotee haen jab log maalik sae nahin maalik ki bhasha sae ladtey haen
malik ki milkiyat tab tak hi hotee haen jab tak ham usko uski bhasha mae hi samjhana naa shuru kardae
aadhey sae jyada neta aaj bhi gulam haen agraezo kae aur divide and rule par vishvaas kartey
aflatoon sir wahaan samjhaaye
mujhe english sae bilkul parhej nahin haen kyuki mae inglish ki badolat hi kamaa saktee hun aur hypocracy sae dur rehtee hun
baaki sab tyoing error hota haen kyuki keyboard par haath bahut tej chahlane haen kam samay mae bahit kuch achieve karna haen
aap neta haen kisi naa kisi ko gaali daekar aap to kamaa khaa laegae ham beechare common man aaj up kae kis hissae mae haen abhi yahii mathematics jod rahey haen
tanch kasna bahut aasan haen !!!
ReplyDeleteमेरे यहाँ रखा हुआ बॅन अब तक अपनी ताज़गी खो चुका है ।
निरा भुरभुरा हो रैया है, यह तो !
मुझसे बॅन का चूरा तो नहीं खाया जायेगा ।
अब क्या किया जाये,
कोई और गणित ?
यहाँ पाक गणित काम आएगा। (अनुपात केवल शुल्क मिलने पर ही बताए जाते हैं।)
ReplyDeleteयदि बन केवल सूख गया है तो तोड़ फोड़कर सूप में डालकर उपयोग कर सकते हैं, यदि इन्हें बिना तले क्रुटॉन्स कहेंगे तो स्वाद बढ़ जाएगा। अंग्रेजी नाम प्रायः स्वाद में वृद्धि कर ही देते हैं। नहीं तो तोड़ फोड़कर तलकर असली क्रुटॉन्स बनाइए। यदि चूरा ही हुआ जा रहा है तो पूरा सुखाकर चूरा बनाकर उसे अंग्रेजी में ब्रेडक्रम्ब्स का नाम देकर आलू की कच्ची टिक्की पर लपेटिए और कटलेट्स कहते हुए तलिए और खाइए।
यदि यह सब उपाय न हो पाएँ तो किसी गाय, कुत्ते या कौवा छाप प्राणी को खोज उसे खिलाकर पुण्य प्राप्ति करिए। किस प्राणी को खिलाने से कितना पुण्य प्राप्त होगा यह बिना दक्षिणा नहीं बताया जा सकता।
घुघूती बासूती
विमर्श में मिठास कैसे? जब स्त्री-पुरुष विमर्श में रोटी का संघर्ष चल रहा हो :)
ReplyDeleteगणित बढिया है और हल भी । कहते हैं कि पुरुष का सरफेस एरिआ ज्यादा होता है तो उसे भूख भी ज्यादा लगती है ।
ReplyDeleteजीबी
ReplyDeleteये क्या कह डाला आपने हमें तो ये भी याद नहीं की हमने आखिरी बार जन्म दिन कब मनाया था , जिन्दगी में गुणा भाग अपना प्रिय विषय होता तो पत्नी पर बोझ ही क्यों बनते ! अब ये मत कह डालियेगा की पत्नी पर बोझ भी किसी गणित के तहत बने हैं !
( हमें गणित से परहेज नहीं बल्कि प्रावीण्यता की कमी है ! आखिर इसके बिना भी जिन्दगी गुजर ही रही है अपनी पत्नी की छत्र छाया में फिर शर्म कैसी ? )
हमारा बड़ी देर से यह पोस्ट पढना हुआ पर....... खैर.
ReplyDeleteआपका समाधान समीरजी तीसरे समाधान से भी आगे का है. न की कोई वैकल्पिक समाधान. जो जोड़ा आपके समाधान के अनुसार चलेगा वह गहरा प्रेम तो करता ही होगा, उनमे एक दूसरे की (और खुद की भी) ज़रूरतों के प्रति संवेदनशीलता होगी, पर खुद की ज़रूरतों के प्रति ग्लानी (गिल्ट) या स्वार्थ की भावना नहीं होगी. यह एक आदर्शवादी स्थिति है. आज यह संभव नहीं क्योंकी आज हम दूसरों की ज़रूरतों और अपने कर्तव्यों के ऊपर अपने अधिकार रखते हैं, हम सभी.
aap duniya ke sabase bade lokatantrik desh bharat mahan ke mahan nagarik ho aapko sare duniya ko roti khilani hai kanha aap ye chhoti moti roti ke chakkar me pade ho
ReplyDeletebhagyodayorganicblogspot.com