सन्तोष अहीरे जी ने आठ साल की बड़ी लम्बी मेहनत मशक्कत के बाद किसी तरह एक छुटके से स्टॉल का जुगाड़ किया और लग गए जूतों चप्पलों की मरम्मत कर अपना व अपने परिवार का पेट पालने। परन्तु वे क्या जानते थे कि इस एश्वर्य के लिए बहुत बड़ा बिल भी चुकाना पड़ता है। पहले महीने उनका बिजली का बिल ३० रुपए का था, दूसरे महीने ३७० रुपए और तीसरे महीने! तीसरे महीने बिल था २.०१५ लाख रुपए! मीटर भी स्टॉल के अन्दर है और उसके साथ कोई छेड़छाड़ भी नहीं हुई है।
जब वे बिजली विभाग में गए तो उन्हें बताया गया कि बिल सही है और वे आधा अभी भर दें अन्यथा बिजली काट दी जाएगी। ( टाइम्स औफ इन्डिया ११.१२.२००९)
अब यदि वे इतना बिल भर सकते तो मोची की दुकान लगाने के बदले जूतों का शोरूम न खोल लेते?
मुझे १९९८ में हमारे आन्ध्र प्रदेश के कड़पा जिले में बिताए दिनों की एक घटना याद गई। वहाँ हमारी कामवाली भी एक कमरे के मकान में रहती थी जहाँ उसने समझदारी कर बल्ब नहीं ट्यूबलाइट लगा रखी थी। एक बार उसका बिल भी चार हजार कुछ सौ रुपयों का आया। उसने बिजली विभाग में शिकायत की कि यह गलत है। वह केवल एक ट्यूबलाइट जलाती है। किन्तु उसकी सुनवाई नहीं हुई। बिल न भरने के कारण उसके घर की बिजली काट दी गई।
उन दिनों पिताजी भी हमारे साथ थे व वे मुख्यमंत्री चन्द्र बाबू नायडू के बारे में समाचार पत्रों में पढ़ते रहते थे कि कैसे वे हर शिकायत पर ध्यान देते हैं। सो उन्होंने कामवाली को सलाह दी कि वह एक पत्र उन्हें लिखे। उसने वही किया। और कुछ ही दिनों में बिजली विभाग वाले उसके घर आकर उसके घर की बिजली वापिस चालू कर गए और सही बिल भी दे गए।
कामवाली तो नायडू जी की बहुत बड़ी प्रंशसक बन गई। किन्तु वे अगला चुनाव हार गए। शायद जिन लोगों को उन्होंने सही रास्ते पर आने के लिए खींचा हो, जैसे बिजली विभाग वाले आदि ने उन्हें अपना मत नहीं दिया।
तो यह जादू किया नायडू को लिखे एक पत्र ने। परन्तु क्या कुछ और मुख्यमंत्री भी उनके जैसे तुरन्त कार्यवाही करने वाले हैं? शायद सन्तोष अहीरे जी भी पत्र लिखकर पता लगा सकते हैं। पता नहीं कि साधारण जनता के कष्ट दूर करने का खतरा सब मुख्यमंत्री भी उठाएँगे या नहीं।
घुघूती बासूती
Friday, December 11, 2009
एक बल्ब जलाना चाहते हैं तो दो लाख रुपए का जुगाड़ कर लें ! ....घुघूती बासूती
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"कामवाली तो नायडू जी की बहुत बड़ी प्रंशसक बन गई। किन्तु वे अगला चुनाव हार गए।"
ReplyDeleteहमारे देश में सही काम करने वाली की व्हैल्यु ही कहाँ है?
सही कहा आपने...अगर इतने रुपये उसके पास होते तो वो जूतों का शो रूम न खोल लेता...बिजली विभाग की कारस्तानियाँ होती ही ऐसी हैं...और बात बात पर बिजली काटने की धमकी देना उनका पुराना शौक रहा है...
ReplyDeleteनीरज
अंधेर नगरी में जिसके पास लाठी है उसी की भैंस !
ReplyDeleteगज्जब!
ReplyDeleteइस तरह की घटनाएं व्यथित कर देती हैं.बेचारे को दो समय की रोटी नहीं मिलती...इतनी बड़ी पहाड़ सी रकम कहाँ से चुकायेंगे वे
ReplyDeleteकरप्शन के इस दौर में नायडू जैसे सीएम बार-बार नहीं आते.. और बिजली के बिल की शिकायतें तो आम हैं.. एक बार मीटर घूमता है, तो बिजली वालों की मर्ज़ी से ही रुकता है.. आपने बढ़िया नब्ज़ पकड़ी है..
ReplyDeleteसीख: सही काम करने वालों को ठीकाने लगा दिया जाता है.
ReplyDeleteहां , बात वही ढाक के तीन पात तक रह जाती है । बिजली के बिल में यह बात आम है ।
ReplyDeleteपढ़ने वाले को उसकी अपनी कथा लगती है।
ReplyDeleteकुछ लोग कहते हैं मंत्री भ्रष्ट हैं, मुख्यमंत्री सही काम नहीं करते. मैं तो कहता हूँ कि यदि सब अपना काम करने लगें तो कुछ ग़लत हो ही ना. समस्या तो यही है कि लोग अपना काम नहीं करते चाहे वो मुख्यमंत्री हो या कोई बाबू .
ReplyDeleteइसे देखकर भारतेन्दु हरिश्च्रद का नाटक याद आ रहा है- अंधेर नगरी।
ReplyDelete------------------
सलीम खान का हृदय परिवर्तन हो चुका है।
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
जब पूरे कुँए में भांग पडी हो तो हर व्यवस्था
ReplyDeleteचौपट दिखेगी .. आपने तो एक का ही परिचय कराया ..
.......आभार ,,,
वाकई अंधेर नगरी!
ReplyDeleteन तो बिजली कटा हर गरीब नाइडू को पात्र लिख सका और न ही आत्महत्या करने वाला हर किसान उन्हें ईमेल भेज सका. जब विदेशी महमानों की यात्रा के लिए हैदराबाद चमकाया गया तो भिक्शावृत्ती के कारण ढूँढने के बजाय भिखारियों को जबरन पकड़कर, मार-कूटकर शहर से हटा दिया गया. जिस मुख्यमंत्री के लिए अनपढ़ गरीब एक व्यक्ति नहीं सिर्फ ढाबा है उसे अंततः जाना ही पडेगा. बाक़ी नेता अगर यह बात भूल भी जाएँ तो समय उन्हें याद दिलाएगा.
ReplyDeleteकहीं बिजलीचोर नेताओं का बिल तो नही जोड़ दिया!
ReplyDeleteइस लूटतन्त्र के चलते आज गरीब का जीना भी क्या जीना है....
ReplyDeleteसामाजिक मुद्दे को बहुत ही उम्दा ढंग से पेश किया है। शायद टाइम्स ऑफ इंडिया वाले इस तरह लिखने से चूक गए होंगे, अगर इस तरह से उन्होंने भी लिखा होता तो शायद मुख्यमंत्री की ना सही किसी बिजली वाले की आत्मा जाग जाती।
ReplyDelete:)
ReplyDeleteखिसियानी हंसी है यह.
कहीं तो रौशनी का दीया जलता दिखता है। कहीं न कहीं कोई उससे प्रेरणा जरूर लेगा।
ReplyDeleteमेरे सबसे छोटे मौसाजी भी बिजली विभाग में ही काम करते है। एक बार उनके घर का बिजली भी इसी तरह आया था उन्होंने तो विभाग में होने का फायदा मिल गया और असल बिल की जानकारी मिल गई लेकिन, शायद नियम ये है कि इस तरह के ग़लत बिलों पर भी सुनवाई बिल के भुगतान के बाद ही होती हैं।
ReplyDeleteकंटिया ही सबसे अच्छा तरीका है.
ReplyDeleteमेल द्वारा प्राप्तः
ReplyDeleteआपका ब्लाग पता नहीं क्यों मुझसे खुन्नस खाया हुआ है टिप्पणी करने में बहुत तंग करता है अब इसे यहीं संभालिये !
मैंने एक साल पहले घर बदलने से पहले मीटर रीडिंग करवाकर बिजली बिल चुकाया , अशेष प्रमाण पत्र भी ले लिया और अपने सामने कनेक्शन कटवा दिया जोकि आज भी कटा हुआ है लेकिन इनके चाल चलन पर क्या टिप्पणी करूं जो बिल आज भी मेरे नाम से जारी होते चले जा रहे हैं ! मैंने पूछा की ( बल्कि कहूं आपत्ति की ) मीटर बंद है कनेक्शन कटा हुआ है तो बिल कैसा ? वे बोले आप क्यों चिंता करते हैं इस घर में जो भी अगला व्यक्ति रहने आएगा पैसा हम उससे वसूल लेंगे ! उसे कनेक्शन लेना होगा तो झख मारकर पैसा भरेगा ! जायेगा कहां ?
ali syed